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काले धन पर एक अधूरी पहल

काले धन पर अंकुश लगाने का एक नया कानून पहली नजर में और अपने आप में एक अच्छी, बहुप्रतीक्षित पहल मानी जा सकती है. वैसे कालाधन और उससे संबंधित भारत की गैर-कानूनी, छिपी पहचान वाली राजनीति और अर्थव्यवस्था का एक गहरा, हमारी व्यवस्था रूपी कुव्यवस्था की जड़ों तक पहुंचा हुआ राजरोग है. कांग्रेस के लंबे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 22, 2015 10:52 AM
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काले धन पर अंकुश लगाने का एक नया कानून पहली नजर में और अपने आप में एक अच्छी, बहुप्रतीक्षित पहल मानी जा सकती है. वैसे कालाधन और उससे संबंधित भारत की गैर-कानूनी, छिपी पहचान वाली राजनीति और अर्थव्यवस्था का एक गहरा, हमारी व्यवस्था रूपी कुव्यवस्था की जड़ों तक पहुंचा हुआ राजरोग है. कांग्रेस के लंबे शासन के दौरान उत्पन्न, फैलता कष्टकर राजरोग पूरी राजनीतिक व्यवस्था पर फैल चुका है. इसकी कड़े शब्दों में भर्त्सना सभी विरोधी राजनीतिक पक्षों को अपनी साख जमाने का एक सरल और कारगर तरीका नजर आता है.

किंतु जब ये विरोधी पक्ष सत्तासीन हो जाते हैं, तो कालेधन का अब तक किया गया विरोध गले की फांस बन जाता है. एनडीए की सरकार कुछ ऐसी ही उलझन में कुछ ज्यादा ही फंस गयी है. कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज पिछले चुनावों में तथाकथित ‘कांग्रेस मुक्त’ भारत के अभियान का सबसे ज्यादा लोकलुभावन हथियार बनाया गया था. इसमें भी खास जोर देश के बाहर गैर कानूनी संपत्ति संग्रह और आमदनी उगाहनेवाली काली अर्थव्यवस्था के पहलू के सर्वाधिक उछाला गया था. इस दुखड़े को प्रभावी बनाने के लिए यहां तक कह दिया गया था कि इस धन को वापस लाकर भाजपा सरकार हर भारतीय के खाते में लाखों रुपया डाल देगी. इस मसले को लेकर लगातार विरोधी हमले से बचने के लिए इस साल के केंद्रीय बजट में विदेशों में जमा हमारे भगोड़े कालेधन विषयक कानून बनाने की घोषणा की गयी थी. संसद के चालू सत्र के दौरान इस कानून को पेश कर बजट के वादे को निभाया गया है. क्या इसका पारित होना स्वयं में एक उपलब्धि है या इस राजरोग पर अंकुश लगाना भी एक विचारणीय विषय है?

काली अर्थव्यवस्था कानून के अभाव की उपज नहीं है. कानून के चरित्र, उसको लागू करने की व्यवस्था और हमारे राजनीतिक-आर्थिक तंत्र के जमीनी स्तर पर लागू या प्रभावशील मॉडल के तर्क व कार्य में कुछ ऐसी व्यवहारिक बातें या तत्व हैं, जो कालेधन के बीज और उर्वरक हैं, उन्हें प्राणवायु देते हैं और उनकी रखवाली में मुस्तैदी से खड़े रहते हैं. संक्षेप में हमारे यहां कानून का शासन, कानून के सामने सबकी एक समान स्थिति और राजनीतिक-प्रशासनिक-सामाजिक शक्ति तथा दबदबे का आर्थिक-वित्तीय ताकत से स्वतंत्र परिचालन महज कागजी, थोथे दावे और भ्रामक भुलावे हैं. ये तीनों औपचारिक लोकतंत्र के अनिवार्य तत्व होते हैं. किंतु भारतीय लोकतंत्र का जमीनी और ठोस सत्य यह है कि यह पूरी तरह कालेधन और काली अर्थव्यवस्था और उसकी विदेशों में जमी और सक्रिय कार्यरत काली शाखामय हो गया है. ‘जल में कुंभ, कुंभ में जल है, बाहर-भीतर पानी’ की तरह की अब यह कहना मुश्किल है कि कालेधन के रंग में रंगी-पुती है. हमारी राजनीतिक अर्थव्यवस्था अथवा इस कलुषित-कालिमामय व्यवस्था में आकंठ डूबी तैर रही है हमारी लोकतांत्रिक-मिश्रित अर्थव्यवस्था.

उपयरुक्त परिपेक्ष्य में देखने पर प्रस्तावित विदेशों में पलायनित कालेधन ‘विरोधी’ या ‘निरोधक’ कानून के कुछ पहलू विचारणीय नजर आते हैं. पहली बात तो यह है कि भगोड़ी पूंजी और आमदनी को देशी आयकर कानून के दायरे से अलग करने का अर्थ यह नहीं है कि देश और विदेश में सक्रिय काली अर्थव्यवस्था में परस्पर असंबंधित, स्वतंत्र प्रक्रियाएं और संस्थान हैं. अत: कानून में दोनों शाखाओं के साङो प्रचलन-प्रचालन संबंधी बिंदुओं को पहचान कर, संबंधित संपत्ति, आय, लेन-देन आदि पर प्रावधान होने चाहिए.

दूसरे, विदेशों में नकली अंबंधित दिखनेवाली बेनामी कंपनियों के बारे में ठोस प्रावधान जरूरी हैं. भारत की कंपनियां और व्यक्ति विदेशी कंपनियों और नागरिकों को अपना बेनामी बनाते हैं. इसमें भारत मूल के अपने रिश्तेदारों के नामों का इस्तेमाल भी काफी होता है. इन मामलों में स्पष्ट खुलासा/ हलफनामा हर बाहरी खातेवाले लोगों द्वारा हमारी टैक्स अथॉरिटीज के सामने जरूरी है. टैक्स और पेनाल्टी की दर काफी कम रखी गयी है. कितना पुराना है काला लेन-देन, उसके मुकाबले दंड राशि और कर-देयता दोनों मिला कर भी काफी कम रखे गये हैं. खास तौर पर स्वयं स्वैच्छिक घोषित खुलासे पर यह दंड और कर-देयता मिला कर बहुत कम बैठते हैं, खास कर उन मामलों में जहां तक दशकों से यह कालाधन कारोबार चलाया जाता है.

इस कानून की एक खास कमी है. हमारी कार्य-प्रणाली में साल-दर-साल सारी दुनिया में कहीं भी जमा या कार्यरत पूंजी, लेन-देन का, आमदनी का यानी परिसंपत्तियों की सलाना विवरणी नहीं लेना. नये कानून द्वारा हर भारतीय की परिसंपत्तियों का पूरा लेखा-जोखा देना अनिवार्य किया जाना चाहिए, जैसा कि अन्य कई देशों ने कर रखा है. इस तरह इस वैश्वीकृत व्यवस्था में अजिर्त, प्राप्त, उगाही-वसूली हर प्रकार की परिसंपत्तियों और चालू वर्तमान सलाना आय का पूरा विवरण घोषित करना जरूरी कर देना चाहिए. इसके बिना ये कानून अप्रभावी रहेंगे और कालेधन की गंदली अर्थव्यवस्था का गोरखधंधा कम होने वाला नहीं है.

विदेश यात्र की बढ़ते प्रचलन की तह में कालेधन के देसी और परदेस में जमा जखीरे की भूमिका की भी प्रस्तावित कानून गौर नहीं कर रहा. इसमें अत्यंत उच्च कीमत वाली वस्तुओं को विदेश ले जाकर उनका इस्तेमाल एक खास तरीका बन चुका है. अत: हर कर दाता की एक लाख से ज्यादा कीमत की बेशकीमती चीजों की घोषणा करवा कर उनके विदेशों में स्थानांतरण, बिक्री, निवेश आदि पर अंकुश लगाने वाले प्रावधानों का समावेश जरूरी है.

सीमित अवधि की रियायती कर और नरम नीति पर पुराने अनुभव से सीखने की जरूरत है. शायद सेलेक्ट कमिटी स्तर पर इन सवालों पर विशेषज्ञों की राय तथा अन्य देशों की तजबीजों का अनुकरण-अनुसरण उपयोगी साबित हो. खास तौर पर संबंधित लोगों, इकाइयों और दो नंबरी गुप्त कंपनियों के बारे ंमें वैश्विक स्तर पर उपलब्ध जानकारियों का उपयोग जरूरी है.

आयात-निर्यात के द्वारा गलत घोषणाओं के द्वारा बाहर काला धन भेजा और मंगाया जाता है- खास तौर पर निर्यात आय पर कर-लाभ लेने के लिए. इसी तरह आयातित माल के ऊंचे बिल भी कर चोरी और कालेधन के पलायन के रास्ते हैं. नये कानून में देसी-विदेशी कालेधन के बारे में अलग-अलग तजबीजें या प्रावधान इस तरह भगोड़े बने धन को न तो पकड़-पहचान पायेंगे और न ही उन पर समुचित टैक्स और दंड वसूली कर पायेंगे.

कुल मिला कर प्रस्तावित ‘अघोषित विदेशी आय और परिसंपत्तियां (कर लगाना) विधेयक, 2015’ के महज एक रस्मी औपचारिकता बन कर रह जाने की आशंका प्रबल नजर आती है.

कमल नयन काबरा

वरिष्ठ अर्थशास्त्री

काला धन : साल-दर-साल

नवंबर, 1991 : स्विस पत्रिका स्विजर इलस्त्रीर्त ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी समेत 14 राजनेताओं के स्विस बैंकों में खाते होने की बात कही. पत्रिका ने गांधी के 2.2 बिलियन डॉलर जमा होने का दावा किया.

फरवरी, 2011 : भाजपानीत एनडीए गंठबंधन ने विदेशों में जमा काले धन पर एक पुस्तिका जारी की, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके पति पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर आरोप लगाये गये थे.

जून, 2011 : तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 89.16 बिलियन डॉलर काला धन विदेशों में होने के कथित दावों और आकलनों पर सवाल उठाया, पर आश्वासन दिया कि काला धन वापस लाने के लिए सरकार हरसंभव प्रयास करेगी.

जून, 2011 : काला धन के उद्भव और उसके रोकथाम के उपायों के अध्ययन के लिए सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज के तत्कालीन अध्यक्ष एमसी जोशी के नेतृत्व में उच्च-स्तरीय कमिटी का गठन.

नवंबर, 2013 : भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने काला धन वापस लाने का वादा किया और नया कानून बनाने की मांग की. लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने इस मुद्दे को अपने प्रचार का केंद्र-बिंदु बनाया.

फरवरी, 2014 : तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने काले धन पर विपक्ष की चिंता से सहमति जतायी और इस संबंध में मिल-जुल कर काम करने का भरोसा दिलाया.

मार्च, 2014 : तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि उन्होंने काले धन के मामले को अपने हाथ में ले लिया है. कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में इस पर एक विशेष दूत नियुक्त करने का वादा किया.

अप्रैल, 2014 : भाजपा ने विशेष टास्क फोर्स गठित करने का सुझाव दिया.

काला धन और अन्ना आंदोलन

5 अप्रैल, 2011 को गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे के नेतृत्व में दिल्ली के ऐतिहासिक जंतर-मंतर पर भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन की शुरूआत हुई. उच्च पदों पर भ्रष्टाचार रोकने के लिए अन्ना ने मांग की थी कि एक ठोस लोकपाल कानून अविलंब बनाया जाये. इस आंदोलन में काला धन रोकने और घोटालों के दोषियों को सजा देने की मांग भी थी. यूपीए सरकार के कार्यकाल में उजागर होते एक के बाद एक बड़े घोटालों से फैले असंतोष और अन्ना के अनशन के कारण जल्दी ही यह आंदोलन देश के अन्य शहरों में भी फैल गया. इस आंदोलन को अनेक विपक्षी दलों का भी समर्थन प्राप्त हुआ.

4 जून, 2011 को बाबा रामदेव ने काला धन के मुद्दे पर राजधानी के रामलीला मैदान में आंदोलन शुरू किया. इन आंदोलनों से दबाव में पड़ी सरकार और कांग्रेस पार्टी ने अन्ना पर अनर्गल आरोप लगाये और रामदेव के शिविर पर बल-प्रयोग कर आंदोलन को समाप्त कर दिया.

16 अगस्त, 2011 को आंदोलन के लिए निकलते समय ही अन्ना हजारे को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन इससे आंदोलन और सघन ही होता गया. जनता के दबाव में सरकार को न सिर्फ हजारे को रिहा करना पड़ा, बल्कि उनकी मांगों पर विचार का आश्वासन भी देना पड़ा.

27 अगस्त, 2011 को संसद ने भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए कानून बनाने पर बहस की और अगले दिन अन्ना हजारे ने अपना अनशन तोड़ दिया.

27 दिसंबर, 2011 को अन्ना ने मुंबई में अनशन किया. इसी दिन लोकसभा ने लोकपाल विधेयक पर चर्चा की.

25 मार्च, 2012 को जंतर-मंतर पर अन्ना ने कमजोर भ्रष्टाचार-विरोधी कानून के खिलाफ एक दिन का अनशन किया.

3 जून, 2012 को हजारे का पुन: एक दिवसीय उपवास. रामदेव की भी भागीदारी.

25 जुलाई से अन्ना का आमरण अनशन शुरू. यह उपवास 3 अगस्त तक चला. अन्ना ने कहा कि चूंकि सरकार इस संबंध में गंभीर नहीं है, इसलिए वे उपवास तोड़ रहे हैं, तथा अब नये सिरे से आंदोलन खड़ा किया जायेगा.

26 नवंबर, 2012 को अन्ना के कुछ वरिष्ठ सहयोगियों ने उनकी मर्जी के विपरीत आम आदमी पार्टी के नाम से नये राजनीतिक दल का गठन किया, तथा अन्य अन्ना के साथ ही सामाजिक आंदोलनों में शिरकत करते हैं.

‘अघोषित विदेशी आय और परिसंपत्तियां (कर लगाना) विधेयक, 2015’ : एक नजर में

लोकसभा में 20 मार्च, 2015 को पेश अघोषित विदेशी आय और परिसंपत्तियां (कर लगाना) विधेयक 2015 की खास बातें-

दायरा

यह अधिनियम देश में रहनेवाले सभी व्यक्तियों पर लागू होगा. इस अधिनियम के प्रावधान अघोषित विदेशी आय और परिसंपत्तियां (किसी संस्था में वित्तीय हितों सहित) दोनों पर लागू होंगे.

कर की दर

अघोषित विदेशी आय और परिसंपत्तियों पर 30 प्रतिशत की समान दर पर कर लगाया जायेगा. वर्तमान आयकर अधिनियम, 1961 के अधीन स्वीकार्य किसी छूट या कटौती या आगे ले जानेवाली हानियों को अलग रखने (सेट-ऑफ) की अनुमति नहीं दी जायेगी.

दंड

प्रस्तावित नये कानून के प्रावधानों के उल्लंघन पर कठोर दंड मिलेगा. भारत से बाहर आय और परिसंपत्ति की जानकारी न देने पर उस संपत्ति पर देय कर का तीन गुना अर्थात् अघोषित आय या अघोषित परिसंपत्ति का 90 प्रतिशत कर देना होगा. यह कर 30 प्रतिशत देय कर से अलग होगा. विदेशी आय या परिसंपत्ति के बारे में रिटर्न जमा न करने पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जायेगा. दंड की यही राशि उन मामलों में भी निर्धारित है, जिनमें करदाता ने आय कर रिटर्न तो दाखिल किया है, लेकिन उसने विदेशी आय या परिसंपत्ति की घोषणा नहीं की है या इसके बारे में गलत ब्योरा जमा किया है.

अभियोजन

इस विधेयक में विभिन्न प्रकार के उल्लंघन करने पर सजा बढ़ाने का प्रस्ताव है. इसमें विदेशी आय या भारत से बाहर संपत्ति होने के संबंध में कर प्रवंचना का जान-बूझकर प्रयास करने के मामले में तीन साल से दस साल तक की कठोर सजा के दंड का प्रावधान है. इसके अलावा जुर्माना भी लगाया जायेगा.

विदेशी परिसंपत्तियों, आय और बैंक खातों के संबंध में रिटर्न जमा न करने पर छह महीने से लेकर सात वर्ष तक की कठोर कारावास की सजा दी जायेगी. उन मामलों में भी इतनी ही सजा निर्धारित है, जिनमें करदाता ने आय कर रिटर्न तो दाखिल किया है, लेकिन विदेशी परिसंपत्ति की घोषणा नहीं की है या इसके बारे में गलत ब्योरा जमा

किया है.

उपरोक्त प्रावधान ऐसी अवैध विदेशी परिसंपत्तियों से लाभान्वित होनेवाले मालिकों या लाभार्थियों पर भी लागू होंगे. ऐसे कृत्य पर छह महीने से लेकर सात वर्ष तक की कठोर कारावास की सजा मिलेगी. यह प्रावधान विदेशी आय या निवासी भारतीयों की परिसंपत्तियों को छिपाने या झूठे दस्तावेजों में मदद करनेवाले बैंकों और वित्तीय संस्थानों पर भी लागू होगा.

संरक्षण

स्वाभाविक न्याय कानून की उचित प्रक्रिया के सिद्धांतों को इस अधिनियम में शामिल किया गया है, जिसमें जिस व्यक्ति के विरुद्ध कार्रवाई शुरू की जा रही है, उसके लिए उसे नोटिस जारी करना अनिवार्य बनाने, उसकी बात सुनने का अवसर प्रदाने करने, उस व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत सबूत को लेने की अनिवार्यता, कारणों को रिकार्ड करना, लिखित में आदेश देना, कर प्राधिकारी की विभिन्न कार्रवाइयों की समय सीमा आदि को इसमें शामिल किया गया है. इसके अलावा उस व्यक्ति के आगे अपील करने के अधिकार को संरक्षित किया गया है. वह कानून के महत्वपूर्ण सवालों पर आयकर अपीलीय पंचाट, उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकता है. भूल या अज्ञानता के कारण थोड़ी राशि के विदेशी खाता रखनेवाले व्यक्तियों की संरक्षा के लिए यह प्रावधान किया गया है कि वर्ष के दौरान कभी भी पांच लाख रुपये की अधिकतम राशि के बैंक खातों की जानकारी न देने पर जुर्माना या सजा नहीं मिलेगी.

नियमों में अन्य सुरक्षा उपायों और आंतरिक नियंत्रण कार्यप्रणाली निर्धारित की जाएंगी.

अनुपालन अवसर

यह विधेयक उस व्यक्ति को सीमित अवधि के लिए एक बार अनुपालन अवसर प्रदान करता है, जिसके पास कोई अघोषित विदेशी परिसंपत्ति है, जिसका आयकर के उद्देश्यों के लिए खुलासा नहीं किया गया है. ऐसा व्यक्ति निर्धारित अवधि में निर्दिष्ट कर प्राधिकारी के सामने एक घोषणा प्रस्तुत करेगा और उसके बाद 30 प्रतिशत की दर से और उसी के बराबर राशि के दंड का भुगतान करेगा. ऐसे व्यक्तियों पर नये अधिनियम के कठोर प्रावधानों के अधीन मुकदमा नहीं चलाया जायेगा. यह भी ध्यान रहे कि यह कोई माफी योजना नहीं है, क्योंकि दंड में कोई छूट देने की पेशकश नहीं की गयी है. यह केवल नये लागू हो रहे अधिनियम के कठोर प्रावधानों के सामने व्यक्तियों को स्वच्छ और अनुपालक बनने के लिए मात्र एक अवसर प्रदान करना है.

पीएमएलए का संशोधन

यह विधेयक कर प्रवंचना के अपराध को प्रस्तावित विधेयक के अधीन पीएमएलए के तहत एक अनुसूचित अपराध के रूप में शामिल करने के लिए मनी लांड्रिंग अधिनियम (पीएमएलए), 2002 को संशोधित करने का प्रस्ताव करता है.

विधेयक सही, अन्य कदम भी जरूरी

जेडी अग्रवाल

वरिष्ठ अर्थशास्त्री (कालाधन विषय पर 1994-95 में महत्वपूर्ण शोध कर चुके हैं)

काले धन के संबंध में एक व्यापक कानून बनाने के आम बजट में किये गये वादे को आगे बढ़ाते हुए केंद्र सरकार ने इससे संबंधित विधेयक लोकसभा में पेश कर दिया है. इस तरह पहली बार किसी सरकार ने विदेशों में जमा काले धन पर रोक लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाया है. इसमें 10 साल तक की सजा का भी प्रावधान किया गया है. लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस कानून का क्रियान्वयन कैसे और कितना कारगर होगा? साथ ही, विदेशों में जमा कितना काला धन वापस आ पायेगा?

हमारे देश में काले धन की अर्थव्यवस्था का आकार लगातार बढ़ता जा रहा है. इस पर प्रभावी रोक के बिना आर्थिक सुधार का फायदा आम लोगों को नहीं मिल सकता है. अब सरकार ने सख्त कानून बना कर काला धन जमा करनेवालों को एक संदेश देने की कोशिश की है. लेकिन, केवल कानून से विदेशों में जमा काला धन वापस भारत नहीं आ जायेगा. अगर कानून से ही समस्या का समाधान होता तो देश में सामाजिक बुराइयां और अपराध काफी कम हो गये होते.

विदेशी बैंकों में जमा काला धन प्रभावशाली लोगों का है. एक कड़े कानून के बाद इसमें से कुछ पैसा जरूर वापस आयेगा, लेकिन बड़ी रकम के आने की उम्मीद काफी कम है. सरकार को चाहिए कि काला धन जमा करनेवालों को पैसा वापस लाने के लिए प्रोत्साहित करने के कदम भी उठाये.

इस तरह का कानून बनाने के पीछे राजनीतिक वजह भी है. पिछले 9 महीने से विपक्षी दल सरकार पर काला धन वापस लाने का दबाव लगातार बनाये हुए थे. ऐसे में एक नया कानून बना कर सरकार ने विपक्ष के आरोपों को कमजोर कर दिया है. मेरा मानना है कि इस कानून की बजाय प्रोत्साहन की नीति अपनाने से 60-70 फीसदी काला धन वापस आ सकता है. आर्थिक उदारीकरण के बाद देश के अंदर काले धन का प्रभाव तेजी से बढ़ा है. इसलिए साथ-साथ घरेलू काले धन पर रोक लगाने पर भी ध्यान देना चाहिए. कालाधन की उत्पत्ति कम हो तो अर्थव्यवस्था की गति तेज होगी, लोगों को रोजगार के अधिक और बेहतर साधन मिलेंगे.

विदेशों में जमा काले धन का सटीक अनुमान मुश्किल है. 94-95 में भी अमेरिका को हर साल 4 बिलियन डॉलर कम कीमतें दिखा कर सामान भेजा जाता था. ऐसा ही दूसरे देशों के साथ होता था. अगर उस समय की सरकार इस मामले में सख्ती बरतती, तो अरबों रुपये भारत सरकार को मिलते.

अब बड़ा सवाल यह नहीं है कि कालाधन 400 बिलियन का है या 800 बिलियन का. सबसे महत्वपूर्ण है कि कैसे काले धन पर प्रभावी रोक लगे. प्रस्तावित कानून की अच्छी बात यह है कि इसके दायरे में फाइनेंस एडवाइजर, सीए और काले धन की जानकारी रखनेवालों को भी रखा गया है.

जहां तक दोहरी कराधान संधि के काले धन को वापस लाने में बाधक बनने की बात है, वास्तव में ऐसा नहीं है. विश्व में सबसे ज्यादा रेमीटेंस (भेजी हुई रकम) भारत में ही आता है. एनआरआइ भारत में काफी पैसा भेजते हैं. ऐसा दोहरी कराधान संधि के कारण ही संभव हो रहा है. इस रेमीटेंस के कारण चालू बचत घाटा कम करने में मदद मिलती है. 1991 में आये आर्थिक संकट की मुख्य वजह रेमीटेंस के प्रवाह में कमी थी.

नये कानून के जरिये सरकार ने काले धन पर अंकुश लगाने के लिए एक सुदृढ़ और प्रभावी कदम उठाया है, लेकिन घरेलू काले धन पर रोक की दिशा में भी कारगर कदम उठाने की आवश्यकता है. काले धन की अर्थव्यवस्था के बढ़ते आकार को कम किये बिना देश से असमानता और गरीबी को दूर नहीं किया जा सकता है. कानून के प्रभावी क्रियान्वयन पर भी सरकार को ध्यान देने की जरूरत है. गवर्नेस में व्यापक सुधार की जरूरत है. पारदर्शी और जबावदेह शासन ही इस समस्या पर प्रभावी रोक लगा सकता है.

(विनय तिवारी से बातचीत पर आधारित)

पार्टियां कालाधन से चुनाव लड़ेंगी, तो इसे कैसे रोकेंगी!

अनुपमा झा

ट्रेस इंटरनेशनल से जुड़ी हैं जो कि भ्रष्टाचार नियंत्रण पर काम करती है.

विदेश में जमा काले धन के खिलाफ प्रस्तावित कानून से यह भरोसा जगा है कि मोदी सरकार काले धन को लेकर गंभीर है और कुछ करने की मंशा रखती है. लेकिन, कठोर कानून बना देने मात्र से काला धन वापस आने की कोई संभावना नहीं है. विदेश में मोटा काला धन जमा करनेवाले मंङो हुए खिलाड़ी इतनी आसानी से घुटने नहीं टेकेंगे.

देश में पहले से भी काला धन पर अंकुश के कानून हैं, पर कार्यान्यवयन के स्तर पर कमियों के कारण काला धन के साम्राज्य को निरंतर विस्तार मिलता रहा है. इसमें दो बातें महत्वपूर्ण हैं. पहली, दुनिया का कोई भी देश कालाधन वापस नहीं ला पाया है, और दूसरी, ज्यादातर काला धन गरीब और विकासशील देशों से टैक्स हेवेन बने देशों में जमा कराया जाता है. दुनिया के जो बड़े देश है वे अपने यहां सामाजिक कल्याण के बराबरी पूर्ण बंटवारे (इक्वीटेबल डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ वेलफेयर) के जरिये काला धन पैदा ही नहीं होने देते. विकासशील देशों में कानून में और उसके कार्यान्यवयन के तौर-तरीके में कमियां खोज कर कानून का मजाक उड़ाया जाता है. इसलिए नये कानून का सही तरीके से कार्यान्यवयन होने पर ही यह प्रभावी हो पायेगा. इस कानून से विदेशों में जमा काला धन वापस लाने में कितनी मदद मिलेगी, यह कहना जल्दबाजी होगी, पर मनौवैज्ञानिक असर होगा. इसके तहत कुछ बड़ी मछलियां पकड़ी जाएंगी, तब असर जरूर होगा.

एक और महत्वपूर्ण प्रश्न है. देश के ज्यादातर नेता विदेश में जमा कालाधन के मसले को अक्सर जोर-शोर से उठाते हैं लेकिन इस देश में जो काला धन है, और काले धन की जो अर्थव्यवस्था है, उस पर नकेल के लिए कोई कुछ नहीं कहता. इस देश के राजनेता काला धन के सवाल पर चुनाव तो लड़ते हैं, लेकिन यह कोई नहीं बताता कि सारे राजनीतिक दल काले धन का इस्तेमाल करते हुए ही चुनाव लड़ते हैं. काला धन के निर्माण की प्रक्रिया को किस तरह से हतोत्साहित किया जाये, इस सवाल पर कोई दल कुछ नहीं बोलता.

(संतोष कुमार सिंह से बातचीत पर आधारित)

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