हांगकांग में आंदोलन के अगुआ बने जोशुआ वोंग
हांगकांग में लोकतंत्र समर्थकों की ओर से महीने भर से चल रहा प्रदर्शन खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. चीन द्वारा हांगकांग के नेता के लिए होनेवाले चुनाव में प्रत्याशियों के खुले चयन पर रोकना भारी पड़ता जा रहा है. पहले सभी प्रत्याशियों का नामांकन खुला होता था, लेकिन चीन ने चालाकी दिखाते […]
हांगकांग में लोकतंत्र समर्थकों की ओर से महीने भर से चल रहा प्रदर्शन खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. चीन द्वारा हांगकांग के नेता के लिए होनेवाले चुनाव में प्रत्याशियों के खुले चयन पर रोकना भारी पड़ता जा रहा है. पहले सभी प्रत्याशियों का नामांकन खुला होता था, लेकिन चीन ने चालाकी दिखाते हुए यह व्यवस्था खत्म कर दी और अब नेता पद के लिए नामांकन भी गोपनीय रहेंगे. चीन के इस कदम को हांगकांग की जनता, खास कर छात्र वर्ग ने आपत्ति जतायी. इसके अलावा चीनी सरकार के कुछ फैसलों से भी छात्रों को नाराजगी थी. जैसे- 2012 में हांगकांग में इतिहास का नया पाठ्यक्रम पढ़ाने के लिए चीन की ओर से निर्देश दिये गये. इसे तथाकथित राष्ट्रवादी इतिहास बताया गया, जिसे चीन ने अपने मन के मुताबिक काट-छांट के साथ तैयार किया था. हांगकांग के स्कूलों में इस पर काफी रोष था. हांगकांग में शुरू हुए आंदोलन ऑक्यूपाई सेंट्रल को लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं ने शुरू किया, जिसे बाद में यानी सितंबर माह में कक्षाओं का बहिष्कार कर एक अलग आंदोलन खड़ा कर दिया. आंदोलन करते इन्हीं छात्रों के अगुआ बने जोशुआ वोंग. आंदोलन के कुछ ऐसे ही पहलुओं से रूबरू कराता आज का विशेष-
कौशल किशोर, सेंट्रल डेस्क
शुआ वोंग और उनके सहपाठियों द्वारा किये गये युवा आंदोलन ने पूरे हांगकांग को झकझोर डाला है. जोशुआ वोंग हांगकांग के ही युवा हैं, जिन्हें वयस्क होना पसंद नहीं है. वे इसी अक्तूबर माह में ही 18 वर्ष के होनेवाले हैं. जब वे अपने दोस्तों के साथ रेस्तरां आदि जाते हैं, तो अक्सर यह पाते हैं कि वयस्कों की दिलचस्पी चीनी राजनीति या वोंग के युवा आंदोलन में कतई नहीं है. रेस्तरां के टीवी पर छात्रों के आंदोलन का समाचार प्रसारित होता रहता है, जिसमें इस शहर के द्वंद्व को दर्शाया जाना है. हांगकांग जनतंत्र की विचारधारा से उभर कर आया, किंतु तानाशाह चीन द्वारा शासित किया जाना रहा. हालांकि यहां बैठे लोगों का ध्यान समाचार पर नहीं, भोजन पर है. इसी कारण जोशुआ वोंग वयस्क होना नहीं चाहते हैं.
वोंग का कहना है कि ‘भविष्य वयस्कों द्वारा निर्धारित नहीं होगा.’ वह पूछते हैं कि ‘ये लोग लोकतंत्र की लड़ाई में शामिल क्यों नहीं होते?’
जिस प्रकार वोंग को वयस्क होने से नफरत है, उसी प्रकार हांगकांग की युवावस्था भी अधर में लटकी हुई है. यह शहर अर्थव्यवस्था के मंच पर दुनिया का सबसे जागृत क्षेत्र है. किंतु इस छो शहर के अंगरेजों के हाथों से होते हुए 1997 में चीन को वापस किये जाने के बाद भी इसे कभी राजनीतिक स्वाधीनता का अधिकार नहीं प्राप्त हुआ. जब हांगकांग का विलय पुन: चीन में हुआ, तो उसे सामंजस्य स्थापित करने के लिए और मुख्यधारा स्थापित करने के लिए और मुख्यधारा से जुड़ने के लिए 50 वर्षो की मोहलत दी गयी थी, किंतु 33 वर्षो के लंबे अंतराल के बाद भी हांगकांग को युवावस्था से उबरने का अवसर नहीं मिला.
हांगकांग के युवा, जो वहां के राजनैतिक उत्तराधिकारी भी हैं, इस विषय से चिंतित हैं. चीनी कम्युनिस्ट नेता वहां भी अन्य क्षेत्रों की भांति एक स्वतंत्र न्यायपालिका और स्वतंत्र मीडिया को समाप्त करने के पक्षधर रहे हैं. बीजिंग ने हाल ही में एक योजना की शुरुआत की थी, जिसके तहत हांगकांग को अपना उत्तराधिकार चुनने का अधिकार नहीं था. इसी योजना ने शहर के युवाओं को सितंबर के महीने में सड़कों पर आने के लिए प्रेरित किया. हालांकि आंदोलन की असल शुरुआत तो पुलिस द्वारा इन युवाओं पर छोड़े गये आंसू गैस के गोले के विरोध में हुई. हजारों की संख्या में मिर्च स्प्रे के आगे छाते लिये हुए सड़कों पर भर गये. बाद में यही छात्र आंदोलन का चिह्न् बना.
छात्र नेतृत्ववाला यह आंदोलन यकीनन हांगकांग को अचानक तो लोकतंत्र में परिवर्तित नहीं कर पायेगा. और यदि चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की ही सरकार भविष्य में बनी रही, तो इसकी कोई संभावना नहीं है. लेकिन इस आंदोलन में लोगों की भागीदारी लगातार बढ़ रही है और राजनैतिक जागरूकता का भी प्रसार हुआ है. इनकी कार्यशैली और ऊर्जा ने चीनी शासन को भयभीत कर दिया. सरकार को टियानानमैन और अन्य छात्र आंदोलनों की याद आ गयी, जिसमें छात्रों ने सफलतापूर्वक परिवर्तन लाये थे. (इनपुट-टाइम)
युवाओं केप्रेरणास्रोतबने वोंग
वह दो अक्तूबर का दिन था, जब आंदोलनकारी हांगकांग के सरकारी कार्यालय के सामने उमड़े थे. उन्होंने रात भी सड़कों पर ही बितायी और पेट भरने के लिए ‘केएफसी’ पर निर्भरता जतायी. इसी बीच, जोशुआ वोंग, जिन्हें घुसपैठ के आरोप में 26 सितंबर को गिरफ्तार किया गया था, युवाओं के बीच भाषण देनेवाले थे. हालांकि अपनी साधारण वेशभूषा और चश्मे से वह किसी अन्य छात्र जैसे ही लगते हैं, लेकिन जब वह बोलने के लिए मंच पर आते हैं, तो हजारों मोबाइल इस क्षण को कैद करने के लिए ऊपर उठ जाते हैं. उन्होंने लोगों से कहा, ‘ संघर्ष अभी समाप्त नहीं हुआ है. हमें अभी और ठहरना है.’ लोगों ने उनकी बात मानी.
दैनिक जीवन में वोंग बेहद नम्र होते हैं. उनका पालन एक ईसाई परिवार में हुआ था. महज 14 वर्ष की आयु में ही 2011 में वोंग ने एक समूह बनाया था, जो हांगकांग की शिक्षा व्यवस्था का विरोध करता था. यह व्यवस्था टियानानमेन गोलीकांड को दबाती थी और कम्युनिस्ट पार्टी में विश्वास करना सिखाती थी. लाखों लोगों ने वोंग की रैली को सफल बनाया और सरकार यह योजना वापस लेनी पड़ी. वोंग कहते हैं कि ‘हमें वयस्कों के कदमों पर नहीं चलना. राजनैतिक परिवर्तन बैठकों से नहीं आता.. हमें ठोस कदम उठाने पड़ेंगे, क्योंकि हमारे नेताओं ने कुछ नहीं किया.’ हालांकि वह भाषण अच्छा देते हैं, लेकिन नायक बनने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है. उनके जीवन में कोई आदर्श नहीं है. न ही महात्मा गांधी और न ही वांग डैन. वांग डैन बीजिंग यूनिवर्सिटी के छात्र थे, जिनकी टिवानानमैन रैली ने उन्हें चीन का दुश्मन बना दिया.
‘दूसरे देशों को नहीं दखलंदाजी का हक’
प्रदर्शनकारी हांगकांग में 2017 में पूरी तरह लोकतांत्रिक चुनाव चाहते हैं. वहीं, चीन सरकार लोगों को मतदान का अधिकार तो दे रही है, लेकिन साथ ही शर्त यह भी है कि उम्मीदवार तय करने का अधिकार चीन सरकार को ही होगा. हाल के दिनों में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच कई बार झड़पें भी हुई हैं. हांगकांग के नेता सिवाई लेउंग का कहना है कि प्रदर्शनों में शामिल एक अहम समूह ‘ऑक्यूपाई सेंट्रल’ पूरी तरह से घरेलू आंदोलन नहीं है और इसमें बाहरी बल भी शामिल हैं. हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि ऐसे कौन से देश हैं, जिन्हें वो इन प्रदर्शनों में शामिल मानते हैं. चीन बार-बार कहता रहा है कि हांगकांग में किसी भी अन्य देश को दखल देने का हक नहीं है और यह चीन का अंदरूनी मामला है.
पीढ़ी की सोच में अंतर
चीन की तुलना में हांगकांग के युवा अमीर हैं, स्वस्थ हैं और सोशल मीडिया, जो चीन में प्रतिबंधित है, तक उनकी पहुंच अधिक है. वोंग से अक्सर यह पूछा जाता है कि ‘क्या उनके माता-पिता भी आंदोलनकारी रहे हैं?’ संभवत: लोग समझते रहे हैं कि उनके पालन-पोषण में कुछ तो ऊटपटांग रहा होगा, जिस कारण वो क्षेत्र की चिंता करते हैं. वोंग कहते हैं कि ‘लोग सोचते थे कि हमारा परिवार हर रात सरकार की कुव्यवस्था पर चर्चा करता था. लेकिन, उन्होंने मुङो सिर्फ वह करने की आजादी दी, जो मैं करना चाहता हूं.’
ऐसी आजादी पूरे चीन में सिर्फ हांगकांग में ही दिखती है. लेकिन, कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रपति शी-जिनपिंग ने कोई उदारता प्रस्तुत नहीं की है. हांगकांग निवासी अपनी संस्कृति, अपनी कैंटोनीज भाषा पर गर्व महसूस करते हैं. वे चीन की क्षेत्रीय भाषा मंदारिन नहीं बोलते, ताकि उनकी अर्थव्यवस्था कोई खतरा न हो.
सांसद क्लॉडिया कहती हैं कि ‘आप कैंटोन रोड पर खड़े हो जाएं, आपको एक भी व्यक्ति कैंटोनीज भाषा बोलता नहीं दिखायी पड़ेगा.’ मंदारिन भाषा का एकाधिकार बढ़ता जा रहा है. क्लॉडिया एक चीनी परिवार से आती हैं, जो हांगकांग में बस गया. वह खुद को सर्वप्रथम हांगकांगवासी, उसके बाद वैश्विक निवासी मानती हैं.
हांगकांग में चीन के लोगों के प्रति अत्यंत नफरत है. सभी आशान्वित हैं कि हांगकांग का संघर्ष पूरे चीन में जागृति ले आयेगा. वोंग कहते हैं कि ‘लोगों ने मुझसे हमेशा यही कहा कि ‘तुम्हें दुनिया में बदलाव लाना है, तो सबसे पहले विश्वविद्यालय में नामांकन लीजिए, सरकारी नौकरी कीजिए या व्यवसाय, तब आप योजना बनाइए. वे गलत कहते हैं. मेरा मानना है कि दुनिया में बदलाव लाने के लिए सड़कों पर उतरना चाहिए.
हांगकांग का इतिहास
हांगकांग करीब 200 छोटे-बड़े द्वीपों का समूह है. इसका शाब्दिक अर्थ होता है- सुगंधित बंदरगाह. ब्रिटेन ने चीन के साथ व्यापार करने के लिए हांगकांग को एक व्यावसायिक बंदरगाह की तरह इस्तेमाल किया. 1941 के बाद करीब चार वर्षो तक जापान का हांगकांग पर अधिकार रहा. वर्ष 1945 में ब्रिटेन और चीनी सेना ने मिल कर जापान को हरा दिया. इन वर्षो में हांगकांग के हालात बदतर हुए. करीब 16 लाख जनसंख्या वाले इस देश में भुखमरी और पलायन के कारण महज छह लाख लोग ही बचे. वर्ष 1945 के बाद शुरू हुई आधुनिक हांगकांग की अद्भुत विकास यात्र. ब्रिटेन का उपनिवेश होने से यहां की प्रशासकीय व्यवस्थाएं और प्रणालियां लोकतांत्रिक पद्धति में बदल गयी. हांगकांग ने ब्रिटेन का उपनिवेश होते हुए भी सभी क्षेत्रों में असाधारण प्रगति की. अत्याधुनिक यातायात व्यवस्था, गगनचुंबी अट्टालिकाएं, भ्रष्टाचार रहित प्रशासन और तीव्र आर्थिक प्रगति. आज का हांगकांग मात्र एक आयात-निर्यात का केंद्र तक सीमित नहीं, बल्कि विश्व का एक प्रमुख औद्योगिक व वित्तीय केंद्र है. ब्रिटेन ने 1997 में हांगकांग की संप्रभुता शर्तो के साथ चीन को वापस सौंपी. आर्थिक रूप से सशक्त हांगकांग का चीन में विलय एक राज्य, दो शासन प्रणालियों के सिद्धांत पर हुआ था, अर्थात यहां के प्रशासक अपने तरीके से काम करने के लिए स्वतंत्र थे. चीन की ओर से उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं था, लेकिन अब चीन के इरादे बदलते दिख रहे हैं.