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अंगरेजों के बनाये इस कानून में संशोधन जरूरी

।। प्रदीप कुमार जैन ।। वर्ष 1908 से लेकर अब तक सीएनटी एक्ट में अनेक संशोधन हो चुके हैं. आज जब इस एक्ट में संशोधन की चर्चा चल रही है तब यह जान लेना आवश्यक है कि इस एक्ट के पीछे तत्कालीन अंगरेज सरकार की भावना क्या थी और इसकी क्या जरूरत थी. उस समय […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 14, 2014 3:53 AM
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।। प्रदीप कुमार जैन ।।
वर्ष 1908 से लेकर अब तक सीएनटी एक्ट में अनेक संशोधन हो चुके हैं. आज जब इस एक्ट में संशोधन की चर्चा चल रही है तब यह जान लेना आवश्यक है कि इस एक्ट के पीछे तत्कालीन अंगरेज सरकार की भावना क्या थी और इसकी क्या जरूरत थी.
उस समय ज्यादातर आबादी कृषि से जीवनयापन करती थी और उसी के इर्द-गिर्द उनकी सामाजिक व्यवस्था कायम होती थी. तत्कालीन अंगरेज सरकार ने यह महसूस किया कि छोटानागपुर के आदिवासी भोले-भाले हैं, प्रकृति पर आधारित जीवन जीते हैं एवं कल की परवाह नहीं करते.
ऐसे में उनके खेत आसानी से खरीदे जा सकते हैं या छीने जा सकते हैं. तब तत्कालीन अंगरेज सरकार ने छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम बनाया, जिसे केंद्र सरकार ने अपनाया तथा राज्य सरकार को समय-समय पर इसमें संशोधन करने की छूट दी. आज के समय में भी यह अधिनियम प्रासंगिक है, लेकिन बदलते परिप्रेक्ष्य के अनुसार इसमें परिवर्तन की आवश्यकता है.
इस अधिनियम का और इसके संशोधनों का लगातार दुरुपयोग होता रहा है. आज गांव की जगह शहरों की बसावट हो गयी है एवं शहरों को अपने आधारभूत संरचना विकसित करने की आवश्यकता है. इसी अवधारणा पर केंद्र सरकार भी जेएनएनयूआरएम तथा स्मार्ट सिटी योजनाओं के तहत शहरी विकास कर रही है.
इसी प्रकार औद्योगिक पार्क बनाने के लिए या बड़े उद्योगों की स्थापना के लिए या सरकार की किसी बड़ी परियोजना के लिए जब जमीन के बड़े टुकड़ों की आवश्यकता पड़ती है, तो सामान्यता उन क्षेत्रों में पड़नेवाली आदिवासी भूमि के कारण विकास कार्यो में परेशानी होती है.
ऐसा नहीं है कि इस अधिनियम के रहते भूमि का अधिग्रहण नहीं होता, लेकिन इसकी प्रक्रिया इतनी जटिल है कि इसे पूरा करते-करते काफी समय गुजर जाता है. जब टाटा स्टील जैसी फैक्टरी का निर्माण हुआ था तब आदिवासी भूमि सेटलमेंट के लिए उपायुक्त और राजस्व विभाग त्वरित कार्रवाई करने में सक्षम थे. आज इस सक्षम पदाधिकारी पर कामकाज का दबाव बहुत बढ़ गया है. इसलिए अब यह इनके वश का काम नहीं रहा.
मेरी निजी राय है कि राजधानी रांची समेत सभी शहरी क्षेत्रों में एक परिधि के अंतर्गत आदिवासी भूमि हस्तांतरण की नियमावली पुन: परिभाषित की जानी चाहिए.
आदिवासी भूमिहीन न हो जायें, इसके लिए एक विशेष योजना की जरूरत है, जिसके अंतर्गत भूमि के हस्तांतरण से मिली 75 प्रतिशत राशि एक विशेष फिक्स डिपोजिट एकाउंट में जमा हो जाये, जिसका उपयोग भू-स्वामी राज्य में कही भी कृषि योग्य भूमि की खरीदी में कर सकें. तब तक ब्याज की राशि से वह अपनी जरूरतों को पूरा कर सकें.
(लेखक पेशे से निवेश सलाहकार और झारखंड चेंबर के निदेशक हैं.)
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