Loading election data...

मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की घोषणाओं पर एक्सपर्ट की राय

डॉ रामभरत ठाकुर अध्यक्ष, पीजी अर्थशास्त्र विभाग, एलएनएमयू, दरभंगा मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की ओर से जो घोषणाएं की जा रही हैं, वो केवल राजनीतिक हैं. राज्य की आर्थिक व्यवस्था में ये धरातल पर नहीं टिकती हैं. हम इसको इस तरह कहेंगे, जैसे जब कोई सिपाही हारने लगता है, तो वह वापस जाते समय रास्ते की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 16, 2015 9:06 AM
an image
डॉ रामभरत ठाकुर
अध्यक्ष, पीजी अर्थशास्त्र विभाग, एलएनएमयू, दरभंगा
मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की ओर से जो घोषणाएं की जा रही हैं, वो केवल राजनीतिक हैं. राज्य की आर्थिक व्यवस्था में ये धरातल पर नहीं टिकती हैं. हम इसको इस तरह कहेंगे, जैसे जब कोई सिपाही हारने लगता है, तो वह वापस जाते समय रास्ते की उन सभी चीजों को नष्ट करता चला जाता है.
जिससे उसका प्रतिद्वन्द्वी तंग-तबाह हो जाये. अभी जो घोषणाएं हो रही हैं, वो आनेवाली सरकार के राह में कांटे के समान होंगी. हम तो ये कहते हैं, ये चुनावी साल है. सरकार को पहले से मालूम था. ऐसे में अभी क्यों घोषणाएं की जा रही हैं. पहले भी की जा सकती थीं. ऐसा तो नहीं किया गया? हमें लगता है कि सरकार के भविष्य पर खतरा है, इसलिए ऐसा किया जा रहा है, क्योंकि सरकार की मौजूदा जो हालत हैं, उसमें उसका समर्थन कम ही दिख रहा हैं, क्योंकि अभी तक भाजपा ने भी साथ देने की घोषणा नहीं की है. अर्थशा का व्यक्ति होने के नाते मैं ये कहूंगा, जो घोषणाएं हाल में मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने की हैं.
वो लोगों के लिए जरूरी थीं. इससे लाखों लोगों को फायदा होगा. अगर लोगों का वेतन बढ़ेगा, तो उनकी क्रय शक्ति बढ़ेगी. इससे बाजार में चीजों की मांग बढ़ेगी. मांग बढ़ेगी, तो प्रदेश का ग्रोथ बढ़ेगा, लेकिन सवाल ये है कि घोषणाओं के अमल में आनेवाला हजारों करोड़ रुपये कहा से आयेगा? अगर घोषणाओं को लागू करना है, तो उनको बजट में शामिल करना होगा. इसके लिए अलग से प्रावधान करना होगा. अब बजट सामने है. बजट में इतना पैसा कहां से आयेगा. अगर हम कर से होनेवाले संग्रह की बात करें, तो प्रदेश सरकार अभी तो भी सीमित आय के साधन हैं, उनमें कर नहीं बढ़ा सकती हैं, क्योंकि चुनावी साल है. अगर लोगों पर भार बढ़ेगा, तो इसका नकारात्मक असर पड़ेगा.
वैसे भी कर वसूली का ज्यादातर पैसा तो केंद्र सरकार के पास जाता है. अगर घोषणाओं को लागू किया जाता है, तो इसके लिए एक ही रास्ता है, सरकार इस पर आनेवाले खर्च को केंद्र सरकार या किसी अन्य वित्तीय संस्थान से उधार ले, जो राज्य के बजट घाटे को और बढ़ायेगा. अभी प्रदेश के सरकार इतने कर्ज में है, जिसमें हर पैदा होनेवाले बच्चे पर चार हजार का कर्ज होता है. अगर इन घोषणाओं को लागू किया जायेगा, तो ये कर्ज और बढ़ जायेगा. एक बात और, जो घोषणाएं की गयी हैं. इनमें आनेवाला खर्च अर्थशास्‍त्र के हिसाब से नन प्रोडक्टिव है.
क्योंकि कोई उद्योग तो लग नहीं रहा है, जिससे प्रदेश सरकार को फायदा मिलेगा. इसमें तो व्यक्तियों व संस्थानों को विकसित करने में पैसा लगेगा, जिससे सीधे तौर पर सरकार को लाभ मिलने वाला नहीं है. वो जो खर्च करेगी, वो वापस नहीं मिलेगा. हम कह सकते हैं, अगर इन घोषणाओं पर अमल होता है, तो प्रदेश की अर्थ व्यवस्था प्रभावित होगी.
घोषणाएं सोची-समझी नहीं हैं
प्रो. राजलक्ष्मी
प्रोफेसर, अर्थशास्त्र, पटना विश्वविद्यालय
मौ जूदा सरकार की हाल में की गई बेतरतीब घोषणाएं ‘वेल थॉउट’ (अच्छी तरह सोची-समझी) घोषणाएं नहीं हैं. इससे राज्य में आर्थिक असंतुलन उत्पन्न हो सकता है. बजट असंतुलित होगा. आम जनता इन घोषणाओं का भले ही स्वागत करे, लेकिन बिना रिसोर्स के बारे में समुचित तरीके से विचार किये इन घोषणाओं से वित्तीय प्रबंधन गड़बड़ा सकता है. हालांकि सरकार चाहे, तो इसके लिए पैसे का प्रबंध कर सकती है.
यह बहुत मुश्किल नहीं होगा, लेकिन इसकी व्यवस्था पहले करना जरूरी है. अगर इन घोषणाओं को लागू कर दिया जाता है, तो विधान मंडल में सरकार घाटे का बजट पेश करेगी. वह भी काफी बड़ा घाटे का बजट, क्योंकि योजना आकार को एक निश्चित रूप में बनाये रखना भी जरूरी है.
अगर योजना आकार बहुत छोटा हो गया, तो राज्य में तमाम विकासात्मक कार्यो की रफ्तार ठहर जायेगी. इससे राज्य का विकास नहीं हो पायेगा. बजट का बड़ा हिस्सा सिर्फ पेंशन और सैलरी में ही चला जायेगा, जो नॉन-प्लान बजट का हिस्सा होता है. बजट को संतुलित बनाने के लिए प्लान और नॉन-प्लान में संतुलन बनाना बेहद जरूरी होता है. घाटे का बजट पेश होने से हर साल यह लगातार बढ़ता ही जायेगा. हालांकि वित्तीय प्रबंधन के अच्छे रास्ते अपनाये जायें, तो इसे खत्म किया जा सकता है.
सरकार अपनी इन घोषणाओं को अमलीजामा पहनाने के लिए अपने आय के संसाधनों को बढ़ा सकती है. इसके कई रास्ते हैं, लेकिन इसे घोषणाओं के साथ-साथ मुस्तैदी से अपनाने की जरूरत भी है. वाणिज्य कर, रजिस्ट्री समेत अन्य तरह के कर को बढ़ाया जा सकता है. एक बड़ा रास्ता केंद्र सरकार से मिलने वाले टैक्स के शेयर को बढ़ाने के लिए केंद्र से कहा जा सकता है. केंद्र से अतिरिक्त सहायता भी ली जा सकती है. इन रास्तों के सहारे ही इन घोषणाओं को जमीन पर उतारा जा सकता है और राज्य के विकास की रफ्तार भी बरकरार रखी जा सकती है.
-राजलक्ष्मी,
Exit mobile version