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भारत में कोयला भंडार और खनन

सर्वोच्च न्यायालय ने 1993 से 2011 के बीच हुए सभी 218 कोयला ब्लॉक आवंटनों को मनमाना और गैरकानूनी करार देते हुए, सरकारी कंपनियों द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे चार ब्लॉकों को छोड़, अन्य 214 आवंटनों को रद्द कर दिया है. बीते 25 अगस्त को अदालत ने कहा था कि 14 जुलाई, 1993 के बाद से […]

सर्वोच्च न्यायालय ने 1993 से 2011 के बीच हुए सभी 218 कोयला ब्लॉक आवंटनों को मनमाना और गैरकानूनी करार देते हुए, सरकारी कंपनियों द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे चार ब्लॉकों को छोड़, अन्य 214 आवंटनों को रद्द कर दिया है.
बीते 25 अगस्त को अदालत ने कहा था कि 14 जुलाई, 1993 के बाद से हुए कोल-ब्लॉक आवंटनों में दिशा-निर्देशों का उल्लंघन हुआ है और राष्ट्रीय संपत्ति गलत तरीके से वितरित की गयी है. कोयला ब्लॉकों के आवंटन और अदालत द्वारा इन्हें रद्द करने के फैसले के संभावित परिणामों पर चर्चा करने के साथ-साथ, भारत में कोयला खनन के इतिहास और देश-दुनिया में कोयले के भंडार, उत्पादन और मांग से संबंधित जरूरी तथ्यों पर नजर डाल रहा है आज का विशेष..
कोयला खदानों के आवंटन पर विवाद तारीख दर तारीख
सर्वोच्च न्यायालय ने 24 सितंबर को अपने अहम फैसले में 1993 से 2011 के बीच हुए 214 कोयला ब्लॉक आवंटनों निरस्त कर दिया है. मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा, न्यायाधीश मदन बी लोकुर और न्यायाधीश कुरियन जोसेफ की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया.
इस महत्वपूर्ण निर्णय की पृष्ठभूमि में देश में 1993 के बाद हुए कोयला खदानों के आवंटनों और इस पर उठे विवाद की टाइमलाइन पर एक नजर-
– 14 जुलाई, 1992 : कोल इंडिया लिमिटेड और सिंगरेनी कोइलियरीज कंपनी लिमिटेड के उत्पादन योजना से बाहर के कोयला ब्लॉकों को चिह्न्ति कर 143 ब्लॉकों की सूची तैयार की गयी.
– 1993 से 2010 : 1993 से 2005 के बीच 70, वर्ष 2006 में 53, वर्ष 2007 में 52, वर्ष 2008 में 24, वर्ष 2009 में 16 और 2010 में एक कोयला ब्लॉक आवंटित किये गये. इस प्रकार 1993 से 2010 के बीच 216 ब्लॉकों का आवंटन हुआ, जिनमें से 24 को विभिन्न कारणों से वापस ले लिया गया था. इस प्रकार, इस अवधि में आवंटित ब्लॉकों की वास्तविक संख्या 194 रही.
– मार्च 2012 : नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने अपनी प्रारूप रिपोर्ट में केंद्र सरकार पर 2004 से 2009 के बीच अक्षम तरीके से ब्लॉकों के आवंटन का आरोप लगाया और आवंटितों को करीब 10.7 लाख करोड़ रुपये का अनुचित लाभ होने का आकलन किया.
– मई 29, 2012 : तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने खुद पर लगे आरोपों के जवाब में कहा कि यदि वे घोटाले में दोषी पाये जाते हैं, तो सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले लेंगे.
– मई 31, 2012 : भाजपा नेताओं- प्रकाश जावडेकर और हंसराज अहीर- की शिकायत के आधार पर केंद्रीय सतर्कता आयोग ने कोयला आवंटन मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो से कराने का आदेश दे दिया.
– जून, 2012 : कोयला मंत्रालय ने आवंटन की प्रक्रिया की समीक्षा और आवंटन रद्द करने या बैंक गारंटी जब्त करने का निर्णय लेने के लिए अंतर-मंत्रीय पैनल का गठन किया. तब से सरकार ने लगभग 80 कोयला क्षेत्रों को वापस लिया है और 42 मामलों में बैंक गारंटी जब्त कर ली गयी हैं.
– अगस्त, 2012 : संसद मे पेश नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की अंतिम रिपोर्ट में सरकारी खजाने को हुए नुकसान की राशि पहले के आकलन से कम करते हुए 1.86 लाख करोड़ रुपये आंकी गयी.
– 25 अगस्त, 2012 : सरकार ने दावा किया कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा किया गया नुकसान का आकलन गलत है, क्योंकि अब तक तो खनन भी शुरू नहीं हुआ.
– 27 अगस्त, 2012 : तत्कालीन प्रधानमंत्री ने महालेखा परीक्षक की आलोचना की.
– 6 सितंबर, 2012 : 194 कोयला ब्लॉकों के आवंटन को रद्द करने की मांग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल. न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा की जा रही जांच की निगरानी करना शुरू किया.
– मार्च, 2013 : सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो को जांच के विवरण सरकार से साझा करने से मना किया.
– 23 अप्रैल, 2013 : कोयला एवं इस्पात पर संसद की स्थायी समिति ने संसद में प्रस्तुत एक रिपोर्ट में कहा कि 1993 से 2008 के बीच हुए कोयला ब्लॉकों का वितरण अनधिकृत तरीके से हुआ. समिति ने यह संस्तुति दी कि जिन खदानों में अभी उत्पादन शुरू नहीं हुआ है, उन्हें रद्द कर दिया जाये.
– 26 अप्रैल, 2013 : केंद्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक रंजीत सिन्हा ने न्यायालय में शपथ-पत्र देकर कहा कि जांच रिपोर्ट कानून मंत्री अश्वनी कुमार के साथ साझा की गयी.
– 10 मई, 2013 : अश्वनी कुमार ने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दिया.
– 11 जून, 2013 : केंद्रीय जांच ब्यूरो ने नवीन जिंदल और दासारी नारायण राव के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया.
– 16 अक्तूबर, 2013 : केंद्रीय जांच ब्यूरो ने उद्योगपति कुमार मंगलम बिरला और पूर्व कोयला सचिव पीसी परख के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया.
– जुलाई, 2014 : सर्वोच्च न्यायालय ने कोयला खदानों के आवंटन से सभी मामलों की सुनवाई के लिए विशेष केंद्रीय जांच ब्यूरो अदालत का गठन किया.
– अगस्त, 2014 : केंद्रीय जांच ब्यूरो ने बिरला और परख के विरुद्ध अपने मुकदमे को बंद करने का फैसला लिया.
(‘द हिंदू’ से साभार)
कोयला भारतीय उद्योग का आधारभूत ऊर्जा-स्नेत है. इसीलिए देश में 1993 के बाद हुए कोयला ब्लॉकों के आवंटनों को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द करने का निर्णय दूरगामी असर डाल सकता है.
इन असरों के विश्लेषण के साथ-साथ भारत में कोयला खनन के इतिहास पर नजर डालना, साथ ही कोयले के महत्व और उसकी जरूरत को समझना आवश्यक है. भारत में आजादी के बाद करीब दो-ढाई दशकों तक भूगर्भीय कोयले पर सरकारी नियंत्रण नहीं था. 1971-72 में कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण किया गया और खनन के संबंध में नीतियां निर्धारित की गयीं.
कोयला खनन का इतिहास
भारत के वाणिज्यिक कोयला उद्योग का इतिहास गौरवपूर्ण रहा है. बताया जाता है कि वर्ष 1774 में जॉन सुमनेर और हिटली ने रानीगंज कोयला क्षेत्र और साथ में दामोदर नदी के पश्चिमी किनारे में कोयला खनन का काम शुरू किया था.
हालांकि, शुरुआती दौर में कोयले की ज्यादा मांग नहीं होने के कारण इसका खनन सीमित मात्र में ही किया जाता था. वर्ष 1853 के बाद इसकी मांग में अचानक से तेजी उस समय आयी जब ब्रिटिश सरकार ने भारत में ट्रेन की शुरुआत की. भाप इंजन में कोयले की खपत होने के चलते इसकी मांग बढ़ गयी. आरंभिक वर्षो में जहां कोयले का उत्पादन सालाना औसतन एक लाख टन हुआ करता था, वहीं भाप इंजन के आने से धीरे-धीरे इसकी मांग और उत्पादन बढ़ता गया.
वर्ष 1900 तक आते-आते इसका उत्पादन 6.12 मीट्रिक टन और 1920 तक 18 मीट्रिक टन सालाना हो गया. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कोयले का उत्पादन तेजी से बढ़ा, लेकिन 1930 के दशक के आरंभ में इसमें कुछ कमी आयी. 1942 में इसका उत्पादन 29 मीट्रिक टन और 1946 में 30 मीट्रिक टन हुआ था.
आजादी के बाद
आजादी के बाद देश में पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत हुई. तब वैज्ञानिक तरीके और व्यवस्थित रूप से कोयले का उत्पादन करते हुए क्षमता विस्तार के मकसद से 1956 में भारत सरकार ने रेलवे के मालिकाना हक में आने वाली खदानों के सहयोग से सार्वजनिक प्रतिष्ठान के तौर पर नेशनल कोल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एनसीडीसी) का गठन किया.
भारतीय कोयला उद्योग में इस परिघटना को बड़े योजनागत विकास के रूप में जाना जाता है. हालांकि, सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (एसएससीएल) 1945 से ही अस्तित्व में थी, जिसे 1956 में सरकारी नियंत्रण में कर दिया गया. इस प्रकार 1950 के दशक में सरकार के पास दो कोयला कंपनियां हो चुकी थीं.
राष्ट्रीयकरण
आरंभिक दौर से लेकर आधुनिक युग तक भारत में कोयले का कारोबार तौर पर किया जाने वाला खनन घरेलू जरूरतों के आधार पर तय होता रहा है. स्टील इंडस्ट्री की बढ़ती जरूरतों के बीच झरिया कोलफील्ड्स में कोकिंग कोल रिजर्व का व्यवस्थित तरीके से खनन किया जाने लगा. बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिएप्राइवेट कोयला खान मालिकों को पर्याप्त पूंजी निवेश की जरूरत थी.
कुछ निजी खदानों में अवैज्ञानिक खनन प्रक्रिया अपनाने और मजदूरों के लिए खराब दशा ने इस ओर सरकार का ध्यान आकर्षित किया. इन्हीं कारणों से केंद्र सरकार ने निजी कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण करने का फैसला लिया.
राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया को दो चरणों में अंजाम दिया गया. वर्ष 1971-72 में पहले चरण में कोकिंग कोल माइंस का और 1973 में नॉन-कोकिंग कोल माइंस का राष्ट्रीयकरण हुआ. अक्तूबर, 1971 में कोकिंग कोल माइंस (इमर्जेसी प्रोविजंस) एक्ट, 1971 के तहत कोकिंग कोल माइंस का नागरिक हित में राष्ट्रीयकरण किया गया.
इसके बाद कोकिंग कोल माइंस (नेशनलाइजेशन) एक्ट, 1972 के तहत एक मई, 1972 को टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड और इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड के दायरे में आनेवाले खदानों को छोड़ कर अन्य सभी खदानों का राष्ट्रीयकरण किया गया और इन सभी को भारत सरकार के नये उपक्रम भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) के अधीन कर दिया गया.
इसके बाद कोल माइंस (टेकिंग ओवर ऑफ मैनेजमेंट) एक्ट, 1973 के नाम से एक अन्य अधिनियम लाया गया. इस अधिनियम से सरकार के अधिकार का दायरा बढ़ गया और भारत सरकार ने 1971 में अपने अधीन लिये गये कोकिंग कोल माइंस समेत सात राज्यों में नॉन-कोकिंग और कोकिंग कोल माइंस का प्रबंधन अपने नियंत्रण में ले लिया.
कोल माइंस (नेशनलाइजेशन) एक्ट, 1973 के अधिनियमन के साथ ही एक मई, 1973 तक इन सभी खदानों की राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया पूरी हो गयी, जो अब भारत में कोयला खनन की पात्रताको निर्धारित करने के लिए केंद्रीय नियमन के तौर पर प्रयोग में लायी जाती है.
कोर्ट के आदेश का पड़ेगा बिजली कंपनियों पर असर
नरसिंह राव सरकार द्वारा 1991 में शुरू की गयी आर्थिक उदारीकरण की नीतियों के तहत 1990 के दशक में कोयला उत्पादन में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाने के मकसद से बिजली और इस्पात कंपनियों को कोयला खदान आवंटित करने पर विशेष ध्यान दिया गया था. इन कंपनियों ने भी इस प्रक्रिया में खूब दिलचस्पी दिखायी थी, लेकिन अब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 1993 से 2011 तक के सभी आवंटनों को अवैध घोषित किये जाने के बाद से ही भविष्य को लेकर अनिश्चय की स्थिति बन गयी है.
बिजली उत्पादकों ने खनन से संबंधित परियोजनाओं में 2,86,677 करोड़ रुपये का निवेश किया है, जो देश के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का तीन फीसदी है. देश के कुल बिजली उत्पादन क्षमता की 58.75 फीसदी परियोजनाएं कोयला-आधारित हैं.
इस फैसले का एक नतीजा कोल इंडिया पर भार बढ़ने के रूप में भी हो सकता है, क्योंकि बिजली कंपनियों को ईंधन के लिए कोयला कोल इंडिया से लेना पड़ सकता है. 2013-14 में कोल इंडिया ने 462 मिलियन टन कोयला उत्पादन किया था, जबकि उसका लक्ष्य 482 मिलियन टन का था. कोयला मंत्रालय का अंदाजा है कि 2016-17 में 950 मिलियन टन की अनुमानित मांग में स्थानीय आपूर्ति में 185 मिलियन टन तक की कमी हो सकती है.
बिजली उत्पादकों का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से उत्पन्न संकट से निपटने के लिए सरकार को तुरंत पहल करने की जरूरत है.
(‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ की रिपोर्ट पर आधारित)
कोयला
कोयला एक कार्बनिक पदार्थ है, जिसे आमतौर पर ईंधन के रूप में इस्तेमाल में लाया जाता है. आमतौर पर लकड़ी के अंगारों को बुझाने से बच हुए जले हिस्से को कोयला कहा जाता है. लेकिन, मुख्य रूप से कोयला उस खनिज पदार्थ को कहा जाता है, जिसे दुनियाभर में मौजूदा खदानों के भीतर से निकाला जाता है.
कोयला एक तरफ जहां ऊर्जा हासिल करने या औद्योगिक ईंधन का एक महत्वपूर्ण साधन है, वहीं विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चे माल का स्नेत भी है.
किस्में
कार्बन की मात्र के आधार पर कोयला चार प्रकार का होता है-
पीट कोयला : इसमें कार्बन की मात्र 50 से 60 फीसदी तक होती है. इसे जलाने पर अधिक राख और धुआं निकलता है. यह सबसे निम्न कोटि का कोयला है.
लिग्नाइट कोयला : इसमें कार्बन की मात्र 65 से 70 फीसदी तक होती है. इसका रंग भूरा होता है. इसमें जलवाष्प की मात्र अधिक होती है.
बिटुमिनस कोयला : इसे मुलायम कोयला भी कहा जाता है. इसका उपयोग घरेलू कार्यो में होता है. इसमें कर्बन की मात्र 70 से 85 फीसदी तक होती है.
एंथ्रासाइट कोयला : यह कोयले की सबसे उत्तम कोटि का होता है. इसमें कार्बन की मात्र 85 फीसदी से भी ज्यादा होती है.
भारत में उत्पादन
भारत के कुल कोयला उत्पादन का सर्वाधिक हिस्सा गोंडवाना युगीन चट्टानों में मिलता है. यह पूरा इलाका तकरीबन 90,650 वर्ग किमी में फैला हुआ है. इसका सबसे प्रमुख क्षेत्र पश्चिम बंगाल, झारखंड और ओड़िशा राज्यों में फैला है, जहां से कुल उत्पादन का 76 प्रतिशत कोयला हासिल किया जाता है. इसके अलावा, 17 प्रतिशत कोयला मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ तथा छह प्रतिशत कोयला आंध्र प्रदेश में मिलता है.
गोंडवाना युगीन कोयला मुख्य रूप से बिटुमिनस प्रकार का है, जिसका इस्तेमाल कोकिंग कोयला बनाकर देश के लौह-इस्पात के कारखानों में किया जाता है. प्रायद्वीपीय भारत की नदी-घाटियां कोयला के प्रमुख प्राप्ति स्थल हैं. इनमें दामोदर नदी घाटी, सोन-महानदी, ब्राह्नणी नदी घटी, वर्धा-गोदावरी-इंद्रावती नदी तथा कोयला-पंच-कान्हन नदी घाटी प्रमुख हैं.
प्रमुख उत्पादक क्षेत्र
झारखंड राज्य में झरिया, बोकारो, गिरिडीह, रामगढ़, उत्तरी एवं दक्षिणी करनपुरा, औरंगा, हुटार, डाल्टेगंज और बिहार के ललमटिया इलाकों में उत्तम कोटि का बिटुमिनस कोयला निकाला जाता है. झरिया कोयला क्षेत्र 450 वर्ग किमी इलाके में फैला है. इस इलाके से इस राज्य का करीब 50 प्रतिशत कोयला निकाला जाता है. गिरिडीह कोयला क्षेत्र में बराकर श्रेणी की शैलों में कोयला मिलता है.
बोकारो क्षेत्र झरिया के पश्चिम में स्थित है और इसका इलाका 674 वर्ग किमी है. यहां पर 305 मीटर की गहराई तक 53 करोड़ टन कोयला होने का अनुमान लगाया गया है. पश्चिम बंगाल राज्य का रानीगंज कोयला क्षेत्र ऊपरी दामोदर नदी घाटी में है, जो भारत का सबसे महत्त्वपूर्ण और बड़ा कोयला भंडार है. इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 1,500 वर्ग किमी है. इसमें बराकर तथा रानीगंज श्रेणियों का उत्तम कोयला निकाला जाता है. सोनाघाटी कोयला क्षेत्र का विस्तार मध्य प्रदेश तथा ओड़िशा राज्यों में फैला है.
यहां के तातापानी- रामकोला कोयला क्षेत्र को छत्तीसगढ़ कोयला क्षेत्र के नाम से जाना जाता है. ओड़िशा का तलचर कोयला ब्राह्मणी नदी घाटी में फैला है, जहां की करहरवाड़ी कोयला परत विख्यात है. महाराष्ट्र की गोदावरी और वर्धा नदी घाटियों तथा सतपुड़ा पर्वतीय क्षेत्र में भी कोयले का उत्खनन किया जाता है.

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