बुलंद हौसले से जी रहीं जिदंगी
मोइन आजाद तेजाब ने तोड़ दिये सारे अरमान, फिर भी स्त्री यानी मां, वात्सल्य, प्रेम, त्याग, खुशी.. न जाने और कितने नाम. शायद नहीं कर बांध सकते उसे शब्दों में. आज जब वक्त बदला है, तो उसकी भूमिका भी बदली है. शारदीय नवरात्र के उपलक्ष्य में ‘शक्तिशालिनी ’ श्रृंखला की अगली कड़ी में आज पढ़ें […]
मोइन आजाद
तेजाब ने तोड़ दिये सारे अरमान, फिर भी
स्त्री यानी मां, वात्सल्य, प्रेम, त्याग, खुशी.. न जाने और कितने नाम. शायद नहीं कर बांध सकते उसे शब्दों में. आज जब वक्त बदला है, तो उसकी भूमिका भी बदली है. शारदीय नवरात्र के उपलक्ष्य में ‘शक्तिशालिनी ’ श्रृंखला की अगली कड़ी में आज पढ़ें बिहार के मनेर की चंचल की कहानी. चंचल और उसकी बहन सोनम पर भी जालिमों ने तेजाब फेंक कर डराया-धमकाया, लेकिन ये डरी नहीं और इंसाफ की लड़ाई लड़ रही हैं..
पटना : ‘‘दो साल पहले 21 अक्तूबर, 2012 की रात को हर तरफ खुशनुमा माहौल था. रोशनी छायी हुई थी, क्योंकि तीन दिन बाद दशहरा जो था. मैं और मेरी छोटी बहन सोनम छत पर सो रही थी. मेरी नींद अचानक टूटी, तो देखा कि किसी ने मेरा हाथ पकड़ा और किसी ने पैर. मैं कुछ समझ पाती, उसके पहले ही उन्होंने मुझ पर कटोरे में भर कर लाया तेजाब उड़ेल दिया. मैं जोर से चीखी. सोनम बगल में सो रही थी. उसके हाथ पर भी तेजाब गिरा. हम दोनों चीखे. वे लड़के भाग गये. दौड़ते-दौड़ते पिताजी और मां आये. उन्होंने मुझ पर पानी डालना शुरू किया.
पहले तो मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक हुआ क्या है? बस मैं दर्द और जलन से चीख रही थी. मुझे लगा शायद मेरे ऊपर उबला पानी या खौलता तेल डाल दिया गया है. उस वक्त मुझे और कुछ नजर नहीं आ रहा था, सिवाय मेरे चेहरे से निकल रहे धुएं के. ’’
यह आपबीती चंचल और सोनम की जुबानी है, जो मनेर में अपने पिता शैलेश पासवान और मां सुनैना के साथ रहती हैं. उस रात हुई इस दर्दनाक घटना ने कंप्यूटर इंजीनियर बनने का सपना देखनेवाली चंचल की जिंदगी एक पल में बदल दी. कुछ कर दिखाने का जज्बा और जुनून लिये चंचल अपने घर से चार मील दूर कंप्यूटर का क्लास करने जाया करती थी. रास्ते में उसे चार लड़के छेड़ा करते थे. उनमें से एक लड़का बार-बार कहता था – हमसे शादी कर लो या हमारे साथ भाग चलो. चंचल उसे जवाब देती थी-तुम मेरी जाति के नहीं हो. कैसे कर लें तुमसे शादी. लेकिन, लड़का एक न सुनता था. कभी अश्लील बातें करता था, गालियां देता था, तो कभी हाथ पकड़ लेता था. वह बड़ी मुश्किल से हाथ छुड़ाती थी और भाग जाती थी.
चंचल अपने पिता को यह बात घर आकर बताती थी. कहती थी कि पुलिस में शिकायत कीजिए. लेकिन, उसके पिता कहते- बेटा, हम मजदूरी करके कमाने-खानेवाले लोग हैं. काहे को लफड़े में पड़ना. आखिरकार 21 अक्तूबर की रात उन लड़कों ने अपनी बात साबित कर दी और सो रही चंचल पर तेजाब फेंक दिया. इससे उसका 90 प्रतिशत चेहरा जल गया. साथ ही उसकी बहन की जिंदगी भी बरबाद हो गयी है. सोनम, जिसे बचपन से ही कम दिखता है, उसके हाथों पर तेजाब गिरा. अब वह अपना एक हाथ नहीं हिला सकती है. दोनों बहनें अब घर पर ही रहती हैं.
बिना शरमाये अपने चेहरे से कपड़ा हटा देती : चंचल कहती है, मुझे क्या परेशानी है, वह मैं जानती हूं. मैंने कुछ साल पहले सपना देखा था कि मैं पढ़-लिख कर कुछ बनूंगी. मैंने इस साल इंटरमीडिएट किया है. 19 नंबर से सेकेंड नहीं हो पायी. इस परेशानी और जख्म के दर्द में पढ़ाई करके थर्ड डिवीजन लायी, मैं इस बात से खुश हूं. चंचल के पिता बताते हैं कि परीक्षा सेंटर खगौल में था. जब ऑटो से बेटी को ले जाता, तो सारे लोग पूछते कि क्या हुआ है.
चंचल बिना शरमाये अपने चेहरे से कपड़ा हटा देती और कहती कि कुछ दरिंदों ने ये हाल किया है. परीक्षा सेंटर पर सत्यापन के लिए गार्ड चेहरा दिखाने को कहते, तब भी वह यही बात कहती. मैं अपनी बेटी को काफी हौसला देता हूं, लेकिन गांव में जहां से गुजरता हूं, वहां आसपास खड़े हुए बच्चे, जवान और बूढ़े चिढ़ाते हुए काफी कुछ कहते हैं. इस बात से थोड़ी देर के लिए मेरा हौसला टूटने लगता है, लेकिन बेटी का हौसला देख कर मैं फिर से हौसला कायम कर लेता हूं. चार आरोपित अनिल, बादल, घनश्याम व राज को सजा हुई थी. कुछ दिनों बाद तीन आरोपितों को बेल मिल गयी. राज अब भी जेल में है.
इलाज का वादा पूरा नहीं किया
एक साल पहले रांची के डॉ अनंत सिन्हा ने उन दोनों की सजर्री का जिम्मा लिया था. इस बारे में चंचल के पिता शैलेश पासवान बताते हैं कि हम रांची गये थे, लेकिन वहां हल्के-फुल्के इलाज के बाद वापस भेज दिया गया. दर्द ज्यादा हुआ, तो हम इलाज के लिए दिल्ली गये थे. उसके बाद जब लौट कर आये, तो हमने फिर डॉ अनंत सिन्हा से संपर्क किया. उन्होंने कुछ दिनों बाद बुलाने की बात कही. लेकिन, उन्होंने आज तक मेरे फोन का जवाब नहीं दिया. इसके बाद एक एनजीओ ने हमारे लिए कुछ डोनेशन इकट्ठे किये और मार्च 2013 में सफदरजंग हॉस्पिटल ले गये. वहां एक सजर्री हुई. उसके बाद एसिड विक्टिम के लिए कैंपेन चला रहे आलोक दीक्षित ने हमें पांच अक्तूबर को प्रॉक्टिस हॉस्पिटल, गुड़गांव में सजर्री के लिए बुलाया है. उन्होंने कहा है कि मैं आपकी बेटी चंचल और सोनम की सजर्री करूंगा. अभी 15 सजर्री बाकी है.
पहले कैसी थी जिंदगी
कुछ साल पहले तक चंचल और सोनम आम लड़की की तरह जिंदगी जी रही थीं. उनकी आंखों में ढेर सारे सपने थे. खूब पढ़ने-लिखने और पढ़े-लिखे लड़के से शादी कर घर बसाने के. वह भी सुबह उठ कर, चेहरा धोकर खुद को आईने में देखती थी और काजल, बिंदी, पाउडर लगा कर खुद के चेहरे पर नाज किया करती थी. आज उसी चेहरे को वह आईने में देख फफक-फफक कर रो पड़ती है. हताश हो जाती है. वह बताती है कि अब तो बच्चे मुझे देख कर भूत-भूत चिल्लाते हैं. घबरा जाते हैं, इसलिए मैं घर के बाहर नहीं निकलती हूं. लोग मेरी शक्ल नहीं देखना चाहते हैं, इसलिए मैं दुपट्टे से चेहरा ढक कर रखती हूं. कोई मुझसे मिलने नहीं आता है.