भारत के दो और ‘रत्न’

भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में शुमार अटल बिहारी वाजपेयी और शिक्षाविद, समाज-सुधारक, मानवीय मूल्यों के प्रबल समर्थक, मूर्धन्य पत्रकार महामना मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न से सम्मानित किया जायेगा. वाजपेयी को अपनी ओजस्वी भाषण और ठोस फैसला लेनेवाले नेता के रूप में जाना जाता है. भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेदों को दूर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 25, 2014 6:21 AM

भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में शुमार अटल बिहारी वाजपेयी और शिक्षाविद, समाज-सुधारक, मानवीय मूल्यों के प्रबल समर्थक, मूर्धन्य पत्रकार महामना मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न से सम्मानित किया जायेगा. वाजपेयी को अपनी ओजस्वी भाषण और ठोस फैसला लेनेवाले नेता के रूप में जाना जाता है. भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेदों को दूर करने की दिशा में उनके द्वारा उठाये गये कदम की दुनिया में सराहना हुई. सभी दलों में उनकी स्वीकार्यता थी. वहीं, महामना राष्ट्र-निर्माण के पुरोधा थे. ‘अपने देश में अपना राज’ के लिए संघषर्रत रहे. सदियों की दासता में दबी भारतीय आत्मा को उन्होंने ऋ षि-मनीषियों के सनातन व शांत विचारों के अमृत से सिंचित कर भारतवासियों को साहस, शौर्य और स्वाभिमान के साथ जीने और प्राचीन सभ्यता के नवनिर्माण के लिए प्रेरित किया.

हुंकारों से हिलाया सत्ता का महल

विनय कुमार सिंह

राष्ट्रकवि दिनकर ने परिचय शीर्षक के अंतर्गत लिखा है – ‘कठिन निर्धोष हूं भीषण अशनि का, प्रलय-गांडीव की टंकार हूं मैं/ सुनु क्या सिंधु मैं गजर्न तुम्हारा, स्वयं युगधर्म का हुंकार हूं मैं!’ यह परिचय, वास्तव में किसी एक व्यक्तित्व की सीमाओं में आबद्ध नहीं है. यह उस प्रत्येक व्यक्तित्व का परिचय है, जिसका वज्रघोष देश-समाज को सोते से जगाता है. मन-मस्तिष्क को झकझोर कर कर्त्तव्यबोध कराता है. राष्ट्र की अस्मिता के लिए, एकता-अखंडता के लिए और सामाजिक-आर्थिक न्याय व व्यक्ति-स्वातंत्र्य के लिए या जनतंत्र के जयघोष के लिए आवाज बुलंद करनेवाले प्रत्येक शख्स का परिचय वही है, जो दिनकर ने दिया है. यही परिचय रहा है अटलजी का, जिनकी गुरु-गंभीर आवाज में मानो अजरुन के गांडीव की टंकार होती थी. वे जनसभाओं में श्रोताओं को भावावेश के चरम पर ले जाते और संसद में घनगजर्ना करते. वे जब विद्वतापूर्ण भाषण में अकाट्य तर्को द्वारा राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर हमला बोलते, तो विरोधी बगलें झाकने लगते. प्रतिपक्षी नेता के नाते उनके हुंकारों से सत्ता का महल हिलने लगता. और, देश के प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पटल पर अटलजी का तर्कपूर्ण-ओजस्वी भाषण देश का सिर दुनिया में ऊंचा उठानेवाला होता था.

सन 1957 में उत्तरप्रदेश के बलरामपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस की तेज-तर्रार नेत्री सुभद्रा जोशी को हरा कर संसद में पहुंचे अटलजी ने अपने पहले ही भाषण में देश का ध्यान अपनी ओर खींचा. प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ऐसे चमत्कृत हुए उस भाषण से कि उन्होंने अटलजी में भावी प्रधानमंत्री की छवि देखी. और वे प्रधानमंत्री बने, तीन-तीन बार. 24 दलों का राजग-गंठबंधन सरकार सफलतापूर्वक चला कर उन्होंने दिखा दिया कि वाक्पटु अटलजी ‘केंकड़ों को तौलने की कला’ में भी माहिर हैं. उनके प्रधानमंत्रित्व काल में विकास के नये-नये कीर्तिमान कायम हुए.

अटलजी का हर अंदाज अनोखा था. जनसंघ-भाजपा संसदीय दल के नेता के तौर पर उन्होंने नेहरू, इंदिरा और परवर्ती सरकारों को रक्षात्मक होने पर मजबूर किया. जनता सरकार (1977) के विदेशमंत्री रहते संयुक्त राष्ट्रसंघ में हिंदी में भाषण कर राष्ट्रभाषा को अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा दिलायी और प्रधानमंत्री रहते, महाशक्तियों के प्रतिबंधों की परवाह न करते हुए पोखरण परमाणु विस्फोट कर दुनिया को बता दिया कि भारत अपनी सुरक्षा के निर्णय लेने में संपूर्ण समर्थ है.

जनसभाओं के वे बेताज बादशाह रहे. जनता के दिलों पर राज करेनवाले. जनसभा-मंच पर उनके पहुंचते ही लोग दीवाने हो उठते. तालियां थमने का नाम नहीं. नारेबाजी से मदान गूंजने लगता. लोग तभी शांत होते जब ‘बहनों एवं भाइयों’ के संबोधन के साथ उनका भाषण शुरू होता. फिर तो शांति का साम्राज्य पसर जाता. लोग मंत्रमुग्ध होकर अटलजी की भाषण-सरिता में गोते लगाते रहते. कहना कठिन होता कि वे कविता में राजनीति कह रहे, या राजनीति में कविता! आज तो बड़े कहलानेवाले नेताओं की सभा में भी ‘भीड़ का जुगाड़’ करना पड़ता है. अटलजी के लिए न तो भीड़ का जुगाड़ करना पड़ता और न ही विशेष प्रचार का. लोग उनको सुनने स्वत:स्फूर्त दौड़े आते थे – टिड्डीदल की तरह. वगैर गाड़ी-घोड़े का मुहताज बने. यह उनके ओज-तेज और निष्कलंक राजनीतिक जीवन का ही प्रभाव था.

अटलजी की जनसभाओं के बीसियों प्रसंग याद हैं मुङो. याद करके रोमांचित होता हूं. वर्ष 1987 में भाजपा ने अटलजी की ‘षष्ठिपूर्ति (उम्र के साठ वर्ष पूरे होने) के विशेष अवसर पर उनके देशव्यापी प्रवास का कार्यक्रम बनाया था. अटलजी के अभिनंदन के माध्यम से पार्टी-कोष में धनसंग्रह की योजना थी. मैं उस समय विद्यार्थी परिषद में सक्रिय था और पढ़ाई समाप्त कर हजारीबाग से बेरमो (बोकारो) आ गाय था. बेरमो के करगली ग्राउंड में अटलजी की जनसभा रखी गयी. धनसंग्रह के लिए पार्टी द्वारा 10/- 50/- 100/- रुपये के कूपन जारी किये गये थे. भाजपा नेताओं ने 10/- का पांच बुक मुङो भी दिया था, जिससे 500/- रुपये पार्टी कोष के लिए जुटा कर तब परम संतोष और गौरव का बोध हुआ था. अपने हाथों दीवाल-लेखन कर प्रचार कार्य करते दर्प का अनुभव होता था. वास्तव में हम ‘काडर बेस’ मास पार्टी थे. कैसे सुहाने थे वे दिन? हम समाज से छोटी-छोटी राशि एकत्र कर ‘बूंद-बूंद से समुद्र भरते थे.’ सीना चौड़ा कर, स्वाभिमानपूर्वक समाज में घूमते थे और राष्ट्रीय पुननिर्माण के व्यापक परिप्रेक्ष्य में राजनीति के अंदर अपनी भूमिका निभाते थे. समाज की कितनी श्रद्धा, कितना विश्वास रहा है हमारे ऊपर! ‘भवानीशंकरौ वंदे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ’ (रामचरितमानस). अरे भाई, बड़े नेताओं को तो छोड़िये, हमारे छोटे नेता-कार्यकर्ता को भी कोई भ्रष्ट-बेईमान-दुराचारी कह दे, तो वह अपने लिए ही गाली जैसा लगता था. समाज का यही मानना था कि भाजपावालों को और जो कुछ कह लो, इन्हें बेईमान-भ्रष्टाचारी नहीं कह सकते.

खैर, मई 1987 की तपती दुपहरी में अटलजी को सुनने जन-सैलाब उमड़ पड़ा था. करगली ग्राउंड में तिल रखने की जगह नहीं, तो लोगों ने आसपास के पेड़ों पर भी आसन जमा लिये थे. स्व कैलाशपति मिश्रजी के संक्षिप्त संबोधन के बाद अटलजी बोलने को उठे. केंद्र में 415 लोकसभा सीटों के भारी-भरकम बहुमत से राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने थे. विपक्ष के सभी बड़े नेता इंदिरा गांधी की हत्या से उपजे सहानुभूति लहर में चुनाव हार चुके थे. अटलजी, चंद्रशेखर, जार्ज फर्नाडीस, बहुगुणा सभी. मजबूत प्रतिपक्ष के अभाव में राजीव सरकार कई गंभीर गलतियां कर रही थी. जिसका कुपरिणाम सामने आने लगा था. सो, भाषण में अटलजी ने सरकार पर हमला शुरू किया. बड़े आक्रामक दिख रहे थे. जब लगा कि वातावरण ज्यादा गंभीर हो गया, तो उन्होंने चुटकी ली- ‘जो दिल्ली में राजीव एक्सप्रेस दौड़ रही है, उसमें 415 डिब्बे हैं. डब्बे में एक से एक मोहक चेहरे हैं (अमिताभ बच्चन वगैरह) इंजन (राजीव गांधी) के क्या कहने? इंजन तो शानदार है. गाड़ी की रफ्तार भी काफी तेज है.’ फिर चिर-परिचित अंदाज में थोड़ी चुप्पी. पलकें मिटमिटाई और हाथों के अनूठे हावभाव के साथ बोले – ‘लेकिन बहनों एवं भाइयों! इस गाड़ी पर सवार देश को भारी खतरा है. ’, क्योंकि गाड़ी में ब्रेक नहीं है. कभी भी दुर्घटना हो सकती है.’ ब्रेक से मतलब मजबूत विपक्ष. जनसभा में हंसी के फुहारों की झड़ी लग गयी.

बिहार में जारी राजनीतिक अस्थिरता पर उस जनसभा में उन्होंने जो व्यंग्य किया था, उसे पुराने लोग आज भी याद कर गुदगुदाते हैं. वाकया यह है कि राज्य में लगातार मुख्यमंत्री बदल रहे थे. कुछ रोज पूर्व बिंदेश्वरी दुबे, जिनकी कर्मभूमि बेरमो थी, जो बिहार के मुख्यमंत्री से हटा कर केद्र में श्रममंत्री बनाया गया था. इधर, राज्य में एक के बाद एक नरसंहार हो रहे थे. सो, अटलजी ने दे मारा – ‘दुबेजी डूबे. .. लेकिन बड़े भारी तैराक है दुबेजी. डूबे पटना की गंगा में और जा निकले दिल्ली की जमुना में.’ कहने का ऐसा अनोखा अंदाज था कि हंसते-हंसते लोगों के पेट में बल पड़ गये.

1994 में कश्मीर पर पाकिस्तान का रवैया काफी आक्रामक और शरारतपूर्ण था. संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन में पाक ने कश्मीर के प्रश्न पर भारत को चौतरफा घेरने की पूरी तैयारी कर रखी थी. प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर के संबंध में भारत का पक्ष रखने के लिए नेता-प्रतिपक्ष अटलजी को भेजा. देश और दुनिया को याद है कि अटलजी ने अपनी कूटनीतिक कुशलता की जाल में पाकिस्तान को ऐसा घेरा था कि उसके पसीने छूट गये. अटलजी ने कश्मीर-राग अलापते पाकिस्तान पर ये कहते हुए प्रहार किया – ‘आपका कहना है कि कश्मीर के बैगर पाकिस्तान अधूरा है, तो हमारा मानना है कि पाकिस्तान के बगैर हिंदुस्तान अधूरा है. बोलिये, दुनिया में कौन पूरा है? पूरा तो केवल ब्रrा ही है, बाकी सबके सब अधूरे हैं. आपको पूरा कश्मीर चाहिए, तो हमें पूरा पाकिस्तान चाहिए. बोलिया क्या मंजूर है? अटलजी की आक्रामक वाकपटुता के आगे पाकिस्तान के हेकड़ी गुम हो गयी थी उस समय!

अटलजी की तुलना केवल अटलजी से ही हो सकती है, अन्य किसी से नहीं. वे सर्वश्रेष्ठ सांसद के सम्मान से नवाजे गये. राष्ट्रपति वेंकटरमण ने उन्होंने पद्मविभूषण से अलंकृत किया. अटलजी आज सक्रिय नहीं हैं. सार्वजनिक जीवन में उनकी अनुपस्थिति देश को काफी अखरती है. लोग उनकी आवाज सुनने को तरसते हैं. पक्ष-प्रतिपक्ष सबको उनके विराट व्यक्तित्व अनुप्राणित करता है. लंबा राजनीतिक जीवन उन्होंने जिया, लेकिन उनकी चादर अंत तक बेदाग रही. उन्होंने स्वयं अपनी एक कविता में लिखा है – ‘दागदार जिंदगी न घाटों पर धुलती/ कबिरा की चादरिया बड़े भाग्य मिलती.’ आज, गलीज राजनीति के इस दौर में अटलजी खूब याद आते हैं.

भारतीय मनीषा वरदपुत्र अटलबिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर उनका अभिनंदन!

यह भारत रत्न का सम्मान है

भारत केवल हिंदुओं का देश नहीं है, बल्कि यह मुसलिम, ईसाई और पारसियों का भी देश है. देश तभी विकास और शक्ति प्राप्त कर सकता है, जब विभिन्न समुदाय के लोग परस्पर प्रेम और भाईचारे के साथ जीवन व्यतीत करेंगे. यह मेरी इच्छा और प्रार्थना है कि प्रकाश और जीवन का यह केंद्र, जो अस्तित्व में आ रहा है, वह ऐसे छात्र प्रदान करेगा, जो अपने बौद्धिक रूप से संसार के दूसरे श्रेष्ठ छात्रों के बराबर होंगे, बल्कि एक श्रेष्ठ जीवन व्यतीत करेंगे, अपने देश से प्यार करेंगे और परमपिता के प्रति ईमानदार रहेंगे. पंडित मदन मोहन मालवीय

मैं उस पीढ़ी के बचे हुए थोड़े से लोगों में हूं, जिसने महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद और पंडित मदन मोहन मालवीय जैसे महामनाओं की छोड़ी गयी सांस से सांस खींची थी. भारत रत्न के लिए मदन मोहन मालवीय और अटल बिहारी वाजपेयी को चुनना इस सम्मान का सम्मान है. आज मदन मोहन मालवीय को याद करनेवाले लोग बहुत कम बचे हैं. कांग्रेस के वे दो बार अध्यक्ष रहे, लेकिन खुद कांग्रेस ने ही उनकी घोर उपेक्षा की. जबकि, भारत के इतिहास और कांग्रेस द्वारा शुरू किये गये स्वतंत्रता आंदोलन में मदन मोहन मालवीय का बहुत महत्वपूर्ण योगदान था. आज की पीढ़ी के लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे. वे कांग्रेस के अध्यक्ष तब बने थे, जब गांधी जी अफ्रीका से भारत लौटे भी नहीं थे. पंडित मदन मोहन मालवीय चार मर्तबा कांग्रेस के अध्यक्ष बने. उनकी शख्सीयत ऐसी थी कि वे स्वतंत्रता संग्राम से तो जुड़े ही थे, शिक्षा के विकास, सामाजिक सुधार, सांस्कृतिक उत्थान और हिंदी भाषा की प्रोन्नति में भी उन्होंने अहम भूमिका निभायी. मालवीय जी ने 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की स्थापना की. बीएचयू के शिक्षकों और छात्रों का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अतुलनीय योगदान रहा है. लंदन में हुई पहली राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में गांधी जी नहीं, बल्कि मालवीय जी गये थे. इस तरह उनसे जुड़ी कई अहम बातें इतिहास में दर्ज हैं.

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मैं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो अध्यक्षों का नाम लेना चाहूंगा. एक पंडित मदनमोहन मालवीय हुए, जो हिंदू संस्कृति, धर्म, विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते थे. वहीं, कांग्रेस के एक और अध्यक्ष हुए मौलाना अबुल कलाम आजाद, जो बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी होने के साथ इसलामी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते थे. ये दोनों कांग्रेस के दो छोर पर खड़े थे, लेकिन एक-दूसरे के प्रति बड़े आदरवान थे. लेकिन अफसोस होता है कि लोग पंडित जी को भुला बैठे. मोदी जी को श्रेय जाता है कि उन्होंने पंडित मदन मोहन मालवीय को याद किया. वाजपेयी जी को याद किया, इसकी हमको बड़ी प्रसन्नता है. हालांकि, वाजपेयी जी की उपेक्षा तो नहीं की जा सकती, क्योंकि जब वे प्रधानमंत्री रहे, तब शिखर पर रहे और जब प्रतिपक्ष में रहे, तब भी शिखर पर रहे. उनकी अवहेलना करना, तो बहुत मुश्किल था. हालांकि, सरदार पटेल और पंडित मदन मोहन मालवीय जैसे शिखर पुरुष की बहुत दिनों तक अवहेलना होती रही. कांग्रेस और स्वंतत्रता आंदोलन में अहम भूमिका में रहे सरदार पटेल भी आजादी के कुछ साल बाद उपेक्षित होते गये, खासतौर पर इंदिरा जी के बाद से. आगे चल कर नरेंद्र मोदी ने ही उनकी याद ताजा करवायी. एक तरह से जनमानस में एक बार फिर उन्हें पुनर्जीवित किया.

नरेंद्र मोदी ने दोनों महामनाओं को जनमानस में पुनस्र्थापित किया और इतना बड़ा सम्मान दिया, इससे बड़े संतोष की बात हमारे लिए कुछ और नहीं हो सकती. इसलिए, क्योंकि हम उस पीढ़ी के थोड़े से बचे हुए लोगों में से हैं, जो पीढ़ी पंडित मदन मोहन मालवीय को कभी नहीं भूली. शायद नरेंद्र मोदी अकेले ऐसे व्यक्ति हैं, जो यह कर सकते थे. शायद दूसरे लोगों के ध्यान में ये बात नहीं आती. (बातचीत पर आधारित)

अरुण भोले

लेखक एवं स्वराज और समाजवादी आंदोलन से जुड़े बिहार के जाने-माने जनसेवी

महामना मालवीय, खास बातें

महामना मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसंबर, 1861 को इलाहाबाद में हुआ था. उनका निधन 12 नवंबर, 1946 को बनारस में हुआ.

1909, 1918, 1932 और 1933 में मदन मोहन मालवीय चार बार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे.

सत्यमेव जयते शब्द के प्रचार प्रसार में अहम भूमिका रही. शिक्षा, पत्रकारिता, वकालत में महमना जी ने कई अहम सक्रिय काम किये.

महामना मदन मोहन मालवीय ने 1916 में प्रतिष्ठित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की.

वे भारत के पहले और अंतिम व्यक्ति थे, जिन्हें महामना की उपाधि से विभूषित किया गया.

मालवीयजी ने कांग्रेस के द्वितीय अधिवेशन (कलकत्ता-1886) से लेकर अपनी अंतिम सांस तक स्वराज्य के लिए कठोर तप किया.

चौरी-चौरा कांड में 170 दोषियों को फांसी की सजा सुनायी गयी. इसमें से 151 को छुड़ा लिया.

मालवीयजी ने ऋ षिकुल हरिद्वार, गोरक्षा और आयुर्वेद सम्मेलन तथा सेवा समिति, ब्वॉय स्काउट जैसे कई संस्थाओं को स्थापित किया.

मालवीयजी का ‘सर्वधर्म समभाव’ उनके सनातनी मानवीय मूल्यों को दर्शाता है.

महामना के मन में एक तरफ तक्षशिला, नालंदा का गौरवशाली इतिहास था, तो दूसरी तरफ काशी की गरिमा का भी एहसास. गौतम बुद्ध, शंकराचार्य, कबीरदास, तुलसीदास एवं अनेकानेक मनीषियों को वे मां गंगा की पवित्र धारा के समान देखते थे.

अटल बिहारी वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर में हुआ. राजनीति शास्त्र में कानपुर कॉलेज से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की. कॉलेज के समय से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बन गये. एलएलबी की पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर राजनीति में आ गये. अगस्त, 1942 में उन्हें बड़े भाई प्रेम के साथ भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 23 दिन के लिए गिरफ्तार कर लिया गया.

1951 में भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में एक वाजपेयी भी थे. 1968 से 1973 तक वह उसके अध्यक्ष भी रहे. अच्छे कवि वाजपेयी ने लंबे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर-अर्जुन आदि पत्र- पत्रिकाओं का संपादन किया.

1955 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़े और हार गये. 1957 में जनसंघ ने लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से एक साथ चुनाव लड़ाया. वह बलरामपुर से सांसद पहुंचे. लेकिन, लखनऊ में हार के साथ मथुरा में जमानत भी जब्त हो गयी.

1957 से 1977 तक (जनता पार्टी की स्थापना तक) जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे.

1977 में मोरारजी देसाई की सरकार में पहले गैर कांग्रेसी विदेश मंत्री बने. 1979 तक इस पद पर रहे. अटल ने संयुक्त राष्ट्र संघ को हिंदी में संबोधित कर भारत को गौरवान्वित किया.

1980 में असंतुष्ट होकर जनता पार्टी छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की. 1980 से 1986 तक भाजपा के अध्यक्ष और भाजपा संसदीय दल के नेता रहे. राज्यसभा के लिए दो बार चुने गये. 16 मई, 1996 को पहली बार प्रधानमंत्री बने.

सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री पद पर रहनेवाले देश के पहले गैर कांग्रेसी पीएम बने. वे भाजपा का उदारवादी चेहरा माने जाते हैं. उनके आलोचक हालांकि उन्हें आरएसएस का ऐसा मुखौटा बताते रहे हैं, जिनकी सौम्य मुस्कान उनकी पार्टी के हिंदूवादी समूहों से संबंधों को छुपाये रखती है.

1999 की वाजपेयी की पाकिस्तान यात्र की उनकी ही पार्टी के कट्टरवादी नेताओं ने आलोचना की, लेकिन वह बस पर सवार होकर किसी विजेता की तरह लाहौर पहुंचे. वाजपेयी की इस राजनयिक सफलता को भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक नये युग की शुरुआत को सराहा गया.

भाजपा के चार दशक तक विपक्ष में रहने के बाद वाजपेयी 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन संख्या बल में मात खाने से उनकी सरकार महज13 दिन ही चल सकी. 1998 में भी स्थिर बहुमत नहीं होने से 13 माह बाद ही 1999 की शुरुआत में ही उनकी सरकार गिर गयी.

1999 के चुनाव में वाजपेयी पिछली बार के मुकाबले एक अधिक स्थिर गंठबंधन सरकार के मुखिया बने, जिसने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर जवाहर लाल नेहरू की शैली और उनके स्तर के नेता के रूप में सम्मान पानेवाले अटल का पीएम के रूप में कार्यकाल साहसिक और दृढ़निश्चयी फैसलों के लिए जाना जाता है. इस दौरान भारत ने मई, 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण किये.

वाजपेयी का मिशन पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारना था. इसके बीज उन्होंने 70 के दशक में मोरारजी देसाई की सरकार में बतौर विदेश मंत्री रहते हुए ही रोपे थे.

इन्होंने दी बधाई

अटल जी के देश के प्रति योगदान को हमेशा याद किया जायेगा. मैं उन्हें बधाई देता हूं. हम भी चाहते थे कि अटल जी को भारतरत्न मिले. यूपीए सरकार को उन्हें यह सम्मान देना चाहिए था.

नीतीश कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री, बिहार

मैं फैसले का स्वागत करती हूं. हम सभी वाजपेयी जी से बहुत स्नेह रखते हैं और उनका सम्मान करते हैं.

ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री, पश्चिम बंगाल

यह सचमुच में सभी भारतीयों के लिए खुशी की बात होने के साथ-साथ गर्व का विषय है कि भारत रत्न इसके (भारत) दो सबसे अधिक अनमोल रत्नों महामना और अटल जी को प्रदान किया गया है.

शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश

लंबे समय से अटल जी को भारत रत्न देने की जनता की इच्छा पूरी हुई. इसके साथ महामना पंडित मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न देने का निर्णय तो दूध में शक्कर की मिठास जैसा है.

राम नाईक, राज्यपाल, उत्तर प्रदेश

देश के लाखों लोगों के मन की बात पूरी हो गयी. सरकार का यह निर्णय सुखदायी तो है ही लेकिन भारतीय जीवन मूल्यों की रक्षा करने वाले दो महान व्यक्तियों को एक साथ भारत रत्न देकर सरकार ने एक तरह से जीवन मूल्यों एवं उन पर विश्वास रखने वालों का सम्मान किया है.

सुमित्र महाजन, लोकसभा अध्यक्ष

अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न पुरस्कार दिये जाने से देश की जनता गौरवान्वित हुई है. वाजपेयी एक राजनेता ही नहीं महान कवि, साहित्यकार और देशभक्त हैं. महामना मदन मोहन मालवीय का शिक्षा और समाजवादी विचारधारा के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान है. दोनों महापुरषों को भारत रत्न देने से युवाओं को नयी दिशा और प्रेरणा मिलेगी.

राम नरेश यादव, राज्यपाल, मध्यप्रदेश

भारत माता के दो महान सुपुत्रों स्वतंत्रता सेनानी एवं महान राष्ट्रवादी पंडित मदन मोहन मालवीय और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ प्रदान करने का ऐतिहासिक निर्णय लेने के लिए भाजपा संसदीय बोर्ड भारत सरकार के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता है.

भाजपा संसदीय बोर्ड

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