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सामुद्रिक कूटनीति की एक नयी पारी

रहीस सिंह विदेश मामलों के जानकार तीनों देशों के साथ हुए समझौतों की प्रकृति को देखा जाये तो भारत ने अरब सागर के द्वीपों में सांस्कृतिक और विरासत पर जोर देते हुए सामरिक हितों को साधने की कोशिश की, वहीं श्रीलंका में अवसंरचना और पर्यटन पर जोर दिया. दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मॉरीशस और सेशेल्स […]

रहीस सिंह
विदेश मामलों के जानकार
तीनों देशों के साथ हुए समझौतों की प्रकृति को देखा जाये तो भारत ने अरब सागर के द्वीपों में सांस्कृतिक और विरासत पर जोर देते हुए सामरिक हितों को साधने की कोशिश की, वहीं श्रीलंका में अवसंरचना और पर्यटन पर जोर दिया. दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मॉरीशस और सेशेल्स के साथ हिंद महासागर में सुरक्षा, आर्थिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक संबंधों की स्थापना करना चाहते हैं.
पिछली कई शताब्दियों का इतिहास बताता है कि हिंद महासागर दो दुनियाओं (पूरब और पश्चिम) को जोड़ने में एक सेतु, अंतरराष्ट्रीय व्यापार की दृष्टि से ‘हाइवे’ और सामरिक लिहाज से वृहत्त रणनीतिक क्षेत्र के रूप में प्रतिष्ठित रहा है.
इस स्थिति में यह आवश्यक हो जाता है कि विश्व व्यवस्था में यदि किसी देश को अग्रिम पंक्ति में रहना है, तो उसे महासागरीय कूटनीति (ओसियन डिप्लोमेसी) में सफल प्रतियोगी बनना होगा. अब पहला सवाल यह कि भारत इस प्रतियोगिता में स्वयं को कहां पा रहा है? और दूसरा यह कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सेशेल्स, मॉरीशस और श्रीलंका यात्रा, उक्त अपेक्षाओं को पूरा करने में सफल हो पायी है?
संभवत: यह पहली बार हुआ है जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने तीन समुद्रतटीय देशों की यात्रा एक साथ संपन्न की है. इसलिए सामान्यतौर पर यह स्वीकार करने में परहेज नहीं होना चाहिए कि अब भारत ने हिंद महासागर की बढ़ती अहमियत को रेखांकित करते हुए समुद्र की रणनीतिक-कूटनीति (स्ट्रैटेजिक डिप्लोमेसी) को महत्व देना प्रारंभ कर दिया है.
वास्तव में यदि यह कूटनीति उन सभी आयामों को संयोजित कर ले, जिनके द्वारा बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में द्वीपीय देशों को एक कॉमन प्लेटफार्म पर लाया जा सके, तो भारत अपने पक्ष में रणनीतिक संतुलन बनाने में कामयाब हो जायेगा. यह स्थिति भारत को 21वीं सदी में निर्मित हो रही नयी विश्व व्यवस्था (न्यू वल्र्ड ऑडर) में निर्णायक भूमिका दिला देगी, लेकिन यदि असफल हुआ तो स्थितियां काफी प्रतिकूल साबित होंगी.
प्रधानमंत्री की समुद्री देशों की यात्रा सेशेल्स से आरंभ हुई. इस दौरान भारत व सेशेल्स ने समुद्री सुरक्षा बढ़ाने के लिए चार समझौतों पर हस्ताक्षर किये, जिनमें-हाइड्रोग्राफी, नवीकरणीय ऊर्जा, बुनियादी ढांचा विकास और इलेक्ट्रॉनिक नौवहन चार्टो पर हस्ताक्षर शामिल हैं. इसके साथ ही भारत ने सेशेल्स के लिए दूसरे डॉर्नियर लड़ाकू विमान और द्विपक्षीय सहयोग के प्रतीक के रूप में तटीय निगरानी रडार परियोजना की घोषणा भी की, जो एसंप्शन द्वीप पर स्थापित परियोजना का हिस्सा बनेंगे.
सेशेल्स के बाद प्रधानमंत्री मॉरीशस पहुंचे और उसके साथ दोहरे कराधान से बचाव की संधि पर वार्ता की दिशा में अहम कदम बढ़ाया, जो लंबे समय से ठप पड़ी थी. हालांकि बजट में सरकार ने ‘गार’ को टाल कर यह संकेत पहले ही दे दिया था कि वह मॉरीशस के सामने कुछ हद झुकने जा रही है. इसके साथ ही भारत ने मॉरीशस को आश्वस्त किया है कि भारत ऐसा कुछ भी नहीं करेगा, जिससे उसके वित्तीय क्षेत्र को नुकसान हो.
दरअसल मॉरीशस ‘टैक्स हैवेंस’ का एक अहम घटक देश है और भारत को आशंका है कि वहां से भारत आनेवाला निवेश कालेधन का हिस्सा होता है. दोहरे कराधान से बचाव संबंधी आपसी संधि के कारण भारतीय कंपनियां प्राय: इस आरोप से घिरती हैं कि मॉरीशस के जरिये भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नाम पर कालेधन का शोधन करती हैं. इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने मॉरीशस को असैन्य परियोजनाओं के विकास के लिए 50 करोड़ डॉलर की ऋण सुविधा देने तथा वहां दूसरा साइबर शहर स्थापित करने एवं उसकी पेट्रोलियम जरूरतों को पूरा करने में सहयोग की पेशकश की.
प्रधानमंत्री की श्रीलंका यात्रा से पूर्व श्रीलंकाई प्रधानमंत्री ने भारतीय मछुआरों को लेकर जो बयान दिया था, उससे स्पष्ट हो गया था कि श्रीलंका भारत के साथ अभी बड़ी सौदेबाजी करने का इच्छुक है, क्योंकि आम तौर पर कोई श्रीलंकाई प्रधानमंत्री भारतीय मछुआरों को लेकर वैसा बयान नहीं देते थे. हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने वहां जाकर मछुआरों के मुद्दे को बेहद जटिल करार दिया और स्पष्ट किया कि यह आजीविका और मानवीय चिंता से जुड़ा मुद्दा है, जिसका दीर्घकालिक समाधान ढूंढने की जरूरत है. उन्होंने तमिल बहुल उत्तरी इलाके को शक्तियां सौंपने के मुद्दे पर 13वें संविधान संशोधन के जल्द और पूर्ण क्रियान्वयन पर जोर भी दिया, जो तमिल बहुल प्रांत की स्वायत्तता से जुड़ा विषय है.
इसके बाद चार समझौतों पर हस्ताक्षर हुए, जिनमें कूटनीतिक स्तर के पासपोर्ट पानेवालों को वीजा में छूट, सीमा शुल्क में पारस्परिक सहयोग, युवा विकास और श्रीलंका विश्वविद्यालय में रबींद्रनाथ टैगोर संग्रहालय की स्थापना आदि शामिल हैं. प्रधानमंत्री ने यह घोषणा भी की कि भारतीय तेल कंपनी की इकाई लंका आईओसी और सिलोन पेट्रोलियम कोर ने साझा शर्तो के साथ संयुक्त रूप से त्रिंकोमाली में ‘अपर टैंक फार्म ऑफ द चाइना बे इंस्टॉलेशन’ स्थापित करने पर सहमति जतायी है. साथ ही प्रधानमंत्री ने श्रीलंकाई रेलवे को 31.8 लाख डॉलर का नया ऋण दिये जाने की घोषणा की.
कुल मिला कर तीनों देशों के साथ हुए समझौतों की प्रकृति को देखा जाये तो भारत ने अरब सागर के द्वीपों में सांस्कृतिक और विरासत पर जोर देते हुए सामरिक हितों को साधने की कोशिश की, वहीं श्रीलंका में अवसंरचना और पर्यटन पर जोर दिया.
दरअसल प्रधानमंत्री मॉरीशस और सेशेल्स के साथ हिंद महासागर में सुरक्षा, आर्थिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक संबंधों की स्थापना करना चाहते हैं. साथ ही वे उस ट्रैक को भी अपनाना चाहते हैं, जो चीन काफी पहले से अपनाये हुए है.
लेकिन, भारत का यह कदम चीनी ट्रैक पर चलने के लिए बहुत ही छोटा है, जिसके द्वारा वह चीन को कभी पीछे नहीं कर पायेगा, जबकि रणनीतिक संतुलन को भारत के पक्ष में लाने के लिए चीन को पीछे करना जरूरी है. वैसे हिंद महासागर में निरंतर सामने आते एक बड़े सामुद्रिक खेल के बीच भारत के रणनीतिक हित की दृष्टि से सेशेल्स के महत्व को किसी स्थिति में नकारा नहीं जा सकता. यही स्थिति मॉरीशस के संबंध में भी है, जिसके साथ भारत ने संचार के समुद्री रास्तों को आतंकवादियों और समुद्री डाकुओं के आतंक और डाका से सुरक्षित करने के लिए व्यापक सुरक्षा संबंध स्थापित किये हैं, क्योंकि भारत इसी रास्ते अपनी ऊर्जा जरूरतों का 70 प्रतिशत से अधिक आयात करता है.
हालांकि उभयपक्षीय राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए मॉरीशस के नेशनल कोस्ट गार्ड के साथ भारतीय नौसेना मॉरीशस के विशाल अनन्य आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) में नियमित रूप से गश्त करती है, जिसमें मॉरीशस की समुद्री-डाकू रोधी क्षमताओं को सुदृढ़ करने के लिए भारत द्वारा दिये गये एडवान्स्ड लाइट हेलीकॉप्टर ध्रुव, एक समुद्रतटीय रडार निगरानी प्रणाली (सीएस-आरएस) तथा एक ऑफशोर पेट्रोल वेसल (ओपीवी) भी शामिल हैं. भारत प्रशिक्षण के लिए गोताखोरी और एक मैरिन कमांडो (मार्कोस) प्रशिक्षण दल भी भेजता रहा है.
कुल मिला कर भारत ने हिंद महासागर के छोटे देशों से संस्कृति, विरासत और सहयोग की रणनीति के साथ व्यापक साङोदारी की मंशा व्यक्त की है, लेकिन क्या यह अमेरिका के हवाई एवं नौसेना बेस, डिएगो गार्सिया में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति के कारण भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में मुकाबला करने के लिए पर्याप्त होगी? क्या श्रीलंका के साथ भारत की साङोदारी चीन के ‘स्ट्रिंग ऑफ पल्र्स’ को तोड़ पायेगी? क्या हिंद महासागर में भारतीय हलचल चीन के ‘मैरीटाइम सिल्क रूट’ को सीमित कर पायेगी, जो मलक्का से अदन की खाड़ी तक के समुद्री व्यापार पर एकाधिकार करने की युक्ति के रूप में सामने आता दिख रहा है? क्या मॉरीशस जैसे देश से इक्विटी प्रवाहों का लालच भारत को कोई कड़े कदमउठाने के लिए प्रेरित कर पायेगा? फिलहाल तो सभी उत्तर नकारात्मक दिख रहे हैं.
अब देखना है कि हिंद महासागर के 29,21,31,000 घन किमी क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन स्थापित करने के लिए भारत किस कोटि की नेवीगेटिंग डिप्लोमेसी का प्रदर्शन कर पाता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्रा के तीन नये पड़ाव
वैश्विक राजनीति और कूटनीति में सक्रियता कायम रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंद महासागर में स्थित तीन देशों- सेशेल्स, मॉरीशस और श्रीलंका- की यात्रा की है. यह दौरा द्विपक्षीय संबंधों के साथ-साथ हिंद महासागरीय क्षेत्र में चीनी वर्चस्व को चुनौती देने के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है. लंबे अंतराल के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इन द्वीपीय देशों की यात्रा की है. इस यात्रा के परिणाम कई मायनों में दूरगामी हो सकते हैं. प्रधानमंत्री के दौरे के विभिन्न पहलुओं पर विचार के साथ-साथ इस दौरान हुए समझौतों का आकलन आज के समय में..
सेशेल्स में आठ फीसदी आबादी भारतीय मूल की
हिंद महासागर में बसा अफ्रीकी देश सेशेल्स 115 द्वीपों का समूह है. इसकी आबादी का आठ फीसदी हिस्सा भारतीय मूल के लोगों का है. 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दौरा किया था और अब प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने यात्रा की है. हालांकि 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल भी सेशेल्स गयी थीं.
मोदी की सेशेल्स यात्रा के मुख्य लक्ष्य रक्षा और सागरीय सुरक्षा के क्षेत्र में परस्पर संबंधों को मजबूत करना था. हिंद महासागर में समुद्री डाकुओं के आतंक से व्यापारिक गतिविधियों पर लंबे अरसे से असर पड़ रहा है और भारत इसका सबसे बड़ा भुक्तभोगी है. भारत पिछले कई वर्षों से सामुद्रिक निगरानी में सेशेल्स की नौसैनिक क्षमता बढ़ाने के लिए सहयोग करता आ रहा है. 2006 और 2014 में दो जहाज उपहारस्वरूप दिये गये थे. इनके अलावा सतर्कता और निगरानी के लिए जरूरी साजो-सामान भी मुहैया कराये गये हैं. 2013 में एक हवाई जहाज भी दिया गया था. सेशेल्स के हिस्से में वृहत 1.3 मिलियन वर्ग किलोमीटर का सागर है जिसे विशेष आर्थिक क्षेत्र कहा जाता है.
2012 में भारत ने बतौर ऋण 50 मिलियन डॉलर और अनुदान के रूप में 25 मिलियन डॉलर देने का संकल्प किया था. इसके अलावा भारत सेशेल्स के लोगों को सैन्य, तकनीक और चिकित्सा के क्षेत्र में प्रशिक्षण भी देता रहा है. कई भारतीय संस्थाएं, जैसे- बैंक ऑफ बड़ौदा, पोलारिस, टाटा, अशोक लेलैंड, भारती-एयरटेल आदि वहां सक्रिय हैं.
हिंद महासागर में स्थित अमेरिकी नौसैनिक बेड़े डियेगो गार्शिया से मात्र 600 मील पूर्व में बसे सेशेल्स का नौसैनिक महत्व बहुत है और सोमालियाई डाकुओं के अलावा कुछ महाशक्तियां भी क्षेत्र में वर्चस्व की कोशिश करती रही हैं. 2011 में सेशेल्स द्वारा चीन को नौसेनिक अड्डा स्थापित करने की अनुमति की खबर भारत के लिए चिंताजनक थी. हालांकि चीन ने तब ऐसी किसी भी योजना से इनकार किया था, पर अब ऐसा होने की संभावनाएं हैं, क्योंकि चीन अपने ऊर्जा आयातों को हिंद महासागर में सुरक्षित बनाने पर गंभीरता से काम कर रहा है.
सेशेल्स के राष्ट्रपति जेम्स एलेक्स माइकल ने 2010 में भारत-यात्रा के दौरान स्पष्ट कहा था कि उनके देश के लिए भारत प्राथमिक है. इस पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा का महत्व बहुत बढ़ जाता है, जिसके दौरान सागरीय शोध, गैर-पारंपरिक ऊर्जा और रक्षा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के समझौतों पर सहमति हुई है. भारत एजम्पशन द्वीप में इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करेगा तथा एक तटीय निगरानी रडार परियोजना शुरू करेगा.
मॉरीशस : गांधी हैं जिसकी आजादी के प्रेरणास्नेत
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की मॉरीशस यात्रा के ठीक दस साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वर्तमान दौरा संपन्न हुआ है, जिसके दौरान वे देश के स्वतंत्रता दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि भी शामिल हुए. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी दो वर्ष पूर्व इस समारोह के मुख्य अतिथि थे. उल्लेखनीय है कि मोदी ने मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम को पिछले वर्ष अपने शपथ-ग्रहण समारोह में भी आमंत्रित किया था.
मॉरीशस में भारतीय मूल के लोगों की बड़ी आबादी है, जो अंगरेजों के द्वारा मजदूर के रूप में ले जाये गये भारतीयों के वंशज हैं. जिस समुद्री तट पर भारतीय मजदूरों का पहला दस्ता मॉरीशस के चीनी कारखानों और गन्ना खेतों में काम करने के लिए उतरा था, उसे आप्रवासी तट कहा जाता है. मॉरीशस का राष्ट्रीय दिवस 12 मार्च को मनाया जाता है जो महात्मा गांधी के प्रसिद्ध नमक सत्याग्रह की तारीख है. यहां के लोग 1968 में मिली आजादी का प्रेरणास्नेत गांधी को ही मानते हैं.
भारत का 70 फीसदी ऊर्जा आयात समुद्री मार्ग से होता है, जिसकी सुरक्षा के लिए मॉरीशस से सहयोग बहुत अहम है. सेशेल्स की तरह भारत ने मॉरीशस को भी सागरीय निगरानी में सक्षम बनाने के लिए साजो-सामान और धन का अनुदान और उपहार दिया है.
मॉरीशस के अफ्रीकी महादेश से बहुस्तरीय संबंधों को देखते हुए तथा भौगोलिक रूप से महादेश के द्वार पर बसे होने के कारण भी भारत के लिए इसका बहुत महत्व है. भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में भी मॉरीशस का स्थान प्रथम है. 2012-13 में वहां से करीब 9.5 बिलियन डॉलर का निवेश आया था. अगले वित्तीय वर्ष 2013-14 में यह राशि 4.85 बिलियन डॉलर थी. सार्वजनिक क्षेत्र की भारतीय कंपनियां और बैंक लंबे समय से वहां कार्यरत हैं. भारत ने वहां अनेक शैक्षणिक, प्रशिक्षण और कौशल-विकास केंद्र भी खोले हैं.
प्रधानमंत्री मोदी की मॉरीशस यात्रा के दौरान पांच समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं तथा भारत ने आसान शर्तों पर 500 मिलियन डॉलर की राशि देने का प्रस्ताव किया है. इन समझौतों में मॉरीशस के व्यापक समुद्री संसाधनों का उपयोग करना तथा तेल के भंडारण-केंद्रों की स्थापना कर अफ्रीका में उत्पादों का पुन: आयात करना आदि शामिल हैं. मॉरीशस उन देशों में शामिल है, जो काला धन छुपाने के लिए कुख्यात हैं. दोनों देशों के बीच कर-संबंधी समझौते हैं, जिन्हें बेहतर करने की दिशा में भी बातचीत हुई है. समझा जाता है कि भारत ने मॉरीशस को हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव पर अपनी चिंता से अवगत कराया है.
दोनों देशों ने आगालेगा द्वीप पर यातायात और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने पर भी सहमति बनायी है. लगभग 70 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह द्वीप मॉरीशस से 1,100 किलोमीटर उत्तर में है और भारत के दक्षिणी तट के करीब है.
श्रीलंका के साथ सांस्कृतिक संबंधों को मिलेगी मजबूती
तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद भारत और श्रीलंका के सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध हमेशा से मजबूत रहे हैं. पिछले वित्तीय वर्ष यानी 2013-14 में द्विपक्षीय व्यापार 5.23 बिलियन डॉलर था, जिसमें भारत का निर्यात 3.98 बिलियन डॉलर और श्रीलंकाई निर्यात 678 मिलियन डॉलर रहा था.
मोदी ने कहा है कि दिसंबर, 1998 में किये गये मुक्त व्यापार समझौते को आगे बढ़ाते हुए श्रीलंकाई सामानों के भारत में आने की प्रक्रिया को सुगम बनाया जायेगा. इस दिशा में 2003 से शुरू हुए व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते को भी अंतिम रूप देने पर विचार किया जा रहा है. मोदी ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए श्रीलंकाई नागरिकों को आगमन पर वीजा देने की घोषणा की है. निश्चित रूप से यह कदम व्यापारिक, पर्यटन और सांस्कृतिक क्षेत्र में बड़ा योगदान करेगा. इस यात्रा के दौरान नागरिक परमाणु ऊर्जा, कृषि, नालंदा विश्वविद्यालय और सामुद्रिक सुरक्षा से जुड़े समझौतों पर सहमति बनी है.
चीन के सामरिक और आर्थिक प्रभाव के विस्तार, तमिलों के हितों और भारतीय मछुआरों पर चर्चा हुई है. पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के कार्यकाल में श्रीलंका का झुकाव चीन की ओर बढ़ा था, जिससे भारत असहज महसूस कर रहा था. श्रीलंकाई तमिलों के अधिकारों और सुरक्षा के मामले में भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हुए मोदी ने जाफना की यात्रा भी की और तमिल समुदाय से संवाद किया.
उन्होंने तमिल समुदाय को अधिक स्वायत्तता देने की बात के साथ यह भी कहा है कि श्रीलंका सरकार जुलाई, 1987 में हुए भारत-श्रीलंका समझौते को समुचित तरीके से लागू करे. यह समझौता तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और श्रीलंका के राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने के बीच हुआ था, जिसमें बाद में 13वें संशोधन में तमिल-बहुल इलाकों को स्वायत्तता देने का निर्णय किया गया था. जानकारों का मानना है कि सिरीसेना सरकार भारत से अच्छे संबंधों की इच्छुक है और इसका एक संकेत राष्ट्रीय प्रमुखों की यात्राएं हैं.
भारत के सामरिक हितों की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं ये देश
स्मृति पटनायक
फेलो, इंस्टीटय़ूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (इडसा)
भारत के पड़ोसी देशों की शिकायत रही है कि भारतीय नेतृत्व उनके देश को महत्वपूर्ण नहीं मानता है. भारत जो भी ध्यान देता है, वह पाकिस्तान की ओर चला जाता है. ऐसे माहौल में पिछले एक साल में मोदी की पड़ोसी देशों की यात्रा काफी मायने रखती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मारीशस, सेशेल्स और श्रीलंका की यात्रा भारत के सामरिक हितों की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है. हिंद महासागर में भारत के सामरिक हितों की रक्षा के लिए इन देशों के साथ बेहतर रिश्ते होना काफी अहम है, क्योंकि चीन और अमेरिका की नजर भी इन क्षेत्रों पर है.
सेशेल्स में प्रधानमंत्री ने कोस्टल सर्विलांस रडार स्टेशन का उद्घाटन किया. ऐसे आठ स्टेशन वहां बनने हैं और इससे भारतीय नौसेना की निगरानी क्षमता को काफी बल मिलेगा. मॉरीशस में ऐसे आठ स्टेशन पहले से काम कर रहे हैं. इन सर्विलांस स्टेशनों से हिंद महासागर से गुजरनेवाले पोतों की भारत निगरानी कर सकेगा. हिंद महासागर का क्षेत्र सामरिक दृष्टि से एक केंद्र ¨बदु बनता जा रहा है. चीन पहले ही इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में लगा है. अपनी इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने कालेधन पर रोक लगाने के दोहरे कराधान संधि पर भी व्यापक चर्चा की.
प्रधानमंत्री की सबसे महत्वपूर्ण यात्रा रही श्रीलंका की. पिछले कुछ वर्षो में श्रीलंका के साथ भारत के रिश्ते बेहतर नहीं रहे हैं. वहां चीन का बढ़ता दखल भारत के लिए परेशानी का सबब बन रहा है. हालांकि, श्रीलंका में सत्ता परिवर्तन के बाद दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध बेहतर होने की संभावना है. 1987 के बाद पहली बार कोई भारतीय प्रधानमंत्री श्रीलंका के दौरे पर गया.
नरेंद्र मोदी पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को बेहतर बनाने पर जोर देते रहे हैं. यह सही है कि उनके दौरे पर पहले श्रीलंकाई प्रधानमंत्री के मछुआरों को मारने संबंधी बयान से भारत में प्रतिकूल माहौल बना, लेकिन कूटनीतिक कोशिशों से इसे सुलझा लिया गया. इस संदर्भ में मोदी का श्रीलंका दौरा राजनीतिक और प्रतीकात्मक तौर पर काफी महत्वपूर्ण है.
श्रीलंका की नयी सरकार ने भी विदेश नीति में बदलाव के संकेत दिये है और स्पष्ट कहा है कि भारतीय हितों की अनदेखी नहीं होगी. पिछले दो दशक में दोनों देश विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग कर रहे हैं, ऐसे में इस दौरे से राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक मामलों में किसी बड़ी घोषणा की उम्मीद बेमानी है. मोदी के दौरे से भारत और श्रीलंका के सांस्कृतिक संबंधों के महत्व का पता चलता है.
कुल मिलाकर, मोदी की यात्रा तीन मायनों में महत्वपूर्ण रही. पहला और सबसे महत्वपूर्ण है राजनीतिक. भारत के पड़ोसी देशों की शिकायत रही है कि भारतीय नेतृत्व उनके देश को महत्वपूर्ण नहीं मानता है. भारत जो भी ध्यान देता है, वह पाकिस्तान की ओर चला जाता है. ऐसे माहौल में पिछले एक साल में मोदी की पड़ोसी देशों की यात्रा काफी मायने रखती है.
दूसरा, श्रीलंका दौरे में स्थानों का चयन भी राजनीतिक और सांस्कृतिक संदर्भ में काफी महत्वपूर्ण है. पूर्व में भारत सांस्कृतिक कूटनीति का प्रयोग श्रीलंका के मामले में करता रहा है. मोदी के जाफना दौरे से साफ है कि भारत श्रीलंका में इंफ्रास्ट्रर विकास में सहयोगी बनना चाहता है. जाफना का दौरा करनेवाले मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री है. दोनों देशों की तमिल राजनीति के लिए यह काफी महत्वपूर्ण है. इससे श्रीलंका के तमिलों में सकारात्मक संदेश जायेगा.
तीसरा, मोदी की तीनों देशों की यात्रा हिंद महासागर में को-ऑपरेटिव समुद्री सुरक्षा की जरूरत को दर्शाता है. इसमें कोई शंका नहीं है श्रीलंका भारत के समुद्री सामरिक हितों के लिए महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है. श्रीलंका और भारत पहले ही रक्षा और सुरक्षा के मामले में हर साल बातचीत करने को तैयार हो गये हैं. पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षे की चीन के साथ सामरिक संबंध बढ़ाने और वहां के समुद्री तटों पर चीनी बेड़े को रखने की इजाजत देने से दोनों देशों में अविश्वास का माहौल पैदा हुआ है. यही नहीं चीन ने श्रीलंका के विकास में बड़े पैमाने पर निवेश भी किया है. लेकिन, वहां नयी सरकार बनने और मोदी के दौरे से दोनों देशों के बीच संबंधों को नया आयाम मिलने की पूरी उम्मीद है.
इस तरह प्रधानमंत्री का तीनों देशों का दौरा भारत के आर्थिक और सामरिक हितों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है. मोदी को मालदीव की यात्रा पर भी जाना था, लेकिन वहां के राजनीतिक हालात के कारण दौरा रद्द करना पड़ा. भारतीय नौसेना वहां भी 10 सर्विलांस रडार स्टेशन लगाने की योजना पर काम कर रही है. भारत की समुद्री सीमा सुरक्षा के लिए इन देशों के साथ बेहतर संबंध की काफी अहमियत है.
हितों पर आधारित हो सामुद्रिक नीति
अमित रंजन
विदेश मामलों के जानकार
अगर भारत को यह लगता है कि श्रीलंका की नयी सरकार के माध्यम से वह अपनी वापसी कर लेगा, तो यह कह पाना अभी मुश्किल है. चीन ऐसी स्थितियों का सफलतापूर्वक सामना कुछ अफ्रीकी देशों में कर चुका है, जहां उसने नयी सरकारों से अपने संबंध बेहतर कर लिया है.
भारत में ब्रिटिश राज के दौरान लॉर्ड कजर्न ने भारत को सुरक्षित रखने की एक नीति बनायी थी, जिसके अनुसार भारत की बाहरी समुद्री सीमा को अफ्रीका तक खींचना था. इस दिशा में कुछ पहलें हुईं, पर इस सपने को पूरा नहीं किया जा सका.
प्रथम भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने विभिन्न देशों से अच्छे संबंध बनाकर इस ओर कुछ प्रयास किया था, पर बाद में यह डोर भी कमजोर पड़ गयी. अटल बिहारी वाजपेयी के सरकार के दौरान ‘विस्तृत पड़ोस’ की अवधारणा बनायी गयी, जिसके तहत यह घोषित किया गया कि हमारे संबंध और संवाद दक्षिण एशिया से परे भी जाते हैं. लेकिन तब इस प्रक्रिया में द्वीपीय देशों को अधिक महत्व नहीं दिया गया और उन देशों पर ध्यान केंद्रित किया गया, जो जमीनी तौर पर भारत सेजुड़े थे.
बाद में द्वीपीय देशों के सामरिक और आर्थिक महत्व को समझते हुए भारत द्वारा द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संवाद स्थापित करने की कोशिशें शुरू हुईं. उदाहरण के तौर पर, 2008 में हिंद महासागर सामुद्रिक सम्मेलन के जरिए 35 देशों के बीच नौसौनिक सहयोग की संभावना तलाशने का प्रयास हुआ था. वर्तमान समय में भारतीय अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी और चीन से सामरिक स्पर्द्धा तथा उन देशों में उसकी मौजूदगी के कारण द्वीपीय देशों की ओर भारत का ध्यान जाना लाजिमी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सेशेल्स, मॉरीशस और श्रीलंका की यात्रा इसी पृष्ठभूमि में हुई है. इस दौरे में उन्हें मालद्वीप भी जाना था, पर वहां राजनीतिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण ऐसा नहीं हो सका.
बहरहाल, ये तीन देश महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों पर पड़ते हैं, जहां से बड़ी संख्या में ऐसे मालवाहक जहाज गुजरते हैं जो भारत से सामानों का लेन-देन करते हैं. इन देशों के पास विशिष्ट सामुद्रिक आर्थिक क्षेत्र हैं, जो भविष्य में संसाधनों के बड़े स्नेत हैं. इन दोनों कारणों से इन देशों के साथ अच्छे संबंध होना बहुत जरूरी है. इसके अलावा, जैसा कि पहले भी उल्लेख किया गया है, इस क्षेत्र में चीन की ठोस मौजूदगी भी बड़ा कारण है. इस दौरे में सेशेल्स को पर्याप्त महत्व दिया जाना इसी बात की ओर संकेत करता है. चीन सेशेल्स में 2007 से ही अपनी पकड़ बनाने की कोशिश में लगा हुआ है. चीन के राष्ट्रपति वहां यात्रा कर चुके हैं और चीनी सेना सेशेल्स को सैन्य प्रशिक्षण भी दे रही है. 2011 में चीन को वहां अपना अड्डा बनाने की जगह भी मिल गयी. तब चिंतित भारत ने रक्षा मंत्री को वहां आर्थिक मदद के साथ भेजा था.
मोदी ने भी अपनी यात्रा में रडार निगरानी केंद्रों का उद्घाटन किया है, जिसे भारतीय सहयोग से स्थापित किया है. साथ ही, उन्होंने सामुद्रिक अर्थव्यवस्था में परस्पर सहभागिता की बात भी कही है. मॉरीशस में भी यही बातें दुहराई गयीं तथा वहां की तटीय निगरानी के लिए सहयोग दिया गया.
चीन के प्रभाव से संबंधित कारण जिस देश के मामले में सबसे अधिक लागू होता है, वह है श्रीलंका. कुछ समय पहले ही वहां के राष्ट्रीय चुनाव में चीन के करीबी समङो जानेवाले महिंदा राजपक्षे की हार हुई है. नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने भारत-केंद्रित नीति की बात कही है और यह भी संकेत दिया है कि चीनी निवेश की समीक्षा की जायेगी. भारतीय सामरिक विशेषज्ञ एक श्रीलंकाई बंदरगाह पर चीनी उपस्थिति से चिंतित रहे हैं, लेकिन इसका प्रस्ताव पहले भारत को ही मिला था. भारत की दिलचस्पी न होने के बाद चीन को यह परियोजना मिली थी. आज भी इसमें कुछ भारतीय कंपनियां छोटी-मोटी ही सही, पर एक भूमिका निभा रही हैं.
अगर भारत को यह लगता है कि श्रीलंका की नयी सरकार के माध्यम से वह अपनी वापसी कर लेगा, तो यह कह पाना अभी मुश्किल है. चीन ऐसी स्थितियों का सफलतापूर्वक सामना कुछ अफ्रीकी देशों में कर चुका है, जहां उसने नयी सरकारों से अपने संबंध बेहतर कर लिया है.
हालांकि प्रधानमंत्री मोदी का यह दौरा इन उद्देश्यों के लिए था, लेकिन भारतीय नीति-नियामकों को इस बात पर जोर देना चाहिए कि हिंद महासागर में हमारे हितों को बढ़ावा मिले, न कि चीन के ‘मोतियों की माला’ की काट के रूप में एक प्रतिक्रियात्मक नीति पर.

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