अब हमारा धर्म, हमारी मन्नत, बस एक ही हो, आतंक का खात्मा

पंकज मुकाती इम्तिहान देते बच्चों पर स्कूल में गोलियां चली हैं. 132 बच्चे कत्ल कर दिये गये. दो सेकेंड में सब कुछ खत्म हो गया. यह हम सबके इम्तिहान की घड़ी है. किसी एक मुल्क, एक घर, एक व्यक्ति को नहीं, यह पूरी दुनिया को चुनौती है. यह चुनौती है सभी मां-बाप को. आतंकवादियों ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 17, 2014 8:08 AM
पंकज मुकाती
इम्तिहान देते बच्चों पर स्कूल में गोलियां चली हैं. 132 बच्चे कत्ल कर दिये गये. दो सेकेंड में सब कुछ खत्म हो गया. यह हम सबके इम्तिहान की घड़ी है. किसी एक मुल्क, एक घर, एक व्यक्ति को नहीं, यह पूरी दुनिया को चुनौती है. यह चुनौती है सभी मां-बाप को. आतंकवादियों ने हमारी मन्नतों, दुआओं और ख्वाबों पर हमला किया है. दुनिया में कोई ऐसा परिवार नहीं, कोई ऐसा घर नहीं, जिसमें बच्चे न हो, उनकी किलकारियों की उम्मीद न हो.
यह हमला है जिंदगी पर, भविष्य पर. इस हमले ने यह भी साफ कर दिया कि आतंकवाद किसी को नहीं बख्शता. वह धर्म, भाई जैसे शब्द भी नहीं जानता. अपना पराया देश भी नहीं मानता. इससे एक सवाल और उठा है, क्या मजहबी किताबें, धार्मिक तकरीरें, किसी आदमी को इतना अंधा बना सकती हैं? नामुकिन है यह, कोई भी धार्मिक किताब उम्मीद पढ़ा सकती है, उन्माद नही.
धर्म के नाम पर यह धोखा है, जो नौजवानों को अंधा कर रहा है. यह सिर्फ एक पागलपन है, एक दुश्मनी है. तमाम मुल्क, जो आतंक की ऐसी पाठशाला चलाते हैं, यह उनके लिए भी एक सबक है. आतंकवाद को पनाह देना दोधारी तलवार तैयार करना है. यह सामनेवाले को ही नहीं, जरा- सी चूक में आपको भी घायल कर सकती है. पाक जैसे मुल्क और वहां की सरकार के लिए यह एक बड़ा सबक है. उसे यह बात नहीं भूलना चाहिए कि आतंक की इस तलवार की एक धार हमेशा उसके अपने सिर पर लटकती है.
तमाम बहस, संवेदना, आतंक से लड़ने का सरकारी जज्बा, नयी फोर्स, सुरक्षा के दावे सब बेकार हैं. इनमें से कोई भी बात मांओं के आंसू नहीं पोंछ सकती, एक पिता के टूट चुके अरमान नहीं जोड़ सकती. दुनिया का कोई भी मुआवजा औलाद की कमी पूरी नहीं कर सकता. बच्चे का स्पर्श, वह हंसी, उसके स्कूल जाते वक्त लंच बॉक्स तैयार करती मां को मिलनेवाला सुख. स्कूल की दहलीज पर उसे टाटा करते वक्त मिलनेवाला भविष्य का सुकून. सबसे खास स्कूल की छुट्टी के वक्त बच्चे का दौड़ कर लिपट जाना. अब ये सब कभी नहीं हो सकेंगे.
कंधे पर बस्ता लटका कर जिस बच्चे को स्कूल विदा करते रहे, उसके ताबूत को अपने कंधे पर ढोना, कितना दुखदायी है. यह दर्द हम सबको भीतर से महसूस करना होगा. हमारे आसपास कोई भी आतंकी पनाह नहीं ले पाये, किसी दहशतगर्द को यह सोच कर न छोड़ दें कि यह मेरा क्या नुकसान करेगा. कल यह आपके बच्चे का भी दुश्मन बन सकता है. अब हमारा धर्म, हर दुआ, हर मन्नत बस एक होनी चाहिए, आतंकवाद का खात्मा.

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