पितृ पक्ष के बाद मातृ पक्ष (नवरात्र) का आगमन होने को है. इस दौरान पूरे देश में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. मां दुर्गा असुरों का संहार करती हैं, तो अपने भक्तों को संरक्षण देती हैं. लेकिन असुर कभी नष्ट नहीं होते, एक का वध होता है, तो दूसरा पैदा हो जाता है. यह सदियों से होता आ रहा है और आगे भी होता रहेगा. दिलचस्प यह है कि भारत में फसलों से संबंधित हर त्योहार असुरों की मौत से जुड़े हैं या यूं कहें कि ये देवताओं की विजय के प्रतीक हैं.
।। डॉ देवदत्त पटनायक ।।
आदि-माया-शक्ति की प्रतीक दुर्गा अजेय हैं. वह एक ही समय में दुल्हन भी हैं और योद्धा भी. वे एक रूप में घर स्थापित करती हैं, सुख देती हैं, बच्चे पैदा करती हैं और भोजन उपलब्ध कराती हैं. दूसरे रूप में वह रणक्षेत्र में जाती हैं और वध करती हैं. जो उनकी शरण में आता है उसकी रक्षा करती हैं और जो चुनौती देता है, उसका संहार करती हैं. वह शेर को भी शांत कर उसे सवारी बना लेती हैं. वह अपने केश कभी नहीं बांधती. देवों और असुरों की बदलती किस्मत में एक तरह का लय है.
कोई भी हमेशा के लिए पराजित नहीं है. दोनों बराबरी करते दीखते हैं. ये संकेत देता है कि संसार के अस्तित्व के लिए असुर भी आवश्यक हैं. उनके बिना कोई संतुलन नहीं रहेगा. ईश्वर कभी असुर को नष्ट नहीं करते हैं. असुर को सिर्फउसकी जगह दिखा दी जाती है.
हिंदू जगत में असुर धरती के नीचे पाताल लोक में बने शहर हिरण्यपुर में रहते हैं. देव आकाश के ऊपर बने शहर अमरावती में रहते हैं. दोनों लोकों के बीच की जगह ही लड़ाई का मैदान है. नीचे बलि की कहानी है जो दयालु था पर धरती के ऊपर उसकी उपस्थिति से तीनों लोकों का संतुलन बिगड़ गया. व्यवस्था तभी बहाल हुई जब शिव ने उसे उसकी जगह दिखा दी, यानी धरती के नीचे भेज दिया.
* असुरों के राजा बलि
विशाल रूप धारण कर तीनों लोकों पर विजय पताका फहराने वाले विष्णु त्रिविक्र म कहलाये. पाताल लोक से असुरों के राजा बलि हर साल एक बार फसल कटने के समय ऊपर आते हैं. केरल में उनके ऊपर आने को ओणम पर्व के तौर पर मनाया जाता है. वहीं उत्तर भारत में इस अवसर पर दिवाली मनाते हैं. दिलचस्प रूप से फसलों से जुड़े हर पर्व का संबंध असुरों की मौत से है. दशहरा, दुर्गा के हाथों महिषासुर वध का प्रतीक है और दिवाली कृष्ण के हाथों नरक और त्रिविक्र म के हाथों बाली की हार से संबंधित है.
असुरों की मौत का फसलों की कटाई के पर्वों से संबंध कोई ऐसे ही नहीं है. संजीवनी विद्या के पालक के तौर पर असुर धरती की उर्वरता बहाल करते रहते हैं. और असुर को मारने के बाद और फसल काटने से ही धरा की देन को अपने हिस्से में किया जा सकता है.
पाताल लोक और फसलों की कटाई से असुरों के संबंध, बलि की दयालुता और ये तथ्य कि उसका शहर सोने से बना हुआ है ये संकेत देता है कि असुर धन के संरक्षक हैं. सभी धन चाहे वो पौधा हो या जानवर या खनिज सबकी उत्पत्ति धरती के नीचे से ही है. यहां तक कि लक्ष्मी के बारे में भी कहा जाता है कि वो पाताल में रहती हैं. असुरों को उस स्थिति में अधिक ताकतवर माना जाता है जब सूर्य दक्षिणायन होकर कर्कराशि से मकर राशि की ओर रु ख करता है. तब दिन छोटे और रातें सर्द हो जाती हैं. जब चांद छोटा होने लगता है तब भी असुरों की ताकत बढ़ती है. असुर रात को अधिक शक्तिशाली होते हैं. देवों के साथ असुर दिन, महीने और साल का चक्र पूरा करते हैं.
* शिव और शक्ति
मौसम आते हैं, जाते हैं. संस्कृति का उत्थान और पतन होता है. मूल्य बदल जाते हैं. मानक परिवर्तनीय हैं. सांसारिक सत्य शर्तों से जुड़े दिखते हैं. यह स्थान, समय और लोगों के विचारों के सापेक्षिक है. शिव वो भगवान हैं जो इन सांसारिक सत्यताओं में यकीन नहीं रखते. वह उस सच्चाई को खोजते हैं जो स्थायी है, पूर्ण है और बिना शर्त है. इसलिए वह दुनिया की ओर से अपनी आंखें बंद रखते हैं. वह यादों, इच्छाओं, विचारों और अहम को अपने चित्त में स्थान देने से मना करते हैं.
चित्त की शुद्धता ही ज्ञानोदय की ओर ले जाती है. ज्ञानोदय के साथ आता है आनंद, शांतिपूर्ण वरदान. ये वरदान सभी इच्छाओं के ऊपर है. महसूस करने और प्रतिक्रि या देने की कोई ललक नहीं है. शरीर या दुनिया की भी कोई जरूरत नहीं है. कोई क्रि या, प्रतिक्रि या या जवाबदेही नहीं है. कर्म नहीं है, इसलिए संसार नहीं है. विश्व का अस्तित्व नहीं है. जो भी अस्तित्व में है वो है आत्मा जो खुद के लिए सृजित एकांत में है. इसलिए शिव विश्व के संहारक भगवान हैं.
एक, एक ऐसी संख्या है जो निष्प्राण है, ऊसर है. जब सिर्फएक ही होता है तब न कोई प्यार होता है, न चाहत न संगम. किसी भी रिश्ते को बनाने के लिए कम से कम दो की जरूरत होती है. दूसरे के बिना खुद का कोई वजूद नहीं है. सत या सत्य को महसूस करने के लिए माया की जरूरत है; माया का मतलब शर्तों के साथ सांसारिक सच्चाइयां.
आत्मा के मौन को समझने के लिए ऊर्जा की बेचैनी की जरूरत है. देवी माया हैं जो सभी भ्रमों को आत्मसात करती हैं. वह शक्ति हैं, ऊर्जा का व्यक्तिपरक रूप. वह आदि हैं. मतलब उतनी प्राचीन और सीमाहीन जितनी आत्मा. समय, स्थान और फैसलों के आधार पर वह उतनी ही जंगली और डरावनी हो सकती हैं जितनी काली. पर दूसरी ओर उतनी ही दयालु और प्यारी हो सकती हैं जैसी गौरी हैं. वह दुनिया हैं जिससे शिव ने अपने को दूर रखा है. वह उनके दिल में प्यार लाने की कोशिश करेगी, आंखें खोलने पर मजबूर करेंगी और सांसारिक जीवन में लाने की कोशिश होगी. प्यार दैवीय अंतरतम का संपर्कदैवीय बाहरी दुनिया से करायेगा. ये ललक और संगम सभी चीजों के अस्तित्व को वैधता प्रदान करेगा.
(पेंगुइन हिंदी से प्रकाशित डॉ. देवदत्त पटनायक की किताब मिथक=मिथ्या के कुछ चुने हुए अंश. प्रकाशक की अनुमति से प्रकाशित)
लेखक परिचय : डॉ देवदत्त पटनायक ने मेडिकल साइंस में शिक्षा-दीक्षा हासिल की है. हालांकि पेशे से वो मार्केटिंग मैनेजर हैं और रु चि से पौराणिक कथाकार. लेखक अब तक कई चर्चित किताबें भी लिख चुके हैं.