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रेलवे में दुर्घटनाएं रोकने की नयी तकनीक

खबर है कि दुर्घटनाओं को रोकने के लिए भारतीय रेलवे कई नयी तकनीकों को अपनाने पर विचार कर रहा है. हालांकि रेलवे की ओर से इस बारे में अभी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गयी है कि निकट भविष्य में किन तकनीकों को अपनाया जायेगा. फिलहाल रेल दुर्घनाओं की संभावना को न्यूनतम करने के लिए […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 5, 2015 7:06 AM
खबर है कि दुर्घटनाओं को रोकने के लिए भारतीय रेलवे कई नयी तकनीकों को अपनाने पर विचार कर रहा है. हालांकि रेलवे की ओर से इस बारे में अभी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गयी है कि निकट भविष्य में किन तकनीकों को अपनाया जायेगा. फिलहाल रेल दुर्घनाओं की संभावना को न्यूनतम करने के लिए देश-दुनिया में मौजूद एवं विकसित की जा रही नयी तकनीकों पर नजर डाल रहा है नॉलेज.
भारत में रेलयात्रा को ज्यादा से ज्यादा सुरक्षित बनाने के लिए भारतीय रेलवे कई उपाय कर रहा है. रेलवे के पुराने उपकरणों को बदलने और कई नयी तकनीक के इस्तेमाल से ट्रेनों के संचालन की तैयारी की जा रही है. दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सिगनल प्रणाली को भी अपग्रेड किया जायेगा. रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा ने हाल ही में लोकसभा में यह जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि हादसों को रोकने के लिए नये उपायों पर जोर दिया जा रहा है.
अमेरिका, रूस और चीन के बाद सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क भारतीय रेलवे का है. रोजाना करीब दो करोड़ यात्राियों और करीब 20 लाख टन सामान को यह देश के विभिन्न इलाकों में पहुंचाता है. देश में करीब 15,000 ट्रेनें रोज चलायी जाती हैं. भारतीय रेलवे में 9,500 से ज्यादा लोकोमोटिव, 55,000 से ज्यादा कोच और 2.39 लाख वैगन हैं, जो 64,600 किलोमीटर रूट पर संचालित किये जा रहे हैं. परंतु, यह एक कड़वी हकीकत है कि संचालन के दौरान थोड़ी सी भी चूक होने पर ट्रेनें दुर्घटनाग्रस्त हो जाती हैं. ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एडवांस्ड रिसर्च इन कंप्यूटर एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग’ में एस संगीता, एमडी अनिल, बी दिव्या, बी निरंजन और केएस श्रुति के ‘एडवांस्ड रेलवे एक्सीडेंट प्रीवेंशन सिस्टम यूजिंग सेंसर नेटवर्क्‍स’ नाम से प्रकाशित एक शोधपत्र में रेल दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कुछ एडवांस तकनीक के संबंध में बताया गया है. दुर्घटनाएं रोकने की कुछ तकनीक के बारे में जानें.
जिगबी स्टैंडर्ड को जिगबी एलायंस द्वारा मैनेज किया जाता है. दरअसल, जिगबी एलायंस 50 से ज्यादा कंपनियों का एक ग्लोबल कॉन्सोर्टियम है. जिगबी एक प्रकार का शॉर्ट-रेंज, लो डाटा-रेट वायरलेस नेटवर्क टेक्नोलॉजी है, जो आइइइइ 802.15.4 वायरलेस पर्सनल एरिया नेटवर्क स्टैंडर्ड आधारित है. जिगबी का डाटा रेट 10 किलोबाइट प्रति सेकेंड से 250 किलोबाइट प्रति सेकेंड है.
इसलिए इसे लो रेट वायरलेस ट्रांसमिशन अनुप्रयोग के लिए सटीक माना जाता है. लेकिन जिगबी कई हजार वायरलेस ट्रांसमिशन मॉड्यूल की रचना कर सकता है, जिसमें वायरलेस-डाटा ट्रांसमिशन नेटवर्क प्लेटफॉर्म भी शामिल है. इसका अस्तित्व ठीक उसी प्रकार है, जिस प्रकार सीडीएमए मोबाइल कम्युनिकेशन नेटवर्क या जीएसएम नेटवर्क का होता है. और प्रत्येक नेटवर्क नोड को 75 मीटर से लेकर कई किलोमीटर तक विस्तारित किया जा सकता है. जिगबी नेटवर्क प्राथमिक रूप से ऑटोमेटिक कंट्रोल और डाटा ट्रांसमिशन की स्थापना के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है, जो मोबाइल कम्युनिकेशन नेटवर्क से भिन्न होता है.
जिगबी टेक्नोलॉजी का डाटा रेट कम होता है और कम्युनिकेशन का कम रेंज इसकी खासियत है, जो इस बात को निर्धारित करती है कि छोटे कार्यो के लिए डाटा ट्रैफिक को एक जगह से दूसरे जगह ले जाने के लिए जिगबी टेक्नोलॉजी सटीक तरीका है. जिगबी 802.15.4 प्रोटोकॉल स्टेक स्टैंडर्ड आधारित एक उच्चक्षमतायुक्त नेटवर्किग है.
एटी 89 एस 52 माइक्रोकंट्रोलर
एटी 89एस52 एक कम ऊर्जा इस्तेमाल वाला उच्च क्षमता का घटक है. इसमें आठ बाइट का माइक्रोकंट्रोलर लगा है. इस उपकरण को एटमेल की हाइ-डेनसिटी नॉनवोलेटाइल मेमोरी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए बनाया गया है. साथ ही इसके निर्माण में संबंधित मानकों का पूरा खयाल रखा गया है. एटी 89एस52 की मुख्य खासियतें इस प्रकार हैं- 256 बाइट की रैम, 32 आइ/ओ लाइन्स, वॉचडॉग टाइमर, दो डाटा प्वाइंटर्स, चिप ऑस्किलेटर, क्लॉक सर्किट. इस युक्ति के तहत 32 आइ/ओ लाइन्स का इस्तेमाल आउटपुट डाटा के लिए किया जा सकता है और डिवाइस को किसी खास काम का आदेश दिया जा सकता है या फिर सेंसर अथवा स्विच की स्थिति को समझने के लिए किया जा सकता है. एटी 89एस52 के ज्यादातर पार्ट्स डुअल फंक्शन वाले हैं यानी इन्हें दो विभिन्न कार्यो के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
कैसे होता है विभिन्न हार्डवेयर का इस्तेमाल
जिगबी आरएफ मॉड्यूल : जिगबी आरएफ मॉड्यूल का इस्तेमाल ट्रेन डाटा के ट्रांसमिशन, स्टेशन डाटा और ट्रेन दुर्घटना की सूचना देने के लिए बेस स्टेशनों और ट्रेनों के लिए किया जाता है.
माइक्रोकंट्रोलर एटी 89एस52 : इसके बाद एटमेल के माइक्रोकंट्रोलर एटी 89एस52 का इस्तेमाल ट्रैक और ट्रेन संचालन की गतिविधियों में आने वाली बाधाओं को जानने और इंफ्रारेड सेंसर्स को माइक्रोकंट्रोलर से कनेक्ट करने के लिए हार्डवेयर प्लेटफॉर्म की भांति किया जाता है.
ट्रैक कॉन्टीन्यूटी सर्किट : ट्रैक में किसी तरह की गड़बड़ी की दशा में बेस स्टेशन को इसकी सूचना भेजने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है.
इंफ्रारेड ऑब्सटेकल सेंसर्स : इस सेंसर को ट्रेन के इंजन के आगे की ओर लगाया जाता है ताकि यह ट्रैक की सीधी रेखा में आने वाली किसी भी बाधा को समय रहते जान सके.
इंफ्रारेड कर्व डिटेक्शन सेंसर्स : इस सेंसर को ट्रेन के इंजन के बायें हिस्से में लगाया जाता है. यदि किसी मोड़ पर ट्रेन बायीं ओर झुकती है तो ऐसे में किसी बाधा को डिटेक्ट करने के लिए इसे लगाया जाता है. ऐसे में मोड़ पर जब कोई बाधा आती है तो यह सेंसर उसे पकड़ लेता है और ट्रेन कंट्रोल ब्लॉक को तुरंत इसका सिगनल भेजता है.
डीसी मोटर : इस सिस्टम के तहत दो डीसी मोटर का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें से एक का इस्तेमाल ट्रेन मोटर के तौर पर ट्रेन को समुचित स्पीड पर चलाने के लिए और दूसरे का इस्तेमाल राह में किसी रोड-क्रॉसिंग के आने पर रेलवे गेट को बंद करने या खोलने के लिए किया जाता है.
एलसीडी डिस्प्ले : इसका इस्तेमाल ट्रेन कंट्रोल सिस्टम और ट्रैक कंट्रोल सिस्टम दोनों ही के लिए किया जाता है ताकि बेस स्टेशनों और ट्रेन ऑपरेटरों को चेतावनी की समुचित सूचना प्रदर्शित हो सके.
इंफ्रारेड सेंसर्स टेक्नोलॉजी
इंफ्रारेड सेंसर्स एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है, जिसका इस्तेमाल किसी खास चीज को समझने के लिए किया जाता है. दरअसल, यह उपकरण इंफ्रारेड रेडिएशन की पहचान करते हुए और/ या उसके उत्सजर्न के द्वारा अपने आसपास मौजूद खास चीजों को समझता है. साथ ही यह किसी वस्तु के ताप को मापने और उसकी गति को भी डिटेक्ट करने में सक्षम है. इंफ्रारेड तरंगों को मानवीय आंखों से नहीं देखा जा सकता है. इंफ्रारेड रेडिएशन को डिटेक्ट करने के लिए एक खास सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें इंफ्रारेड सेंसर्स समेत इंफ्रारेड के कई अन्य स्नेत शामिल हैं, जैसे ब्लैकबॉडी रेडिएटर्स, टंगस्टन लैंप्स और सिलिकॉन कार्बाइड. एक्टिव इंफ्रारेड सेंसर्स की दशा में इसके स्नेत इंफ्रारेड लेजर्स और खास प्रकार के आइआर वेवलेंथ वाले एलक्ष्डी होते हैं. इसका अगला चरण इंफ्रारेड ट्रांसमिशन के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला ट्रांसमिशन माध्यम है, जिसमें वैक्यूम, वायुमंडल, ऑप्टिकल फाइबर शामिल हैं. इस प्रकार से इंफ्रारेड डिटेक्टर सिस्टम काम करता है और इंफ्रारेड रेडिएशन को पकड़ता है. डिटेक्टर से प्राप्त आउटपुट अक्सर बहुत छोटे होते हैं, इसलिए इसमें सिगनल और एंप्लीफायर्स का भी उपयोग किया जाता है.
रेलवे में संरक्षा के कुछ कारगर उपाय
एलक्ष्डी सिगनल
1990 के दशक के बाद से पूरी दुनिया में एलक्ष्डी आधारित सिगनल की तकनीक उपलब्ध हो चुकी है. हालांकि, भारतीय रेलवे में इसे काफी बाद में अपनाया जा रहा है. बताया गया है कि पारंपरिक कलर लाइट सिगनल के मुकाबले एलक्ष्डी सिगनल को ज्यादा दूरी से और ज्यादा स्पष्ट देखा जा सकता है.
परमानेंट स्पीड रिस्ट्रिक्शंस
टीपीडब्लूएस के तहत परमानेंट स्पीड रिस्ट्रिक्शंस यानी स्थायी गति अवरोधकों का प्रावधान किया जाता है, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि किसी निर्धारित खंड में ट्रेन एक तय रफ्तार से ज्यादा स्पीड में नहीं दौड़ सके. खासकर रेलवे ट्रैक के घुमावदार स्थानों पर इसका प्रावधान किया जाता है, ताकि किसी संभावित दुर्घटना को रोका जा सके.
ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन
ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन (एटीपी) सिस्टम को दुनिया के कई देशों में इंस्टॉल किया जा चुका है. रेलवे टेक्निकल डॉट कॉम के मुताबिक भारतीय रेलवे में भी इसकी शुरुआत हो चुकी है. इस सिस्टम के तहत रेलवे के संचालन केंद्र यानी ‘कंट्रोल’ में उस खंड पर दौड़नेवाली सभी गाड़ियों की पोजिशन का लगातार पता चलता रहता है. यदि लोको पायलट किसी निर्दिष्ट खंड में निर्धारित स्पीड से ज्यादा रफ्तार से ट्रेन चलाता है तो या फिर किसी कारण से वह ब्रेक लगाने में नाकाम रहता है, तो ट्रेन में स्वत: ब्रेक लग जाता है. यह तकनीक उन रेलखंडों के लिए ज्यादा जरूरी और उपयोगी है, जिनमें गाड़ियों की आवृत्ति ज्यादा है.

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