यह किताब राज्य को दिशा व ऊर्जा देगी
प्रभात खबर : प्रयोग की कहानी का लोकार्पण, मुख्यमंत्री ने कहा रांची : मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि कोई संस्था हो या इनसान, सबके जीवन में उतार-चढ़ाव होता है. पर सफल वही होता है, जिसमें आत्मविश्वास, आत्मबल व समर्पण हो. इन सबसे जो परिपूर्ण हो, उसे शिखर तक पहुंचना ही है. गत 30 वर्षो […]
प्रभात खबर : प्रयोग की कहानी का लोकार्पण, मुख्यमंत्री ने कहा
रांची : मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि कोई संस्था हो या इनसान, सबके जीवन में उतार-चढ़ाव होता है. पर सफल वही होता है, जिसमें आत्मविश्वास, आत्मबल व समर्पण हो. इन सबसे जो परिपूर्ण हो, उसे शिखर तक पहुंचना ही है. गत 30 वर्षो के उतार-चढ़ाव के बीच प्रभात खबर की सफलता की कहानी भी राज्य को एक दिशा, चेतना व ऊर्जा देगी.
इससे लोगों को एक संदेश भी मिलेगा. मुख्यमंत्री प्रभात खबर के वरिष्ठ संपादक अनुज कुमार सिन्हा द्वारा लिखी पुस्तक प्रभात खबर : प्रयोग की कहानी के लोकार्पण समारोह में बोल रहे थे. समारोह का आयोजन रांची विवि के आर्यभट्ट सभागार, मोरहाबादी में किया गया था. इस पुस्तक को प्रभात प्रकाशन ने प्रकाशित किया है. मौके पर झारखंड गौरव सम्मान के नाम से प्रभात खबर के कॉफी टेबल बुक का विमोचन भी किया गया.
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रभात खबर के यथार्थ का चित्रण करनेवाली यह किताब जीवन मूल्यों का दर्शन भी है. आज हम वैश्वीकरण व उदारीकरण में जी रहे हैं. कई बदलाव हो रहे हैं. पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के आने के बाद भी प्रिंट मीडिया का महत्व बरकरार है.
प्रभात खबर आज जिस स्थान पर है, इसमें हरिवंशजी के कुशल नेतृत्व का बड़ा हाथ है. हरिवंशजी, अनुजजी, विजय पाठकजी तथा इनकी टीम ने यह मुकाम हासिल किया है. हरिवंशजी का नेतृत्व तो है ही, लेकिन जमशेदपुर में अनुजजी ने बहुत मेहनत की है. हमने भी देखा है. बड़ी मेहनत से वहां अखबार स्थापित हुआ है. प्रभात खबर का योगदान झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने से लेकर इसके उत्थान तक में है व रहेगा.
भ्रष्टाचार बड़ी समस्या
मुख्यमंत्री ने कहा कि भ्रष्टाचार को मैं राज्य की सबसे बड़ी समस्या मानता हूं. मैं यह भी विश्वास दिलाता हूं कि भ्रष्टाचार से कोई समझौता नहीं होगा. चाहे कितनी बड़ी भी हस्ती क्यों न हो. मैं विकास व सुशासन पर प्रभात खबर के विचार व इससे जुड़े समाचार पढ़ता हूं. मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि अगले पांच वर्ष राज्य को बेहतर सुशासन दिया जायेगा. हमारी सरकार पारदर्शी व जवाबदेह होगी.
प्रभात खबर की यात्रा का वृतांत है इस पुस्तक में
इससे पहले अतिथियों ने पुस्तक का विमोचन किया. पुस्तक में प्रभात खबर की 30 वर्षो की यात्रा का जिक्र किया गया है. इस पुस्तक में 30 वर्षो के दौरान अखबार के समक्ष आयी विभिन्न चुनौतियों और उससे उबरने का जिक्र किया गया है.
मुख्य वक्ता हिंदुस्तान टाइम्स ग्रुप के चीफ एडिटोरियल कंटेंट ऑफिसर निकोलस डावेस थे. समारोह में राजीव गांधी इंस्टीटय़ूट ऑफ मैनेजमेंट के पहले निदेशक अशोक दत्ता ने भी अपने विचार रखे. उन्होंने शुरुआती दौर में प्रभात खबर के लिए एक अध्ययन रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें उन्होंने इसे बंद करने की सिफारिश की थी. बीआइटी मेसरा के कुलपति मनोज कुमार मिश्र ने भी इस मौके पर विचार रखे. पत्रकार हरिवंश ने प्रभात खबर से जुड़ी बातें बतायीं.
प्रबंध निदेशक केके गोयनका ने प्रभात खबर से जुड़ी पुरानी बातों को याद किया. प्रभात प्रकाशन के डॉ पीयूष कुमार ने भी मौके पर विचार रखे. प्रभात खबर के विज्ञापन हेड विजय बहादुर ने कॉफी टेबल बुक के बारे में जानकारी दी. कार्यक्रम का संचालन पत्रकार विनय भूषण तथा धन्यवाद ज्ञापन स्थानीय संपादक विजय पाठक ने किया.
बड़ी संख्या में गणमान्य लोग थे मौजूद
लोकार्पण समारोह में नगर विकास मंत्री सीपी सिंह, मेयर आशा लकड़ा, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव संजय कुमार, डीजीपी राजीव कुमार, जल संसाधन सचिव सुखदेव सिंह, पर्यटन सचिव अविनाश कुमार, भू-राजस्व सचिव केके सोन, आइपीएस अधिकारी आरके मल्लिक, संपत मीणा, साकेत सिंह, कमल नयन चौबे, सीसीएल के सीएमडी गोपाल सिंह, डिप्टी मेयर संजीव विजय वर्गीय, उपायुक्त मनोज कुमार, महिला आयोग की अध्यक्ष महुआ माजी, सांसद रामटहल चौधरी, रवींद्र राय, विधायक जीतू चरण राम, अनंत ओझा, इरफान अंसारी, प्रदीप यादव, बादल पत्रलेख, रिटायर्ड जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत, अशोक भगत, रांची एक्सप्रेस के संपादक बलबीर दत्त, गणोश रेड्डी, केंद्रीय वस्त्र मंत्रलय के सलाहकार धीरेंद्र कुमार, भाजपा नेता दिनेशानंद गोस्वामी, बाल मुकुंद सहाय, दीपक प्रकाश, गामा सिंह, केके गुप्ता, प्रो शीन अख्तर, डॉ मंजु सिन्हा, डॉ शुक्ला मोहंती, मंजुर अहमद अंसारी, डॉ नीरज प्रसाद, डॉ नेहा तिवारी, डॉ अजय कुमार सिंह, चेंबर अध्यक्ष रतन मोदी, विकास सिंह, संजय सेठ, डॉ बीपी केसरी, गिरधारी राम गोंझू, सदान संघर्ष मोरचा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद, राहुल प्रताप सिंह, प्रवीण सिंह सहित सैकड़ों लोग लोग उपस्थित थे.
मीडिया के लिए तकनीक से बड़ी है विश्वसनीयता
मुख्य वक्ता : हिंदुस्तान टाइम्स ग्रुप के चीफ एडिटोरियल कंटेंट ऑफिसर निकोलस डावेस ने कहा
रांची : हिंदुस्तान टाइम्स ग्रुप के चीफ एडिटोरियल कंटेंट ऑफिसर निकोलस डावेस ने कहा कि तकनीक के इस दौर में मीडिया के लिए विश्वसनीयता हासिल करना बड़ी चुनौती है. प्रभात खबर की सफलता के पीछे लोगों के विश्वास (ट्रस्ट) को प्रमुख कारण बताते हुए उन्होंने कहा : किसी भी मीडिया के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है. इराक युद्ध के दौरान अमेरिकन मीडिया की विश्वसनीयता पर सोशल मीडिया में सवाल खड़े किये गये थे.
खबरों को प्रभावित किया जाता था. वह सोशल मीडिया के शुरुआती दिनों की बात है.
अब सोशल मीडिया ने चीजों को अलग तरीके से सामने रखा है. भारत में भी यह शुरू हो गया है. समय बदल गया है. लोग सोशल मीडिया के जरिये खुद को व्यक्त कर रहे हैं. ऐसे में मीडिया, खास तौर पर प्रिंट मीडिया के पास गलती करने की कोई गुंजाइश नहीं है. मीडिया को यह मालूम करना होगा कि लोग क्या चाहते हैं. इसमें सोशल मीडिया उनकी मदद कर सकता है, क्योंकि इसके जरिये बहुत आसानी से जाना जा सकता है कि लोग किस विषय पर कैसी राय रखते हैं.
पिंट्र मीडिया के भविष्य पर बात करते हुए निकोलस ने कहा कि दुनिया तेजी से बदल रही है. तकनीकी क्रांति का समय है. सोशल साइटों के इस दौर में संचार बहुत तेजी से होता है. हिंदी पत्रकारिता के लिए यह कठिन दौर है. दिल्ली में हरिवंशजी से प्रभात खबर के बारे में सुना-जाना. मालूम हुआ कि कितनी विषम परिस्थितियों में अखबार ने मुकाम हासिल किया. विपरीत परिस्थितियों में प्रभात खबर का विकास वाकई बड़ी बात है. गांव के अंतिम व्यक्ति तक पहुंच कर देश के भविष्य का रास्ता तलाशने की कोशिश करना असली पत्रकारिता है.
डावेस ने कहा कि पारंपरिक मीडिया को यह तलाशना होगा कि गांव में बैठे, तकनीक से दूर रहनेवाले व्यक्ति तक आपकी पहुंच कैसे हो सकती है. अपनी स्टोरी (खबरों) से लोगों को जोड़ना होगा. उनके जीवन में खुद के लिए जगह बनानी होगी. यह फोर जी का जमाना है. तकनीक लोकल मीडिया को काफी प्रभावित करेगी. लोकल मीडिया पर आयी चीजें सोशल मीडिया की वजह से तुरंत राष्ट्रीय, बल्कि वैश्विक फलक पर पहुंच रही हैं. ऐसे में समीक्षा जरूरी है.
प्रो पीपुल अखबार है प्रभात खबर
निकोलस डावेस ने प्रभात खबर को जनोन्मुखी (प्रो-पीपुल), मूल्यों वाला (एथिकल) और जमीनी स्तर (ग्रासरूट) पर काम करनेवाला अखबार बताया. उन्होंने कहा कि अच्छी पत्रकारिता को कैसे सम्मान मिलता है, यह प्रभात खबर की सफलता से मालूम किया जा सकता है. पहली बार झारखंड आये निकोलस ने कहा कि यहां आकर बिल्कुल घर जैसा लग रहा है. ऐसा इसलिए हैं, क्योंकि मैं दक्षिण अफ्रीका से हूं.
झारखंड की तरह खनिज संसाधनों से भरपूर दक्षिण अफ्रीका भी औपनिवेशिक लूट का शिकार रहा. जहां सौ साल के नस्लभेद के बाद लोकतंत्र आया. दक्षिण अफ्रीका की तरह झारखंड की भी अपनी चुनौतियां हैं. 18 महीने पहले मैं दिल्ली आया. वहां झारखंड बहुत हॉट टॉपिक है. वहां झारखंड के कोल ब्लॉक पर बातें होती हैं. इन संसाधनों के जरिये ‘विकास’ की बातें होती हैं. लेकिन झारखंड के लोगों की परेशानियां, दिक्कतों पर बातें नहीं होतीं. झारखंड से बड़ी संख्या में ट्रैफिकिंग होती है. इन मुद्दों पर राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान नहीं होना ठीक नहीं है. यह बड़ी असफलता है.
संघर्ष के दौर से गुजरा है यह अखबार : बलवीर
रांची : वरिष्ठ पत्रकार बलवीर दत्त ने कहा कि प्रभात खबर काफी संघर्ष के दौर से गुजर कर इस मुकाम पर पहुंचा है. झारखंड के लिए यह गर्व की बात है कि प्रभात खबर यहां से प्रकाशित होता है. प्रभात खबर मूलत: झारखंड का अखबार है. प्रभात खबर की संघर्ष की कहानी पत्रकारिता कर रहे विद्यार्थियों के लिए केस स्टडी है. इस अखबार का यहां के जन-जीवन पर व्यापक असर पड़ा है. अखबार के प्रकाशन से कई नये पत्रकार तैयार हुए.
इसके बिना मन नहीं लगता : प्रियदर्शी
रांची : साहित्यकार अशोक प्रियदर्शी ने कहा कि प्रभात खबर सुबह नहीं मिले तो दिन भर मन नहीं लगता. इससे प्रमाणित होता है कि प्रभात खबर लोगों के लिए कितना महत्वपूर्ण है. प्रभात खबर का जब प्रकाशन शुरू हुआ तब चार पन्नों का अखबार निकलता था. प्रबंधन ने एक-एक व्यक्ति से संपर्क किया. छोटी-छोटी बैठक कर लोगों की भावनाओं को जाना. प्रभात खबर में जमीन से जुड़ी पत्रकारिता होती है. प्रभात खबर ने जो सही लगा वही किया. यह लीक से हट कर था. यही प्रभात खबर की सफलता का राज है. पत्रकारिता की किताब में प्रभात खबर की संघर्ष की कहानी को जोड़ा जाना चाहिए. इससे विद्यार्थियों को नयी सीख मिलेगी.
यह किताब मैनेजमेंट विद्यार्थियों के काम आयेगी : अशोक दत्ता
रांची : राजीव गांधी इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ मैनेजमेंट (आरजीआइआइएम) शिलांग के संस्थापक निदेशक अशोक दत्ता ने कहा कि यह किताब प्रभात खबर के लिए मील का पत्थर है. प्रभात खबर के शुरुआती दिनों में हमने जो अध्ययन रिपोर्ट दी थी, उसमें हमने इस अखबार को धंधे से बाहर हो जाने यानी इसे बंद करने की सलाह दी थी. हमारा अध्ययन इस बात पर आधारित था कि रांची व इसके आसपास से मिलनेवाले विज्ञापन से अखबार का खर्च पूरा नहीं किया जा सकता था. पर प्रभात खबर को बंद करने की मेरी सलाह लगता है एक गलती थी. मेरा एक सुझाव है कि इस किताब का अंगरेजी में अनुवाद होना चाहिए. यह किताब प्रबंधन के विद्यार्थियों के काम आ सकती है. यह बताती है कि विपरीत परिस्थितियों में कैसे सफल हो सकते हैं.
अखबार की सफलता के तीन कारण
प्रभात खबर की सफलता के मैं तीन कारण मानता हूं. पहला है हरिवंश का कुशल नेतृत्व. लीडरशिप विद इथिकल वैल्यूज (नैतिक मूल्य आधारित नेतृत्व). दूसरा बेहतर संपादकीय स्तर ( एडिटोरियल स्टैंडर्ड) व तीसरा प्रभात खबर की समर्पित टीम का जोश व जुनून (पैशन). सौभाग्य से भारत में प्रिंट मीडिया फैल रहा है, जबकि दुनिया के दूसरे हिस्से में सिकुड़ रहा है. प्रभात खबर की पूरी टीम को अगले 30 वर्षो के लिए भी शुमकामनाएं.
गलतियों से सीख ली, उसे सुधारा : हरिवंश
रांची : पत्रकार हरिवंश ने कहा कि अखबार को हमेशा लोगों का साथ मिला तथा उनसे ऊर्जा मिली है. किताब के लेखन से पहले हमने यह तय किया कि यह किताब सिर्फ प्रभात खबर ही नहीं, बल्कि हर उस संस्थान की कहानी होनी चाहिए, जो विपरीत परिस्थितियों में आगे बढ़ सका. इस किताब का मकसद लोगों को प्रेरित करना है.
धर्मयुग से हमने पत्रकारिता की शुरुआत की थी. तब वह देश की मशहूर पत्रिका थी. इसकी छह-सात लाख कॉपियां बिकती थी. इसके बाद आनंद बाजार पत्रिका समूह में काम किया. जब प्रभात खबर में काम करने का अवसर मिला, तो सोचा नहीं था कि इतनी विषम परिस्थितियों से जूझना होगा. अर्थशास्त्रियों व विशेषज्ञों ने अखबार का भविष्य पहले ही तय कर दिया था. उनका स्पष्ट मत था कि यह अखबार साल-दो साल में बंद हो जायेगा.
पर केरल सहित देश के अन्य राज्यों के सफल क्षेत्रीय अखबारों का अध्ययन कर हमने जाना कि उन्होंने सफलता कैसे पायी. फिर अपने अखबार में प्रयोग किये. प्रभात खबर की इस सफलता के कई कारण रहे. एक तो हमने जितनी चादर थी, उतना ही पैर फैलाया. अच्छी पत्रकारिता की. अपनी गलतियों से सीख ली. न सिर्फ सीख ली, बल्कि इसे सुधार भी किया. हममें से कई सीनियर लोग रांची की सभी गलियां भी नहीं पहचानते. सुबह से रात के दो बजे तक हम काम करते थे. काम का एक तरीका हमने विकसित किया था.
यह सिर्फ प्रभात खबर की बात नहीं है. ऐसे ही प्रयास से देश-दुनिया में कई संस्थान बने हैं. प्रभात खबर देश का पहला हिंदी अखबार था जिसने गवर्नेस व डेवलपमेंट रिपोर्ट निकाली. हर 15 नवंबर को हम राज्य के कामकाज की ऑडिट रिपोर्ट भी प्रकाशित करते रहे. मरांग गोमके जयपाल सिंह की जीवनी हमारे कुछ साथी फैसल अनुराग व वासवी किड़ो ने अखबार को उपलब्ध कराया था. यह लंदन से मिली थी. हमने उसे प्रकाशित किया. इस तरह के अनेक प्रयोग हुए.
प्रभात खबर की रीडरशिप 90 लाख : केके गोयनका
रांची : प्रभात खबर के प्रबंध निदेशक केके गोयनका ने कहा कि प्रभात खबर के लिए यह दिन गौरव व खुशी का दिन है. 1984 से शुरू यह अखबार कई बार बंदी के कगार पर पहुंचा, पर 1989 में नये प्रबंधन व नयी टीम के आने के बाद इसे आज यह मुकाम मिला है. पहले जहां अखबार की चार-पांच सौ प्रतियां बिकती थी, वहीं आज 8.5 लाख कॉपियां बिकती हैं.
पहले अकेले रांची से निकलने वाला यह अखबार आज तीन राज्यों के 10 शहरों से छपता है. इसे हर रोज करीब 90 लाख लोग पढ़ते हैं. वर्ष 1989 में हमारा टर्नओवर 10-12 लाख था. आज यह 200 करोड़ रुपये से अधिक है. प्रभात खबर आज देश के टॉप टेन अखबारों में शामिल है तथा टॉप थ्री के अखबारों को चुनौती दे रहा है. गत 30 वर्ष में अनेक प्रयोग हुए. मैं 1989 में प्रभात खबर से जुड़ा. उसी वर्ष हरिवंश जी तथा आरके दत्ता जी भी आये. मेरी समझ से कई बातें प्रभात खबर को विशेष बनाती है. हमने प्रो-पीपुल जर्नलिज्म (जनोन्मुखी पत्रकारिता) की. हरिवंश जी ने नयी पहल शुरू की. अखबार की संस्कृति एक परिवार की तरह है. पूरी टीम की जितनी तारीफ की जाये कम है. एक बात और है, विश्वसनीयता. हम सच के साथ रहे. इसी से हम जो छापते हैं, लोग उस पर भरोसा करते हैं.
संपादकीय मुद्दे पर हम कुछ और हावी होने नहीं देते. हमारे यहां संपादकीय व गैर संपादकीय लोगों के बीच एक समन्वय है. अखबार की मूल भावना से कोई समझौता किये बगैर हमने तालमेल बनाया है.
यह किताब आगे बढ़ने का मूल मंत्र है : अनुज सिन्हा
रांची : प्रभात खबर के वरिष्ठ संपादक तथा किताब के लेखक अनुज सिन्हा ने कहा कि सब कुछ समाप्त होने की घोर निराशा के बीच आगे बढ़ने का रास्ता कैसे निकाला जाये, यही इस किताब का मूल मंत्र है. यह किताब गुजरे 30 सालों में लगातार काम करनेवाले प्रभात खबर की पूरी टीम को समर्पित है. प्रभात खबर 1984 में शुरू हुआ था. इसके बाद 1989 में बंद होने की स्थिति आ गयी थी. सन 1984 से 1989 की कहानी में कई संदेश छिपे हैं.
जब-जब अखबार पर संकट आया, हम सबने इससे निबटने के लिए पूरी ताकत लगा दी. एक बात गौर करने लायक है कि प्रभात खबर ने राज्य को अपना आर्थिक योगदान भी दिया है. हम लोगों ने आंकड़ा देखा कि 10 सालों में सिर्फ हॉकर्स को कमीशन मद में इस अखबार ने दो सौ करोड़ रुपये का भुगतान किया . धीरे-धीरे बड़े होते इस अखबार ने हजारों लोगों को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से रोजगार देने का काम भी किया है.
अखबार नहीं आंदोलन है : पीयूष
रांची. प्रभात प्रकाशन के डॉ पीयूष ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि प्रभात खबर सिर्फ अखबार नहीं आंदोलन है. यह अखबार अपनी जिजीविषा व टीम वर्क से अपने समकालीन अखबारों से बगैर पूंजी के टक्कर ले रहा है. डॉ पीयूष ने कहा कि प्रभात प्रकाशन कम कीमत में बेहतर किताबों का प्रकाशन करता है.