राबड़ी देवी पूर्व मुख्यमंत्री, बिहार
छठ महापर्व बिहार-झारखंड, उत्तर प्रदेश समेत पूरी हिंदी पट्टी में पूरी आस्था और श्रद्धा से मनाया जाता है. सुख, शांति, समृद्धि के प्रतीक इस पर्व में अमीर-गरीब, ऊंच-नीच का भेद नहीं होता. दिवाली के ठीक बाद होनेवाले इस महापर्व पर साफ-सफाई और पवित्रता को लेकर व्रती से लेकर आम लोग तक तत्पर रहते हैं. मैं खुद कई वर्षो से छठ व्रत करती हूं. इस बार मेरे घर छठ नहीं होगी. छठ के दौरान तैयारियों पर साहब (लालू प्रसाद) खुद नजर रखते थे.
इस बार लालू प्रसाद जी के ऑपरेशन और अन्य निजी कार्यो में व्यस्तता के कारण मैं छठ नहीं कर रही. लेकिन, मेरी आस्था सदैव बनी रहेगी. छठी मैया पर हमें पूरा भरोसा है. पूरी श्रद्धा है. माता ने हम सबको बहुत कुछ दिया है और आगे भी उनकी कृपा हम पर बनी रहेगी. मुख्यमंत्री रहते हुए भी मैंने कई बार छठ की पूजा की. नहाय-खाय के साथ ही पूजा आरंभ हो जाती है. चूल्हा तैयार करने से लेकर प्रसाद के लिए गेहूं सुखाने व अन्य चीजों की व्यवस्था मैं खुद करती थी. छठ के गीत भी गाती थी. अर्घ देते समय साहब खुद मौजूद रहते थे. सभी बच्चे भी आ जाते थे.
लालूजी खुद दउरा उठाते थे और घाट तक ले जाते थे. दीपावली के बाद से ही छठ व्रती के घर में पूजा की चहल-पहल शुरू हो जाती है. खरना का प्रसाद महत्वपूर्ण होता है. ध्यान रखा जाता है कि घर पर आये एक-एक व्यक्ति को प्रसाद जरूर मिले. पहले तो हमलोग भी गंगा घाट के किनारे अर्घ देने जाते थे. लेकिन, घाटों पर भीड़ और प्रशासन के ताम-झाम के कारण हमारी वजह से आम लोगों की परेशानी होने लगी, तो हमने अपने आवास पर ही अर्घ देना शुरू किया. तमाम व्यस्तताओं के बावजूद पूरी आस्था से पूजा की.
भगवान भास्कर बिना किसी भेदभाव के सभी को समान ऊर्जा देते हैं. पूरा समाज छठमय हो जाता है. छठ महापर्व सामाजिक समरसता को विकसित और मजबूती प्रदान करता है. समाज के सभी वर्गो की सहभागिता इस पर्व में होती है. पूजा में महिलाओं का खास योगदान होता है. बिहार से निकल कर अब यह पर्व मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद और गुजरात तक पहुंच गया है. विदेशों में भी इस पर्व को पूरी आस्था के साथ लोग मनाते हैं. श्रद्धा का यह महापर्व पूरे विश्व को बिहारी संस्कृति का सबसे बड़ा उपहार है.
(बातचीत पर आधारित)