दिमाग टेक्स्ट और इमेज से सीखता है तकनीकी कॉन्सेप्ट

हम यह तो जानते हैं कि किसी चीज को सीखने-समझने का काम हमारा दिमाग करता है, लेकिन खास कर तकनीक से जुड़े कॉन्सेप्ट्स को सीखने के दौरान इंसान के मस्तिष्क में किस तरह की गतिविधियां होती हैं, इसे जानने की दिशा में वैज्ञानिकों ने कुछ नयी कामयाबी हासिल की है. तकनीकी कॉन्सेप्ट को समझने के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 2, 2015 12:56 AM

हम यह तो जानते हैं कि किसी चीज को सीखने-समझने का काम हमारा दिमाग करता है, लेकिन खास कर तकनीक से जुड़े कॉन्सेप्ट्स को सीखने के दौरान इंसान के मस्तिष्क में किस तरह की गतिविधियां होती हैं, इसे जानने की दिशा में वैज्ञानिकों ने कुछ नयी कामयाबी हासिल की है.

तकनीकी कॉन्सेप्ट को समझने के दौरान दिमाग में होनेवाले बदलावों को जानने के लिए वैज्ञानिकों ने फंक्शनल मैग्नेटिक रिजॉनेंस इमेजिंग (एफएमआरआइ) का इस्तेमाल किया है. दिमाग कैसे सीखता है तकनीकी कॉन्सेप्ट, क्या है इस शोध का मतलब, क्या है एफएमआरआइ और कैसे करता है यह कार्य, ऐसी ही जानकारियों के बीच ले जा रहा है नॉलेज.

दिल्ली : आम तौर पर हमारा दिमाग हमेशा कुछ न कुछ सीखने की प्रक्रिया में लगा रहता है. जब हम किसी नये तकनीकी कॉन्सेप्ट को सीख रहे होते हैं, उस दौरान हमारे दिमाग में कई तरह की प्रक्रियाएं होती हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि वाकई में उस दौरान होता क्या है? हालांकि, इसका रहस्य अब तक पूरी तरह से उजागर नहीं हो पाया है, लेकिन तकनीकी या इससे जुड़ी अवधारणाओं को सीखने के दौरान हमारे दिमाग में किस तरह की चीजें चलती हैं, इसे जानने में हाल में वैज्ञानिकों को कुछ हद तक सफलता मिली है.

कारनेगी मेलॉन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के एक समूह ने इस संदर्भ में एक व्यापक शोध किया है. ‘न्यूरॉलमेज’ पत्रिका के हवाले से ‘टेक टाइम्स’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि शोधकर्ताओं ने अपने शोध में 16 स्वस्थ वयस्क वॉलंटियर्स को शामिल करते हुए चार मैकेनिकल चीजों के बारे में उन्हें कई अनुदेश दिये और उसके बाद इस बात का परीक्षण किया कि उनके दिमाग में वे किस प्रकार कार्य करते हैं. अनुदेश प्राप्त होने के बाद सभी वॉलंटियर्स की प्रतिक्रियाओं का व्यापक परीक्षण किया गया.

शोधकार्य के लिए इस्तेमाल किये गये वयस्क कार्यकर्ताओं को बाथरूम स्केल के डायग्राम, अग्निशामक, ट्रम्पेट (तुरही) और कार ब्रेक सिस्टम से रूबरू कराया गया. इसके बाद उनकी गतिविधियों को इस तरह से देखा गया, जैसे वे किसी नयी चीज के बारे में सीख रहे हों. इन कार्यकर्ताओं के मस्तिष्क को पढ़ने के लिए वैज्ञानिकों ने ‘एफएमआरआइ’ (फंक्शनल मैग्नेटिक रिजॉनेंस इमेजिंग) का इस्तेमाल किया. इस तकनीक के माध्यम से उनके मस्तिष्क को स्कैन किया गया. वॉलंटियर्स द्वारा इन चीजों को सीखते समय उनके दिमाग में किस तरह की हरकत होती है और कैसे चित्र उभरते हैं, उन सभी की स्कैनिंग की गयी. वैज्ञानिकों ने जाना कि सीखने का कार्य किस तरह से विभिन्न स्टेज में संपन्न होता है. साथ ही यह भी जाना गया कि यह कार्य दिमाग के विभिन्न हिस्सों (पार्ट्स) में पूरा होता है.

क्या है पूरी प्रक्रिया

इस प्रक्रिया के पहले भाग में देखा गया कि मस्तिष्क के विजुअल पार्ट चित्रों को खोजने में किस तरह सक्रिय हो जाते हैं. मध्य स्टेज में दिमाग ‘मेंटल एनिमेशन’ पर जोर देता है, जिसमें निर्धारित आइटम को सचित्र कार्यशील बनाता है. देखा गया है कि इन कार्यो में दिमाग के तीन हिस्से- पेरिएटल (पाश्र्विका), टेंपोरल (लौकिक) और फ्रंटल (ललाट) कार्य करते हैं. आखिर में फ्रंटल और मोटर ब्रेन वाले क्षेत्र इमेजिनिंग के आधार पर सक्रिय होते हैं. इस दौरान सीखने की सभी चीजों को इस्तेमाल में लाया जाता है.

उदाहरण के तौर पर, बाथरूम स्केल का चित्र देखने के बाद वॉलंटियर्स के दिमाग में उसकी सूचना विजुअल रूप में उभर कर सामने आयी. उसके बाद उनके दिमाग के अन्य हिस्सों ने उन्हें इस बात को समझने में सहयोग किया कि स्केल में प्रत्येक हिस्से किस प्रकार इधर-उधर होते हैं. इस प्रकार आखिर में उनके दिमाग ने उन चीजों का खाका खींचा कि स्केल किस तरह से काम करते हैं.

इस शोध अध्ययन के लेखक रॉबर्ट मेसन का कहना है कि उपरोक्त प्रक्रिया पूरी किये जाने के बाद इस बात के साक्ष्य मिले और मौलिक रूप से यह जाना गया कि सटीक अनुदेश हासिल होने के बाद दिमाग में चीजें गहन स्तर पर किस तरह से कार्य करती हैं. उनका मानना है कि इस गहन स्तर तक की गयी दिमाग की माप से प्रदर्शित हुए नतीजों का इस्तेमाल भविष्य में वैज्ञानिक कॉन्सेप्ट्स और अन्य विधाओं को विकसित करने में लागू करने के लिए किया जा सकता है.

दूसरे अर्थो में यह शोध इस चीज को दर्शाता है कि चित्र और टेक्स्ट के मिश्रण से क्लासरूम में बच्चे किस तरह से नयी चीजों को सीखते हैं और खासकर विज्ञान तथा गणित पढ़नेवाले छात्रों में यह प्रक्रिया किस तरह से काम करती है. ‘कारनेगी मेलन’ में मनोविज्ञान के प्रोफे सर मार्सेल जस्ट का कहना है कि यह अध्ययन इस बात को दर्शाता है कि मैकेनिकल सिस्टम्स को सीखने की ब्रेन ग्राउंडेड थ्योरी, जो कि विज्ञान में सीखने की प्रक्रिया का एक हिस्सा है, एक प्रकार से संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का नतीजा है.

फंक्शनल मैग्नेटिक रिजॉनेंस इमेजिंग को जानें

एफएमआरआइ यानी ‘फंक्शनल मैग्नेटिक रिजॉनेंस इमेजिंग’ ब्रेन एक्टिविटी (मस्तिष्क के क्रियाकलापों) को मापने की प्रचलित तकनीक एमआरआइ का ही एक रूप है. यह ब्लड ऑक्सीजेनेशन और उसके बहाव में होनेवाले बदलावों की पहचान करते हुए कार्य करता है, जो न्यूरल यानी तंत्रिका संबंधी गतिविधियों के कारण होती है. इस तरह का बदलाव खासकर तब होता है, जब दिमाग के सर्वाधिक सक्रिय क्षेत्र में रक्त के बहाव की मात्र बढ़ जाती है. नतीजन दिमाग के उस हिस्से में ऑक्सीजन ग्रहण करने की प्रक्रिया में तेजी आ जाती है.

एफएमआरआइ का इस्तेमाल दिमाग के उस हिस्से का एक्टिवेशन मैप्स दर्शाने में किया जा सकता है, जो मेंटल प्रोसेस (मानसिक प्रक्रिया) में लिप्त होता है. मेडिकल क्षेत्र की एक वेबसाइट ‘साइक सेंट्रल’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एफएमआरआइ का विकास वर्ष 1990 में किया गया. आम तौर पर इसे विकसित करने में सेजी ओगावा और केन क्वॉन्ग का योगदान रहा है. इन वैज्ञानिकों द्वारा मस्तिष्क की गतिविधियों का अनुमान लगाने के लिए ऑक्सीजन मेटाबॉलिजम व रक्त के प्रवाह को समझने में इस्तेमाल किये जानेवाले इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कॉपी की प्रक्रिया के दौरान एफएमआरआइ को विकसित किया गया.

ब्रेन इमेजिंग तकनीक के तौर पर विकसित की गयी एफएमआरआइ की कुछ खासियतें इस प्रकार हैं-

– यह आक्रामक नहीं है और न ही यह रेडिएशन में लिप्त है. इस लिहाज से यह गुण इसे पारंपरिक तकनीक से ज्यादा सुरक्षित बनाता है. त्न यह उत्कृष्ट स्थानिक होने के साथ अस्थायी रिजॉलुशन वाली तकनीक है.

– कोई भी इस्तेमालकर्ता इसे आसानी से इस्तेमाल में ला सकता है.इसकी यही खासियत इसे कुछ मामलों में ज्यादा लोकप्रिय बनाती है और मस्तिष्क के कार्यकलापों की इमेजिंग के लिए यह दुनियाभर में एक लोकप्रिय साधन बन रहा है- खासकर मनोवैज्ञानिकों के लिए. पिछले एक दशक में इसने कई चीजों के शोधकार्य में एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया है. जैसे- दिमाग में किस प्रकार मेमोरी की रचना होती है, भाषा, दर्द, भावनाओं आदि को दिमाग का कौन सा हिस्सा समझने में सक्षम होता है.

कुछ समय पहले अमेरिकी शोधकर्ताओं की एक रिसर्च प्रकाशित हुई थी, जिसमें बताया गया था कि अच्छी कहानियां पढ़ने से दिमाग के काम करने का तरीका भी बदला जा सकता है. एक जबर्दस्त कहानी दिमाग में याददाश्त बढ़ाती है. कहानी पढ़ने से शरीर में तंत्रिका संबंधी बदलाव होते हैं, उत्तेजना होती है और हम कहानी के किरदारों में खुद को महसूस करने लगते हैं. इस तरह ध्यान से कोई किताब पढ़ते समय दिमाग आभासी दुनिया में पहुंच जाता है और उन्हीं गतिविधियों को सही मानता है. अगर आप कुछ ज्यादा ही नकारात्मक सोचते हैं, तो अच्छी किताबें पढ़ कर आप अपने सोचने के तरीके को पॉजिटिव बना सकते हैं. इस तरह के तमाम रिसर्च में एफएमआरआइ जैसी वैज्ञानिक पद्धति का ही सहारा लिया जाता है.

कैसे काम करता है एमआरआइ स्कैनर

एमआरआइ स्कैनर का सिलिंड्रिकल ट्यूब एक बेहद शक्तिशाली इलेक्ट्रो-मैग्नेट को समेटे रहता है. एक टिपकल रिसर्च स्कैनर का फिल्ड स्ट्रेंथ तीन टेसला तक शक्तिशाली होता है, जो धरती के क्षेत्र से करीब पचास हजार गुना ज्यादा है. सामान्य तौर पर एटॉमिक न्यूक्लियाइ यानी केंद्रक को रैंडम तौर पर संयोजित किया जाता है, लेकिन मैग्नेटिक फील्ड के प्रभाव के तहत ये केंद्रक के क्षेत्र की दिशा के मुताबिक संयोजित होते हैं.

इसका फील्ड जितना मजबूत होगा, यह संयोजन उतना ही बड़ा होगा. जब यह समान दिशा में निर्देशित होती है, तो खास केंद्रक से निकले छोटे मैग्नेटिक सिगनल से जुड़कर बड़े हो जाते हैं. इस स्तर पर पहुंचने के बाद ही इसे मापा जा सकता है. एफएमआरआइ में यह पानी में हाइड्रोजन केंद्रक से हासिल मैगनेटिक सिगनल के रूप में होता है, जिसे पहचाना या मापा जाता है. एमआरआइ का प्रमुख कारक हाइड्रोजन केंद्रक के आसपास की मजबूती पर निर्भर करता है. यह मस्तिष्क में बननेवाली संरचनात्मक तसवीरों में ग्रे मैटर, व्हाइट मैटर और सेरेब्रल स्पाइनल फ्लूड के बीच के फर्क को बताता है.

दरअसल, कैपिलरी रेड ब्लड सेल्स में हिमोग्लोबिन द्वारा न्यूरॉन्स को ऑक्सीजन भेजा जाता है. तंत्रिका संबंधी सक्रियता जब बढ़ती है, तो ऑक्सीजन की मांग बढ़ जाती है और इसका नतीजा यह होता है कि संबंधित तंत्रिकावाले क्षेत्रों में रक्त का बहाव तेज हो जाता है. इस प्रकार ऑक्सीजेनेट होने की अवस्था में हिमोग्लोबिन डायामैग्नेटिक (विषम चुंबकीय) हो जाता है, लेकिन डीऑक्सीजेनेटेड होने की अवस्था में यह पारामैग्नेटिक (सम चुंबकीय) हो जाता है. चुंबकीय गुणों में यह फर्क रक्त के एमआर सिगनल में आनेवाले कम अंतर की ओर ले जाता है, जो ऑक्सीजेनेशन की प्रक्रिया पर निर्भर करता है.

चूंकि ब्लड ऑक्सीजेनेशन की प्रक्रिया तंत्रिका की गतिविधियों के स्तर के अनुसार बदलती है, इन बदलावों का इस्तेमाल मस्तिष्क की गतिविधियों को इस्तेमाल करने में किया जा सकता है. एमआरआइ के इस प्रारूप को ‘ब्लड ऑक्सीजेनेशन लेवल डिपेंडेंट इमेजिंग’ के नाम से जाना जाता है.

दिमाग में होता है दैनिक कामकाज का ब्योरा

इंसान का दिमाग कैसे काम करता है, यह सवाल हम सभी के मन में हमेशा कौतूहल पैदा करता रहता है. हमारी इस जिज्ञासा को दूर करने के लिए वैज्ञानिकों ने ऐसा पहला नक्शा तैयार किया है, जिसमें दिमाग के दैनिक कामकाज का ब्योरा दर्ज होता है. इस नक्शे की मदद से हम जान सकते हैं कि आंखों ने दिनभर जो कुछ भी देखा उसे दिमाग ने कहां रखा.

‘डेली मेल’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले की एक टीम ने पता लगाया है कि दिमाग चीजों और क्रियाकलापों को व्यवस्थित तरीके से क्रम में रखता जाता है. इस प्रक्रिया को समझाने के लिए उन्होंने एक नक्शा भी तैयार किया है. शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर की मदद से दिमाग द्वारा एकत्र किये जा रहे तत्वों को एक जगह रखा. शोध के लिए चुने गये लोगों को उन्होंने कुछ घंटों तक वीडियो क्लिप्स दिखाये. इस दौरान उन लोगों के दिमाग में जो गतिविधियां हुई, उन्हें रिकॉर्ड किया गया. इस तरह से दिमाग के कामकाज का नक्शा तैयार हुआ.

यहां भी वैज्ञानिकों ने एफएमआरआइ तकनीक का इस्तेमाल किया. उन्होंने फंक्शनल मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एफएमआरआइ) से पता लगाया कि दिमाग का कौन सा हिस्सा आंखों द्वारा देखी गयी किस चीज पर क्या प्रतिक्रिया देता है.

शोधकर्ताओं ने कॉर्टेक्स के 30 हजार हिस्सों द्वारा करीब 1,700 प्रकार के चित्रों और कार्यो में आपसी संबंध का पता लगा कर एक मॉडल तैयार किया. मुख्य शोधकर्ता के हवाले से इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इससे शोध से नये रास्ते खुलेंगे और दिमाग के प्रति हमारी समझ विकसित होगी. उनका मानना है कि इंसानी दिमाग ने चीजों की पहचान के लिए हजारों श्रेणियां बना रखी हैं. इन्हीं की मदद से वह आंखों द्वारा देखी जा रही विभिन्न चीजों को क्रम से रखता जाता है.

महिलाएं अक्सर देर से समझती हैं चुटकुले

शायद आपने गौर किया हो या नहीं, लेकिन अक्सर चुटकुले सुनते-सुनाते समय महिलाएं कुछ देर बाद हंसती हैं. हो सकता है कि आप इसे मजाक समझ रहे हों, लेकिन यदि आप गौर करेंगे तो आपको कुछ हकीकत महसूस होगी. दरअसल, हाल ही में किये गये एक अध्ययन में यह बात साबित हुई है कि महिलाओं को चुटकुले समझने में पुरुषों के मुकाबले ज्यादा समय लगता है.

हालांकि, इस संबंध में एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि महिलाएं चुटकुले भले ही देर से समझती हों, लेकिन पुरुषों के मुकाबले इनका मजा वे ज्यादा लेती हैं. स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी, कैलिफोर्निया के शोधकर्ताओं का कहना है कि महिलाएं चुटकुले को सुनने और समझने में पुरुषों के मुकाबले दिमाग का ज्यादा हिस्सा इस्तेमाल करती हैं और बहुत कम चुटकुलों को वह ‘फनी’ समझती हैं. ऐसे में कम ही ऐसे चुटकुले होते हैं, जो उन्हें हंसा सकें.

इस अध्ययन में बड़ी संख्या में महिलाओं के ‘सेंस ऑफ ह्यूमर’ को परखा गया. इस अध्ययन में पता चला कि महिलाएं ज्यादा सोफिस्टिकेटेड ह्यूमर पसंद करती हैं और मतलब समझने के लिए ज्यादा दिमाग लड़ाती हैं. इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता फेसर एलन रेसिस के हवाले से एक रिपोर्ट में बताया गया है कि महिलाएं चुटकुले सुनते वक्त पुरुषों के मुकाबले अपने दिमाग का ज्यादा इस्तेमाल करती हैं.

इसी वजह से वे इसका ज्यादा मजा भी लेती हैं. इस अध्ययन के लिए फंक्शनल मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एफएमआरआइ) टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया था, ताकि ज्यादा बेहतर तरीके से यह पता लगाया जा सके कि चुटकुले सुनने के बाद पुरुष और महिला के हंसने के दौरान उनके दिमाग में किस तरह की गतिविधियां होती हैं. अध्ययन के लिए 10 पुरुष और 10 महिलाओं को एक साथ एफएमआरआइ स्कैनर में बैठाया गया और उन्हें अलग-अलग काटरून दिखाये गये. बेहतर फीडबैक के लिए मशीन से यह नोट किया जा रहा था कि वे हंसने में कितना देर लगा रहे हैं और हंसने के कारण को कितना एंजॉय कर रहे हैं.

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