अमृतसर के एक बुजुर्ग की प्रेरणादायी कहानी : …ताकि कोई जाम में न फंसे
अमूमन घर से निकलते ही जो चीज आपको सबसे पहले परेशान करती है वह है ट्रैफिक जाम. सड़क पर बेतरतीब ढंग से चलती गाड़ियों और जहां-तहां खड़े वाहनों से सुगम यातायात बाधित होता है. इसमें सरकारी बदइंतजामी के साथ हमारी लापरवाही की भी भूमिका होती है. आखिर कुछ जिम्मेदारी हमारी भी बनती है! आइए जानें […]
अमूमन घर से निकलते ही जो चीज आपको सबसे पहले परेशान करती है वह है ट्रैफिक जाम. सड़क पर बेतरतीब ढंग से चलती गाड़ियों और जहां-तहां खड़े वाहनों से सुगम यातायात बाधित होता है. इसमें सरकारी बदइंतजामी के साथ हमारी लापरवाही की भी भूमिका होती है. आखिर कुछ जिम्मेदारी हमारी भी बनती है! आइए जानें अमृतसर के एक ऐसे शख्स के बारे में जिन्होंने 65 साल की उम्र में ट्रैफिक सुधारने का बीड़ा उठा लिया है.
शहरों में इनसानी आबादी के साथ गाड़ियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है. जमीन पर जगह तो सीमित है, लेकिन लोगों की जरूरतें थमने का नाम नहीं लेतीं. नतीजा है, अव्यवस्था. यह अव्यवस्था हर जगह है. सड़कों पर तो यह साफ तौर पर नजर आ जाती है. मनचाही जगह पार्किग और बेतरतीब गाड़ी चलाने की लोगों की आदत इस अव्यवस्था को और बढ़ाती है. लेकिन एक शख्स ने खुद को इस समस्या का हिस्सा बनाने की जगह, समाधान बनने का फैसला किया है. अमृतसर के एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ नागरिक, हरजिंदर सिंह जब सड़कों पर खुद खड़े होकर आते-जाते वाहनों को ‘सही राह’ बताते हैं, तो यह एहसास होता है कि आम जनता भी अगर चाहे तो क्या नहीं कर सकती.
अगस्त 2009 में पुलिस विभाग में सब-इंस्पेक्टर के पद से सेवानिवृत्त हरजिंदर सिंह की उम्र लगभग 65 वर्ष है. अमृतसर में रहनेवाला लगभग हर व्यक्ति उन्हें स्वयंसेवक ट्रैफिक मार्शल के रूप में जानता है. सर्दी, गर्मी हो या बरसात, हर मौसम में इन्हें किसी सड़क या चौक-चौराहे पर ट्रैफिक व्यवस्था सुधारते देखा जा सकता है. यह काम वह लगभग पांच साल से कर रहे हैं, वह भी नि:शुल्क. वह हर दिन पूरी तैयारी के साथ सड़कों पर निकलते हैं और जहां कहीं अव्यवस्था या भीड़भाड़ देखते हैं, वहीं रुक कर चालकों को भीड़ के बीच से उनकी गाड़ियां निकालने में मदद करते हैं.
यही नहीं, बीच-बीच में वे चालकों को यातायात के नियमों का पालन करने की नसीहत भी देते हैं. आम तौर पर लोग इस उम्र में सेवानिवृत्त होने के बाद अपनी जिंदगी का बचा समय घर-परिवार के साथ फुरसत और आराम के साथ जीने में बिताते हैं, लेकिन हरजिंदर को यह सब करने की क्या जरूरत पड़ी? इसके जवाब में वह बताते हैं, मैंने टीवी पर देखा है कि विदेशों में आम नागरिक किस तरह ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारने के लिए ट्रैफिक मार्शल की भूमिका निभाते हैं. इसी से मेरे मन में भी ख्याल आया कि रिटायरमेंट के बाद मैं भी ऐसा काम कर सकता हूं.
हरजिंदर कहते हैं, ट्रैफिक की अव्यवस्था देश के हर शहर की समस्या है और इसे नियंत्रित करना अकेले सरकार के बस की बात नहीं. ऐसे में ज्यादा से ज्यादा आम लोगों को आगे आ कर अपने शहर की ट्रैफिक को सुचारु बनाने में मदद करनी चाहिए. इसके अलावा, हमें स्कूली बच्चों को भी सही तरीके से और नियम-कानून को ध्यान में रखते हुए गाड़ी चलाने की सलाह देनी चाहिए, क्योंकि इस उम्र में उनमें तेज गाड़ी चलाने और स्टंट करने की दीवानगी रहती है. हरमिंदर कहते हैं, ‘‘अपने इस प्रयास के जरिये लोगों की राह सुगम बना कर और किसी अवांछित दुर्घटना से उन्हें बचा कर मुङो सुकून मिलता है.’’
पांच सालों से हर रोज वह अपनी मोटरसाइकिल से अमृतसर की सड़कों पर निकलते हैं. रास्ते में जहां भीड़भाड़ या ट्रैफिक रुका हुआ पाया, वहीं अपनी गाड़ी रोक कर लोगों को सही राह बताने में जुट जाते हैं. इस काम के लिए उन्हें कोई पैसे तो नहीं मिलते, बल्कि इसके उलट उनकी जेब से पैसे खर्च होते हैं. बस इस काम में उनका फायदा सिर्फ यह है कि उन्हें किसी की मदद करने का सुकून मिलता है.
इसी क्रम में बेंगलुरु ट्रैफिक पुलिस के प्रयास की भी सराहना करनी होगी, जिसने ‘पब्लिक आइ’ नाम का एक सोशल नेटवर्किग प्लैटफॉर्म लांच किया है. आम तौर पर यह देखा जाता है कि भीड़भाड़ वाले इलाकों में सड़कों पर लोग नियम-कानूनों की परवाह नहीं करते और अगर कुछ लोग करते भी हैं तो तभी जब ट्रैफिक पुलिस का कोई जवान आसपास हो. इस समस्या से निजात पाने के लिए ‘पब्लिक आइ’ के नाम से मोबाइल फोन ऐप और वेबसाइट तैयार की गयी है. यह आम लोगों को ट्रैफिक पुलिसवाले का काम करने की ताकत देता है. जब कोई व्यक्ति ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करता है या अपनी गाड़ी गलत जगह पार्क करता है तो कोई भी आम आदमी उसकी तसवीर खींच कर ‘पब्लिक आइ’ के जरिये उसे ट्रैफिक पुलिस के पास भेज सकता है. इसके बाद का काम ट्रैफिक पुलिस करती है.
(इनपुट : द बेटर इंडिया)