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आंध्र में सरकारी स्कूल की बदलती सूरत

हमारे यहां सरकारी स्कूलों को अव्यवस्था का पर्याय माना जाता है. ऐसे में वंचित तबके के बच्चों के लिए आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा संचालित आवासीय स्कूलों की एक श्रृंखला सक्षम अधिकारियों के कुशल निरीक्षण और मार्गदर्शन की बदौलत औरों के सामने एक बेहतर मिसाल पेश कर रही है. राजीव चौबे आंध्र प्रदेश सरकार ने एक […]

हमारे यहां सरकारी स्कूलों को अव्यवस्था का पर्याय माना जाता है. ऐसे में वंचित तबके के बच्चों के लिए आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा संचालित आवासीय स्कूलों की एक श्रृंखला सक्षम अधिकारियों के कुशल निरीक्षण और मार्गदर्शन की बदौलत औरों के सामने एक बेहतर मिसाल पेश कर रही है.

राजीव चौबे

आंध्र प्रदेश सरकार ने एक योजना के तहत समाज के वंचित और तथाकथित निचले तबके के उत्थान के लिए सोशल वेलफेयर रेसिडेंशियल एजुकेशन इंस्टीटय़ूशंस सोसाइटी की स्थापना की है. वर्ष 1987 से अस्तित्व में आयी यह सोसाइटी फिलवक्त राज्यभर में 289 आवासीय स्कूल संचालित कर रही है. इन स्कूलों में शिक्षा पा रहे एक लाख 70 हजार से अधिक बच्चों में तीन-चौथाई, पिछड़ी और अनुसूचित जाति व जनजातियों से ताल्लुक रखते हैं. इनमें अधिकांश बच्चे तो ऐसे हैं, जिनके परिवार में कभी किसी ने स्कूल का मुंह तक नहीं देखा है. जबकि कई ऐसे परिवारों से आते हैं, जिनके घर टूटे-फूटे हैं और दिन-रात गरीबी उन्हें मुंह चिढ़ाती है. लेकिन इन सारी चीजों को पीछे छोड़ कर ये बच्चे अपनी जिंदगी में एक नये सवेरा लाने की कोशिश कर रहे हैं. यहां किताबी ज्ञान के साथ बच्चों को खेल-कूद और अन्य पाठय़ेतर गतिविधियों में पारंगत बनाने के प्रयास किये जाते हैं. यही नहीं, बदलते समय के साथ कदमताल करने के लिए इन स्कूलों में बच्चों को कंप्यूटर और इंटरनेट की बारीकियों से भी परिचित कराया जाता है, ताकि वे दुनिया को और करीब से जान सकें, महसूस कर सकें.

बात शिक्षा के स्तर की करें तो शुरुआती दशक में 10वीं की बोर्ड परीक्षाओं में इन स्कूलों में सफल बच्चों का प्रतिशत 84.78 रहा, जबकि शेष राज्य का 65.36. वर्ष 2013 में यह आंकड़ा क्रमश: 94.25 और 88 पर पहुंच गया.

लेकिन यह सब कैसे संभव हुआ? ऐसे स्कूल तो हमारे यहां भी हैं, लेकिन कहीं शैक्षणिक माहौल सही नहीं होता तो कहीं अव्यवस्था के आलम में स्कूलों से छात्र अपने घर भाग जाते हैं. आंध्र प्रदेश के इन स्कूलों के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. शुरुआती दशक में तो इनका प्रदर्शन शानदार रहा, लेकिन ’90 के दशक के उत्तरार्ध में सरकारी लापरवाही की वजह से इन स्कूलों का प्रदर्शन लड़खड़ाने लगा. हालात ऐसे हो गये थे कि शुरुआत में इन स्कूलों की अच्छी व्यवस्था को देख कर निजी स्कूलों में पढ़नेवाले जिन बच्चों ने इन स्कूलों का रुख किया था, वे वापस निजी स्कूलों की ओर भागने लगे थे. हालांकि सोसाइटी के सचिव के रूप में इन स्कूलों की देखरेख का जिम्मा भारतीय पुलिस और प्रशासनिक सेवा संवर्ग के पदाधिकारियों का रहा है, लेकिन विद्यार्थियों की गिरती संख्या को देख कर राज्य सरकार ने इस काम पर ऐसे अधिकारियों को लगाया, जिनकी दूरदृष्टि और मजबूत इरादे ने कम समय में ही स्थिति में तेजी से सुधार किया. के दमयंती, बी उदयलक्ष्मी, आरएस प्रवीण कुमार जैसे अधिकारियों की देखरेख में आंध्र प्रदेश सोशल वेलफेयर रेसिडेंशियल एजुकेशन इंस्टीटय़ूशंस सोसाइटी के स्कूलों ने बेहतर नतीजे पेश किये. सोसाइटी के स्कूलों में पठन-पाठन की स्थिति से लेकर उन पर होनेवाले सरकारी खर्चे और शिक्षकों की कार्य कुशलता और स्कूलों की आधारभूत संरचना सहित विभिन्न पहलुओं पर विशेष ध्यान देकर इन अधिकारियों ने स्कूलों को नयी पहचान दिलायी है. दो साल तक इस सोसाइटी के सचिव रहे आरएस प्रवीण कुमार के मार्गदर्शन में तो इन स्कूलों के छात्रों ने समय-समय पर देश-विदेश में आयोजित होनेवाली प्रतियोगिताओं में अपनी सफलता के झंडे गाड़े हैं. उनके मार्गदर्शन में शिक्षकों और छात्रों के लिए अलग-अलग उन्नयन कार्यक्रम चलाये गये और कक्षा में शिक्षक और बच्चों के बीच विषय की चर्चा पर जोर दिया गया. ये प्रयास आज रंग ला रहे हैं. इन पर अमल आज भी जारी हैं. समय-समय पर कक्षा में छात्रों के साथ बैठ कर उनका यह देखना कि शिक्षक किस तन्मयता के साथ छात्रों को विषय का ज्ञान दे रहे हैं, ऐसा करनेवाले हमारे यहां कितने प्रशासनिक अधिकारी हैं?

(इनपुट : फाउंटेन इंक)

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