विभिन्न उत्पादों के बारे में जानकारी देने वाली तकनीक बार कोड की उपयोगिता में नया आयाम जोड़ते हुए भारतीय स्टेट बैंक ने ‘स्वयं’ नाम से पासबुक प्रिंटिंग कियोस्क लॉन्च किया है, जिससे ग्राहक पासबुक खुद अपडेट कर सकते हैं. बार कोड रीडर की सुलभता व उपभोक्ताओं में बढ़ती जागरुकता के कारण वस्तुओं पर बार कोड देना आम चलन बन रहा है. भविष्य में इसका उपयोग कई अन्य क्षेत्रों में संभावित है. इस तकनीक के विविध पहलुओं के बारे में बता रहा है नॉलेज..
अब आप अपना पासबुक बैंक में जाकर खुद पिंट्र कर सकते हैं. इसके लिए आपको किसी बैंक कर्मचारी के पास नहीं जाना होगा और इसमें समय भी कम लगेगा. भारतीय स्टेट बैंक अपनी शाखाओं में ‘स्वयं’ नाम से एक ऐसा कियोस्क इंस्टॉल कर रहा है, जिसके माध्यम से आप खुद अपना पासबुक पिंट्र कर सकते हैं. हालांकि, बैंक ऑफ इंडिया भी यह सेवा मुहैया करा रही है और अन्य बैंक भी ऐसा कर सकते हैं. यह सब बार कोड की देन है. पासबुक की प्रविष्टियां पिंट्र करवाने से पहले आपको उस पर बैंक द्वारा जारी किया गया बार कोड चिपकाना होगा. इसके बाद आप खुद अपना पासबुक बैंक में लगाये गये कियोस्क में पिंट्र करा सकते हैं.
क्या है बार कोड
कोई सामान खरीदते समय आपने उसके पैकेट पर काले रंग की या रंगीन 8-10 या उससे भी ज्यादा लंबी-लंबी लाइनें देखी होंगी. इन लाइनों में उस खास सामान के बारे में पूरा ब्योरा होता है, जिसमें उसकी कीमत भी होती है. विभिन्न प्रकार के सामानों के बिल बनाने के लिए कैश काउंटर पर बैठा शख्स सामान को ‘ऑप्टिकल स्कैनर’ से गुजारता है. यह ऑप्टिकल स्कैनर उसी कंप्यूटर से जुड़ा होता है, जिससे बिल की पर्ची निकाली जाती है. दरअसल, स्कैनर बारकोड के ऊपर से गुजरते ही प्रोडक्ट की सारी जानकारी खुद-ब-खुद कंप्यूटर को भेज देता है. इस तरह कंप्यूटर खरीदे हुए सामान को जोड़कर तुरंत बता देता है और बिल चंद मिनटों में ही सामानों के ब्योरे के साथ निकाल लिया जाता है. बैंकों द्वारा जो बारकोड लगाया जाता है, उसे कियोस्क में डालते ही वह उसमें लगाये गये निशान को पढ़ लेता है और खाली पन्ने पर ग्राहक के सभी इंट्री को पिंट्र कर देता है.
बार कोड रीडर पढ़ता है इसे
बार कोड के मुख्य रूप से पांच हिस्से होते हैं. क्वाइट जोन, स्टार्ट जोन, स्टार्ट कैरेक्टर, डाटा कैरेक्टर और स्टॉक कैरेक्टर. बार कोड को पढ़ने के लिए बार कोड रीडर का इस्तेमाल किया जाता है. इसे प्राइस स्कैनर भी कहा जाता है. यह स्टेशनरी डिवाइस है, जो बार कोड की सूचना को स्टोर करती है. रीडर में एक लेजर बीम लगी होती है, जो लाइन और स्पेस में रिफ्लेक्शन के द्वारा कोड को डिजिटल डाटा में बदल देती है और इसे कंप्यूटर को भेज दिया जाता है. बारकोड रीडर भी मुख्य रूप से पांच प्रकार के होते हैं- पेन वांड्स, स्लॉट स्कैनर, सीसीडी स्कैनर, लेजर स्कैनर और इमेज स्कैनर. इनमें पेन वांड्स सबसे आसान बार कोड रीडर होता है. बार कोड की शुरुआत एक स्पेशल कैरेक्टर से होती है, जिसे स्टार्ट कोड कहा जाता है.
प्रत्येक कोड एक स्पेशल कैरेक्टर के साथ होता है, जिसे स्टॉप कोड कहा जाता है. स्टार्ट कोड, बार कोड स्कैनर को बारकोड पढ़ते वक्त शुरुआत के बारे में बताता है. स्टॉप कोड बार कोड स्कैनर को पढ़ते वक्त यह बताता है कि बार कोड आखिरी चरण तक पहुंच गया है. लीनियर बार कोड के साथ मौजूदा नये इलेक्ट्रॉनिक बार कोड का चलन बढ़ा है. बार कोड का इस्तेमाल पुस्तकालयों द्वारा किताबों को ट्रैक करने में भी किया जाता है.
बार कोड के कारोबारी इस्तेमाल की शुरुआत
‘इंवेंटर्स डॉट एबाउट डॉट कॉम’ में इंवेटर्स एक्सपर्ट मेरी बेलिस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बार कोड का पहला कारोबारी इस्तेमाल 1966 में किया गया. हालांकि, जल्द ही यह महसूस किया गया कि इसमें औद्योगिक मानक के अनुरूप कुछ खामियां हैं. इसलिए 1970 में लोजिकॉन इंक नामक एक कंपनी ने लिखित में यूनिवर्सल ग्रोसरी प्रोडक्ट्स आइडेंटिफिकेशन कोड यानी यूजीपीआइसी तैयार किया. इसी वर्ष अमेरिकन कंपनी मोनार्क मार्किग ने खुदरा कारोबार के लिए पहले बार कोड (यूजीपीआइसी का इस्तेमाल करते हुए) उपकरण का उत्पादन किया.
इसके अलावा, इसी वर्ष प्लेसी टेलीकम्युनिकेशन नामक एक ब्रिटिश कंपनी ने औद्योगिक इस्तेमाल वाले उपकरण का उत्पादन शुरू किया. यूजीपीआइसी में यूपीसी सिंबल सेट या यूनिवर्सल प्रोडक्ट कोड शामिल है, जिसका इस्तेमाल अब भी अमेरिका में किया जाता है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, बार कोड युक्त पहला उत्पादन रिंगले की च्यूइंग गम का पैकेट था.