सत्ता का संरक्षण एक मामूली आदमी को कैसे बना देता है धन कुबेर

1974 का आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ था. पुन: 1989 में भ्रष्टाचार के विरुद्ध केंद्र में वीपी सिंह की सरकार बनी थी. 2014 में भी यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकसभा चुनाव जीतकर एनडीए की सरकार बनी. मगर व्यवस्था बदलती दिख नहीं रही है. यह जंग लगी व्यवस्था तब तक नहीं बदल सकती, जब तक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 4, 2014 8:36 AM

1974 का आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ था. पुन: 1989 में भ्रष्टाचार के विरुद्ध केंद्र में वीपी सिंह की सरकार बनी थी. 2014 में भी यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकसभा चुनाव जीतकर एनडीए की सरकार बनी. मगर व्यवस्था बदलती दिख नहीं रही है. यह जंग लगी व्यवस्था तब तक नहीं बदल सकती, जब तक कि नीचे से बदलाव का नया मानस न बने. यादव सिंह इस भ्रष्ट व्यवस्था का एक नमूना है. जानिए उसके काले कारनामों के बारे में.

लखनऊ से राजेंद्र कुमार

यादव सिंह, यानी यूपी के नोएडा विकास प्राधिकरण का अरबपति चीफ इंजीनियर. जिसकी राजनीतिक पहुंच सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी से लेकर यूपी की सत्ता से बेदखल हो चुकी बहुजन समाज पार्टी के प्रमुख नेताओं तक. ऐसी तगड़ी राजनीतिक हैसियत वाले यादव सिंह के नोएडा स्थिति घर पर आयकर अधिकारियों ने टीम ने 27 नवंबर को छापा मारा, तो उनके घर से करोड़ों रुपये के हीरे और जेवरात के साथ चालीस ऐसी शेल (दिखावटी) कंपनियों के दस्तावेज हाथ लगे, जिनके नाम पर नोएडा विकास प्राधिकरण से प्लाट हथियाये गये. इन्हें बेच कर करोड़ों रुपये बनाये गये. छापे में यादव सिंह की पत्नी कुसुमलता के नाम पर बनायी गयी कंपनी का भी पता आयकर अफसरों को चला.

यादव सिंह के एक नजदीकी की कार से दस करोड़ रुपये नकद बरामद हुए. यादव सिंह की ऑडी गाड़ी घर के बाहर मिली. उनके ‘पार्क’ से लाखों रुपये के कुत्ते और पक्षी भी अफसरों को मिले. एक दर्जन से अधिक लॉकर उनके और उनके परिवार के लोगों के होने का पता चला. आयकर अफसरों का अनुमान है कि यादव सिंह एक हजार करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति का मालिक है. आयकर महानिदेशक (जांच) कृष्णा सैनी के अनुसार, यादव सिंह को लेकर शिकायतें प्राप्त हुई थीं कि बोगस कंपनियों के नाम पर नोएडा में जमीनों का आवंटन कराया जा रहा है. बाद में कंपनियों को बेच कर भारी मुनाफा कमाया जा रहा है. इसमें बड़े पैमाने पर आयकर की चोरी की जा रही है. इस शिकायत के आधार पर बीते गुरु वार को नोएडा स्थित मैक्कन इंफ्रा प्रा लि और मीनू क्रि एशंस प्रा लि के नोएडा, दिल्ली व गाजियाबाद स्थित 25 ठिकानों पर मारे गये. इनमें मैक्कन इंफ्रा के निदेशक राजेंद्र मनोचा, नम्रता मनोचा, अनिल पेशावरी व मीनू क्रिएशंस की निदेशक कुसुमलता के दफ्तर व आवास शामिल हैं. कुसुमलता ही यादव सिंह की पत्नी हैं, जो पूर्व में मैक्कन इंफ्रा की निदेशक रह चुकी हैं.

नोएडा विकास प्राधिकरण के अरबपति चीफ इंजीनियर, यादव सिंह के यहां छापे में मिले दस्तावेजों और नकदी की बरामदगी से आयकर अधिकारी भी सन्न रह गये. इसकी वजह बड़ी संख्या मिले में प्रॉपर्टी संबंधी दस्तावेज थे. इन दस्तावेजों से पता लगा कि बीते तीन-चार वर्षो में कोलकाता से बोगस कंपनियों के शेयर होल्डिंग बनाये गये.

फिर ऐसी करीब 40 कंपनियों को नोएडा में भूखंड आवंटित कराये. बाद में इन कंपनियों को दूसरी कंपनियों को बेच दिया गया. इस दौरान कैपिटल गेन को आयकर महकमे के समक्ष घोषित नहीं किया गया. छापे के दौरान ही मीनू क्रिएशंस के ठिकानों पर बड़ी मात्र में स्टॉक भी मिला है. कंपनी फैशन व डिजायनर वस्त्रों का कारोबार करती है. साथ ही बेनामी संपत्तियों से संबंधित दस्तावेज भी बड़ी संख्या में मिले हैं. यादव सिंह की एक डायरी भी आयकर अफसरों को मिली, जिसमें उसने किस-किस नेता को प्लाट और कमीशन दिया है, इसका ब्योरा दर्ज है. छापेमारी के बाद यादव सिंह देश भर में चर्चा का केंद्र बन गये, तो उन्हें लेकर खोज बीत शुरू हो गयी.

कैसे नोएडा प्राधिकरण का एक जूनियर इंजीनियर देखते-देखते न सिर्फ उसका चीफ इंजीनियर बन गया, बल्कि बीते माह अखिलेश सरकार ने उसे ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का भी चीफ इंजीनियर बना दिया. जबकि अखिलेश सरकार ने ही सत्ता में आने के बाद यादव सिंह को बसपा सरकार का हमदर्द अधिकारी मानते हुए उसके खिलाफ कार्रवाई की थी. अचानक ऐसा क्या हुआ कि अखिलेश सरकार का रुख यादव सिंह को लेकर बदल गया और उन्हें दो प्राधिकरणों का चीफ इंजीनियर बना दिया गया. इसकी पड़ताल की, तो यादव के ऊंचे राजनीतिक संबंधों की परतें धीरे-धीरे खुल गयीं. पता चला कि राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं को और उनके नजदीकी लोगों को नोएडा में प्लाट मुहैया करा उसने अपना सिक्का नोएडा और ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण में जमा कर अरबों रुपये जुटाये हैं. वर्षो से वह यही कर रहा है.

संपत्ति से ज्यादा चौंकाने वाले कई राज यादव की डायरी में हैं. यह डायरी आयकर अधिकारियों को छापेमारी के दौरान मिली है. इसमें कई नेताओं, बड़े अफसरों और रसूखदारों के नाम हैं. डायरी में नोएडा के प्लॉटों को लेकर हुए लेन-देन का ब्योरा है. यह भी दर्ज है कि किस अधिकारी और किस नेता को कौन से प्लॉट के आवंटन में कितना कमीशन दिया गया. इसके अलावा किन अधिकारियों या नेताओं के कहने पर प्लॉटों का आवंटन किया गया. इन तथ्यों के आधार पर आयकर विभाग कुछ रसूखदारों से पूछताछ कर सकता है. डायरी में में पिछली सरकारों के भी कई कद्दावर नेताओं और अच्छी पोस्टिंग पर रहे कई नौकरशाहों, उद्योगपतियों और अन्य लोगों के नाम शामिल हैं. आयकर विभाग की टीम उन उद्योगपतियों पर भी शिकंजा कस सकती है, जिन्होंने रिश्वत देकर या गलत तरीके से प्लॉटों का आवंटन कर मुनाफा कमाया.

1980 में जेई के पद से की शुरुआत

नोएडा विकास प्राधिकरण में जूनियर इंजीनियर के पद पर सन 1980 में यादव सिंह ने नौकरी शुरू की. 1985 में उन्हें प्रमोट करके प्रोजेक्ट इंजीनियर बनाया गया. 1995 में यादव सिंह को एक और प्रमोशन दिया गया, वह भी इस शर्त पर कि वह अगले तीन साल में डिग्री हासिल कर लेंगे. यादव सिंह ने तय समय में ही यह शर्त पूरी कर ली. इसी दरम्यान वह बसपा नेताओं के संपर्क में आये. इसी के बाद नोएडा और ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण में उसका सिक्का चलने लगा. नोएडा और ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष एवं सीइओ भी उसे साथ लेकर चलने लगे. प्लाटों के आवंटन में यादव सिंह की कोई भूमिका न होने के बाद भी प्राधिकरण के बड़े अधिकारी उसकी राय लेने लगे. जिसके चलते मायावती की पिछली सरकार में यादव सिंह ने नियमों को ताक पर रख कर 954 करोड़ रुपये के ठेके अपने करीबियों को बांट दिए थे. अपने पुत्र सनी यादव को भी उसने नोएडा विकास प्राधिकरण में मैनेजर के पद पर तैनात करा लिया. भाजपा नेता किरीट सौमैया ने यादव सिंह की कई फर्जी कंपनियों का पर्दाफाश किया था और आरोप लगाये थे कि यादव सिंह के मायावती के भाई के साथ व्यावसायिक संबंध हैं. अखिलेश सरकार ने 954 करोड़ रुपये के ठेके बांटने के मामले को लेकर यादव सिंह के खिलाफ विभागीय जांच बिठा कर उसे निलंबित कर दिया. लेकिन ये सरकार भी ज्यादा दिनों तक यादव सिंह को नोएडा से दूर नहीं रख पायी. नवंबर, 2013 में एक बार फिर उसे बहाल कर दिया गया, वह भी तत्कालीन प्रमुख सचिव (औद्योगिक विकास) एसपी सिंह की राय लिए बिना. इस पर जब प्रमुख सचिव ने नोएडा के सीइओ रामरमन से पूछताछ की तो उन्होंने प्रमुख सचिव को कोई जवाब नहीं दिया. उलटे, चंद दिनों बाद ही एसपी सिंह को उनके पद से हटा दिया गया.

यादव सिंह के घर से जो दस्तावेज और जेवरात मिले हैं, उससे बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी की आशंका लगती है. दूसरे अधिकारियों से भी पूछताछ की जायेगी. आयकर विभाग की टीम ने राजेन्द्र मनोचा के घर के बाहर खड़ी कार से 10 करोड़ रु पये नकद भी बरामद किया है.

कृष्णा सैनी, डीजी (इंवेस्टिगेशन), आयकर विभाग, लखनऊ

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