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भारत की धमक,पहले प्रयास में मंगल फतह

इस साल दो वजहों से विश्व में भारत की धमक सुनायी दी. सर्वाधिक कम लागत पर भारत ने मंगल ग्रह पर अपना यान भेज कर खुद का नाम विश्व के चौथे देश में शामिल कर लिया. दूसरी धमक बच्चों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले कैलाश सत्यार्थी को नोबल शांति पुरस्कार के रूप में सुनायी […]

इस साल दो वजहों से विश्व में भारत की धमक सुनायी दी. सर्वाधिक कम लागत पर भारत ने मंगल ग्रह पर अपना यान भेज कर खुद का नाम विश्व के चौथे देश में शामिल कर लिया. दूसरी धमक बच्चों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले कैलाश सत्यार्थी को नोबल शांति पुरस्कार के रूप में सुनायी पड़ी. श्री सत्यार्थी के साथ पड़ोसी देश पाक की मलाला यूसुफजई को भी यह पुरस्कार साझा तौर पर मिला.

अंतरिक्ष शोध के क्षेत्र में इसे कालजयी घटना ही माना जायेगा. इस साल(2014 में) भारत पहले प्रयास में मंगल ग्रह की कक्षा में अपना यान भेजने वाला विश्व का पहला देश बना.टाइम मैगजीन ने मंगलयान को विश्व के 25 सर्वश्रेष्ठ आविष्कारों में शामिल करते हुए इसे द सुपर स्मार्ट स्पेस क्राफ्ट की संज्ञा दी.

24 सितंबर, 2014 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) को मिली इस सफलता ने भारत को अंतरिक्ष के क्षेत्र में उन देशों के समकक्ष ला खड़ा किया, जो अब तक विज्ञान व तकनीक के मामले में अव्वल माने जाते थे. मिशन पूरा होने की पुष्टि सुबह 8.01 बजे हुई थी. इस पूरे अभियान में लगभग 450 करोड़ रुपये खर्च हुए. यह रकम अमेरिका द्वारा मंगल अभियान पर खर्च की गयी राशि के आगे काफी कम है. नासा ने भारत से 10 गुणा ज्यादा पैसा खर्च किया था. अमेरिका, रु स व जापान के बाद भारत मंगल अभियान में सफलता पाने वाला चौथा देश बन गया है. खास बात यह है कि मंगल अभियान में भारत ने एक ही बार में सफलता हासिल कर ली. इसने मंगल की कई तसवीरें भी भेजी हैं. इससे पहले चीन का पहला मंगल अभियान, यंगहाउ-1, 2011 में असफल रहा. 1998 में जापान का पहला मंगल अभियान ईधन खत्म हो जाने के कारण असफल हुआ था. 1960 से लेकर अभी तक मंगल पर 51 अभियान भेजे गये और इनकी सफलता की दर 24 प्रतिशत रही है.

अंतरिक्ष में इंसान भेजने की दिशा में बढ़ा एक कदम

इसरो ने इस साल 19 दिसंबर को देश के सबसे वजनी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 का सफल प्रायोगिक प्रक्षेपण करते हुए अंतरिक्ष में मानव मिशन की दिशा में एक अहम कदम बढ़ाया. इस रॉकेट को एक मानवरहित केयर माड्यूल के साथ प्रक्षेपित किया गया. प्रक्षेपण के 5.4 मिनट बाद केयर 126 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचकर रॉकेट से अलग हो गया और उसने पुन: पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश किया. इस मिशन की सफलता से इसरो की दो साल के भीतर अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने की परियोजना को गति मिलेगी.

लक्ष्य की ओर धीरे-धीरे आगे बढ़ा मार्स ऑरबिट मिशन (मॉम)

3 अगस्त, 2012 : इसरो की मंगलयान परियोजना को भारत सरकार ने स्वीकृति दी. इसके लिए 2011-12 के बजट में ही धन का आवंटन कर दिया गया था.

5 नवम्बर, 2013 : मंगलयान मंगलवार के दिन दोपहर भारतीय समय 2:38 अपराह्न पर श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश) के सतीश धवन अन्तरिक्ष केन्द्र से ध्रुवीय प्रक्षेपण यान पीएसएलवी सी-25 द्वारा प्रक्षेपित किया गया. 3:20 अपराह्न के निर्धारित समय पर पीएसएलवी-सी 25 के चौथे चरण से अलग होने के उपरांत यान पृथ्वी की कक्षा में पहुंच गया और इसके सोलर पैनलों और डिश आकार के एंटीना ने काम करना शुरू कर दिया था.

7 नवम्बर, 2013 : भारतीय समयानुसार एक बजकर 17 मिनट पर मंगलयान की कक्षा को ऊंचा किया गया.

12 नवम्बर, 2013 : एक बार फिर मंगलवार मंगलयान के लिए मंगलमय सिद्ध हुआ. सुबह 05 बजकर 03 मिनट पर यान को 78,276 से 118,642 किलोमीटर की कक्षा पर सफलतापूर्वक पहुंचा दिया गया.

16 नवम्बर, 2013 : पांचवीं और अंतिम प्रक्रिया में सुबह 01:27 बजे यान को 1,92,874 किलोमीटर तक उठा दिया.

01 दिसम्बर, 2013 : 0 1 दिसंबर की मध्यरात्रि को 00:49 बजे मंगलयान को मार्स ट्रांसफर ट्रेजेक्टरी में पहुंचा.

(यह इसकी 20 करोड़ किलोमीटर से ज्यादा लम्बी यात्र की शुरुआत थी जिसमें नौ महीने से भी ज्यादा का समय लगना था. सबसे बड़ी चुनौती इसके अंतिम चरण में यान को सटीक तौर पर धीमा करने की थी ताकि मंगल ग्रह अपने छोटे गुरु त्व बल के जरिये इसे अपने उपग्रह के रूप में स्वीकार करने को तैयार हो जाये. इसरो प्रमुख डॉ के राधाकृष्णन ने कहा कि परीक्षा में हम पास हुए या फेल, यह 24 सितंबर 2014 को ही पता चलेगा.)

4 दिसंबर, 2013: मंगलयान 9.25 लाख किलोमीटर के दायरे वाले पृथ्वी के गुरु त्वाकर्षण प्रभाव क्षेत्र से बाहर निकला.

14 सितंबर, 2014 : अंतिम चरण के लिए आवश्यक कमांड्स अपलोड की गयी.

22 सितंबर, 2014 : एमओएम (मार्स ऑरबिट मिशन) ने मंगल के गुरु त्वीय क्षेत्र में प्रवेश किया.

24 सितम्बर, 2014 : सुबह 7 बज कर 17 मिनट पर मंगलयान को मंगल ग्रह की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रविष्ट किया गया. जिस समय यान मंगल की कक्षा में प्रविष्ट हुआ उस समय पृथ्वी तक इसके संकेतों को पहुंचने में लगभग 12 मिनट 28 सेकेंड का समय लगा.

दुनिया के अभियान और उनकी लागत

मावेन

एजेंसी : नासा

लागत : 4256 करोड़ (लगभग)

मार्स एक्सप्रेस ऑर्बिटर

एजेंसी : यूरोपियन स्पेस एजेंसी

लागत : 2448 करोड़ (लगभग)

नोजोमी

एजेंसी : जापान एयरोस्पेस एजेंसी

लागत : 1198 करोड़ (लगभग)

फोबोस ग्रंट

एजेंसी : रशियन स्पेस एजेंसी

लागत : 742 करोड़ (लगभग)

सबसे सस्ता

इस मिशन की लागत 450 करोड़ रुपये है. यह नासा के पहले मंगल मिशन का दसवां और चीन-जापान के नाकाम मंगल अभियानों का एक चौथाई भर है.

मंगलयान के साथ पांच प्रयोगात्मक उपकरण भेजे गये हैं, जिनका कुल भार 15 किलोग्राम है

मीथेन सेंसर

यह मंगल के वातावरण में मिथेन गैस की मात्र को मापेगा तथा इसके स्नेतों का मानचित्र बनाएगा. मिथेन गैस की मौजूदगी से जीवन की संभावनाओं का अनुमान लगाया जाता है.

थर्मल इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर

यह मंगल की सतह का तापमान तथा उत्सर्जकता की माप करेगा जिससे मंगल के सतह की संरचना तथा खनिजों का मानचित्र बनाने में सफलता मिलेगी.

मार्स कलर कैमरा

यह दृष्य स्पेक्ट्रम में चित्र खींचेगा जिससे अन्य उपकरणों के काम करने के लिए संदर्भ प्राप्त होगा.

लमेन अल्फा फोटोमीटर

यह ऊपरी वातावरण में ड्यूटीरियम तथा हाइड्रोजन की मात्र मापेगा. इसका वजन 1.97 किलो है. इससे पानी की खपत का पता चलता है.

मंगल इक्सोस्फेरिक न्यूट्रल संरचना विश्लेषक

यह बिहर्मंडल (इक्सोस्फीयर) में अनावेशित कण संरचना का विश्लेषण करने में सक्षम है. इसका वजन 1.56 किलोग्राम है.

ये हैं ‘मॉम’ के सुपरहीरो

डॉ के राधाकृष्णन

इसरो अध्यक्ष

भारत के मंगल अभियान की सफलता का सबसे बड़ा श्रेय इसरो के अघ्यक्ष डॉ.के. राधाकृष्णन को जाता है. मंगल अभियान की सफलता पर राधाकृष्णन ने कहा, हम किसी से मुक़ाबला नहीं कर रहे हैं, बल्कि अपनी क्षमता को उच्च स्तर पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं. 1971 में इसरो के विक्र म साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरु वनंतपुरम में

एक इंजीनियर के रूप में इन्होंने अपने कॅरियर की शुरुआत की

और आज इसरो के अध्यक्ष पद पर हैं.

सुब्बा अरुणन

प्रोजेक्ट डायरेक्टर

मंगल अभियान में सुब्बा अरु णन की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है. 24 मिनट का वक्त जिस पर मंगल अभियान की सफलता टिकी थी उस पर विशेष नजर रखे हुए थे. इन्होंने अपने कॅरियर की शुरु आत विक्र म साराभाई स्पेस सेंटर से 1984 में की. इन्हें 2013 में मंगल अभियान के लिए प्रोजेक्ट डायरेक्टर की भूमिका दी गयी. सुब्बा एक मैकेनिकल इंजीनियर हैं.

एएस किरण कुमार

स्पेस एप्लीकेशन सेंटर

मंगल अभियान की सफलता में अलूर सिलेन किरण कुमार की महत्वपूर्ण भूमिका है. उन्होंने भौतिकी विज्ञान में नेशनल कॉलेज बेंगलूर से 1971 में डिग्री हासिल की. 1975 में ही उन्होंने इसरो के साथ काम करना शुरू किया.

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