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कोल ब्लॉकों का आगे क्या होगा?

भाग : एकएनके सिंह देश की सर्वोच्च अदालत ने, 1993 से लेकर 2011 तक जितने भी कोल ब्लॉक विभिन्न सरकारों द्वारा आवंटन किये गये थे, उनमें से चार को छोड़ बाकी सभी 214 का आवंटन रद्द कर दिया है. ये कोल ब्लॉक अपारदर्शी ढंग से आवंटित किये गये थे. अदालत का यह फैसला न केवल […]

भाग : एक

एनके सिंह

देश की सर्वोच्च अदालत ने, 1993 से लेकर 2011 तक जितने भी कोल ब्लॉक विभिन्न सरकारों द्वारा आवंटन किये गये थे, उनमें से चार को छोड़ बाकी सभी 214 का आवंटन रद्द कर दिया है. ये कोल ब्लॉक अपारदर्शी ढंग से आवंटित किये गये थे. अदालत का यह फैसला न केवल सरकारों के लिए अपितु उन कॉरपोरेट घरानों के लिए भी एक चेतावनी है, जो यह समझते हैं कि किसी भी प्रकार से, चाहे वह गैरकानूनी ही क्यों न हो, कुछ भी हासिल कर मनमाना लाभ कमाया जा सकता है. इन कोल ब्लॉकों का आवंटन तो रद्द हो गया, लेकिन आगे क्या होगा, अब इस पर भी विचार करना आवश्यक है.

कोयला ऊर्जा-सुरक्षा के लिए अति आवश्यक है. हमें इसका उत्पादन बढ़ाना होगा. हम आयातित कोयले पर निर्भर रह कर सुरक्षित नहीं रह सकते हैं, न विकास कर सकते हैं. जिन कोल ब्लॉकों का आवंटन रद्द किया गया है, उनमें से 40 से कोयले का अभी उत्पादन हो रहा है. सर्वोच्च अदालत ने इनके लिए छह महीने का समय दिया है, ताकि इसका स्थायी निदान खोजा जाये तथा उत्पादन बाधित न हो.

एमएमआरडी एक्ट 1957 में अब संशोधन कर दिया गया है, जिससे यह निश्चित हो गया है कि कोल ब्लॉक का आवंटन सिर्फ नीलामी के जरिये ही होगा. यहां यह साफ करना आवश्यक होगा कि कोल ब्लॉक की नीलामी बहुत सरल काम नहीं है. जो लोग यह समझते हैं कि जिन ब्लॉकों का आवंटन रद्द किया गया है, उनकी तुरंत नीलामी करके उनमें काम प्रारंभ किया जा सकता है, तो उनको यह समझना चाहिए कि इसमें बहुत सी पेचीदगियां होती हैं.

नीलामी की सबसे पहली शर्त होगी प्रत्येक ब्लॉक की न्यूनतम रिजर्व कीमत तय करना. यह काम बहुत से मानदंडों पर निर्भर करता है. जैसे-ब्लॉक में कोयले की मात्र तथा उसकी गुणवत्ता, भू-गर्भीय कठिनाइयां, सतह की संरचना, कोयले के सीम की गहराई, मोटाई आदि. इन सबका पता लगा कर इनके विशद अध्ययन एवं विवेचना की आवश्यकता होती है, जिसमें बहुत समय लगता है. अगर जल्द की गयी तो भयंकर भूल होने की आशंका रहती है.

जितने कोल ब्लॉक रद्द किये गये हैं, उनमें से कुछ की पूरी पड़ताल (एक्सप्लोरेशन) हो चुकी है, लेकिन कई में सिर्फ आंशिक रूप से काम हुआ है. जिन ब्लॉकों की केवल आंशिक पड़ताल हुई है, उनकी न्यूनतम रिजर्व कीमत तय करना खतरे से खाली नहीं है. क्योंकि हर मानदंड अनुमान पर आधारित होगा. अत: जो भी एजेंसी इनकी रिजर्व कीमत तय करेगी, उस पर उंगली उठाना अवश्यभावी है.

शायद ऐसे ब्लॉक की नीलामी हो ही नहीं. जिन ब्लॉक की पूरी पड़ताल हुई है, उनका भी रिजर्व प्राइस तय करना आसान नहीं है. अधिकतर ब्लॉकों का ठीक-ठीक स्थल सर्वेक्षण भी नहीं हुआ है. सर्वेक्षण करने में ही बहुत समय लगेगा. ऊपर बताये गये मानदंडों के अलावा एक बहुत महत्वपूर्ण फैक्टर है कि कोल ब्लॉक किस प्रांत में है. अपने देश में विभिन्न प्रांतों के भू-राजनीतिक हालात अलग-अलग हैं. इनका खनन की स्थितियों एवं उत्पादन लागत पर प्रभाव पड़ता है. नीलामी में इन बातों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

नीलामी में एक सर्वथा नयी अड़चन आनेवाली है. जो वर्तमान ब्लॉक आवंटी हैं, उनमें से बहुत से लोगों ने या तो पूर्ण या आंशिक रूप से जमीन अधिग्रहण कर लिया है. कई ने जमीन खरीद ली है. अगर ऐसे ब्लॉक नीलामी के दौरान वर्तमान आवंटी को मिलते हैं तब तो बहुत समस्या नहीं होगी, लेकिन अगर किसी नये व्यक्ति या कंपनी को मिलता हैं, तो उसके लिए परेशानी होगी. सर्वोच्च न्यायालय ने कोल ब्लॉकों का आवंटन रद्द किया है, क्योंकि आवंटन अवैध था, लेकिन खरीदी हुई जमीन तो अवैध नहीं है. (जारी)

लेखक एसइसीएल, बिलासपुर में निदेशक, तकनीकी रह चुके हैं

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