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इतिहास सहेजने की सार्थक पहल

संग्रहालय मानव इतिहास के जीवंत गवाह हैं. किसी देश की कला-संस्कृति और इतिहास को गहराई से जानना, समझना और देखना हो तो संग्रहालयों से बेहतर कोई जगह नहीं होती है. यही वजह है कि दुनिया के विकसित मुल्कों ने अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करने के लिए बड़े-बड़े संग्रहालयों का निर्माण कराया है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 21, 2015 7:54 AM
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संग्रहालय मानव इतिहास के जीवंत गवाह हैं. किसी देश की कला-संस्कृति और इतिहास को गहराई से जानना, समझना और देखना हो तो संग्रहालयों से बेहतर कोई जगह नहीं होती है. यही वजह है कि दुनिया के विकसित मुल्कों ने अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करने के लिए बड़े-बड़े संग्रहालयों का निर्माण कराया है.
कई संग्रहालय तो वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने हैं. पटना में भी बिहार म्यूजियम का निर्माण हो रहा है. उम्मीद की जा रही है कि विश्वस्तरीय यह संग्रहालय अपने गौरवशाली सभ्यता और कला-संस्कृति को सहेजने का केंद्र बनेगा. बिहार के 103वें स्थापना दिवस के मौके पर विश्व के उन बेहतरीन संग्रहालयों पर एक नजर डालना प्रासंगिक होगा, जो गौरवबोध जगाने के साथ कुछ नया गढ़ने को प्रेरित करते हैं. इस विशेष पेज में पढ़िए बिहार के गौरवशाली अतीत की जानकारी आत्मकथ्य शैली में.
संग्रहालय : गौरवबोध जगाते हैं अतीत
जहां इतिहास है वहां विरासत है. जहां विरासत है वहां भविष्य है. इसीलिए कहा जाता है कि जो समाज अपने अतीत को नहीं भूलता, वह हर समय अपना परचम लहराता है. इतिहास की रोशनी में वर्तमान को गढ़ने का सउर हासिल होता है. यह इतिहास ही है जो आने वाली पीढ़ियों को रास्ता बताने का कारगर हथियार साबित होता है. जो समाज अपने इतिहास, अपने अतीत की थाती को विस्मृत कर देता है, वह नया रचने में नाकाम होता है. इतिहास को समझने के कई माध्यम हो सकते हैं.
इनमें संग्रहालय सशक्त जरिया है. शायद इसीलिए दुनिया के अनेक मुल्कों में संग्रहालयो को काफी महत्व दिया जाता है. हजारों साल पुराने कालखंड के चिह्नें को देखना, अपने पुरखों के सजर्नात्मक संसार से गुजरना कभी हैरान करता है तो कभी ऊर्जा से भर देता है. यही वह गौरवबोध है जो नया गढ़ने को प्रेरित करता है.
ईसा के जन्म के पहले के संग्रहालयों को सहेजने का काम आज भी शिद्दत से किया जा रहा है. तीसरी शताब्दी ईपू मिस्र के एलेक्जेंड्रीया विश्वविद्यालय में संग्रहालय हुआ करता था. इसी तरह एन्नीगाल्डी नन्ना का म्यूजियम 530 ईपू में तैयार हुआ था, जो आधुनिक इराक में है. सवाल किया जाता है कि अगर किताबों में लिखित इतिहास मौजूद है तो उसे सहेजने के लिए संग्रहालयों पर खर्च करने की क्या जरूरत है? सुनने में बात सही लग सकती है. लेकिन, ऐसा है नहीं. अगर संग्रहालय महत्वहीन होते तो सभी देशों में नहीं होते. आज विश्व के हर देश के पास अपना संग्रहालय है. छोटे से छोटा देश भी दूसरों को अपने बीते कल से रू-ब-रू कराने के लिए संग्रहालय में अपने इतिहास को सहेजता है.
कल को समझने का साधन
संग्रहालय सिर्फ इतिहास को सहेजने का माध्यम नहीं हैं. उनमें रखे पुरातात्विक अवशेषों, चित्रों आदि की मदद से हमें बीते हुए कल के बारे में जानने-समझने में सहूलियत होती है. विंस्टन चíचल ने एक बार कहा था – अतीत की ओर जितना देख सकते हो देखों, इससे भविष्य की राह निकलेगी. संग्रहालय में रखी गयी चीजों को देखने से हमें वही राह देखने में मदद मिलती है. संग्रहालयों के महत्व को यूरोप ने बहुत पहले समझ लिया था. यही वजह है कि यूरोप के इंगलैंड, स्पेन और फ्रांस जैसे देशों में राजशाही ने संग्रहालयों को समृद्ध किया. इंगलैंड में ब्रिटिश म्यूजियम पहला संग्रहालय था जो न चर्च के अधीन था और न राजा के. पूरी तरह से समाज के लिए खुला हुआ था. वहां के समाज ने भी उसे समृद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
बदल गया संग्रहालय का स्वरूप
पहले संग्रहालयों में पुरातात्विक अवशेषों, चित्रों, अभिलेखों आदि को संरक्षित रखा जाता था. अब उन्हें प्रचारित भी किया जाता है. संग्रहालय जितना समृद्ध होगा, वहां पर्यटकों की तादाद सर्वाधिक होती है. लोग इतिहास को सिर्फ देख ही नहीं सकते हैं, बल्कि महसूस भी कर सकते हैं. संग्रहालयों में यह बदलाव हर देश में आया है.
दुनिया को जोड़ते हैं संग्रहालय
मानव सभ्यता के नष्ट होने और उसकी फिर से उत्पत्ति की कमोबेश एक ही तरह की कहानी हिंदुस्तान, यूरोप, मध्य एशिया आदि जगहों में सुनायी जाती है. कहा जाता है कि एक बार जल प्रलय आया और सब कुछ बह गया, सिर्फ एक आदमी और एक औरत बच गयी. उसी से मानव सभ्यता का फिर से विकास हुआ. सभी जगह थोड़ा बहुत हेरफेर कर यही कहानी सुनायी जाती है. इससे पता चलता है कि अलग-अलग मान्यताएं किसी न किसी रूप में एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं. ग्लोबल विलेज का कॉन्सेप्ट उदारीकरण के जमाने में आया है.
लेकिन ध्यान से देखा जाये तो यह बहुत पुरानी सोच है. पूरी दुनिया का समाज कमोवेश सोचता एक ही तरह से है. इसे समझने के लिए संग्रहालय की जरूरत होती है. वर्ष 2013 में ब्रिटिश म्यूजियम के निदेशक नील मैक्ग्रेगर ने भारत में यही बात कही थी. उन्होंने कहा था कि दुनिया को जोड़ने का काम करता है संग्रहालय.
38 लाख वस्तुओं का संग्रह
ले लॉउवेरे, पेरिस
मध्यकाल में लॉउवेरे फ्रांस के राजाओं का किला था. 1682 में लुइस चौदहवें ने अपना आवास बदला और लॉउवेरे को राजपरिवार के सदस्यों द्वारा किये गये संग्रह को रखने के लिए छोड़ दिया. 10 अगस्त 1793 को 537 पेंटिंग के साथ इस म्यूजियम को लोगों के लिए खोला गया. इसी संग्रहालय में लियोनादरे द विंची की पेंटिंग मोनालिसा भी है. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इस संग्रहालय में रखी गयी वस्तुओं को हटाया गया था. 1945 में फिर से कलाकृतियों को रखने का काम शुरू हुआ. इस संग्रहालय में 380000 वस्तुओं को रखा गया है.
सबसे बड़ा संग्रहालय
स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूट, अमेरिका
अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में स्थित स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूट विश्व का सबसे बड़ा म्यूजियम और रिसर्च कॉम्पलेक्स है. इसमें 19 संग्रहालय हैं. इस म्यूजियम में अमेरिका की कहानी बयां करने वाली 137 मिलियन से ज्यादा वस्तुओं को रखा गया है. कहा जाता है कि अगर कोई इस म्यूजियम के चप्पे-चप्पे को देखने की तमन्ना लेकर आयेगा तो उसे वर्षों लग सकते हैं. इसलिए आने वालों को बताया जाता है कि वे एकबार में एक या दो म्यूजियम पर ही फोकस करें. म्यूजियम ब्रिटिश वैज्ञानिक जेम्स स्मिथसन के नाम पर है. स्थापना 1846 में हुई.
यूरोपीय कला का दर्शन
म्यूजियो डेल पराडो, स्पेन
स्पेन का राष्ट्रीय संग्रहालय पराडो या म्यूजियो डेल पराडो राजधानी मैड्रिड के मध्य में स्थित है. इस संग्रहालय में 12वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी तक की यूरोपीय कला का सबसे अच्छा संग्रह है. इस संग्रहालय को समृद्ध करने का श्रेय स्पेन के पूर्व राजा को जाता है. इस संग्रहालय को विश्व में सबसे बढ़िया कला संग्रहालय का दर्जा प्राप्त है. 1819 में इसकी स्थापना पेंटिंग और स्कल्प्चर के संग्रहालय के तौर पर की गयी थी. इस समय संग्रहालय में 7600 पेंटिंग, 1000 स्कल्प्चर, 4800 प्रिंट और 8200 ड्राइंग हैं.
पेटिंग का बड़ा संग्रह
स्टेट हर्मिटेज, रूस
रूस में नेवा नदी के किनारे छह बिल्डिंग में स्थित है हमटेज संग्रहालय. यहां पर पाषाण युग से लेकर 20वीं शताब्दी तक की चीजों को रखा गया है. कैथरीन द ग्रेट ने इस म्यूजियम की स्थापना 1764 में की थी जब उन्होंने बíलन से 255 पेंटिंग खरीदा था. इसे लोगों के लिए 1852 में खोल दिया गया था. संग्रहालय का फोकल प्वाइंट है पश्चिमी यूरोपीय कला. इसमें डा विंची, पिकासो, वॉन गोह, गूगूइन सब दिख जायेंगे. इस संग्रहालय में करीब 30 लाख वस्तुओं को रखा गया है. पूरे विश्व में इस म्यूजियम में पेंटिंग का सबसे बड़ा संग्रह है.
कांस्य युग का इतिहास
एक्रोपॉलिक, एथेंस
एक्रोपॉलिक संग्रहालय मुख्यत: खुदाई में मिले पुरातात्विक अवशेषों को संरक्षित करने वाला म्यूजियम है. खुदाई में मिले ग्रीस के कांस्य युग से लेकर रोमन साम्राज्य के धरोहरों को इस संग्रहालय में सहेजकर रखा गया है. यह संग्रहालय वर्ष 2003 में शुरू हुआ था और लोगों के लिए इसे 20 जून, 2009 को खोला गया. करीब 4000 वस्तुओं को 14000 वर्ग मीटर के क्षेत्रफल में रखा गया है. वैसे एक्रोपोलिस में पहला संग्रहालय 1874 में बनकर तैयार हुआ था. बढ़ती भीड़ की वजह से 1970 में नया संग्रहालय बनाने का फैसला हुआ था.
सालभर में 60 लाख पर्यटक
वेटिकन म्यूजियम, इटली
वेटिकन म्यूजियम की स्थापना 1506 में पोप जूलियस द्वितीय ने की थी. तब से पोप द्वारा इकट्ठा की गयी कलाकृतियों के संग्रह को इसमें रखा गया है. करीब साठ लाख लोग सालाना इस संग्रहालय को देखने आते हैं. इसकी शुरुआत संगमरमर की कलाकृति खरीदने से हुई थी. 14 जनवरी, 1506 को एक कलाकृति खोजी गयी थी. पोप जूलियस द्वितीय ने गुलियानो द संगालो और माइकल एंजिलो को इस कलाकृति की सत्यता को परखने के लिए भेजा. दोनों की अनुशंसा पर पोप ने उसी समय उसके मालिक से उसे खरीद लिया.
कई बार बदला नाम
टोक्यो नेशनल म्यूजियम, जापान
जापान का सबसे बड़ा संग्रहालय है टोक्यो नेशनल म्यूजियम. इसमें करीब 110000 वस्तुओं को संग्रहित किया गया है. इसकी स्थापना 1872 में की गयी थी. इसमें एशिया के पुरातात्विक अवशेषों का अच्छा संग्रह है. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इस म्यूजियम को कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया था. इस संग्रहालय का कई बार नाम भी बदला. 1886 में इसे इंपीरियल म्यूजियम कहा जाता था. 1900 में इसका नाम टोक्यो इंपीरियल हाउसहोल्ड म्यूजियम पड़ा. 1947 में इसका नाम टोक्यो नेशनल म्यूजियम रखा गया.
अनोखा म्यूजियम
फेलोलॉजिकल म्यूजियम, आइसलैंड
आइसलैंड की राजधानी रेक्जाविक में स्थित आइसलैंडिक फैलोलॉजिकल म्यूजियम अपने आप में अनोखा है, क्योकि यह इकलौता म्यूजियम है जहां मछलियों, जानवरों से लेकर इनसानों तक के लिंग (जननांग) का संग्रह किया गया है. इस लिंग म्यूजियम की स्थापना आइसलैंड के एक निवासी सिगरदर जारटार्सन ने 1997 में की थी. इस संग्रहालय में आइसलैंड की धरती और पानी में पाये जाने वाले अधिकतर मेमल्स (बच्चे पैदा करने वाले स्तनपायी प्राणी) के लिंगों का संग्रह है, जिनकी संख्या 215 से अधिक है.
गौरवशाली अतीत
मुङो अपने समृद्ध और गौरवशाली इतिहास पर गर्व है. माधव विदेह, राजा जनक से लेकर बिंबिसार और फिर मौर्य और गुप्त शासन काल में मैं उन्नति के शिखर पर था. पाल वंश का भी शासन देखा. सम्राट अशोक ने सात समंदर पार मेरा नाम फैलाया. शेरशाह जैसे प्रतापी राजा भी यहीं के थे. बौद्ध और जैन धर्म की अवधारणा यहीं जन्मी. गुरु गोविंद सिंह की जन्मस्थली यहीं है. हमारे र्जे-र्जे में पूर्व प्रस्तर युग, मध्य पाषाण युग, नव पाषाण युग और ताम्र पाषाण युग से लेकर मध्यकालीन भारत के अवशेष हैं.
विहार से हुआ बिहार
इतिहासकार कहते हैं कि मेरा नाम विहार से बिहार हुआ. विहार यानी मठ, भिक्षुओं का निवास. वैदिक साहित्य और बौद्ध ग्रंथों में भी मेरी चर्चा है. 10वीं से 8वीं ईपू के अथर्ववेद और पंचविश ब्राह्मण ग्रंथों में मेरी चर्चा व्रात्य नाम से की गयी है. ऋग्वेद में मुङो कीकर कहा गया. शतपथ ब्राह्मण से लेकर मत्स्य, वायु और ब्रह्मांड पुराण में भी मेरी चर्चा है. महाभारत काल में सोलह चक्रवर्ती राजाओं में दो बृहद्रथ और गय (गयशीर्ष) बिहार के थे.
दूर-दूर तक मेरी चर्चा
सेल्यूकस ने जब पाटलिपुत्र का भ्रमण किया तो यहां के वैभव, एश्वर्य, कला और किले को देखता रह गया. चीनी यात्री फाहियान (319-414 ई में) जब आया तो अशोक कालीन राजप्रसाद का वैभव देख कर चमत्कृत रह गया. ह्वेन त्सांग, इत्सिंग आदि विदेशी यात्रियों ने भी मेरी चर्चा विदेशों में की. मध्यकाल में ईरानी दूत बन कर आये अब्दुल लतीफ ने रोहतास, पटना से लेकर मुंगेर और भागलपुर तक की यात्र की और हमारे इलाकों के जीवंत दृश्य का वर्णन किया.
सिकंदर का गुमान टूटा
उत्तर वैदिक काल (1000-600 ई पू) में आर्यों का आगमन हमारे आंगन में हुआ. छठी शताब्दी ईपू में भारत के 16 महाजनपदों में से तीन — वज्जि, मगध और अंग हमारे क्षेत्र में थे. मगध के बृहद्रथ के पुत्र जरासंध ने राजगृह (अब राजगीर) को अपनी राजधानी बनायी. अजातशत्रु ने लिच्छिवियों को हरा कर सम्राज्य का विस्तार किया. उसके पुत्र उदयन ने 450 ईपू में राजगृह की जगह पाटलिपुत्र (अब पटना) को राजधानी बनाया. चंद्रगुप्त मौर्य (325-301 ईपू) ने अपने राजनीतिक गुरु चाणक्य की मदद से यवनों को खदेड़ कर शक्तिशाली मगध राज्य की स्थापना की.
वैशाली : लोकतंत्र की जननी
आज दुनिया में शासन की जो सर्वश्रेष्ठ प्रणाली लोकतंत्र है, उसकी अवधारणा करीब 725 ईपू से 484 ईपू के बीच हमारे आंगन में रची गयी थी. लिच्छिवियों ने वैशाली में गणराज्य की स्थापना की थी, जो दुनिया का प्राचीनतम गणतंत्र है. यहां एक समय में करीब सात हजार राजा थे. अपने-अपने टोले के प्रमुख. प्रमुख जातियों को एक सूत्र में बांध कर वृजि संघ की स्थापना हुई. यह अपने गणतंत्रीय संविधान के लिए प्रसिद्ध है. इसके पहले विदेह के इक्ष्वाकु वंश के राजकुमार विशाल ने अपनी राजधानी वैशाली में बनायी थी. वर्धमान महावीर का जन्म बासोकुंड में हुआ था. वैशाली की भूमि बुद्ध को भी प्रिय थी.
अथर्ववेद में मगध की चर्चा
प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक मगध की चर्चा महाभारत व अथर्ववेद में भी मिलती है. तब उसकी राजधानी राजगृह हुआ करती थी. मगध के प्रथम वंश की स्थापना बृहद्रथ ने की थी, जो जरासंध का पिता था. मगध में प्रतापी राजवंशों का शासन रहा है, जिसका आरंभ शिशुनाग वंश से माना जाता है. बिंबिसार और अजातशत्रु इसी वंश के थे. बाद में नंद वंश, मौर्य वंश, कण्व वंश और गुप्त वंश का शासन भी मगध ने देखा.
अशोक का अहिंसा मंत्र
चंद्रगुप्त मौर्य के पोते अशोक ने अपने पराक्रम से न केवल भारत को राजनैतिक स्थिरता और एकता के सूत्र में बांधा,बल्कि उसने दुनिया को सत्य, अहिंसा और प्रेम का संदेश दिया. वैशाली और लौरियानंदन गढ़ का स्तूप आज भी अशोक के शासनकाल का गवाह है. उसके शासन काल में मौर्य राज्य उत्तर में हिंदुकुश से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर तक तथा पूर्व में बंगाल से पश्चिम में अफगानिस्तान तक पहुंच गया था. अशोक ने अपनी बेटी संघमित्र और वेटे महेंद्र को बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए श्रीलंका भेजा था.
मानव इतिहास को समापत
इंगलैंड की राजधानी लंदन के ब्लूम्सब्यूरी इलाके में स्थित ब्रिटिश म्यूजियम मानव इतिहास और संस्कृति को समíपत है. यहां 80 लाख से ज्यादा वस्तुओं का संग्रह है. यह संभवत: विश्व का एकमात्र संग्रहालय है, जहां विश्च के हर कोने का इतिहास देखने को और पढ़ने को मिल जायेगा.
सर हांस सलोअने के संग्रह पर आधारित ब्रिटिश म्यूजियम की स्थापना 1753 में की गयी थी. 15 जनवरी, 1759 को इस संग्रहालय को जनता के लिए खोल दिया गया. ब्रिटिश म्यूजियम अपनी तरह का पहला संग्रहालय था, जो न चर्च के अधीन था और न राजा के. यह पूरी तरह जनता के लिए खुला हुआ था और हर चीज को इकट्ठा करने को तैयार था. मिस्र की कलाकृति इस संग्रहालय की सबसे बड़ी खासियत है. मिस्र के बाहर मिस्र के प्राचीन सामान का सबसे बढ़िया संग्रह इसी संग्रहालय में है. वर्ष 2014 करीब 70 लाख लोग इस म्यूजियम में आये.
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