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आत्मविश्वास से आसान होगी मंजिल की राह

आत्मविश्वास वह सीढ़ी है, जो इंसान को बेहतर भविष्य की ओर ले जाती है. अगर यह डगमगा जाये, तो न सिर्फ सोचने-समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है, बल्कि भविष्य भी दावं पर लग जाता है. टीनएज में आत्मविश्वास डगमगाने की आशंका अधिक होती है. इस उम्र में अकसर परीक्षा में अच्छे अंक न आने, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 23, 2014 1:40 AM
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आत्मविश्वास वह सीढ़ी है, जो इंसान को बेहतर भविष्य की ओर ले जाती है. अगर यह डगमगा जाये, तो न सिर्फ सोचने-समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है, बल्कि भविष्य भी दावं पर लग जाता है. टीनएज में आत्मविश्वास डगमगाने की आशंका अधिक होती है. इस उम्र में अकसर परीक्षा में अच्छे अंक न आने, माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरने, किसी खास दोस्त से मनमुटाव हो जाने आदि जैसी बातें भी आत्मविश्वास को कम कर देती हैं. इसलिए जरूरी है कि आप इसकी डोर को मजबूती से थामे रहें.

आत्मविश्वास को सफलता का मूल आधार माना जाता है. इंसान का आत्मविश्वास अगर डगमगा जाये, तो जिंदगी की चाल भी गड़बड़ा जाती है. कोई अगर इसे पूरी तरह खो दे, तो उसके अस्तित्व पर संकट खड़ा हो जाता है. टीनएजर्स, जिन्हें अभी एक लंबा सफर तय करना है, में आत्मविश्वास का होना उसी तरह जरूरी है जैसे किसी इमारत के निर्माण की शुरुआत में मजबूत नींव का होना. लेकिन जिंदगी में कई बार कोई घटना, हालात या फिर किसी तरह का दबाव आत्मविश्वास को कम कर देते हैं या खत्म कर देते हैं. टीनएज में इसकी आशंका अधिक होती है. मौजूदा समय में जब महत्वकाक्षाएं, प्रतिस्पर्धा, दिखावा, टेक्नोलॉजी जैसी अनगिनत चीजें लाइफस्टाइल पर हावी होती जा रही हैं, इंसान की आत्मा और आत्मविश्वास पर प्रहार भी बढ़े हैं. जानिये कुछ टीन्स की जिंदगी के हाले बयां से कि किस तरह टीन्स अपना आत्मविश्वास खो देते हैं. साथ में कुछ ऐसे कदम, जो आत्मविश्वास की डोर थामे रखने में सहायक हो सकते हैं.

यह जिंदगी का आखिरी इम्तेहान तो नहीं था!

पलक की उम्र अभी महज 16 साल है. पिछले कुछ दिनों से वह बेहद निराश या कहें अवसाद में रहने लगी है. वजह उसका रिजल्ट है. कड़ी मेहनत के बावजूद उसके इतने नंबर नहीं आ पाये कि उसे ग्यारहवीं में सांइस मिल सके. हालांकि साइंस पढ़ना उसका अपना नहीं है, उसके मां-पापा का सपना है, जिसे पूरा कर वह उन्हें खुश करना चाहती थी. लेकिन रिजल्ट ने जैसे उसके कदमों को आगे बढ़ने से रोक दिया. नंबर कम आने की वजह से उसका आत्मविश्वास इस कदर कमजोर हो गया है कि वह सोचने लगी कि अब जिंदगी में वह कभी कुछ करना तो दूर पढ़ भी नहीं पायेगा. पलक के आत्मविश्वास को डिगाने में सिर्फ उसके रिजल्ट की भूमिका नहीं है. इसकी शुरुआत तो तभी हो चुकी भी, जब उसने अपनी रुचि और क्षमता को आंके बिना पने मां-पापा के सपने के सपने को पूरा करने की जिम्मेदारी अपन ऊपर थोप ली.

सांइस और मैथ्स ही नहीं, कोई भी सब्जेक्ट हो, उसे रोज 12 से पंद्रह घंटे तक रटने से भी नहीं साधा जा सकता. इसके लिए उसमें रुचि का होना जरूरी है. पलक के नाजुक मन ने पहले तो अपनी रुचि और क्षमता जाने बिना साइंस सब्जेक्ट से पढ़ने का सपना पाल लिया. और अब जब ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है तो उसे लगने लगा है कि वह जिंदगी में कभी कुछ भी नहीं कर पायेगी. दरअसल, एक बार असफल होने पर बुहत से लोगों को पुन: प्रयास करने से डर लगने लगता है. लेकिन ऐसे वक्त में जब पलक को आगे का रास्ता तय करना है, उसका अपने आप पर से भरोसा खो देना उसके कैरियर और आगे की जिंदगी को भी प्रभावित करेगा.

गौर करें, कहीं आप वक्त के साथ बदले नहीं तो!

सात्विक के साथ जो हुआ, वह पलक की जिंदगी से बिल्कुल अलग है. लेकिन उसका भी अपने आप से भरोसा उठ चुका है. इसके पीछे वजह बनी है दोस्ती. रिचा 18 साल के सात्विक की बचपन की दोस्त है लेकिन टीनएज में आते-आते जिंदगी बहुत बदल जाती है. यही सात्विक और रिचा के साथ हुआ. 10वीं कक्षा के बाद उनके सब्जेक्ट बदले और क्लास रूम भी. जाहिर है कुछ नये दोस्त भी जिंदगी में आये. रिचा के कुछ नये दोस्त बने और सात्विक को लगने लगा कि रिचा ने उनकी दोस्ती के साथ ईमानदारी नहीं बरती. इस दोस्ती की रिचा के मन में कोई अहमियहत नहीं रह गयी है. इस तरह की कई बातें सात्विक की सोच पर हावी होती गयीं और इन बातों ने उसके भरोसे और आत्म-विश्वास को हिला कर रख दिया. दूसरे दोस्तों के साथ भी उसका व्यवहार असमान्य रहने लगा. उनके साथ उसने मिलना-जुलना कम कर दिया और खुद को अपने कमरे तक समेट लिया. जाहिर है ऐसे में अकेलापन, अवसाद उस पर हावी होता जायेगा. पिछले कुछ महीने से उसके पैरेंट्स उसे इस स्थिति से उबारने के लिए एक काउंसलर की मदद ले रहे हैं. दरअसल, वक्त के साथ इंसान को बदलना होता है, जिंदगी में नये दोस्त भी बनते हैं. ये बातें अगर सात्विक समझने की कोशिश करता तो शायद इस स्थिति में जाने से बच सकता था.

गिरते मनोबल को थामने के कुछ उपाय

सकारात्मक सोच, आत्मविश्वास हासिल करने का एक अहम आधार है . सकारात्मक सोचवाले लोगों के साथ रहने से भी आत्मविश्वास बढ़ता है.

दूसरे क्या सोचेंगे, यह सोच कर अपनी क्षमताओं को सीमित न करें. अपना सम्मान करना सीखें और हर नतीजे के लिए खुद को जिम्मेदार ठहराना छोड़ दें.

असफलता को स्वीकारना आत्मविश्वास का मूल आधार है. जीवन में जो अच्छी चीजें मिली हैं, उनका ध्यान रखें, अच्छे काम के लिए खुद को शाबाशी दें.

आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए जरूरी है कि अपने मन से सभी प्रकार के संदेह निकाल फेंके तथा एकाग्रता को बढ़ाएं. अपने मन को चिंता, भय और किसी तरह की शंका से मुक्त रखने का प्रयास करें.

खुद का मूल्यांकन करें, खुद से प्यार करें. ध्यान रखें कि आत्मविश्वास के विकास के लिए समय और समर्पण की जरूरत होती है.

एक ही जगह पर ठहर कर रह जाने और बार-बार पीछे मुड़ कर देखनेवाले लोग कभी आगे नहीं बढ़ पाते. क्या आप चाहेंगे कि आपके साथ ऐसा हो? कतई नहीं, इसलिए असफलताओं और भूलों को भूल कर नयी शुरुआत करने का प्रयास करें. अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखें. किसी अन्य पर आरोप न लगाते हुए शांति से अपनी प्रतिक्रिया दें.

आनेवाले कल के बारे में सोचें और यह फैसला करें कि आप भविष्य में अपने लिए क्या चाहते हैं. लक्ष्य निर्धारत करने से आपकी जिंदगी को एक दिशा मिलेगी और लक्ष्य को हासिल करने के लिए कार्ययोजना के साथ उठा आपका कदम आपके आत्मविश्वास को बढ़ायेगा.

कुछ भी नया सीखना आपके आत्मविश्वास और उत्साह को बढ़ायेगा है. इससे आपकी जानकारी भी बढ़ेगी और सोच भी व्यापक होगी. आप स्थितियों का सामना बेहतर तरीके से करने में सक्षम बनेंगे. साथ ही कुछ नया सीखना एक ही तरह के काम से उत्पन्न एकरसता और बोरियत को भी कम करता है.

टीनएजर्स कई बार दूसरों के ओपिनियन के आधार पर गलत राय बना लेते हैं. किसी भी राय पर अमल करने से पहले खुद उसके हर पहलू के बारे में सोचें. ऐसा न हो कि यह गलत राय आपके भरोसे का डिगा दे.

आत्मविश्वास को वापस पाने के लिए सबसे जरूरी है कि अपने को प्यार करना और अपनी गलतियों को दोबाना न दोहराने के संकल्प के साथ भुला देना और आगे बढ़ना.

हर बात पर खुद को ही गलत समझना और अपने में सिर्फ बुराइयां ही देखना भी आत्मविश्वास को कमजोर करता है. इस टेंडेंसी के कारण अकसर टीनएजर्स हीन भावना के भी शिकार हो जाते हैं. इसलिए अपने में अच्छाइयां भी ढूंढ़ें और खुद पर भरोसा करें.

अपने बारे में तमाम अच्छी बातों और कमजोरियों को भी एक जगह दर्ज कर लें. यदि आपको लगता है कि आप जल्दी इमोशनल हो जाते हैं या हर्ट हो जाते हैं, तो उसकी जड़ों को समझने में इससे आपको मदद मिलेगी. इससे आप अपने ही बारे में बेहतर समझ विकसित कर पायेंगे.

खुशी का भी आत्मविश्वास से गहरा संबंध है. याद रखें कि खुशी बाहरी चीजों या भौतिक सुख-सुविधाओं में नहीं होती. इसका संबंध आत्मा से है. यह पूरी तरह आप पर निर्भर है कि आप खुश रहना चाहते हैं या दु:खी. अपने भीतर झांक कर देखें और अब तक आपने जो कुछ भी अच्छा किया है, उस पर गर्व करें.

अगर कभी आपको अपना भरोसा टूटता दिखे यानी अपने आप पर, अपनी क्षमताओं पर संदेह होने लगे तो अपने साये को देख लें. अगर वह आपके साथ है तो घबराने की बात नहीं. पूरे आत्मविश्वास से कदम आगे बढ़ाते जाएं आपको सफलता जरूर मिलेगी.

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