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उबर मामला: दोधारी तलवार है तकनीक

दिल्ली में एक महिला से टैक्सी में बलात्कार का मामला सामने आने के बाद ऐसे सफर में यात्रियों की सुरक्षा का सवाल उठने लगा है. पुलिस के अनुसार शुक्र वार को 27 वर्षीय इस महिला ने देर रात वसंत विहार से अपने घर सराय रोहिल्ला जाने के लिए टैक्सी ली थी. यह टैक्सी अंतरराष्ट्रीय कंपनी […]

दिल्ली में एक महिला से टैक्सी में बलात्कार का मामला सामने आने के बाद ऐसे सफर में यात्रियों की सुरक्षा का सवाल उठने लगा है. पुलिस के अनुसार शुक्र वार को 27 वर्षीय इस महिला ने देर रात वसंत विहार से अपने घर सराय रोहिल्ला जाने के लिए टैक्सी ली थी. यह टैक्सी अंतरराष्ट्रीय कंपनी उबर टैक्सी सर्विस की थी. यह कंपनी जिस तकनीकी का प्रयोग करती है उसमें सुरक्षा संबंधी बड़ी खामी है. आइए समझते हैं, तकनीक और सुरक्षा के रिश्ते को.

आम टैक्सी कंपनियों के पास अपनी निजी गाड़ियां होती हैं जिसमें एक सामान्य स्थायी जीपीएस (ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम) लगा होता है. इस जीपीएस को किसी भी हालत में बंद नहीं किया जा सकता है. कंपनी की अपनी गाड़ी हो और ड्राइवर हो, तो सुरक्षा व्यवस्था बेहतर हो जाती है. ऐसी स्थिति में सफर जहां से शुरू होता है वहां से लेकर मंजिल तक पहुंचने तक कंपनी गाड़ी और ड्राइवर पर नजर रख सकती है. लेकिन उबर ने बिल्कुल अलग हाई टेक्नोलॉजी सिस्टम निकाला जो एक नया प्रयास था. इसके बावजूद इस कंपनी के साथ दुनिया में सुरक्षा संबंधी कई विवादस्पद घटनाएं हुई हैं.

सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उबर के पास अपनी गाड़ी और ड्राइवर नहीं होते. इस मामले में शामिल गाड़ी भी किसी और से आउटसोर्स की हुई होती है. कंपनी सभी गाड़ीवालों को एक आइ-फोन देती है, जिसमें कंपनी का ऐप होता है. जैसे ही कोई ग्राहक गाड़ी की मांग करता है तो ऐप अपने फोन पर इसकी सूचना देता है. फिर ड्राइवर के फोन पर संदेश आता है कि यहां पर एक उपभोक्ता है क्या आप उसे लेना चाहेंगे. अगर वो हां कर देता है, तो उपभोक्ता के पास गाड़ी पहुंच जाती है.

इस स्थिति में केवल ड्राइवर के फोन से पता चलता है कि गाड़ी कहां है. इस मामले में ड्राइवर ने फोन को स्विच ऑफ कर दिया. लेकिन उबर ने इस बारे में कुछ नहीं किया. अभी तक यह नहीं पता चला है कि ऐसी आपात स्थिति में कंपनी क्या कदम उठाती है. अगर उपभोक्ता अपनी मंजिल पर नहीं पहुंचा है, तो कंपनी इस बारे में क्या करती है यह भी नहीं पता? यह आश्चर्यजनक है कि कंपनी को इस बात की खबर ही नहीं हुई कि एक गाड़ी जीपीएस से पूरी तरह से गायब है. उन्होंने अपने ताजा बयान में कहा है कि उन्हें पुलिस से इस बारे इत्तला मिली और उसके बाद से वो हर संभव मदद कर रहे हैं. यह दुखद बात है कि हमारे देश में काम कर रही है एक कंपनी को नहीं पता कि ऐसी आपातकालीन स्थिति में क्या करना है.

टेक्नोलॉजी पर जरूरत से ज्यादा भरोसा

टेक्नोलॉजी एक दोधारी तलवार है. उबर कंपनी तकनीक की बदौलत पूरी दुनिया में बहुत कम समय में लोकप्रिय हो चुकी है. इस कंपनी के पास न अपनी कार है, न अपने ड्राइवर. बस एक फोन और ऐप देकर ये अपनी गाड़ियों की संख्या बढ़ा सकती है. कंपनी कहती है कि हम पूरी तरह सुरक्षित यातायात प्रदान करते हैं, क्योंकि हमारी हर गाड़ी में प्रमाणित ड्राइवर है और फुल जीपीएस है. लेकिन हम भूल जाते हैं कि न ड्राइवर उनका है, न गाड़ी और न कोई जिम्मेदारी. पूरा मामला एक फोन पर निर्भर है, जो कभी भी बंद हो सकता है, जिसका सिम निकाल कर फेंका जा सकता है.

लेकिन तकनीकी ही सहारा

कई गाड़ियों में ऐसी स्थिति के लिए एक पैनिक बटन होता है. अगर ऐसा नहीं है तो हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि गाड़ी का जीपीएस चालू है कि नहीं. कुछ कंपनियों के ऐप में यह सुविधा होती है कि आप खुद को ट्रैक कर सकते हैं या किसी और (खास कर रात के समय) को कह सकते हैं कि वो आपको ट्रैक करता रहे. मुङो लगता है कि इस ऐप को हर टैक्सी सेवा के लिए जरूरी कर देना चाहिए. हर स्मार्टफोन में जीपीएस ट्रैकिंग की सुविधा होती है. आप चाहें तो तीन-चार लोगों को अपने फोन का एक्सेस दे सकते हैं. लेकिन यह आपको पहले से ही करके रखना होगा, ताकि जरूरत पड़ने पर आप इनमें से किसी को कह सकें कि वो आपको ट्रैक करें. लेकिन इससे हमेशा मदद नहीं मिल सकती है. इसके लिए जरूरी है कि हर टैक्सी में जीपीएस होना चाहिए. जो किसी भी हालात में बंद नहीं होना चाहिए, चाहे गाड़ी भले ही बंद हो जाए. और इसके ट्रैकिंग की जिम्मेदारी कंपनी की होनी चाहिए. गाड़ी में एक यूनिवर्सल सिग्नल होना चाहिए जिससे पता चले कि जीपीएस चल रहा है और कंपनी इस पर निगरानी रख रही है. (लेखक टेक्नोलॉजी विशेषज्ञ हैं).

साभार: बीबीसी

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