पटना के गांधी मैदान में रावणवध के बाद मची भगदड़ की घटना को 48 घंटे से भी अधिक वक्त हो गये हैं, लेकिन अब भी लोगों के चेहरे पर इसका खौफ साफ नजर आ रहा है. प्रभात खबर से इस घटना के बारे में बातकरते हुए उनकी आंखें नम हो जा रही थीं और गला रुंध जा रहा था. वहीं कुछ लोग अब भी अपनों की तलाश में यहां-वहां भटक रहे हैं. इधर,रविवार को पीएमसीएच से सात घायलों को छुट्टी दे दी गयी.
मां से झूठ बोल कर गांधी मैदान पहुंचा था
नाम : राजीव पटेल
पता : नया टोला, पटना
गांधी मैदान में मां से झूठ बोल कर पहली बार पांच बजे गांधी मैदान पहुंचा था. मां को कहा कि तुम्हारी दवा लेकर आते हैं और गांधी मैदान पहुंच गया. उस वक्त भीड़ थी और हल्का अंधेरा होने लगा था. रावण जलने के बाद लोग शुरू में आराम से बाहर निकल रहे थे. अचानक से गेट पर शायद कोई गिरा और आगे भगदड़ हो गयी. दूसरी ओर पीछे की भीड़ आगे के लोगों को ठेल रही थी, जिसके बाद हम भी गिर पड़े. इसी बीच पुलिस ने मेरे पीछे के लोगों को गांधी मैदान में भगाने के लिए लाठीचार्ज कर दिया, जिसके कारण मेरी जान बच गयी. वरना हम पांच मिनट और रह जाते, तो हम भी जिंदा नहीं बचते. मेरे सामने कुछ बच्चे व महिलाएं मर गयीं और हम उन्हीं के बीच घंटों दबा रहा. कुछ देर के लिए मेरे सामने मौत नाच रही थी. लगा कि हम भी अब जिंदा नहीं बचेंगे. इसी बीच कुछ लोगों ने मुङो भीड़ से खींचना चाहा, लेकिन भगदड़ में वह मुङो नहीं निकाल पाये. कुछ देर बाद दो लोगों ने मुझे जोर से पकड़ा और बाहर निकाला, लेकिन इस दौरान मेरी सांसें बंद होने लगी थीं. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था. बस मां से कहा हुआ झूठ दिमाग में था. मुङो किसने और कैसे पीएमसीएच पहुंचाया. मुझे याद नहीं है. बाद में भगदड़ की खबर जब टीवी पर चलने लगी, तो मेरी मां ने मेरा चप्पल देख कर मुङो पहचाना. बाद में अस्पताल प्रशासन की सहायता से हमने घरवालों को फोन से जानकारी दी. तब जाकर लोग घर से अस्पताल पहुंचे.
छोटी नहीं रही, बड़ी बेटी की हालत खराब
नाम : सोनी देवी
पता : कर्णपुरा , बैरिया
सुबह 12 बजे कर्णपुरा से एक साथ नौ लोग रावण वध देखने गांधी मैदान के लिए निकले. हम पहली बार मेला में आये थे, इसलिए हमने अपनी दोनों बेटियों को साथ ले लिया था. दो घंटे बाद एग्जिबिशन रोड होते हुए गांधी मैदान पहुंची. उस वक्त मैदान में भीड़ कम थी, तो बड़ी बेटी निक्की छोटी बेटी खुशी के साथ खेल रही थी. कुछ देर बाद एक खिलौनावाला आया, जिससे उसे एक खिलौना खरीद कर दिया. धीरे-धीरे भीड़ बढ़ने लगी और उसके बाद रावण का पुतला जलने लगा. इसके बाद लोग बाहर निकलने के लिए गेट की ओर बढ़े. अत्यधिक भीड़ होने के कारण खुशी को गोद में लेने के बाद मैं बड़ी बेटी का हाथ पकड़ कर गेट की ओर बढ़ रही थी. अचानक से पीछे से लोग धक्का देने लगे. समझ में नहीं आया, क्योंकि मैदान में अंधेरा था और कुछ ठीक से नजर नहीं आ रहा था. गेट पर पहुंचने के पहले पीछे से दोबारा तेज धक्का दिया गया. असंतुलित होकर मैं जमीन पर गिर पड़ी. मेरी दोनों बेटियों मेरे दोनों बाहों में थीं. इसी दरम्यान अचानक से छोटी बेटी अलग हो गयी और लोग बच्ची को दबाते हुए आगे बढ़ने लगे. इस नजारा को देख मुङो कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लेकिन बड़ी बेटी रोने लगी. इसके बाद मुङो कुछ याद नहीं है. बस इतना याद है कि कुछ लोगों ने भीड़ से खींच कर बाहर निकालना शुरू किया और अस्पताल पहुंच गयी. बाद में पता चला कि छोटी बेटी नहीं रही. वहीं इमरजेंसी में भरती बड़ी बेटी निक्की की हालत खराब है, जब उठती है बहन को खोज कर चिल्लाने लगती है.
पत्नी ने मना किया था बच्चियों की जिद पर गया
नाम : राजेश पासवान
पता : कुम्हरार
मेरी पत्नी ने गांधी मैदान जाने के लिए मना किया था, लेकिन बच्चियों की जिद के आगे नहीं माना. पत्नी की बात मान लेता, तो शायद मेरे साथ कोई अनहोनी न होता. गांधी मैदान में मेरे साथ मेरी बेटी अस्मिता कुमारी (10 साल)और भांजी तन्नु कुमारी (10 साल) साथ में थी. क्या पता था, ऐसा हादसा हो जायेगा. कुम्हरार स्थित घर से गांधी मैदान में रावणवध देखने के लिए शाम चार बजे निकला था. गांधी मैदान पहुंचने पर सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था. बच्चे भी काफी खुश नजर आ रहे थे. रावण जलने के बाद शाम करीब 6.20 बजे हल्ला हुआ कि तार गिर गया है. इसी बीच, लोग बेतहाशा इधर-उधर भागने लगे. स्थिति इतनी खराब हो गयी कि लोग मेरे ऊपर गिरने लगे. मेरी बेटी और भांजी भी दब गयी थी. बार-बार मेरा मुंह सूख रहा था, जबकि भांजी बेहोश हो गयी थी. बेटी कहां गुम हो गयी, इसका पता नहीं चल रहा था. बाद में वह गांधी मैदान थाने पर मिली. लाइट की उचित व्यवस्था नहीं रहने के कारण एक-पर-एक होकर लोग गिरते जा रहे थे. भगवान की कृपा है कि हम तीनों बच गये. हालांकि मेरी पंजरी में दर्द होने के कारण सांस लेने में तकलीफ हो रही है. भांजी के पैर में अब भी रह-रह कर झुनझुनी हो जा रही है. बेटी भी बार-बार बेहोश हो जा रही है. बेटी और भांजी अब भी काफी डरी हुईं हैं. घटना के पहले जो पुलिस दिखाई नहीं दे रही थी, बाद में उसकी संख्या अचानक से काफी बढ़ गयी.
अब भी अपनों को ढूंढ़ रहीं हैं कई आंखें
सर, ये मेरी चाची का लड़का (विजय प्रसाद) है. घर से पटना आया था सामान खरीदारी करने और रावण दहन देखने. अब तक घर नहीं पहुंचा है. कुछ बता सकते हैं? बैरगनिया, सीतामढ़ी निवासी भूषण बिहारी की यह विनती पीएमसीएच के डॉक्टरों से थी.भूषण बिहारी बार-बार कह रहा था, सर इसके बार में कुछ बता दें. इसी बीच, पीएमसीएच के डॉक्टरों ने बताया कि इस नाम का कोई हमारे पास भरती नहीं है. पीएमसीएच प्रशासन ने भूषण बिहारी को मृतकों का फोटो भी उपलब्ध कराया, लेकिन कुछ पता नहीं चला. भूषण बिहारी ने कहा कि कुछ भी पता नहीं चल रहा है. मोबाइल फोन भी बंद है. इसी तरह आरा, भोजपुर का रहने वाला रंजन कुमार (17 साल) भी विजया दशमी के दिन से लापता है. आरा से वह अपनी नानी के यहां पटना आया था, रावण दहन देखने. रविवार को उसकी नानी फोटो लेकर पीएमसीएच में भटक रही थी. गुजर रहे लोगों से ब्विनती कर रही थी कि मेरे पोते को कोई खोज कर ला दें. पीएमसीएच में एक घंटे के भीतर दो परिजन अपनों को खोजने के लिए पहुंच चुके थे.
फोन नंबर या थाने में दे सकते हैं जानकारी
अगर कोई अपने परिजन के बारे में जानकारी चाहता है, तो जिला नियंत्रण कक्ष के फोन नंबर 0612-2219810 पर जानकारी ले सकता है. जबकि लापता हुए व्यक्ति के बारे में जानकारी गांधी मैदान थाने में लिखित रूप से दी जा सकती है.