खरीद-बिक्री रोकने में असमर्थ हो चुका है सीएनटी एक्ट
जय कुमार दास संताल परगना और छोटानागपुर प्रमंडल में सीएनटी/ टेनेन्सी एक्ट को खास कर इसलिए लागू किया गया था कि इन क्षेत्रों में रहनेवाले लोगों (आदिवासी-गैर आदिवासी) की जमीन को धनाढय़ लोग औने-पौने में ना ले लें? परंतु अंतिम सेटलमेंट सन 1924-25 (संताल परगना) से यह साफ जाहिर होता है कि इन क्षेत्रों में […]
जय कुमार दास
संताल परगना और छोटानागपुर प्रमंडल में सीएनटी/ टेनेन्सी एक्ट को खास कर इसलिए लागू किया गया था कि इन क्षेत्रों में रहनेवाले लोगों (आदिवासी-गैर आदिवासी) की जमीन को धनाढय़ लोग औने-पौने में ना ले लें?
परंतु अंतिम सेटलमेंट सन 1924-25 (संताल परगना) से यह साफ जाहिर होता है कि इन क्षेत्रों में जमीन की खरीद-बिक्री हुई है और उसे कानूनी जामा भी पहनाया जा चुका है. सीएनटी-टेनेन्सी एक्ट का आज के समय में कोई महत्व नहीं रह गया है. क्योंकि चाहे शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण क्षेत्र, जमीन आज भी बेची जाती है और खुद सरकार भी जमीन का अधिग्रहण कर रही है.
जमीन की खरीद-बिक्री देश के चारों ओर हरेक प्रांत-क्षेत्रों में हो रही है. फलस्वरूप शहरों/नगरों की आबादी में खास बढ़ोतरी देखी जा रही है. जो संवैधानिक तौर पर सही है. हमारा संविधान भारतीयों को देश के किसी कोने-प्रांत में बसने का अधिकार देता है. परंतु इस एक्ट में रहने से दिन प्रतिदिन कोर्ट-कचहरी में मुकदमों का अंबार लगता जा रहा है.
इस बात को शायद ही कोई बुद्धिजीवी झुठला सकता है? यदि इस एक्ट को समाप्त कर दिया जाता है तो चाहे गरीब हो या अमीर वे अपनी जमीन को आवश्यकतानुसार उचित कीमत पर बेच सकेंगे और तब खरीदार को अनावश्यक कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगाना नहीं पड़ेगा. बहुत ऐसे व्यक्ति भी हैं जिन्होंने जमीन पर रुपये लिये और उन्हें जमीन दे भी दिये और बाद में उसे वंचित कर दिया या मुकदमा कर दिया.
क्या भारत देश के अन्य प्रांतों में गरीबी अथवा भुखमरी नहीं है? फिर ऐसा एकमात्र कानून केवल झारखंड में ही क्यों? इस कानून को समाप्त कर देना चाहिए क्योंकि यह कानून समाज में विभेद पैदा कराता है. इस बात को कौन झुठला सकता है कि आदिवासी की जमीन आदिवासी, गैर आदिवासी ने नहीं ली है. अथवा गैर आदिवासी की जमीन आदिवासी, गैर-आदिवासी ने नहीं ली है. क्या आज नहीं लिये जा रहे हैं? यहां कोई जोर जबरदस्ती की बात नहीं हो रही है.
अंगरेजों की तो नीतियां ही थी कि फूट डालो, शासन करो? और अगर सरकार इस एक्ट को समाप्त नहीं करना चाहती है तो शहरी और नगरीय क्षेत्रों को (निर्धारित दो नगरपालिका नगर निगम क्षेत्र किलो मीटर में) सीएनटी-टेनेन्सी एक्ट से मुक्त रखने का विधेयक तो निश्चित तौर पर पारित करे. इससे शहरों-नगरों में बसनेवालों को अनावश्यक तनाव और अनावश्यक मुकदमों से छुटकारा मिल सकेगा.
(लेखक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी हैं और न्यू मार्केट, गोड्डा, संताल परगना के रहनेवाले हैं)