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कहीं दीप जले कहीं दिल!

कुजात ‘‘.. उपयुक्त प्रत्याशी उसे कहते हैं जो विधानमंडल में अपने दल के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व कर सके.. जिस दल का उसे प्रतिनिधित्व करना है, उसके उद्देश्यों के प्रति निष्ठावान होना चाहिए. ..किंतु दल केवल एक ही दृष्टि से विचार करते हैं कि उनका प्रत्याशी ऐसा हो जो चुनाव में विजय प्राप्त कर सके. ..अनेकानेक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 27, 2014 8:42 AM

कुजात

‘‘.. उपयुक्त प्रत्याशी उसे कहते हैं जो विधानमंडल में अपने दल के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व कर सके.. जिस दल का उसे प्रतिनिधित्व करना है, उसके उद्देश्यों के प्रति निष्ठावान होना चाहिए. ..किंतु दल केवल एक ही दृष्टि से विचार करते हैं कि उनका प्रत्याशी ऐसा हो जो चुनाव में विजय प्राप्त कर सके. ..अनेकानेक लोगों को किसी अन्य योग्यता पर नहीं, बल्कि धन खर्च करने की क्षमता के कारण ही टिकट दिया जाता है. ये लोग दल के टिकट के लिए न याचना करते हैं और न उसके लिए आवश्यक योग्यता रखते हैं, बल्कि वे टिकट खरीदते हैं. ये लोग जनता के पास मत की याचना करने नहीं, बल्कि उन्हें खरीदने आते हैं. ..दलों को इस दिशा में सतर्क रहना चाहिए कि वे तात्कालिक लाभ के लिए सिद्धांतों का बलिदान न करें.’’

– पं दीनदयाल उपाध्याय/ पोलिटिकल डायरी (4 दिसंबर 1961)

सुरुचि प्रकाशन, नयी दिल्ली (2008/पृष्ठ -146, 147, 149)

पं दीनदयाल उपाध्याय के विचारों से अनुप्राणित भारतीय जनसंघ ने देश की राजनीति में सिद्धांतहीनता व अनास्था के घने अंधेरे के उस दौर में आस्था का दीप जलाया था. इसी का परिणाम था कि जनसंघ के विचारों-सिद्धांतों एवं देशभक्तिपूर्ण आदर्शो से प्रभावित होकर हजारों तरुण भारतमाता के चरणों में अपनी तरुणाई, अपना तन-मन-धन और जीवन चढ़ाने निकल चुके थे. ‘‘मातृ-मंदिर का समर्पित दीप मैं, चाह मेरी यह कि नित जलता रहूं’’ के गीत गुनगुनाते हुए. आस्था के इस चिराग को सतत् प्रज्ज्वलित रखने के संकल्प के साथ ही 6 अप्रैल 1980 को जनसंघ का युगानुकूल अवतार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के रूप में हुआ. भाजपा के संस्थापक जननेता अटल बिहारी वाजपेयी ने उसी वर्ष मुंबई अधिवेशन (29-30 दिसंबर 1980) में अथाह सागर के किनारे ‘समता नगर’ में सिंधु-लहरों को साक्षी बना कर देश को आस्था के संकट के भंवर से उबारने की वचनबद्धता के साथ लाखों कार्यकर्ताओं का आह्वान करते हुए राष्ट्र को काव्यमय संदेश दिया था- ‘‘अंधेरा छंटेगा, सूरज उगेगा, कमल खिलेगा.’’ लेकिन स्थापना के 34 वर्षो बाद अगर भाजपा के प्रेरणापुरुष पं दीनदयालजी एवं शीर्ष नेता अटल जी के विचारों के आलोक में पार्टी के चाल-चरित्र चेहरे को परखें, तो चिराग तले अंधेरा ही नजर आता है. अंगरेजी में एक कहावत है – ‘’All that glitters is not gold” (सभी चमकदार चीजें सोना नहीं होतीं). भाजपा अभी सत्ता के ग्लैमर के प्रभाव में चमकदार नजर आ रही है. लेकिन इस ग्लैमर के नीचे भ्रष्ट कांग्रेसी संस्कृति का बदबूदार पनाला बह रला है. तात्कालिक चुनावी लाभ के लिए भाजपा भ्रष्टाचारियों, धनपतियों एवं बेईमानी से आत्मघाती समझौते कर राजनीति एवं राजनेताओं में आस्था के संकट (ू1्र2्र2 ा ां्र3ँ) को गहरा रही है. भाजपा का कमल सिद्धांतहीनता के दलदल में कर्ण के रथ के चक्के के समान धंसता चला जा रहा है, जिससे उबरना पार्टी के लिए आगे दुष्कर सिद्ध होगा. भाजपा का समर्पित कार्यकर्ता एवं समर्थक वर्ग ठगा सा महसूस कर रहा है. उसका मन बुझा-बुझा सा हो चला है. अटलजी के अनुसार बुङो हुए मन से युद्ध नहीं जीते जाते. और यह भी कि अगर ‘‘यतस्धर्म: तत: जय:’’ – गीता का यह संदेश सनातन सत्य है, तो फिर अधर्म एवं अनीति के बूते कोई कब तक जीतता रहेगा? अंतत: कौरवों की तरह हारना ही उसकी नियति होगी, भले ही वे कितने भी शक्तिशाली नजर आते हों.

देखिए, जेवीएम की कर्मनाशा के किनारे कल्पवास करके भाजपा की गंगा में स्नान कर पवित्र हुए पार्टी के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष की कृपा से, गिरिडीह में भाजपा ने, रातोंरात जेवीएम से पाला बदल कर आये लोकलाज से निर्भय धनकुबेर को टिकट दिया है. यूं कहिए कि पं दीनदयाल जी ने धनपतियों द्वारा जो टिकट खरीदने की बात कही थी, कार्यकर्ताओं का मानना है कि गिरिडीह में इसे चरितार्थ किया गया है. ‘‘टका धर्म, टका कर्म, टका हि परम् तप:’’- जीवन मंत्र है इस धनकुबेर का. कार्यकर्ताओं का मानना है कि ‘‘यस्य पाश्र्वे टका नास्ति, स: नर: टकटकायते’’ – इस मंत्र को जीवनोद्देश्य माननेवाले संघ-भाजपा के कर्णधारों को टके से टांक कर इस धनकुबेर ने पार्टी को समर्पित लोगों को चिढ़ाते हुए टिकट झटक लिया. कांग्रेस, राजद, जेवीएम और अब भाजपा के मंच पर चार चांद लगा रहा है ये शख्स, दो बार ‘जेलयात्र का गौरव’ प्राप्त कर चुका है. संघ के महाप्रभुओं की ‘विशेष कृपा’ ऐसे लक्ष्मीपुत्रों पर होनी ही है. संघ के सामथ्र्यवान देवताओं के कृपापात्र होते ही अपात्रों-कुपात्रों को भी अष्ट-सिद्धियां, नौ-सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं. इसके बाद भाजपा में किसकी मजाल कि ऐसे भक्तों को मोदी जी की गंगा में डुबकी लगा कर चुनावी वैतरणी पार करने से रोक ले? निष्ठावान कार्यकर्ता अगर चूं-चपड़ किये तो वे निबटा दिये जायेंगे. ‘‘लंगड़ी बिल्ली, घरे शिकार.’’

धनवार विधानसभा में, कोयलांचल में अफसर रहते कोयले की कमाई से, एक रौबदार महानुभाव भाजपा के केंद्रीय-प्रांतीय नेताओं को ‘उपकृत’ कर टिकट ले उड़े. क्षेत्र में सालों-साल हड्डियां गलाते रहे कार्यकर्ता हाथ मलते रह गये. पड़ोस के गांडेय के पुराने जनसंघी लक्ष्मण की जरूरत भाजपा को नहीं रह गयी थी. सो, इधर धनवार में नये लक्ष्मण का पदार्पण हुआ, तो उधर 40-50 साल से जनसंघ-भाजपा के झंडे ढोते पुराने लक्ष्मण नाटकीय अंदाज में पार्टी को बाय-बाय कर दिया, जिन्हें बिछुड़ने का कोई मलाल भाजपा के कृतघ्न कर्णधारों को शायद ही हो. गांडेय में भाजपा ने जिसे टिकट से नवाजा, वे 2006-07 के आसपास इस पार्टी को छोड़ते वक्त अपने आका बाबूलाल मरांडी एवं उस समय मरांडी के दिल में बसनेवाले वर्तमान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रवींद्र राय को प्रसन्न करने के लिए डॉ मुखर्जी, पं दीनदयाल, अटलजी और आडवाणी ही नहीं, हेडगेवार एवं गोलवलकर की तसवीरों पर भी अपने शरीर के आकार के हिसाब से बहादुरी आजमा चुके हैं. ‘‘वारांगनेव नृपनीतिरनेकरूपा:’’. शायद उसी बहादुरी का पारितोषिक पार्टी ने इन्हें प्रदान किया है, टिकट देकर.

हजारीबाग में भाजपा ने जेवीएम में रहे सोमरस-मधुरस-शक्तिरस के एक बड़े कारोबारी, कुबेरपुत्र को टिकट से अलंकृत किया है. यहां संगठन के लिए जनसंघ के समय से ही खून-पसीना बहा कर पार्टी की पहचान बनानेवाले काशीलाल अग्रवाल एवं महावीरलाल विश्वकर्मा जैसे पुराने स्वयंसेवकों तथा पार्टी के अन्य समर्पित कार्यकर्ताओं को शातिर तरीके से अप्रासंगिक बना कर धीरे-धीरे से ठिकाना लगा दिया गया है.

उधर हटिया में, ग्लैमर की हाट में भाजपा की संपूर्ण पवित्रता लूट गयी. राजमहल में गणोश-परिक्रमा ‘अनंत महिमा’ रंग लायी. कितने वृत्तांत सुनाऊं? बाघमारा, सिंदरी, गढ़वा, भवनाथपुर, मांडू.., कहां-कहां के? ‘हरि अनंत हरिकथा अनंता’ की स्थिति है. संघ-भाजपा में विचारों के प्रति निष्ठा या परिश्रमशीलता के कोई मायने नहीं. यहां तो बड़े नेताओं, संगठन मंत्रियों या संघ प्रचारकों-मठाधीशों की परिक्रमा रंग लाती है.

कहना नहीं होगा कि भाजपा के टिकट से नवाजे गये दल-बदलुओं, माफियाओं, भ्रष्टाचारियों, अवसरवादियों और पार्टी की साख की तिजारत कर मोटे हो गये गणोश-परिक्रमा में माहिर शातिर छुटभैयों के दिलों में मोदी लहर पर सवार हो विधानसभा में पहुंचने के अरमानों के दीप जल रहे हैं, तो कुछ मूल्यों, आदर्शो एवं विचारों को लेकर सार्वजनिक जीवन में सक्रिय समर्पित कार्यकर्ताओं के दिलों में आक्रोश की ज्वाला धधक रही है.

.. कहीं दीप जले कहीं दिल!

– एक कुजात स्वयंसेवक

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