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दूसरे शीत युद्घ का कारण न बन जाये क्रीमिया संकट

1991 में सोवियत संघ के विघटन से बने नये देशों को रूस, अमेरिका और यूरोपीय संघ अपने-अपने पक्ष में लाने की कोशिशों में लगे रहे. ऐसे ही एक देश क्रीमिया पर हाल में रूस ने डोरे डाले हैं, जो पश्चिमी देशों को खटक रहा है. पिछले दिनों भारत की यात्र पर आये रूस के राष्ट्रपति […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 16, 2014 1:38 AM

1991 में सोवियत संघ के विघटन से बने नये देशों को रूस, अमेरिका और यूरोपीय संघ अपने-अपने पक्ष में लाने की कोशिशों में लगे रहे. ऐसे ही एक देश क्रीमिया पर हाल में रूस ने डोरे डाले हैं, जो पश्चिमी देशों को खटक रहा है. पिछले दिनों भारत की यात्र पर आये रूस के राष्ट्रपति पुतिन अपने साथ क्रीमिया के प्रधानमंत्री को भी साथ लाये. आशंका जतायी जा रही है कि क्रीमिया का संकट दुनिया में दूसरे शीतयुद्ध की नींव रख सकता है. क्या है यह पूरा मसला, बता रहा है नॉलेज..

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की हाल की भारत की आधिकारिक यात्र के दौरान क्रीमियाई नेता की उपस्थिति के कारण राजनयिक मोरचे पर हलचल मच गयी और यूक्रेन के राष्ट्रपति समेत कुछ पश्चिमी नेताओं ने इसकी भर्त्सना की. अक्स्योनोव क्रीमिया के एक राष्ट्रवादी नेता हैं, जिन्हें इसी वर्ष फरवरी में रूस द्वारा क्रीमियाई प्रायद्वीप पर अपना नियंत्रण किये जाने के बाद गुपचुप तरीके से क्रीमियाई क्षेत्रीय संसद का नेता चुन लिया गया था. बताया जाता है कि उन्होंने ही क्रीमिया में वह जनमतसंग्रह आयोजित कराया था, जिसने क्रीमिया को रूस में मिलाये जाने का मार्ग प्रशस्त किया था.

हालांकि, क्रीमिया के संघर्ष में रूस से पटखनी खानेवाले यूक्रेन और उसके समर्थक पश्चिमी देशों का मानना था कि वह जनमत संग्रह फर्जी था. इन देशों का आरोप है कि क्रीमिया में बीते मार्च को कराया गया जनमत संग्रह पूरी तरह से रूस प्रायोजित था (इसमें 97 फीसदी लोगों ने रूस के साथ जाने का समर्थन किया था) और पश्चिमी देशों ने इसे अवैध करार दिया. आलोचकों का मानना है कि अक्स्योनोव की हाल की भारत यात्र रूस द्वारा समर्थित थी. ‘इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस’ में अरविंद गुप्ता की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1954 में क्रीमिया को यूक्रेन के हवाले सौंपे जाने के करार को पलटते हुए रूस ने विगत दिनों क्रीमिया को अपने अधीन लाने की कवायद शुरू कर दी. इससे रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव की स्थिति पैदा हो गयी. जी8 से रूस को निलंबित कर दिया गया. इतना ही नहीं, अमेरिका और यूरोपियन यूनियन ने रूस और क्रीमिया के अधिकारियों को उनके देश की यात्र पर न आने समेत अनेक प्रतिबंध लगा दिये. और इस तरह से यह चर्चा का विषय बन गया कि क्या क्रीमिया का मामला दुनिया को एक नये शीतयुद्ध की ओर ले जायेगा?

‘द गार्डियन’ की एक रिपोर्ट में कार्नेगी मास्को सेंटर के निदेशक दमित्रि ट्रेनिन ने जनमत संग्रह के बाद ही यह आशंका जतायी थी कि यह घटना शीत युद्ध के बाद के यूरोप के इतिहास में शायद सबसे खतरनाक मोड़ साबित हो सकती है. रूस और यूक्रेन की सेनाओं के बीच सीधे टकराव ने इस ओर अमेरिका का ध्यान खींचा था.

आर्थिक संकट की आशंका

तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव होने, यूक्रेन में सैन्य घुसपैठ के लिए नाटो की मंजूरी हासिल करने और दुनियाभर में संभावित आर्थिक संकट ने रूस के लिए मुश्किलें पैदा कर दी है. ब्रिटेन के पूर्व सांसद और वित्तीय व आर्थिक टिप्पणीकार जॉन ब्राउन के हवाले से ‘ट्राइबलाइव डॉट कॉम’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने अपनी लोकप्रियता को बरकरार रखने के लिए अपने हाल के एक भाषण में रूस में मौजूदा आर्थिक संकट का दोष अमेरिका के सिर मढ़ा है. उन्होंने इस बात की आशंका भी जतायी कि इस तरह के हालात युद्ध की चुनौती पैदा कर सकते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि बड़ी ताकतों के बीच यदि युद्ध का जोखिम पैदा हुआ तो इससे अमेरिकियों और उनके वैश्विक कारोबार समेत पूरी दुनिया पर इसका असर पड़ सकता है.

जर्मनी की दुविधा

विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि यूरोपियन यूनियन में शामिल जर्मनी और रूस के एक-दूसरे से व्यापक हित जुड़े हुए हैं, इसलिए जर्मनी नहीं चाहेगा कि रूस के साथ उसके रिश्ते खराब हों. प्रतिकूल हालात होने की दशा में इन दोनों देशों के बीच व्यापार और आर्थिक सहयोग पर असर पड़ सकता है. जर्मनी और रूस के बीच करीब 73 अरब यूरो का व्यापार होता है. साथ ही, नार्दर्न स्ट्रीम गैस पाइपलाइन के जरिये रूस जर्मनी को प्राकृतिक गैस की आपूर्ति करता है. यूरोपियन यूनियन की कुल ऊर्जा जरूरतों का करीब 20 फीसदी हिस्सा रूस ही पूरा करता है. इसके अलावा, जर्मनी की 6000 से ज्यादा कंपनियां रूस में कारोबार कर रही हैं. लेकिन माना जा रहा है कि इन सबके बावजूद यूरोपीय एकता को कायम रखने के लिए जर्मनी कड़ा रुख अपना सकता है.

क्रीमिया से जुड़े प्रमुख तथ्य

राजधानी : सिम्फेरोपोल

जनसंख्या : 20 लाख

क्षेत्रफल : 26,100 वर्ग किलोमीटर

भाषा : यूक्रेनियन, रूसी, क्रीमियन तातार.

मुख्य जातीय समूह : रूसी, यूक्रेनियन, क्रीमियन तातार.

क्रीमिया के प्रधानमंत्री सर्जेई अक्स्योनोव

क्रीमिया के प्रधानमंत्री 42 वर्षीय अक्स्योनोव मोल्दोवा के एक रूसी परिवार में पैदा हुए थे. सैन्य शिक्षा हासिल करने के लिए 1989 में ये क्रीमिया आ गये थे. इनकी शिक्षा पूरी होने से पहले ही सोवियत संघ का विघटन हो गया और क्रीमिया यूक्रेन के हिस्से में चला गया. अक्स्योनोव ने यूक्रेन के प्रति आस्था व्यक्त करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि यह अन्यायपूर्ण ढंग से रूस से अलग हुआ है. अक्स्योनोव ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद विभिन्न कंपनियों में काम किया, लेकिन उनका नाम संगठित आपराधिक गिरोहों के संचालन से भी जोड़ा जाता रहा है. क्रीमिया के बड़े कारोबारियों और राजनेताओं की हत्या में भी अक्स्योनोव का नाम आता रहा है. 2003 में उन्हें रूसी नागरिकता मिली और 2008 में उन्होंने क्रीमिया में रूसी समुदाय के संगठन में राजनीतिक जीवन की शुरुआत की. 2010 में वे रशियन यूनिटी पार्टी के सदस्य के तौर पर क्रीमिया के सुप्रीम काउंसिल के सदस्य बने. बीते 27 फरवरी को यूक्रेन में क्रांति के बाद क्रीमिया की विधायिका को सशस्त्र समूहों ने घेर लिया और खतरनाक हथियारों के बीच अक्स्योनोव के द्वारा बुलाये गये सदस्यों ने बहुमत से उन्हें क्रीमिया का प्रधानमंत्री चुन लिया. क्रीमिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री अनातोली मोहिलियोव सहित कई विरोधी सदस्यों को इस सत्र में शामिल नहीं होने दिया गया था. क्रीमिया के तत्कालीन अंतरिम राष्ट्रपति ओलेक्सांद्र तुर्किनोव ने इस चुनाव को अवैध घोषित कर दिया था और यूक्रेन की एक अदालत ने अक्स्योनोव की गिरफ्तारी का वारंट भी जारी किया था. दरअसल, अक्स्योनोव पर पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगाते हुए उनकी संपत्ति को जब्त कर लिया है. चार मार्च को उन्होंने रूस को क्रीमिया को अपना हिस्सा बनाने के लिए आमंत्रित किया और तब से वे पुतिन के समर्थन से क्रीमिया के प्रधानमंत्री बने हुए हैं.

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