आंतरिक संरचना समझने में नयी कामयाबी, पृथ्वी के केंद्र में हैं कई रहस्य!
पृथ्वी की भीतरी संरचना के बारे में सबकुछ जान लेने की दिलचस्पी सदियों से रही है. अलग-अलग समय में विशेषज्ञों ने तात्कालिक तकनीकों के आधार पर इसका पता लगाने का प्रयास किया. अब हालिया शोध से पता चला है कि पृथ्वी की आंतरिक संरचना कई गूढ़ रहस्यों को समेटे हुए है और 5,000 किमी भीतर […]
पृथ्वी की भीतरी संरचना के बारे में सबकुछ जान लेने की दिलचस्पी सदियों से रही है. अलग-अलग समय में विशेषज्ञों ने तात्कालिक तकनीकों के आधार पर इसका पता लगाने का प्रयास किया. अब हालिया शोध से पता चला है कि पृथ्वी की आंतरिक संरचना कई गूढ़ रहस्यों को समेटे हुए है और 5,000 किमी भीतर प्रत्यक्ष जांच करना बेहद मुश्किल है. नयी जानकारी की अहमियत के साथ-साथ पृथ्वी की संरचना जुड़े जरूरी पहलुओं के बारे में बता रहा है नॉलेज..
अंकित कुमार
दिल्ली : पृथ्वी से जुड़े हर तरह के रहस्यों को उजागर करने की कोशिशों में दुनिया के वैज्ञानिक वर्षो से जुटे हैं. धरती से बाहर की दुनिया के साथ ही वे पृथ्वी के जन्म, इसकी संरचना, विगत वर्षो में इसमें आये बदलावों को समझने का प्रयास भी लंबे समय से करते रहे हैं. लेकिन, कुछ रहस्यों को जानने में अब तक आशातीत सफलता नहीं मिली थी. अब चीन और अमेरिका में किये गये शोध के बाद वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के केंद्र के बिल्कुल करीब एक नये क्षेत्र की पहचान करने का दावा किया है.
‘नेचर जियोसाइंस जर्नल’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पृथ्वी की ‘इनर इनर कोर’ की संरचना ‘आउटर इनर कोर’ से अलग है. वैज्ञानिकों का मानना है कि भीतरी हिस्से में बाहरी भाग की तरह आयरन क्रिस्ट्ल्स का प्रयोग नहीं किया गया है. यह तथ्य वाकई में दिलचस्प है. हम पृथ्वी में छेद करके इसकी पूरी संरचना का अध्ययन नहीं कर सकते, इस वजह से हमारे ग्रह की संरचना का राज खोलना कभी सहज नहीं रहा है. वैसी स्थिति में कुछ नये तरह के तरीकों को अपनाकर जिस प्रकार के संकेतों का पता लगाया गया है, वह कई नयी संभावनाओं का सूत्रपात करने में समर्थ है.
इको के आधार पर होते हैं शोध
इस क्षेत्र में काम कर रहे वैज्ञानिक सतह की संरचना का अध्ययन भूकंप के दौरान पैदा हुई प्रतिध्वनि (इको) के आधार पर करते हैं. इस बात का विश्लेषण किया जाता है कि भूकंप के दौरान पृथ्वी के विभिन्न सतहों की स्थिति में क्या बदलाव हुआ है. खबरों के मुताबिक प्रोफेसर जियोदांग सांग का मानना है कि धरती के एक हिस्से से तरंगें टकरा कर फिर दूसरे हिस्से से टकराती हैं.
शोध के मुताबिक पृथ्वी के केंद्र का आंतरिक हिस्सा चांद की आकार के समान है. ठोस अवस्था की इस परत के दो भाग हैं. शोध से प्राप्त आंकड़े इशारा करते हैं कि सबसे ‘इनर इनर कोर’ के क्रिस्टल्स पूरब से पश्चिम की दिशा में मौजूद हैं. वहीं आउटर इनर कोर उत्तर से दक्षिण की तरफ हैं. इस नये शोध से पृथ्वी की उत्पत्ति और विकास की प्रक्रिया को समझने में मदद मिलेगी.
हर वर्ष बढ़ रही लेयर की मोटाई
पृथ्वी के भीतर 5,000 किलोमीटर नीचे के कोर करोड़ों वर्ष पहले से ठोस अवस्था में आने लगे थे, जो अब तक जारी है और यह परत हर साल 0.55 एमएम मोटी होती जा रही है. इस नये क्रिस्टल की खोज से इस बात का अंदाजा लगाना सहज है कि उनकी उत्पत्ति अलग परिस्थितियों में हुई होगी. साथ ही इससे यह भी मालूम होता है कि हमारी पृथ्वी कई परिवर्तन की प्रक्रिया से गुजरी है. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर सीमन रेडफर्न का कहना है कि सॉलिड इनर कोर की गहराई में जाने का मतलब है इतिहास में लौटना. यानी इसकी शुरुआत की तरफ जाना.
तरंगों की मदद से मिले संकेत
तरंगों की गति में असमानता के आधार पर नये तथ्यों का पता लगाया गया है. तथ्यों का विश्लेषण करने पर यह बात सामने आयी कि जब तरंगें इनर इनर कोर से टकराती हैं, तो उसकी गति और टकराने के बाद की प्रतिक्रियाएं अलग होती हैं.
हालांकि, प्रोफेसर सीमन रेडफर्न इससे पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं और उन्होंने कहा है कि यदि यह रिपोर्ट सही है तो आनेवाले दिनों में धरती के इनर कोर को समझने में बेहद सहायक हो सकती है. साथ ही इसकी मदद से पृथ्वी से जुड़े कई अन्य रहस्यों को खोलने में वैज्ञानिकों को मदद मिलेगी. इसके अतिरिक्त इससे यह भी जाना जा सकता है कि करीब पचास लाख वर्ष पहले धरती के चुंबकीय क्षेत्र और एलाइनमेंट में परिवर्तन हुआ होगा. इनर इनर कोर के गठन में नये तरह के पत्थर बने होंगे. ये तथ्य वर्षो पहले किये गये उन दावों को नकारता है, जिनमें कहा गया है कि पृथ्वी के ‘इनर कोर’ की संरचना लगभग एक समान है.
हालांकि, यह शोध बहुत ही प्रारंभिक स्तर पर है और समय के साथ नये वैज्ञानिक तरीकों की मदद से इन तथ्यों को पुष्ट करने की कोशिश की जायेगी. निश्चित तौर पर इसकी मदद से करोड़ों वर्ष पुराने गूढ़ रहस्यों के खुलने की आशा जगती है. इससे आनेवाले समय में मौसम की गतिविधि का अनुमान लगाना आसान होगा.
जर्नी टू द सेंटर ऑफ अर्थ
पृथ्वी की संरचना से जुड़े शोधकार्यो में जूल्स गाबरियल वर्न का संदर्भ बार-बार आता है. दरअसल, जूल्स एक फ्रेंच उपन्यासकार, कवि और लेखक थे. उन्हें साइंस फिक्शन के लिए जाना जाता है. ‘जर्नी टू द सेंटर ऑफ अर्थ’ भी एक साइंस फिक्शन नॉवेल ही है. वर्ष 1864 में प्रकाशित इस उपन्यास में उन्होंने पृथ्वी के इनर कोर के बारे में विस्तार से चर्चा की है.
हालांकि, समय के साथ उनके द्वारा स्थापित मान्यताएं ध्वस्त होती गयीं, फिर भी इस विषय को समझने और शोध करनेवाले इस पुस्तक को एक अमूल्य धरोहर मानते हैं. यह उपन्यास लोगों को नयी दृष्टि दे पाने में सक्षम है. यही वजह है कि जब भी कभी पृथ्वी के इनर कोर से जुड़ी कोई नयी चीज सामने आती है, तो जूल्स की चर्चा जरूर होती है. इस किताब पर लगभग पांच फिल्में बन चुकी हैं. इसमें 1959 में इसी नाम से अमेरिका के निर्देशक हेनरी लेविन ने जेम्स मेसन व पैट बून को लेकर फिल्म बनायी थी. इसके आधार पर कई टीवी सीरियलों का निर्माण भी किया गया था.
क्या है पृथ्वी का इनर कोर
इनर कोर पृथ्वी का सबसे भीतरी हिस्सा होता है. सिसमोलॉजिकल रिपोर्ट के मुताबिक, यह करीब 1,220 किलोमीटर त्रिज्या वाला क्षेत्र है, जो ठोस अवस्था में है. अब तक की मान्यता के अनुसार, यह ठोस परत लोहे और निकेल की थी. इस लेयर का तापमान सूर्य के तापमान के आसपास ठहरता है. अनुमानत: इसका तापमान 5,400 डिग्री सेल्सियस है.
पृथ्वी के अंदर ‘इनर इनर कोर’ सॉलिड है, जबकि इसका ‘आउटर इनर कोर’ लिक्विड है. इस बात का पता सर्वप्रथम सिसमोलॉजिस्ट इंज लेमन ने वर्ष 1936 में लगाया था. उन्होंने न्यूजीलैंड में उस समय आये भूकंप के आधार पर यह बात कही थी. उन्होंने यह महसूस किया कि भूकंप के दौरान उठने वाली तरंगें इनर कोर की सीमाओं से टकराती हैं, जिसका पता सिसमोग्रॉफ्स की मदद से लगाया जा सकता है.
इन सीमाओं को ‘बुलेन डिसकंटिन्यूटी’ कहा जाता है. इसे लेमन डिस्कंटिन्यूटी भी कहा जाता है. आउटर कोर के बारे में यह तय किया गया कि दबाव वाली तरंगें इससे होकर भी गुजरती हैं, लेकिन किसी तरह का लचीलापन नहीं है. अगर लचीलापन था भी तो बहुत कम.
इनर कोर का इतिहास
वैज्ञानिकों के अब तक के शोधकार्यो के अनुसार, हमारी पृथ्वी साढ़े चार करोड़ वर्ष पुरानी है. इस संदर्भ में देखें तो यह मालूम चलता है कि धरती के इनर कोर के ठंडा होने का इतिहास लगभग दो से चार करोड़ वर्ष पुराना है. वास्तव में यह कोर तरल अवस्था में था. धीरे-धीरे सतह की गर्मी कम होने के कारण इसकी अवस्था में परिवर्तन होता है. करीब 0.5 मिमी मोटाई का लिक्विड लेयर हर साल सॉलिड अवस्था में आ जाता है.
इनर कोर की संरचना को जानें
प्लैनेटरी फॉर्मेशन थ्योरी की रासायनिक शब्दावली के आधार पर यह कहा जा सकता है कि पृथ्वी का इनर कोर आयरन और निकेल के संघटन से तैयार हुआ है, जिसे एनआइएफइ कहा जाता है. इसमें एनआइ निकेल का रासायनिक सूत्र है, जबकि एफइ यानी फेरम आयरन का. चूंकि इनर कोर शुद्ध आयरन या निकेल के मुकाबले ज्यादा सघन है. इसका मतलब है कि निश्चित तौर पर इनर कोर में अन्य भारी तत्व भी मौजूद हैं. इसके अतिरिक्त कुछ अपेक्षाकृत हल्के तत्व भी मौजूद हैं, जिसमें मुख्यत: सिलिकॉन और ऑक्सीजन शामिल हैं.
इनर कोर के घनत्व का अध्ययन करने पर यह साफ हो जाता है कि कोर के भीतर प्रचूर मात्र में गोल्ड और प्लैटिनम समेत कुछ अन्य ठोस तत्व मौजूद हैं. तथ्यों पर गौर करें तो यह प्रमाणित हो जाता है कि इनर कोर में बहुमूल्य धातुओं के अलावा अन्य भारी तत्वों की प्रचुरता है. यह पिछली कई थ्योरी को झुठलाती है. धरती के तापमान और दबाव की बात करें, तो बहुत आश्चर्यजनक तथ्य सामने आते हैं. पृथ्वी का इनर कोर हमारी सोच से कहीं ज्यादा ही गर्म है. इसका तापमान लगभग 5,400 डिग्री सेल्सियस है.
एकदम नया नहीं है प्रयोग
पृथ्वी के आंतरिक बनावट को समझने के लिए वैज्ञानिक लंबे समय से प्रयास करते रहे हैं. कुछ इसी तरह का प्रयास 2013 में स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने किया था. लोहे और चट्टान को बहुत अधिक दबाव से गुजारते हुए यह जानने की कोशिश की गयी थी कि पृथ्वी के कोर का निर्माण कैसे हुआ होगा. बहुत ही प्रभावशाली एक्सरे इमेजिंग की मदद से उन्होंने धातुओं को द्रवित होते हुए देखा. इसके बाद शोध से जुड़े वैज्ञानिकों ने कहा था कि पृथ्वी के कोर का विकास अचानक नहीं हुआ है, बल्कि यह बहुत ही जटिल प्रक्रियाओं से गुजर कर मौजूदा स्वरूप में आया है.
‘नेचर जियोसाइंस जर्नल’ के तत्कालीन अंक में इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया गया था. इसी तरह वर्ष 2011 में भूकंप के दौरान पृथ्वी के मैग्नेटिक फील्ड में होनेवाले बदलाव से वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद मिलने लगी कि पृथ्वी की भीतरी केंद्र में क्या है. इस शोध में भी जूल्स वर्न के उस संदर्भ का सहारा लिया गया था, जिसमें उन्होंने एक ऐसे जगह की कल्पना की थी, जहां एक समुद्र में चमकते हुए विशाल क्रिस्टल्स थे, जिनमें बहुत से जानवर और मशरूम थे.
पृथ्वी की आंतरिक संरचना
पृथ्वी की आंतरिक संरचना एक प्याज की तरह है. इसमें कई स्तर हैं. इन स्तरों को उनके केमिकल या रियोलॉजिकल गुणों के आधार पर पारिभाषित किया जा सकता है. पृथ्वी की आंतरिक संरचना कई गूढ़ रहस्यों को समेटे हुए है. इसका पता ज्वालामुखी और भूकंप के समय तरंगों, गुरुत्वाकर्षण व मैग्नेटिक फील्ड में होने वाले परिवर्तन के आधार पर किया जाता है. क्रिस्टलाइन परतों के साथ दबाव और तापमान की मदद से प्रयोग करके पृथ्वी की भीतरी संरचना के बारे में पता लगाने का प्रयास किया जाता है. पृथ्वी के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार हैं .
पृथ्वी का द्रव्यमान : धरती के गुरुत्वाकर्षण बल के अनुपात की मदद से पृथ्वी के द्रव्यमान का पता लगाया जा सकता है. साथ ही पृथ्वी के परिमाण के हिसाब से इसके घनत्व की माप की जा सकती है.
संरचना : पृथ्वी की संरचना को दो तरीके से समझा जा सकता है. मेकेनिकल गुण धर्म रियोलॉजी से या रासायनिक तौर पर. इसे लिथोस्फेयर, एसथेनोस्फेयर, मेसोफेरिक मैंटल (आवरण), आउटर कोर और इनर कोर में विभाजित किया जा सकता है. इसकी आंतरिक संरचना में पांच बहुत ही महत्वपूर्ण लेयर हैं. रासायनिक दृष्टि से इसे क्रस्ट, अपर मेंटल, लोअर मेंटल, आउटर कोर और इनर कोर से समझा जा सकता है.
पृथ्वी के लेयरों का पता अप्रत्यक्ष रूप में भूकंप के समय के अनुसार अवस्था में परिवर्तन के आधार पर किया गया है. हालांकि, यह स्थिति इससे अलग भी हो सकती है, क्योंकि सबकुछ अप्रत्यक्ष तौर पर किया जाता है. कुछ इसी कारण पृथ्वी के ‘इनर इनर कोर’ के बारे में जो तथ्य सामने आये हैं, वह अब तक हमसे अनजान थे.
घनत्व : पृथ्वी का औसत घनत्व 5,515 किलोग्राम प्रति वर्गमीटर है. चूंकि इसके बाहरी आवरण का घनत्व सिर्फ 3,000 घन किलोमीटर है, इस वजह से वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी के कोर का घनत्व बहुत अधिक है. अभी तक के अध्ययन के मुताबिक कोर दो भागों में विभक्त हैं. सॉलिड इनर कोर, जिसकी त्रिज्या करीब 1,220 किमी है. लिक्विड आउटर कोर की त्रिज्या लगभग 3,400 किलोमीटर है. इनके घनत्व 9,900-12,200 घन किमी के मध्य हैं.
मैंटल : पृथ्वी का मैंटल यानी आवरण 2,890 किलोमीटर तक है. यह सिलिकेट का बना होता है, जिसमें प्रचुर मात्र में आयरन और मैग्नीशियम होते हैं.
क्रस्ट : करीब 35 किलोमीटर तक क्रस्ट का लेयर होता है. यह आयरन, मैग्नीशियम, सिलिकेट और बेसाल्ट से निर्मित परत होती है.