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छोटानागपुर कास्तकारी अधिनियम में संशोधन जरूरी
चंद्रभूशण देवगम मैं सीएनटी एक्ट, 1908 के संबंध में प्रभाकर तिर्की के विचारों से पूर्णतया सहमत हूं कि समयानुसार इस कानून के कुछ एक प्रावधानों में संशोधन करना अत्यावश्यक है. क्योंकि यदि कोई कानून अपने प्रमुख उद्देश्य अर्थात आदिवासियों की अपनी भूमि पर मालिकाना हक बनाये रखने बाबत असफल हुआ जा रहा है, तब ऐसे […]
चंद्रभूशण देवगम
मैं सीएनटी एक्ट, 1908 के संबंध में प्रभाकर तिर्की के विचारों से पूर्णतया सहमत हूं कि समयानुसार इस कानून के कुछ एक प्रावधानों में संशोधन करना अत्यावश्यक है.
क्योंकि यदि कोई कानून अपने प्रमुख उद्देश्य अर्थात आदिवासियों की अपनी भूमि पर मालिकाना हक बनाये रखने बाबत असफल हुआ जा रहा है, तब ऐसे कानून (सीएनटी एक्ट अर्थात छोटानागपुर कास्तकारी अधिनियम ) में संशोधन करना आवश्यक है.
संशोधन के नाम से भड़क जाना और संशोधन का विरोध करना इस कानून के प्रति अधकचरे ज्ञान अथवा अज्ञान का परिचायक है. यदि इस अधिनियम की धारा 71 ए (एसएआर) आदिवासियों की गैर कानूनी ढंग से हड़पी हुई भूमि आदिवासियों को वापस दिलाने में असफल साबित हो रही तो ऐसे कानून का संशोधन निश्चित रूप से होना चाहिए.
जब आदिवासियों की हजारों एकड़ भूमि गैरकानूनी तरीके से गैर-आदिवासियों द्वारा हड़पी गयी और हड़पी जा रही है, तब आदिवासी की जमीन यदि आदिवासी के हाथ से जा ही रही, तब पुलिस थाना क्षेत्र का बंधन बेमानी ही तो है.
हमारा मानव समाज प्रकृति की तरह निरंतर परिवर्तनशील है, जिसे कोई भी बंधन रोक नहीं सकता. कानून समाज के हित के लिए बनाये जाते हैं इसलिए जब समाज में परिवर्तन हो रहा है तब उसके हित के लिए बनाये गये कानून में परिवर्तन किया जाना आवश्यक है. हमारे देश के संविधान में समय की मांग को देखते हुए सौ से अधिक संशोधन हो चुके हैं.
छोटानागपुर कास्तकारी अधिनियम की धारा 71 ए को जिस उद्देश्य से इस अधिनियम में अंगीकृत किया गया था, उसे धारा 71 ए के अनेक परंतुकों (प्रोवाइजोज) ने कुंद कर दिया है. इसी किंतु-परंतुओं के कारण आदिवासी मुकदमे हार जाते हैं.
इस संदर्भ में मानवीय उच्चतम न्यायालय के दो न्यायमूर्तियों के खंडपीठ ने अमरेंद्र प्रताप सिंह बनाम तेज प्रताप प्रजापति (एआइआर 2004 सुप्रीम कोर्ट 3782) के मामले में जो निर्णय दिया है, उसका मूल यही है कि आदिवासियों की रक्षा करने के लिए जो भी कानून अथवा विनियम बनाये गये हैं, वे विशेष कानून हैं. जिन पर परिसीमा अधिनियम (लिमिटेशन एक्ट) 1963 अथवा अन्य साधारण (जनरल) अधिनियम हावी नहीं हो सकते, क्योंकि छोटानागपुर कास्तकारी अधिनियम आदिवासियों के लिए एक विशेष और हितप्रद (बेनेफेसियल) सामाजिक विधायन का हिस्सा है. अत: छोटानागपुर कास्तकारी अधिनियम 1908 की धारा 46 (1) के दूसरे परंतुक के खंड (ए) और धारा 71 ए में तथा ऐसे अन्य सभी उपबंधों का संशोधन किया जाना अत्यंत आवश्यक है.
(लेखक पेशे से अधिवक्ता हैं)
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