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मिलिए इस नये ‘मानव’ से भारत का पहला थ्री-डी प्रिंटेड ह्यूमनॉयड रोबोट

भारत में रोबोट का विकास दुनिया में रोबोट की परिकल्पना ईसा पूर्व की गयी थी. क्रमिक रूप से इसका विकास भी हुआ. देश में रोबोट 1970 में ही आ गये थे. लेकिन, इस इंडस्ट्री में तेजी पिछले दशक में ही आ पायी. भारत में सबसे पहला ह्यूमेनॉयड रोबोट बीट्स पिलानी के पांच विद्यार्थियों (समय कोहली, […]

भारत में रोबोट का विकास
दुनिया में रोबोट की परिकल्पना ईसा पूर्व की गयी थी. क्रमिक रूप से इसका विकास भी हुआ. देश में रोबोट 1970 में ही आ गये थे. लेकिन, इस इंडस्ट्री में तेजी पिछले दशक में ही आ पायी.
भारत में सबसे पहला ह्यूमेनॉयड रोबोट बीट्स पिलानी के पांच विद्यार्थियों (समय कोहली, अर्पित मोहन, हर्ष सिन्हा, प्रयाग मुखर्जी और सुषमा) ने 2008 में किया था. इस रोबोट का नाम एक्यूट-1 दिया था. (इसमें थ्रीडी प्रिंटिंग तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया गया था.) इसके विकास में लगभग 12 लाख रुपये खर्च हुये थे. इसका प्रदर्शन सेंट फ्रांसिस्को में आयोजित रोबोगेम्स में किया गया था. 30-32 देशों ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया था. इस रोबोट ने प्रतियोगिता में छठवां स्थान प्राप्त किया था. एक्यूट-2 का प्रदर्शन गोवा में तीन दिनों तक चले टेक-फेस्ट में किया गया था.
इसके बाद भारत में ह्यूमेनॉयड रोबोटिक्स के क्षेत्र में बड़ी क्रांति आयी. भारत यूनिवर्सिटी के 12 छात्रों की टीम ने एनिमल की तरह का रोबोट बना कर सिंगापुर में हुए एक प्रतियोगिता में इनोवेशन के लिए अवॉर्ड जीता था.
थ्री डी प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी
हाल के दिनों में थ्री डी प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी और इसके उपयोग पर दुनियाभर में खूब चर्चा हो रही है. माना जा रहा है, कि आनेवाले समय में यह तकनीक विश्व के मौजूदा स्वरूप में बड़ा बदलाव लाने में समर्थ होगी. दरअसल, इस नयी प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी की मदद से थ्री-डाइमेंसनल वस्तुओं को बनाना संभव हो सकेगा. किसी भी सामान, जैसे एक कप, मोबाइल या लैपटॉप आदि, के चित्र से उसका वास्तविक स्वरूप भिन्न होता है. चित्र से किसी भी वस्तु की गहराई का पता लगाना संभव नहीं है.
3-डी प्रिंटर में प्लास्टिक, मेटल, नाइलॉन, इपॉक्सी रेसिन्स, सिल्वर, टाइटेनियम, स्टील, वॉक्स, फोटो पॉलिमर्स और विशेष प्रकार के शीशे का प्रयोग होता है. इन तत्वों की मदद से यह बताये गये ऑब्जेक्ट के सभी सतहों के साथ उत्पादन करता है. इसका मतलब है कि अगर आप इसकी मदद से किसी कप, मोबाइल या लैपटॉप को बना रहे हैं, तो यह बिल्कुल वैसा ही दिखेगा. इस तकनीक पर लंबे समय से काम चल रहा था. हाल के वर्षो में इसके विकास में बड़ी बढ़त हासिल हुई है. इस तकनीक के जरिये वस्तुओं के निर्माण में कुछ लोग लिक्विड का भी प्रयोग करते हैं. वस्तुत: यह इस बात पर निर्भर करता है कि इसमें किस प्रिंटर को यूज किया जा रहा है. मुख्य तौर पर इसके लिए तीन प्रकार के तकनीक का प्रयोग किया जाता है- सेलेक्टिव लेजर सिंटरिंग, फ्यूज्ड डिपोजिशन मॉडलिंग और एसएलए.
प्रमुख उपयोग : इस तकनीक का उपयोग कई कामों के लिए किया जाने लगा है. कई नये क्षेत्रों में इसकी उपयोगिता की संभावनाओं की तलाश की जा रही है. मानव शरीरों के अंग बनाये जाने में इस तकनीक का उपयोग पहले ही शुरू हो चुका है. इससे आनेवाले समय में एक नयी क्रांति की संभावना है. इसकी मदद से कार का निर्माण भी किया जा रहा है. आर्किटेक्चर के क्षेत्र में बड़ी क्रांति का सूत्रपात इस तकनीक की वजह हो सका है. कई नये तरह के कॉस्टय़ूम, ड्रोन और कई तरह के आधुनिक खिलौने भी इसकी मदद से बनाये जा रहे हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि आनेवाले समय में थ्री डी प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी वरदान साबित होगी और कई ऐसी चीजों का निर्माण सुगम हो जायेगा, जो अभी बेहद मुश्किल है.
विभिन्न प्रकार के रोबोट का हाल के वर्षो में दुनिया भर में तेजी से विकास हुआ है. इनमें ह्यूमनॉयड रोबोट भी शामिल है, जो न सिर्फ देखने में इंसानों जैसा है, बल्कि उसके कार्य भी इंसानों जैसे होते हैं. अब भारत में थ्री डी प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी के माध्यम से पहले ह्यूमनॉयड रोबोट का निर्माण हुआ है. जानें इसके बारे में विस्तार से.
ह्यूमनॉयड रोबोट का भविष्य में संभावित इस्तेमाल
भारत के पहले थ्री-डी प्रिंटेड ह्यूमनॉयड रोबोट ‘मानव’ के निर्माण ने भविष्य में ह्यूमेनॉयड रोबोट के तेजी से विकास का मार्ग प्रशस्त कर दिया है. उम्मीद की जा रही है, कि 2050 आते-आते इंसानों को रुटीन के कई कामों से छुट्टी मिल जायेगी और ह्यूमेनॉयड रोबोट उनके कई काम स्वत: करने लगेंगे. इसके ऑटोमेशन के फीचर्स कई गुना तक बढ़ जायेंगे और तब यह कमांड के बिना भी परिस्थितियों के आधार पर फैसले लेने लगेंगे.
हमारा शरीर हर तरीके से लचीला होता है, जिससे हम कई ऐसे काम भी कर पाते हैं, जो मशीन नहीं कर सकते. अब उम्मीद की जा रही है कि आनेवाले समय में रोबोट भी काफी लचीले होंगे. स्वरूप और आकार में भी वे इंसानों के और करीब आयेंगे.
थ्रीडी प्रिंटिंग के जरिये ह्यूमेनॉयड रोबोट का निर्माण शुरू होने से इसकी रिपेयरिंग भी आसान हो जायेगी. उम्मीद की जा रही है कि आनेवाले समय में रोबोट इमोशन का अनुभव भी कर पाने में सक्षम होंगे. लोगों के पास एक अच्छे मित्र के रूप में एक रोबोट होगा. इसकी मदद इंसान किसी भी समय और किसी भी परिस्थिति में ले सकेगा.
कई नये ह्यूमेनरॉयड रोबोट को नियंत्रित करने के लिए इंसानों की जरूरत नहीं होती है. इसलिए कंट्रोल कोई चुनौती नहीं है. आनेवाले कुछ दशक में हमारे शरीर के भीतर नैनो-रोबोट लगे होंगे. इससे हमारी जैविक प्रक्रियाएं और सेंसर ज्यादा प्रभावी तरीके से काम करेंगे. इससे हम ज्यादा लंबे समय तक और बेहतर तरीके से अपना जीवन जी सकेंगे.माना जा रहा है कि यह तो बस शुरुआत है. भविष्य में रोबोटिक्स के विकास के कई नये रास्ते खुलेंगे.
अंकित कुमार
दिल्ली : रोबोट की दुनिया हमेशा से इंसानों की रिझाती रही है. यही कारण है कि हॉलीवुड की कई फिल्मों में रोबोट को दिखाया जाता रहा है. भारत में भी रोबोट को शामिल करते हुए कई फिल्में बन चुकी हैं, जिनमें से एक फिल्म का तो नाम ही रोबोट है. रोबोट के अनेक प्रकार हैं. ह्यूमनॉयड रोबोट उन्हीं में से एक है. आइआइटी, बांबे में हाल ही में संपन्न टेक फेस्ट 2015 में 3डी-प्रिंटेड ह्यूमनॉयड रोबोट से लोगों का परिचय हुआ. यह भारत का पहला थ्री-डी प्रिंटेड ह्यूमनॉयड रोबोट है, जिसे ‘मानव’ नाम दिया गया है.
ह्यूमनॉयड रोबोट का अभिप्राय वैसे रोबोट से है, जो दिखने में इंसानों की तरह हो. ‘मानव’ का कद दो फीट है, जबकि इसका वजन करीब दो किलो है. देखने में यह साधारण खिलौने जैसा है, लेकिन वास्तव में यह खिलौना नहीं है. इसमें 21 सेंसर लगे हैं, दोनों आंखों में कैमरे लगे हैं. सिर में दो माइक लगे हैं.
यह रोबोट अन्य ह्यूमेनॉयड रोबोट से कई मामलों में अलग है. ‘मानव’ की सबसे बड़ी विशेषता है, कि यह बिना प्री-प्रोग्राम्ड सेंसर के काम करता है. इन-बिल्ट रूप से यह चीजों को देख और सुन सकता है. इसके लिए इसको किसी तरह के कमांड देने की जरूरत नहीं है. यह रोबोट खुद ही कई कामों को करने में सक्षम है. यह अपना सिर और गर्दन हिला सकता है. इसकी मदद से यह चल सकता है, नाच सकता है और बात कर सकता है. यह रोबोट अपने हाथों को ऊपर उठा सकता है, पुश अप मार सकता है. हमारी तरह फुटबॉल खेल सकता है. यह हमारे दिशा-निर्देशों का पालन करता है. इसके कानों में दो हेडफोन भी लगे हैं.
भारत में इससे पहले किसी भी रोबोट में इतने सारे फीचर नहीं थे. इस रोबोट का विकास थ्री-डी प्रिंटेड प्लास्टिक से किया गया है. इसका विकास किया है दिवाकर वैश ने. ‘मानव’ के विकास में दिवाकर को दो महीने लगे. रोबोट के विकास में डिजाइनिंग, फेब्रिकेटिंग, प्रोग्रामिंग और टेस्टिंग की प्रक्रिया शामिल थी. इसे वाइ-फाइ और ब्लूटूथ से भी कनेक्ट किया जा सकता है. यह लिथियम बैटरी से चलता है. एक बार चार्ज करने पर बैटरी एक घंटा काम करता है. इसके सभी पार्ट्स भी भारत में बने हुए हैं. इसलिए इसकी कीमत 1.52 लाख से 2.5 लाख रुपये के बीच है. ग्राहक अपनी पसंद के अनुसार इसे कस्टमाइज कर सकते हैं.
निर्माण का उद्देश्य
माना जा रहा है कि थ्री-डी प्रिंटेड ह्यूमनॉयड रोबोट ‘मानव’ के विकास से रोबोट शोध के क्षेत्र में नयी संभावनाएं पैदा होंगी. फिलहाल मुख्य तौर पर रिसर्च के लिए यह रोबोट देश के प्रमुख इंजीनियरिंग कॉलेजों, जैसे आइआइटी, एनआइटी और बीआइटी, में उपलब्ध कराया जायेगा.
इसके विकास का प्रमुख उद्देश्य विज्ञान के क्षेत्र में हो रहे शोध कार्य को आगे बढ़ाना है. शोधकर्ता इसकी मदद से इंसानों के शारीरिक ढांचे और स्वभाव को समझने की कोशिश कर सकते हैं. एक सॉफ्टवेयर और कंट्रोल सिस्टम से ह्यूमेनॉयड रोबोट वे काम कर सकते हैं, जो एक इंसान कर सकता है. मनोरंजन करने में भी ये लोकप्रिय हो रहे हैं.
अंतर औद्योगिक और ह्यूमनॉयड रोबोट में
मुख्य तौर पर इन दोनों रोबोट के टाइप में अंतर इनकी बनावट और कार्यो को लेकर है. औद्योगिक रोबोट जहां कई सर्विस के लिए यूज होते हैं, वहीं ह्यूमेनॉयड रोबोट का मुख्य उपयोग शोध कार्यो के लिए किया जाता है.
इंडस्ट्रियल रोबोट से वेल्डिंग, पेंटिंग, आइरनिंग, असेंबली जैसे कार्य किये जाते हैं. औद्योगिक रोबोट के उलट ह्यूमेनॉयड रोबोट इंसानों की तरह चलता है. यह लेग्ड लोकोमोशन की मदद से चलता है. ऐसा कंट्रोल की वजह से होता है.
इनके बाजार में भी व्यापक अंतर है. औद्योगिक रोबोट की मांग बहुत ज्यादा है, जिसकी वजह है उसका काम. दूसरी तरफ ह्यूमेनॉयड रोबोट की मांग अभी काफी कम है. दोनों के मूल्यों में भी खास अंतर नजर नहीं आता, क्योंकि मूल्यों का निर्धारण कई फीचर पर निर्भर करता है.
भारत में रोबोट का विकास
दुनिया में रोबोट की परिकल्पना ईसा पूर्व की गयी थी. क्रमिक रूप से इसका विकास भी हुआ. देश में रोबोट 1970 में ही आ गये थे. लेकिन, इस इंडस्ट्री में तेजी पिछले दशक में ही आ पायी.
भारत में सबसे पहला ह्यूमेनॉयड रोबोट बीट्स पिलानी के पांच विद्यार्थियों (समय कोहली, अर्पित मोहन, हर्ष सिन्हा, प्रयाग मुखर्जी और सुषमा) ने 2008 में किया था. इस रोबोट का नाम एक्यूट-1 दिया था. (इसमें थ्रीडी प्रिंटिंग तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया गया था.) इसके विकास में लगभग 12 लाख रुपये खर्च हुये थे. इसका प्रदर्शन सेंट फ्रांसिस्को में आयोजित रोबोगेम्स में किया गया था. 30-32 देशों ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया था. इस रोबोट ने प्रतियोगिता में छठवां स्थान प्राप्त किया था. एक्यूट-2 का प्रदर्शन गोवा में तीन दिनों तक चले टेक-फेस्ट में किया गया था.
इसके बाद भारत में ह्यूमेनॉयड रोबोटिक्स के क्षेत्र में बड़ी क्रांति आयी. भारत यूनिवर्सिटी के 12 छात्रों की टीम ने एनिमल की तरह का रोबोट बना कर सिंगापुर में हुए एक प्रतियोगिता में इनोवेशन के लिए अवॉर्ड जीता था.
थ्री डी प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी
हाल के दिनों में थ्री डी प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी और इसके उपयोग पर दुनियाभर में खूब चर्चा हो रही है. माना जा रहा है, कि आनेवाले समय में यह तकनीक विश्व के मौजूदा स्वरूप में बड़ा बदलाव लाने में समर्थ होगी. दरअसल, इस नयी प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी की मदद से थ्री-डाइमेंसनल वस्तुओं को बनाना संभव हो सकेगा. किसी भी सामान, जैसे एक कप, मोबाइल या लैपटॉप आदि, के चित्र से उसका वास्तविक स्वरूप भिन्न होता है. चित्र से किसी भी वस्तु की गहराई का पता लगाना संभव नहीं है.
3-डी प्रिंटर में प्लास्टिक, मेटल, नाइलॉन, इपॉक्सी रेसिन्स, सिल्वर, टाइटेनियम, स्टील, वॉक्स, फोटो पॉलिमर्स और विशेष प्रकार के शीशे का प्रयोग होता है. इन तत्वों की मदद से यह बताये गये ऑब्जेक्ट के सभी सतहों के साथ उत्पादन करता है. इसका मतलब है कि अगर आप इसकी मदद से किसी कप, मोबाइल या लैपटॉप को बना रहे हैं, तो यह बिल्कुल वैसा ही दिखेगा. इस तकनीक पर लंबे समय से काम चल रहा था. हाल के वर्षो में इसके विकास में बड़ी बढ़त हासिल हुई है. इस तकनीक के जरिये वस्तुओं के निर्माण में कुछ लोग लिक्विड का भी प्रयोग करते हैं. वस्तुत: यह इस बात पर निर्भर करता है कि इसमें किस प्रिंटर को यूज किया जा रहा है. मुख्य तौर पर इसके लिए तीन प्रकार के तकनीक का प्रयोग किया जाता है- सेलेक्टिव लेजर सिंटरिंग, फ्यूज्ड डिपोजिशन मॉडलिंग और एसएलए.
प्रमुख उपयोग : इस तकनीक का उपयोग कई कामों के लिए किया जाने लगा है. कई नये क्षेत्रों में इसकी उपयोगिता की संभावनाओं की तलाश की जा रही है. मानव शरीरों के अंग बनाये जाने में इस तकनीक का उपयोग पहले ही शुरू हो चुका है. इससे आनेवाले समय में एक नयी क्रांति की संभावना है. इसकी मदद से कार का निर्माण भी किया जा रहा है. आर्किटेक्चर के क्षेत्र में बड़ी क्रांति का सूत्रपात इस तकनीक की वजह हो सका है. कई नये तरह के कॉस्टय़ूम, ड्रोन और कई तरह के आधुनिक खिलौने भी इसकी मदद से बनाये जा रहे हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि आनेवाले समय में थ्री डी प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी वरदान साबित होगी और कई ऐसी चीजों का निर्माण सुगम हो जायेगा, जो अभी बेहद मुश्किल है.
ह्यूमनॉयड रोबोट के अंगों को जानें
ह्यूमेनॉयड रोबोट की कार्यप्रणाली एक बेहद जटिल प्रक्रिया होती है. इसका कारण है कि हमारे शरीर की बनावट और कार्य प्रणाली भी आसान नहीं है. हर अंग और इंद्रियां एक निर्धारित कार्य करती हैं, वैसे ही ह्यूमेनॉयड रोबोट के पार्ट्स भी अपना निश्चित काम करते हैं. आइये जानते हैं ह्यूमनॉयड रोबो डिवाइस के कुछ पार्ट्स के बारे में.
सेंसर : यह एक ऐसा डिवाइस होता है, जो कुछ चीजों को महसूस कर सकता है. सेंसर से रोबोट जगत में विकास की नयी संभावनाओं को बल दिया है. जिसका परिणाम आज हमारे सामने है. काम के अनुसार सेंसर का वर्गीकरण किया जाता है.
प्रोप्रियोसेप्टिव सेंसर : यह इंसानों के शरीर की अवस्था, ऑरियेंटेशन और गति को समझता है. हम इंसानों में यह काम हमारे ऑथोलिथ्स और सेमी-सकरुलर केनाल (भीतरी कान) करते हैं. ह्यूमेनरॉयड रोबोट वेग को मापने के लिए एक्सेलेरोमीटर का यूज करते हैं.
टिल्ट सेंसर : इसका उपयोग झुकाव को मापने के लिए किया जाता है.
फोर्स सेंसर : फोर्स सेंसर को रोबोट के हाथों और पैरों में लगाया जाता है, जिसका उपयोग रोबोट बल लगाने और अवस्था में बदलाव लाने के लिए करते हैं. इन तीनों सेंसरों का आपसी समन्वय बहुत जरूरी है.
एक्सट्रोसेप्टिव सेंसर : यह सेंसर रोबोट को किसी भी चीज को छूने में मदद करता है. यह पोल्यूरिथेन स्किन के मदद से ऐसा कर पाता है.
एक्चुयेटर्स : यह एक प्रकार का मोटर होता है. जिससे रोबोट की गति नियंत्रित होती है. यह मसल्स और ज्वाइंट्स को भी सक्रिय रखता है.
प्लानिंग एवं कंट्रोल : प्लानिंग करते समय इस बात का ख्याल रखा जाता है, कि इसको चलाने में कम-से-कम ऊर्जा की खपत हो.
दूसरी तरफ चलते वक्त डायनामिक बैलेंस को कंट्रोल करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है. इसके लिए जीरो मोमेंट प्वाइंट (जेडएमपी) का ख्याल का उपयोग किया जाता है. चूंकि ह्यूमेनॉयड रोबोट का काम वास्तविक दुनिया के बारे में जानकारी एकत्र करना होता है. इसलिए इसका विकास करते वक्त डिग्री ऑफ फ्रीडम का ख्याल भी रखा जाता है.
ह्यूमनॉयड रोबोट के विकास की चुनौतियां
जिस गति से रोबोट, खासकर ह्यूमेनॉयड रोबोट, का विकास हो रहा है, उसे लेकर कई तरह के कयास लगाये जा रहे हैं. साथ ही इससे जुड़ी कई चुनौतियां भी उत्पन्न हो गयी हैं.
मैकेनिकल और इंजीनियरिंग से जुड़ी चुनौतियां : रोबोट में सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर कितने समय तक अलग-अलग अस्तित्व के साथ काम करते रहेंगे, यह बहस का विषय है. कॉगनिटिव साइंस के सिद्धांत के अनुसार इंसानी शरीर और मस्तिष्क आपस में जुड़े हुए हैं. उसी प्रकार कई मायनों में यह उम्मीद की जा रही है कि भविष्य में मशीन के कई हार्डवेयर भी सॉफ्टवेयर की तरह काम कर पाने में सक्षम होंगे. लेकिन ह्यूमेनॉयड रोबोट के पार्ट्स का अध्ययन करने पर पता चलता है कि इसके हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर में फिलहाल इस प्रकार का कोई लिंक नहीं है. दोनों अपने-अपने काम करते हैं. ऐसे में जानकारों का कहना है कि इस विषय पर शोध होने चाहिए, जिससे इस तरह की चुनौतियों पार पाया जा सके.
इंसानों की तरह सोचनेवाला सेंसर : इंसानों के सेंसर संबंधी कार्यो से सभी परिचित हैं. इंसान परिस्थितितयों के मुताबिक सोच कर फैसले लेता है. रोबोट में उसी स्तर के सेंसर का विकास एक चुनौती है. वैसे सेंसर जो इंसानों की तरह विजन रखते हों, पूर्वानुमान लगा सके और अनुभव कर सकें, का निर्माण फिलहाल आसान नहीं लग रहा.
लागत : इस प्रकार के रोबोट तभी लोकप्रिय हो सकेंगे, जब वे लोगों के बजट में होंगे. यह बहुत बड़ी चुनौती है कि रोबोट को न्यूनतम खर्च में विकसित किया जाये. इससे इसका प्रसार बढ़ेगा और शोध कार्यो को बल मिलेगा.

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