साल 2014 के कुछ प्रमुख आविष्कार
वर्ष 2014 समाप्ति की ओर बढ़ रहा है. इस वर्ष दुनियाभर में कई ऐसे आविष्कार हुए, जिन्हें भविष्य के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है. इनमें से कुछ को नये सिरे से विकसित किया गया है, तो कुछ पुरानी तकनीकों को नया रूप दिया गया है. नये आविष्कारों में चिकित्सा जगत से लेकर वायरलेस […]
वर्ष 2014 समाप्ति की ओर बढ़ रहा है. इस वर्ष दुनियाभर में कई ऐसे आविष्कार हुए, जिन्हें भविष्य के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है. इनमें से कुछ को नये सिरे से विकसित किया गया है, तो कुछ पुरानी तकनीकों को नया रूप दिया गया है.
नये आविष्कारों में चिकित्सा जगत से लेकर वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी जैसी कई ऐसी तकनीक शामिल हैं, जो भविष्य में हमारी जिंदगी आसान बना सकती हैं. अमेरिकी पत्रिका ‘टाइम’ ने साल के टॉप 25 नये आविष्कारों की सूची बनायी है. इसमें भारतीय विशेषज्ञों के भी दो आविष्कार शामिल हैं. 11 आविष्कारों के बारे में आप कल के नॉलेज में पढ़ चुके हैं. 10 अन्य आविष्कारों के बारे में पढ़ें आज के नॉलेज में..
सेल्फी स्टिक (हेयर ब्रश)
पिछले वर्ष ‘सेल्फी’ शब्द काफी लोकप्रिय रहा. इस वर्ष यानी 2014 में यह शब्द आधुनिक सभ्यता का अहम हिस्सा बन गया. सेल्फी किसी देश विशेष तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि दुनिया के विभिन्न देशों में आम लोग भी इस शब्द से अवगत हुए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित बॉलीवुड के विभिन्न सेलीब्रेटीज ने सेल्फी को सोशल नेटवर्किग साइट पर साझा कर लोगों का ध्यान आकर्षित किया. अमेरिका में तो सोशल नेटवर्किग साइटों पर एक -चौथाई से ज्यादा लोगों ने सेल्फी पोस्ट की. इलेन डेजेनेरस, किम करदाशियां और राष्ट्रपति बराक ओबामा सहित कई अंतरराष्ट्रीय सेलीब्रेटीज चर्चा में रहे. बाजार के ट्रेंड को भांपते हुए कई नामी कंपनियों ने ‘सेल्फी’ लेने की प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए कई डिवाइसेस को बाजार में उतारा.
कंपनियों ने इसे स्टाइलिश और मजेदार बनाने के लिए हेयरब्रश जैसी डिवाइस से इसे जोड़ा, जो आपके स्मार्टफोन को पकड़कर सेल्फी लेने में मदद करता है. इसने लोगों को काफी आकर्षित किया. विभिन्न कंपनियों ने सेल्फी लेने के लिए विभिन्न प्रकार की सेल्फी स्टिक बनाकर लोगों को आकर्षित किया. सेल्फी स्टिक की मदद से विभिन्न कोणों से फोटो लेना आसान हो गया है. मोबाइल टेक्नोलॉजी के विशेषज्ञ वान बेकर का कहना है कि इसके माध्यम से स्मार्टफोन से फोटो लेने के कई विकल्प सामने आये हैं. यही कारण है कि ज्यादातर लोग सेल्फी के लिए इस स्टिक का इस्तेमाल कर रहे हैं.
वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी
आज से महज दो दशक पहले तक वायरलेस फोन का चलन आम नहीं था. बिना तार के इंटरनेट और टेलीफोन के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था. लेकिन आज हमारे पास वायरलेस इंटरनेट और वायरलेस फोन दोनों ही मौजूद हैं. तो फिर बिजली से चलने वाले अन्य उपकरण भी वायरलेस क्यों नहीं हो सकते? क्या आपने कभी इस बारे में सोचा है. दरअसल, करेंट प्रवाहित करने के लिए बिजली के तार का उपकरण तक पहुंचना अनिवार्य है, इसलिए अब तक ऐसा मुमकिन नहीं हो पाया है.
लेकिन वाटरटाउन की ‘वाइट्राइसिटी’ ने इस दिशा में कदम बढ़ा दिये हैं और काफी हद तक सफलता मिली है. इस नयी तकनीक के तहत एक ‘प्लग-इन कॉइल’ को इंस्टॉल करना होता है, जो पावर उपकरणों से करीब आठ फीट की दूरी से चुंबकीय क्षेत्र पैदा होने के कारण ऊर्जा हासिल कर पाते हैं. फिलहाल टोयोटा इलेक्ट्रिक कारों, इंटेल पीसी जैसी चीजों में इसका परीक्षण किया गया है. कंपनी के सीइओ एलेक्स ग्रुजेन ने उम्मीद जतायी है कि अगले एक दशक में आपके घरों में इस तकनीक से बल्ब, टीवी आदि काम कर सकती है और एक सेंट्रल चाजिर्ग बेस से सभी उपकरणों को पावर सप्लाइ की जा सकती है.
कोपेनहेगेन व्हील :साइकिलिंग बनाये आसान
मैदानी इलाकों और खुली सड़कों पर साइकिल चलाना भले ही आसान हो, लेकिन पहाड़ी इलाकों और भीड़-भाड़ वाली सड़कों पर साइकिल चलाना बेहद मुश्किल कार्य माना जाता है. कैंब्रिज के विशेषज्ञों ने साइकिल चलाने को अब और आसान बना दिया है.
दरअसल, इसके लिए उन्होंने कोपेनहेगन व्हील्स बनाया है, जिसने साइकिल को तेज, आसान और स्मार्ट इलेक्ट्रिक हाइब्रिड के तौर पर तब्दील कर दिया है. इस पहिये में एक मोटर, बैट्री, कई सेंसर समेत वायरलेस कनेक्टिविटी प्रदान की गयी है और एक कंट्रोल सिस्टम कायम किया गया है.
इसे पूरे सिस्टम को आप अपनी सुविधानुसार स्मार्टफोन एप्प से भी जोड़ सकते हैं.यह पहिया आपको बतायेगा कि कितनी स्पीड के लिए आपको कितने पैडल मारने हैं. आम तौर पर एक बार पैडल मारने से साइकिल जितनी दूर जाती है, यह पहिया उससे तीन से दस गुना ज्यादा दूरी तय करता है. इससे जहां पहाड़ी इलाकों में चढ़ाई आसान हो गयी है वहीं ज्यादा दूरी तक आसानी से साइकिल चलाया जा सकता है. इसमें लगा सेंसर सड़क की खराब दशा को भी ट्रैक करते हैं ताकि समय रहते उसकी जानकारी मिल सके और आप दिशा परिवर्तित कर सकें.
बिजली बचाने वाला ‘एसी’
गरमी के मौसम में बिजली बिल बढ़ने के बड़े कारणों में एसी भी शामिल है. शहरों में ज्यादातर लोग एसी का इस्तेमाल करते हैं. एसी चलाने से बिजली बिल में कई गुना ज्यादा बढ़ोतरी हो जाती है. अमेरिका जैसे देशों में लोग अपने घर को वातानुकूलित रखने के लिए 11 बिलियन डॉलर से ज्यादा रकम खर्च करते हैं.
इस कारण से पर्यावरण में 100 मिलियन टन से अधिक कॉर्बन गैसों का उत्सजर्न होता है. अमेरिकी आइटी कंसल्टेंट गारथेन लेस्ली के दिमाग में जीइ-बैक्ड साइट का ख्याल आया. इस तकनीक पर बनी डिवाइस काफी हद तक बिजली को बचाने में सफल साबित हो रही है. मई, 2014 में मार्केट में आने के बाद 50,000 से ज्यादा लोगों के घरों में एरोस एयर कंडीशनर पहुंच चुका है.
मोबाइल एप के माध्यम से जीपीएस का सहारा लेते हुए एरोस घर में मालिक के घुसते ही इस बात को जान जाता है और स्वत: चालू हो जाता है. दूरी बढ़ने पर यह डिवाइस खुद-ब-खुद बंद भी हो जाती है. यह एसी मालिक को यह भी बताता है कि कूलिंग के लिए कितना पैसा खर्च करना पड़ेगा. इन तकनीकों से न केवल बिजली बचत करने में मदद मिलेगी, बल्कि बिजली बिल को आसानी से नियंत्रित किया जा सकेगा.
व्यक्तिगत पिलबॉक्स
बुजुर्गो को कई बार ऐसी बीमारियों से जूझना पड़ता है, जिसमें उन्हें जिंदगीभर दवाओं का सेवन करना पड़ता है. खास बीमारी से पीड़ित होने पर लंबी अवधि तक अनेक दवाएं लेनी पड़ती हैं. ऐसे में उन्हें इस बात की दिक्कत ज्यादा होती है कि कौन सी दवा किस समय पर लेनी है. मरीजों की इस समस्या को दवा दुकान चलाने वाले पार्कर ने बेहतर तरीके से समझा. पार्कर इस बात को अच्छी तरह समझ पाये कि दवाओं के सेवन के दौरान लोगों को किस तरह की परेशानियों से दो-चार होना पड़ता है.
खासकर जब लोग एक साथ कई प्रिस्क्रिप्शन के हिसाब से दवाएं लेते हैं.
इन परेशानियों को को दूर करने के लिए पार्कर ने इ-फार्मेसी लॉन्च की और पिलपैक का इजाद किया. इस पिलपैक में डेट और टाइम के मुताबिक मरीज के लिए दवाओं को छोटे-छोटे पैकेट बना कर रखा जाता है, ताकि समयानुसार मरीज उसे फाड़ कर निकाल सके. हालांकि, कई मायने में अभी इसकी सुविधा सीमित है, लेकिन भविष्य में इसका व्यापक विस्तार हो सकता है और यहां तक कि अल्पकाल के लिए एंटीबायोटिक्स लेने वाले मरीजों को भी यह सुविधा मुहैया करायी जा सकती है.
सुपरबनाना : बचायेगा दृष्टिहीनता से
दुनिया के अनेक विकासशील देशों में पांच वर्ष से कम उम्र तक के बच्चों में भी दृष्टिहीनता के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. खासकर अफ्रीकी देशों में यह समस्या सबसे ज्यादा है. ऑस्ट्रेलिया के बायोजेनेटिक विशेषज्ञ जेम्स डेल जब 2008 में यूगांडा गये तो उन्होंने वहां इस समस्या को नजदीक से देखा और इसके निदान में जुट गये. चूंकि अफ्रीका समेत अनेक विकासशील देशों में केले का उत्पादन भरपूर मात्र में होता है और यह आम आदमी की पहुंच के दायरे में है, लिहाजा उन्होंने सोचा कि केले में विटामिन ए की मात्र को बढ़ाने से इस समस्या का निदान आसानी से किया जा सकता है.
उसके बाद से वे विटामिन ए से भरपूर ‘सुपरबनाना’ के विकास में जुट गये. ऑस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन और क्वींसलैंड में उन्होंने इसका फिल्ड ट्रायल शुरू किया. इसके लिए उन्हें ‘बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन’ से भी मदद मिली. हाल ही में इस खास केले का इनसानों पर परीक्षण का कार्य भी पूरा कर लिया गया है. विशेषज्ञों को उम्मीद है कि अगले कुछ वर्षो में ‘सुपरबनाना’ में विटामिन ए की मात्र को प्रत्येक ग्राम में 20 माइक्रोग्राम के स्तर तक पहुंचा दिया जायेगा.
कैदियों की मदद के लिए ‘ब्लू रूम’
अमेरिका के उत्तरी-पश्चिमी राज्य ओरेगन में कैदियों को मानसिक रूप से दुरुस्त रखने के लिए स्नेक रिवर ने ‘ब्लू रूम’ को विकसित किया. ओरेगन के सबसे बड़े कैद खाने में 200 कैदियों को 24 घंटों में सिवाय सफेद दीवार देखने के अलावा और कोई काम नहीं है. एक शोध में पता लगाया गया कि इन परिस्थितियों में कैदियों के मानसिक रूप से बीमार होने व सुसाइड करने का जोखिम ज्यादा रहता है.
जेल अधिकारियों ने खाली समय को व्यवस्थित करने के लिए ‘ब्लू रूम’ के रूप में एक्सरसाइज स्पेस बनाया. इसमें प्रोजेक्टर के माध्यम से जलप्रपातों, खुले रेगिस्तान, बाहर की दुनिया के चित्रों समेत अन्य वीडियो दिखाये जाते हैं. इस सिस्टम को इजाद करने में भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक नलिनी नाडकरनी का योगदान रहा है. बर्ताव में बदलाव करने वाले कारकों का अध्ययन करने वाली नाडकरनी का कहना है कि यह कैदियों को शांत और तनावमुक्त रखने का बड़ा माध्यम है. इससे सहयोगी कै दियों के बरताव में बदलाव आया है.
बच्चों के लिए टैबलेट ट्वॉय
बच्चे मोबाइल और टैबलेट के प्रति ज्यादा आकर्षित होते हैं. गेम के कई बेहतर विकल्प होने की वजह से आइपैड तो बच्चों का सबसे फेवरिट गैजेट है. आइटी एक्सपर्ट प्रमोद शर्मा अपनी बच्ची को दिनभर आइपैड की स्क्रीन पर चिपका देख कर चिंतित रहते थे. स्क्रीन पर ज्यादा देर तक काम करने से एकाग्रता की समस्या के साथ-साथ मोटापे की समस्या भी बढ़ जाती है.
गूगल के पूर्व इंजीनियर और शर्मा के पुराने सहयोगी जेरोम स्कॉलर ने इस समस्या को ध्यान में रखते हुए ‘वचरुअल प्लेबैक तकनीक’ पर काम करना शुरू कर दिया. रिफ्लेक्टिव आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस तकनीक से लैस आइपैड का कैमरा शारीरिक क्रिया-कलापों को ऑनस्क्रीन दिखा सकता है. इससे बच्चे आइपैड पर खेल का आनंद उठा सकते हैं. यह एप्प खासकर बच्चों को ऑनस्क्रीन मस्ती का एक अच्छा प्लेटफार्म उपलब्ध करा रहा है.
विकीपल्र्स : खा भी सकते हैं रैपर्स को
खाद्य पदार्थो की पैकिंग करने से पैदा होने वाला कचरा बड़ी समस्याओं को जन्म दे रहा है. पैकिंग में इस्तेमाल होने वाले रैपर बायो-डिग्रेडेबल (ऐसे कचरे जो सड़कर खत्म हो जाते हैं) नहीं होते हैं. इससे प्रदूषण फैलता है. लेकिन नये अविष्कारों ने इस समस्या का हल ढूंढ़ निकाला है. ‘विकीपल्र्स’ का इजाद करने वाले डेविड एडवर्ड ने इसे हकीकत में बदल दिया है.
पनीर, आइसक्रीम या दूध आदि से बने ज्यादातर खाद्य पदार्थ एक तय आकार में होते हैं. ऐसे पदार्थ सूखे मेवे या प्राकृतिक पदार्थो के छोटे घटकों से बने होते हैं, जो एक-दूसरे को बांध कर रखते हैं. कैल्शियम व शुगर इसकी मजबूती का कारण होता है. ऐसे प्रोडक्ट लोगों को आकर्षित कर रहे हैं. इस तकनीक से दुनियाभर में पैकेजिंग वेस्ट की समस्या से निजात मिल सकेगी.
इमेल, मैसेज आदि अलर्ट करनेवाली रिंग
अन्य पेशेवर महिलाओं की तरह क्रिस्टिना मरकेंडो भी अपना स्मार्टफोन अपने पर्स में रखती है. फोन के पर्स में होने पर उसमें आने वाले मैसेज, इमेल आदि की दशा में क्रिस्टिना को तुरंत जानकारी नहीं मिल पाती थी, जैसाकि पुरुषों को पैंट की जेब में रखने पर तुरंत मिल जाती है.
इसलिए उसने एक ऐसी अंगूठी को डिजाइन किया, जिसे इस तरह से प्रोग्राम किया जा सकता है कि मोबाइल में मैसेज, इमेल आदि के रिसीव होने पर अंगूठी चमकने लगती है. त्वरित सूचना हासिल करने और लगातार संपर्क में बने रहने का यह नया तरीका ‘इबे’ की पूर्व प्रोडक्ट एंड डिजाइन मैनेजर मरकेंडो का ही है. पिछले जून में ऐसे एक हजार रिंग बनाये गये, जो महज 24 घंटे में बिके थे. इसकी कीमत 195 डॉलर बतायी गयी है.