क्या कहता है किशोर मस्तिष्क
शोध के मुताबिक टीनएज तक दिमाग का सिर्फ 80 फीसदी विकास हो पाता है. शायद इसलिए भी किशोरावस्था एक अपरिपक्व अवस्था मानी गयी है, लेकिन मानसिक और शारीरिक परिवर्तन के इस दौर में यानी किशोरवय में संभावनाएं भी असीम होती हैं. एक नयी किताब में किशोर मस्तिष्क के रहस्यों पर नजर डाली गयी है. वर्ष […]
शोध के मुताबिक टीनएज तक दिमाग का सिर्फ 80 फीसदी विकास हो पाता है. शायद इसलिए भी किशोरावस्था एक अपरिपक्व अवस्था मानी गयी है, लेकिन मानसिक और शारीरिक परिवर्तन के इस दौर में यानी किशोरवय में संभावनाएं भी असीम होती हैं. एक नयी किताब में किशोर मस्तिष्क के रहस्यों पर नजर डाली गयी है.
वर्ष 1993 में एक क्लासिक फिल्म आयी थी, ‘डेज्ड एंड कंफ्यूज्ड’. इस फिल्म में एक किशोर के जीवन को समझ से परे और कंफ्यूज्ड दिखाया गया था. कहानी में अमेरिका के टेक्सास के एक किशोर को ज्यादातर समय पागलों सी हरकत करता हुआ, पूरी तरह से अवज्ञाकारी या बिल्कुल मूर्ख के तौर पर दिखाया गया था. कभी-कभी उसके व्यवहार में इन तीनों गुणों का समिश्रण देखा जा सकता था. वास्तव में यह फिल्म किशोरों को एक अबूझ पहेली की तरह पेश करती है.
वैसे हम इस बात के लिए राहत महसूस कर सकते हैं कि सारे किशोर इस तरह का व्यवहार नहीं करते, लेकिन इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कई किशोरों में कई बार ऐसे लक्षण प्रकट होते हैं, जिनको समझ पाना, अभिभावकों के बस की बात नहीं होती है. और वे यह सवाल खुद से पूछे बिना नहीं रह पाते कि आखिर वे इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहे हैं, जैसे कि वे किसी दूसरी प्रजाति के हों?
अगर मानव मस्तिष्क एक पहेली है, तो किशोरों का दिमाग अपने आप में रहस्यों में लिपटी एक बेहद पेचदार भूल-भुलैया से कम नहीं है. संभवत: यही कारण है कि हम किशोरों के आचरण को पूरी तरह से समझ पाने में अक्सर नाकाम रहते हैं. उनके व्यवहार का आकलन कर पाना, उनको पूरी तरह से समझ पाने का दावा हम कभी नहीं कर पाते. और यही वजह होती है कि हम उनके साथ जरूरी संवाद कायम करने, उनकी मदद कर पाने की स्थिति में नहीं होते. किशोरों के दिमाग को समझने की कोशिशें लंबे समय से जारी हैं. अब यह एक अच्छी खबर है कि एक जाने-माने न्यूरो साइंटिस्ट ने किशोरों के मस्तिष्क में छिपे रहस्य लोक को समझाने के लिए एक किताब लिखी है, जो हाल ही में प्रकाशित हुई है.
किशोरों की रहस्यमयी मानसिक बुनावट को सामने लाने का काम किया है, डॉ फ्रांसिस जेनसन ने. किसी दौर में अपने बच्चों के व्यवहार से चकित रह गयीं और उसका कोई तार्किक हल निकालने में नाकाम रहीं जेनसन ने किशोरों के मस्तिष्क पर किये गये अपने वर्षो के अध्ययन को इस किताब के सहारे हमारे सामने लाने का काम किया है. यह किताब आपको चेतावनी भी देती है और आप में उम्मीद की एक किरण भी जगाती है.
डॉ फ्रांसिस जेनसन ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा किशोरों के मस्तिष्क का अध्ययन करते हुए बिताया है और उनका निष्कर्ष है कि किशोरों का दिमाग भी किसी अन्य इनसान की तरह होता है. बात सिर्फ यह होती है कि तब वो पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ होता. और जिस दौर में टीनएजर्स सबसे ज्यादा समझ से परे व्यवहार करते हैं, वह वास्तव में एक परिवर्तन का दौर होता है. इस दौर में टीन्स का दिमाग बेहद जोखिमग्रस्त होता है, लेकिन इसमें संभावनाएं भी असीम होती हैं.
डॉ फ्रांसिस जेनसन अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया के पेरेलमैन स्कूल के डिपार्टमेंट ऑफ न्यूरोलॉजी की अध्यक्ष हैं. उन्होंने हाल ही में एक नयी किताब लिखी है, जिसका टाइटल है-‘द टीनएज ब्रेन: ए न्यूरो साइंटिस्ट्स सर्वाइवल गाइड टू रेजिंग एडोलोसेंट एंड यंग एडल्ट.’ जेनसन की यह किताब किशोरों के दिमाग और व्यवहार को समझने में मददगार साबित हो सकती है.
कभी सोचा है कि टीनएजर्स अबूझ तरीके का व्यवहार क्यों कर रहे होते है?
कारण
किशोरों का दिमाग पूरी तरह से परिपक्व नहीं होता. डॉ जेनसन के मुताबिक किशोरावस्था तक उनके मस्तिष्क का सिर्फ 80 फीसदी विकास होता है.
मानव मस्तिष्क चार हिस्सों में विभाजित हो जाता है. एक, फ्रंटल यानी सामने का हिस्सा, दो, पैरिएटल यानी पीछे का ऊपरी हिस्सा, तीन, टेम्पोरल यानी बगल का हिस्सा और चौथा- ऑकिपिटल यानी पीछे का हिस्सा. और हमारा मस्तिष्क पीछे से आगे की ओर परिपक्व होता है. सबसे पहले दिमाग का वह हिस्सा परिपक्व होता है, जिसका संबंध हमारे बेसिक क्रियाकलापों से होता है.
ऑकिपिटल लोब : ब्रेन का विजुअल प्रोसेसिंग सेंटर यानी जहां से दृष्टि का निर्धारण होता है.
पैरिएटल लोब : यह हिस्सा संवेदक सूचनाओं यानी सेंसरी इंफॉरमेशन की प्रोसेसिंग करता है. यह शरीर के विभिन्न अंगों की स्थिति के बारे में बताता है. विजुअल इंफॉरमेशन का अर्थ निकालता है और भाषा तथा गणित में हमारी मदद करता है.
टेम्पोरल लोब : यह हिस्सा भाषा के लिए जिम्मेवार होता है, साथ ही भावनाओं और सेक्सुएलिटी का नियंत्रण करता है.
फ्रंटल लोब यानी सामने का हिस्सा एक्जीक्यूटिव यानी क्रियाओं को अंजाम देने की भूमिका निभाता है और यह हमारे निर्णयों, समझ, स्व की चेतना, दूसरों के प्रति संवेदनशीलता और भावावेग पर नियंत्रण करता है. यह हिस्सा सबसे सामने होता है.
क्या हैं उपाय
किशोरों का सकारात्मक रहना बेहद जरूरी है. किशोरों के दिमाग को सच्ची कहानियों, सच्ची घटनाओं से भरे जाने की जरूरत होती है. यह भी बेहद आवश्यक है कि वे गलत चीजों के परिणाम के बारे में जानें. इसके लिए किशोरों के साथ ही उनके अभिभावकों और शिक्षकों को भी लगातार प्रयासरत रहना चाहिए.
सफलता के लिए जरूरी है कि किशोर अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखें. अभिभावकों और शिक्षकों के लिए यह भी जरूरी है कि किशोरों को बार-बार उनके टास्क के बारे में याद दिलाते रहें.
इस उम्र में एकाग्रता, अनुशासन, सबक पूरा करने की इच्छा में कमी होती है. इसलिए किशोरों को हमेशा एक समय में एक ही काम करना चाहिए. टीनएजर्स मल्टी टास्किंग करने में समर्थ नहीं होते हैं. ऐसा करना सिर्फ उन्हें कंफ्यूज करेगा या काम करने की इच्छा को मारेगा.
किशोरों के लिए बेहद जरूरी है कि वे अच्छी और भरपूर नींद लें. इससे याददाश्त मजबूत होती है.
किशोरों और अभिभावकों के बीच संवाद बेहद जरूरी है. अभिभावकों के लिए जरूरी है कि किशोर बच्चों पर निगरानी रखें, लेकिन सख्ती न बरतें. दोस्त बन कर संवाद कीजिए. उनसे जुड़े हुए रहिए. टीनएज के फैसले गलत हो सकते हैं और टीन्स उसके खतरे के संकेत को भांप पाने में पूरी तरह काबिल नहीं होते हैं, इसलिए अपने बड़ों से कुछ न छिपायें, उनकी सलाह लें.