अच्छे दिनों की आस में भाजपा कार्यकर्ताओं के बुरे दिन!

कुजात ….जब सत्ता के लिए सिद्धांतों एवं आदर्शो की बलि चढ़ाने की मानसिकता घर कर जाये तो कौन सुने दीनदयाल के ‘फालतू बातों’ को? भाजपा को अब दीनदयाल जी से उतना ही मतलब है, जितना कि कांग्रेस को गांधी से, या कथित समाजवादियों को जयप्रकाश या लोहिया से. हां, केवल इनके नामों की दुहाई देकर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 22, 2014 4:51 AM
कुजात
….जब सत्ता के लिए सिद्धांतों एवं आदर्शो की बलि चढ़ाने की मानसिकता घर कर जाये तो कौन सुने दीनदयाल के ‘फालतू बातों’ को? भाजपा को अब दीनदयाल जी से उतना ही मतलब है, जितना कि कांग्रेस को गांधी से, या कथित समाजवादियों को जयप्रकाश या लोहिया से.
हां, केवल इनके नामों की दुहाई देकर अनुयायी कार्यकर्ताओं को सिद्धांतों के नाम पर बेवकूफ बनाने भर! आज पं दीनदयाल की वाणी भारतीय जनता पार्टी के नक्कारखाने में तूती की आवास सदृश गुम हो चली है. दीनदयाल की विरासत पर राजनीति करनेवाली भाजपा उनके विचारों का निर्ममतापूर्वक गला घोंट कर उनकी मनीषा के विपरीत आचरण करने में कतई नहीं शरमा रही.
दीनदयाल जी ने दल को भ्रष्ट राजनीतिज्ञों का अखाड़ा बनने से बचने की हिदायत दी, लेकिन कथित मानसपुत्र झारखंड भाजपा में दल-बदलुओं, बेईमानों, धनपतियों, तस्करों, भ्रष्टाचार के लिए बदनाम रहे रिटायर्ड नौकरशाहों, दूसरे दलों के चूके हुए नेताओं, शातिर रकीबुलों (रांची का बहुचर्चित फ्रॉड रंजीत उर्फ रकीबुल) एवं हर दलों से आये अवसरवादियों को प्रश्रय देकर पार्टी को भ्रष्टाचारियों का अखाड़ा बनाने में लगे हैं.
यह आशंका प्रबल है कि झारखंड के आसन्न विधानसभा चुनाव में निष्ठावान नेताओं-कार्यकर्ताओं की जगह ऐसे ही तत्व केंद्र व प्रदेश के शीर्ष नेताओं को पटा कर पार्टी-टिकट ले उड़ेंगे और कार्यकर्ता कातर नेत्रों से अपने हक को लुटते देखता रह जायेगा. पार्टी इन कार्यकर्ताओं को बंधुआ मजदूर से ज्यादा हैसियत देने को तैयार नहीं ‘यूज एंड थ्रो’!
मोदी लहर में झारखंड में जिन दलों के चमन उजड़ गये, उन उजड़े चमन के व्याकुल पंछी भाग-भाग कर भाजपा के गुलजार चमन के डाल-डाल पर अपना बसेरा बना रहे हैं. शोक! महाशोक! इस बात पर कि भाजपा-चमन के कर्णधार इन उड़ते पंछियों (दल-बदलुओं) को बड़े प्यार से दाना डाल रहे हैं.
आंधी-तूफानों के प्रचंड चक्रवाती दौर का सामना करते हुए मृत्युर्पयत इसी चमन में हिंदुत्व, राष्ट्रवाद एवं पंचनिष्ठाओं के गीत अपने स्वरों में पिरो कर चहचहाने को संकल्पित पंछी अपनी ही नीड़ से धकिया कर निकाले जा रहे हैं. संघ-जनसंघ-भाजपा के अच्छे-बुरे भाग्य से अपने नेतृत्व इन निहित स्वार्थी तत्वों का प्रोत्साहन अवसरवादियों के मंसूबों को परवान चढ़ाने वाला और पार्टी के प्रतिबद्ध कैडरों को घोर निराशा एवं कुंठा के गर्त में डुबोनेवाला है.
मार्के की बात यह है कि जब भाजपारूपी चमन के कठिन दौर थे और यह चमन हरियाली के लिए संघर्षरत था, उस दौर में ये मौका परस्त लोग इसी चमन को सींचनेवाले मालियों पर कहर बन कर टूट पड़ते रहे. चार दशकों से तन-मन-धन और जीवन लगा कर संघ-भाजपा के लिए सक्रिय योगदान देनेवाले मुझ जैसे कार्यकर्ता को स्मरण है, आपातकाल का वह काला अध्याय, श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन व कश्मीर सत्याग्रह के वे चुनौतीपूर्ण कालखंड तथा जेएमएम-राजद के खतरनाक उभार का वह हिंसक दौर! आज निहित स्वार्थो की पूर्ति की मंसा से प्रेरित जो आयातित लोग भाजपा के मंचों से मोदी-पुराण बांच रहे, वे ही उन दिनों संघ-भाजपा को गरियाने में नवों रसों एवं समस्त अलंकारों की झड़ी लगा देते थे. ये मौके-बेमौके कार्यकर्ताओं को अपमानित-प्रताड़ित करने एवं गुंडों व पुलिस द्वारा उनकी पसलियां तुड़वाने में कोई-कसर नहीं छोड़ते रहे. सिद्धांतहीन राजनीति के ये राही अभी हाल तक नरेंद्र मोदी के लिए कैसी भाषा का प्रयोग करते थे, वह सर्वविदित है.
आज चरित्र एवं नैतिकता से पतित, सत्ता के भूखे इन भेड़ियों के सामने भाजपा नीति-नियंता अपने ही कार्यकर्ताओं को मेमने बना कर परोस रहे हैं. हजार बार धिक्कार है उनको जो चापलूसों, बेईमानों और भ्रष्टाचारियों की अगवानी में कालीन बिछा रहे हैं.
2006 के आसपास संघ के ‘सुयोग्य स्वयंसेवक’ (!) बाबूलाल मरांडी ने भाजपा की पीठ में खंजर घोपा. हां, उसी मरांडी ने जिस पार्टी ने एक गुमनाम कार्यकर्ता से ऊपर उठा कर केंद्रीय मंत्री एवं झारखंड का प्रथम मुख्यमंत्री तक बनवाया. उस वक्त जो स्वार्थी लोग पार्टी से घात करके बाबूलाल के हनुमान बने और अपने पूंछ में पलीता लगा कर लंका की जगह भाजपारूपी अयोध्या में ही आग लगाने पिल पड़े. मरांडी को खुश करने के लिए जिन्होंने सैकड़ों कार्यकर्ताओं को पार्टी से तोड़ कर उन्हें पथभ्रष्ट बनाने का पाप किया, मरांडी की खैरख्वाही में जिन्होंने पार्टी के शीर्ष पुरुषों-अटलजी एवं आडवाणीजी तक को गालियां दी थी.
पार्टी के झंडे को जिन्होंने पैरों तले रौंदा था .. हां, जिन्होंने राजनीति के वारांगणा – चरित्र को चरितार्थ किया, उन्हीं वारांगणाओं को पार्टी में वापस लाकर बड़े-बड़े पदों से नवाजा गया. प्रदेश अध्यक्ष के गरिमामय पद तक! धूर्तता की मिसाल कायम करनेवाले ये ही लोग आज निष्ठा का पाठ पढ़ा रहे.. यही सिलसिला जारी है. दूसरी ओर उस चुनौतीपूर्ण दौर में भी संपूर्ण आस्था एवं निष्ठा के साथ दल के लिए पसीना बहानेवाले नीचे से ऊपर तक हाशिये पर डाले जा रहे हैं.
पार्टी में न्याय-व्यवस्था तार-तार है. यहां तो जिसकी लाठी उसी की भैंस का प्रचलन हो चला है. बोकारो के एक स्वघोषित ‘क्रांतिपुत्र’ जिन्हें शूर्पनखा की जगह सीता का ही नाक-कान काटने में महारत हासिल है – जिन्होंने 1993 के आसपास भाजपा को छोड़ते चित्रों को सड़क पर फेंक कर उन पर लाठियां बरसायी (एक-एक प्रहार पार्टी एवं संघ-कार्यकर्ताओं के हृदय विदीर्ण कर रहा था) – वे और उनके साथ रहनेवाले राजनीति में रकीबुल संस्कृति के एक प्रतीक पुरुष (जो जेवीएम में प्रधान सचिव रहे) – दोनों दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह एवं नितिन गडकरी के सान्निध्य में भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर आज प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं को मुंह चिढ़ाते हुए पार्टी मंचों की शोभा में चार चांद लगा रहे हैं! जिन अमित शाह और गडकरी की छाया तक वर्षो-दशकों जीवन खपानेवाले कार्यकर्ताओं का पहुंचना टेढ़ी खीर है, उनके प्रभामंडल में इन धूर्तो-पाखंडियों का जा धमकाना हमारे नेताओं के नैतिक पतन की पराकाष्ठा है. (जारी)
भिन्न-भिन्न राजनीतिक दलों को अपने लिए एक दर्शन (सिद्धांत या आदर्श) का क्रमिक विकास करने का प्रयत्न करना चाहिए. उन्हें कुछ स्वार्थो की पूर्ति के लिए एकत्र आने वाले लोगों का समुच्चय मात्र नहीं बनना चाहिए. सैद्धांतिक आधार पर दल से संबंध-विच्छेद को उचित माना जा सकता है, परंतु अन्य आधारों पर दल-बदल को प्रोत्साहन नहीं दिया जाना चाहिए. स्वार्थ साधकता और अवसरवादिता को ‘यथार्थवाद’ का स्थान नहीं मिलना चाहिए. हर प्रकार के अवसरवादी तत्वों के साथ गंठजोड़ की चेष्टा करने की अपेक्षा दृढ़ता और सच्चई से अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना ही श्रेयस्कर है. ..भ्रष्ट राजनीतिज्ञों का अखाड़ा बनने से दलों की रक्षा करनी चाहिए.
पं दीनदयाल उपाध्याय पॉलिटिकल डायरी, पृष्ठ -139, 141, 153 एवं 154 (27 फरवरी एवं 11 दिसंबर 1961)

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