सीएनटी एक्ट में संशोधन आवश्यक
प्रभाकर तिर्की जो छोटानागपुर कास्तकारी अधिनियम को जानते हैं, वे स्पष्ट रूप से यह कह सकते हैं कि इस कानून में आज की परिस्थिति में संशोधन का मतलब यह नहीं है कि पूरी कानून में संशोधन हो जाये. समय-समय पर परिस्थिति की समीक्षा करते हुए कानून की कुछ धाराओं, कुछ खंडों, कुछ शब्दों में संशोधन […]
प्रभाकर तिर्की
जो छोटानागपुर कास्तकारी अधिनियम को जानते हैं, वे स्पष्ट रूप से यह कह सकते हैं कि इस कानून में आज की परिस्थिति में संशोधन का मतलब यह नहीं है कि पूरी कानून में संशोधन हो जाये. समय-समय पर परिस्थिति की समीक्षा करते हुए कानून की कुछ धाराओं, कुछ खंडों, कुछ शब्दों में संशोधन आवश्यक होता है, ताकि उसके प्रतिकूल प्रभावों को रोका जा सके. सीएनटी एक्ट में उसके लागू होने (1908) से अब तक कई संशोधन हो चुके हैं. जैसे सीएनटी एक्ट संशोधन 1929, 1938,1947,1969,1996 आदि. ये संशोधन क्यों हुए, यह अध्ययन की बात है.
कानून में एक-एक शब्द का महत्व होता है. सिर्फ एक शब्द से पूरे कानूनी प्रावधान के मायने बदल जाते हैं और उसका गलत इस्तेमाल हो जाता है. कभी-कभी कानून अपने आप में विरोधाभासी हो जाता है. कानून की एक धारा सुरक्षा की बात कहता है, तो अन्य धारा उसका खंडन करती है. सीएनटी एक्ट का यदि पूरी तरह से अध्ययन किया जाये, तो इसी तरह के कई विरोधाभासी बातें सामने आ जायेंगी. इतना ही नहीं कानून के रहते हुए भी सरकार के कई दूसरे कानून इन प्रावधानों को प्रभावी होने से रोकते हैं. जैसा कि सीएनटी की धारा 50, जिसमें सरकारी प्रयोजनों के लिए आदिवासी भूमि के अधिग्रहण के बारे में जिक्र है, लेकिन सरकार का भूमि अधिग्रहण कानून 1894 ही अब तक भूमि अधिग्रहण मामलों में लागू होते आये हैं. सरकार इसे ही वैद्य मानती है और सरकार की सारी अधिग्रहण की प्रक्रियाएं भूमि अधिग्रहण कानून 1894 के तहत ही प्रवृत होते आये हैं. क्या यह सीएनटी एक्ट की धारा 50 और भूमि अधिग्रहण कानून के विरोधाभासी तत्व नहीं है?
इन विरोधाभासी तत्वों की समीक्षा कर उसमें संशोधन आवश्यक है या नहीं, यह महत्वपूर्ण बात है. सीएनटी एक्ट की धारा 46 के तहत आदिवासी जमीनों के हस्तांतरण के लिए उपायुक्त की सहमति आवश्यक है. उपायुक्त को भूमि हस्तांतरण के मामले में सीएनटी एक्ट में निर्णय देने का अधिकार प्राप्त है. सीएनटी एक्ट की धारा 71 ए के तहत अवैध तरीके से आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों को हस्तांतरित किये जाने के मामलों में जमीन वापसी का प्रावधान है. इसके बावजूद कई हजार मामलों में आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों को कानूनी तरीके से हासिल हो गयी. धारा 71 ए सीएनटी एक्ट में शिडय़ूल एरिया रेगुलेशन एक्ट 1969 के पारित होने के पश्चात अंगीकृत किया गया था.
इस एक्ट के तहत उस समय जमीन वापसी के लिए 30 वर्षो की समय सीमा निर्धारित की गयी थी. यह समय सीमा 1969 से 30 वर्ष पूर्व 1938 से लेकर 1947 तक सीएनटी एक्ट में खामियों के कारण बड़े पैमाने पर आदिवासी जमीन की लूट के कारण निर्धारित की गयी थी.
यदि आज की तिथि से 30 वर्ष पूर्व जाया जाये, तो वह 1985 तक आती है. यानी कोई भी आदिवासी आज यदि चाहे, तो 1985 के पूर्व की भूमि विवाद पर आज की तिथि में अपना हक नहीं जता सकता. कई आदिवासी परिवारों को वर्तमान में इस बात का पता चल रहा है कि उनकी जमीनें गलत तरीके से गैर आदिवासियों को हस्तांतरित कर दी गयी है, जिस पर चाह कर भी वह भूमि वापसी का मामला दर्ज नहीं कर सकता. शिडय़ूल एरिया रेगुलेशन एक्ट का ही सहारा लेकर हजारों एकड़ आदिवासी जमीनों में मानदेय का निर्धारण कर गैर आदिवासियों को वैद्यता प्रदान कर दी गयी. क्या यह प्रक्रिया जायज है? यदि जायज नहीं है, तो क्या उस पर संशोधन आवश्यक नहीं हैं? यह सीएनटी एक्ट की खामियां है. एसएआर रेगूलेशन एक्ट के तहत किसी भी उप समाहर्ता को राज्य सरकार की अधिसूचना के जरिये अथवा उपायुक्त के साधारण विभागीय आदेश के जरिये सीएनटी एक्ट की धारा 71 ए के तहत उपायुक्त के कार्यो के निबटारे के लिए पदस्थापित किया जा सकता है.
यह सर्वविदित है कि कई एसएआर पदाधिकारियों के द्वारा हाल में बड़े पैमाने पर रांची में भूमि की वापसी संबंधी मामलों में गड़बड़ी की गयी है, जिस पर उपायुक्त का भी नियंत्रण नहीं है. उन गड़बड़ियों पर वर्तमान में जांच चल रही है. ये सिर्फ उदाहरण हैं, जो खुलेआम आदिवासी जमीनों की लूट का कारण बन रहे हैं. ऐसी कई खामियां हैं जो कानूनी की समीक्षा के बाद सामने लाये जा सकते हैं, लेकिन यह बात स्पष्ट है कि समय के अनुरूप कानून की समीक्षा हो और आदिवासी हित में जो आवश्यक हो उसका संशोधन किया जाना चाहिए. हां इस संशोधन के क्रम में एक बात आवश्यक है कि इस समय आदिवासी समाज, समाज के नेता सतर्क रहें कि संशोधन आदिवासी हित में हों. क्या यह आवश्यक नहीं कि जो पदाधिकारी गड़बड़ी करते हुए पाये जाते हैं, उन पर कानूनी कार्रवाई के लिए सीएनटी एक्ट में कठोर कानून बनें?
कुछ लोग इसके विरोध में भी खड़े हैं. यह विरोध आदिवासी हित में नहीं है. वे आदिवासियों की सोच को गलत दिशा देने की कोशिश कर रहे हैं. जिसका मकसद सिर्फ सस्ती लोकप्रियता हो सकती है, अथवा उनकी समझदारी में कमी. सच्चई तो यह है कि आज आदिवासियों की जितनी भी जमीनें अवैध तरीके से गैर आदिवासियों को हस्तांतरित की जा रही है, उनके पीछे आदिवासी ही दलाली का काम कर रहे हैं और चंद पैसों के लालच में अपना ही कानून तोड़ने पर अमादा हैं. क्योंकि अपने-अपने क्षेत्रों में आदिवासी जमीनों की जानकारी वहां के आदिवासियों को ही है, फिर उस क्षेत्र में गैर आदिवासियों का प्रवेश आदिवासियों की मिली भगत के बिना संभव नहीं है. रांची शहर के हर इलाके में ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिल जायेंगे. बेहतर तो यही होगा इन संगठनों के लिए कि वे समाज में इन खामियों को दूर करने का खुद प्रयास करें और पैसों के लालच में अपने ही लोगों द्वारा जमीन के अवैध कारोबार पर रोक लगाने की पहल करें.
(लेखक आजसू के केंद्रीय प्रवक्ता हैं)
क्या सीएनटी एक्ट में संशोधन होना चाहिए?
राज्य सरकार छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट में संशोधन करने की दिशा में आगे बढ़ रही है. जहां कुछ लोग इसे आवश्यक बता रहे हैं, वहीं कुछ लोग इस एक्ट में किसी तरह के संशोधन के खिलाफ हैं. हम इस मुद्दे पर आपके विचार आमंत्रित कर रहे हैं. इस बहस में शामिल हों और हमें बतायें कि सीएनटी एक्ट में संशोधन होना चाहिए या नहीं. आप अपने विचार हमें पोस्ट द्वारा भेज सकते हैं या फिर इमेल भी कर सकते हैं.
हमारा पता है : प्रभात खबर, 15-पी, कोकर इंडस्ट्रीयल एरिया, रांची
इमेल आइडी : saket.puri@prabhatkhabar.in