खतरनाक है खर्राटे वाली नींद
सोते वक्त खर्राटे लेने को आम तौर पर एक स्वाभाविक प्रक्रिया माना जाता है. लेकिन हकीकत इससे उलट है. यह श्वसन प्रक्रिया में अवरोध का परिणाम है. खर्राटा अपने आप में तो खतरनाक है ही, साथ ही यह कई गंभीर बीमारियों व समस्याओं का कारण भी है. यह लाइलाज नहीं है. इस दिशा में काफी […]
सोते वक्त खर्राटे लेने को आम तौर पर एक स्वाभाविक प्रक्रिया माना जाता है. लेकिन हकीकत इससे उलट है. यह श्वसन प्रक्रिया में अवरोध का परिणाम है. खर्राटा अपने आप में तो खतरनाक है ही, साथ ही यह कई गंभीर बीमारियों व समस्याओं का कारण भी है. यह लाइलाज नहीं है.
इस दिशा में काफी काम किया है राष्ट्रीय ख्याति के डॉक्टर, संजय मनचंदा ने. उन्होंने ‘स्लीप मेडिसिन’ नामक डॉक्टरी की एक अलग शाखा ही विकसित कर डाली है. प्रभात खबर के पाठकों के लिए डॉ मनचंदा से बात की, वरिष्ठ पत्रकार अनुराग कश्यप ने.
क्या आपको सोते वक्त जोर-जोर से खर्राटे आते हैं? खर्राटे इतने तेज होते हैं कि आसपास के लोगों की नींद टूट जाती है? खर्राटे के दौरान आपका मुंह खुला होता है और मुंह से लार गिरती है? आप रात में बार-बार पेशाब करने उठते हैं? सुबह सो कर उठने के बाद सिर भारी-भारी लगता है अथवा सिर में दर्द होता है? सुबह उठने पर ताजगी महसूस नहीं होती? दोबारा सोने की इच्छा होती है? दिन भर सुस्ती छायी रहती है?
दिन में ज्यादा नींद आती है? काम के दौरान, टेलीविजन देखते हुए अथवा वाहन चलाते हुए नींद आ जाती है? बीच-बीच में मन चिड़चिड़ा हो जाता है? याददाश्त में कमी महसूस हो रही है यानी कुछ छोटी-छोटी बातें भूल जा रहे हैं? अचानक ब्लड प्रेशर बढ़ जा रहा है? एकाग्रता में कमी महसूस कर रहे हैं? डिप्रेशन व कमजोरी महसूस कर रहे हैं? यदि हां, तो फिर आप ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया (ओएसए) से पीड़ित हैं.
ऑक्सीजन की कमी
ओएसए की समस्या रात को नींद के दौरान होती है. ओएसए यानी आम भाषा में खर्राटे की समस्या. नींद के दौरान सांस में अवरोध की बीमारी. वैसे तो ओएसए एक आम बीमारी है, लेकिन इसके परिणाम बेहद खतरनाक, कई असाध्य रोगों को जन्म देनेवाला और जानलेवा है. खास तौर से भारत में, जहां हम आम तौर पर खर्राटे को कोई बीमारी नहीं मानते. खर्राटे को सोते वक्त एक स्वभाविक प्रक्रिया मानते हैं.
सच तो यह है कि इसकी वजह से सोते समय व्यक्ति की सांस कुछ सेकेंड के लिए सैकड़ों बार रुक जाती हैं. पुन: जब सांस आती है, तो आवाज काफी जोरदार होती है, जो आस-पास सो रहे व्यक्ति को डरा देती है. सांस रुकने की यह अवधि एक सेकेंड से एक मिनट तक हो सकती है. श्वसन क्रि या में आने वाले इस अंतर यानी सांस के इस तरह रुकने और फिर वापस आने को एप्निया कहा जाता है.
समय पर इसका इलाज नहीं करवाने की दशा में यह बीमारी और गंभीर होती जाती है यानी सांस रुकने की अवधि बढ़ती जाती है और फिर एक वक्त ऐसा आता है, जब व्यक्ति की मौत तक हो सकती है. इस बीमारी से मौत की गंभीर स्थिति को छोड़ दें, तो इससे रात को सोते वक्त शरीर में ऑक्सीजन की कमी और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्र बढ़ जाती है. यानी शरीर में जहरीली हवा की मात्र बढ़ जाती है.
कई बीमारियों का जन्म
ऑक्सीजन स्तर में अचानक कमी के कारण ब्लड प्रेशर बढ़ने और कार्डियो-वैस्क्युलर सिस्टम पर दबाव बढ़ना सरीखी समस्याएं पैदा हो जाती हैं. इस रोग से ग्रस्त लोगों में अनियंत्रित ब्लड प्रेशर, अनियंत्रित डायबिटीज के अलावा हृदय की धड़कन अनियंत्रित होने से हृदय संबंधी रोग होने की आशंका बढ़ जाती है.
ओएसए जितना गंभीर होगा, कोरोनरी आर्टरी डिजीज, दिल का दौरा पड़ने, हृदय की धड़कन रु क जाने और स्ट्रोक होने का जोखिम उतना ही बढ़ जाता है. यदि किसी व्यक्ति की सांस नींद में एक घंटे में 15 बार से अधिक रु कती है, तो इसे गंभीर ओएसए की श्रेणी में गिना जाता है. ऐसी सूरत में दिल का दौरा पड़ सकता है और यहां तक की मौत भी हो सकती है. इस समस्या से ग्रस्त व्यक्ति को नींद में मौत होने का डर सताता रहता है. यह मस्तिष्काघात की वजह भी बन सकती है.
देश के अंदर ओएसए का इलाज शुरू करनेवाले चिकित्सकों में प्रमुख नयी दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल के सीनियर कंसलटेंट (स्लीप मेडिसन) डॉक्टर संजय मनचंदा कहते हैं-‘‘सोते समय अलग-अलग समय पर व्यक्ति के ऊपरी श्वसन मार्ग का कार्य रुकने से श्वसन मार्ग बंद हो जाता है और इस वजह से ओएसए की समस्या उत्पन्न होती है. तेज खर्राटे के कारण ओएसए से पीड़ित व्यक्ति रात में 10-12 घंटे सोने के बाद भी दिन भर सुस्त रहते हैं. बार-बार जम्हाई आती है.
गाड़ी में चलते वक्त सोने लगते हैं. यह क्यों? क्योंकि 10-12 घंटे सोने के बाद भी नींद पूरी नहीं हुई है. ओएसए पीड़ित व्यक्ति को लगता है कि उसने घड़ी देखकर 10-12 घंटे की नींद पूरी की है, मगर असल में इस दौरान सैकड़ों बार कुछ सेकेंड के लिए उसकी नींद टूटी है, जो अचेतन स्थिति में पता नहीं चल पाती है. ओएसए एक तरह से अनिंद्रा का गंभीर रोग कह सकते हैं.’’
जीवन की गुणवत्ता में कमी
डॉक्टर संजय मनचंदा कहते हैं-‘‘ओएसए के कारण अनिंद्रा से जीवन की गुणवत्ता तो कम होती ही है. याददाश्त पर बुरा असर पड़ता है. रात्रि में नींद पूरी नहीं होने से दिनभर आलस्य और थकान शरीर में बने रहते हैं, जिससे मनुष्य निराशावादी और चिड़चिड़ा हो जाता है. घबराहट, सुस्ती, उदासी और पारिवारिक समस्याओं के अलावा गंभीर बीमारियों में मधुमेह, हृदयरोग और मस्तिष्क आघात तक हो सकता है. याददाश्त के मजबूत होने का कार्य गहरी नींद में होता है. नींद में शरीर आराम करता है ताकि वह अगले दिन के लिए कार्य कर सके. नींद में कुछ ही आधारभूत फंक्शन एक्टिव रहते हैं. बाकी सभी प्रक्रि याएं रिचार्ज मोड की तरफ चली जाती हैं.’’
कौन हैं डॉक्टर संजय मनचंदा
नयी दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल के सीनियर कंसलटेंट (स्लीप मेडिसन) डॉक्टर संजय मनचंदा पिछले 18 वर्षो से ‘स्लीप मेडिसिन’ प्रैक्टिस कर रहे हैं. डॉ. मनचंदा को देश के इकलौते चिकित्सक हैं, जिन्हें 15000 से अधिक स्लीप स्टडी का श्रेय जाता है. कार्डियोलॉजी (हृदयरोग विज्ञान), न्यूरोलॉजी (तंत्रिका-स्नायु विज्ञान), रेस्पेरेटरी मेडिसिन (श्वास-प्रश्वास चिकित्सा), इंटर्नल मेडिसिन, साइकाइट्री (मनोचिकित्सा), डेंटिस्ट्री (दंत चिकित्सा), पीडीऐट्रिक्स (बाल चिकित्सा) और ईएनटी (नाक, कान, गले की चिकित्सा) के क्षेत्र में काम कर चुके डॉ मनचंदा फिलवक्त देश भर में स्लीप सेंटर का नेटवर्क बनाने में जुटे हैं. इसके लिए वह डॉक्टरों व तकनीकी विशेषज्ञों को प्रशिक्षित कर रहे हैं. वह देश के पहले चिकित्सक हैं, जिन्होंने स्लीप मेडिसिन को चिकित्सा के अलग विभाग के रूप में विकसित किया है.
खर्राटों व इसके कारण होनेवाली बीमारी ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया (ओएसए) को ठीक करने के लिए सबसे पहला मैंडीबुलर (जबड़ा) एडवांसमेंट अप्लायंस का आविष्कार किया है. डॉ मनचंदा ने देश में पहली बार खर्राटे की चिकित्सा के लिए ईएनटी सजर्नों के साथ ओपीडी द्वारा सोम्नोप्लास्टी का इस्तेमाल किया है. उन्हें देश में पहली बार ऑथोडेंटिस्ट के साथ मिलकर डेंटल स्लीप मेडिसिन और अनिद्रा के उपचार के लिए साउंड एंड म्यूजिक थेरैपी की शुरुआत का श्रेय भी जाता है. वह लंबी दूरियों से स्लीप स्टडी करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक के इस्तेमाल को लेकर भौगोलिक सीमाएं भी लांघ रहे हैं.
खर्राटे और नींद से जुड़ी समस्याओं की अनदेखी न करें : डॉ मनचंदा
खर्राटे की अनदेखी करना यानी ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया की अनदेखी करना खतरनाक है. नींद की अवधि में भारी बदलाव के कारण लोगों (विशेष तौर पर युवा वर्ग) में मधुमेह, उच्च रक्तचाप, दिल से संबंधित रोग एवं मोटापा जैसी कई बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं और इस पर ध्यान नहीं दिए जाने के परिणाम घातक भी हो सकते हैं.
प्रभात खबर से बातचीत में डॉ. संजय मनचंदा कहते हैं कि सूचना प्रौद्योगिकी के इस दौर में लोगों के नियमित जीवन में बड़ा बदलाव आया है. इससे सोने की आदतों पर प्रतिकूल असर पड़ा है. जीवनशैली में आये बदलाव के कारण लोगों में नींद पूरी नहीं होने की शिकायतें सबसे आम हैं. सबसे ज्यादा प्रभाव उन लोगों पर पड़ता है जो शिफ्ट में काम करते हैं. इसलिए जरूरी है कि हम अपने काम के हिसाब से शरीर के लिए भी एक रूटीन बनायें, ताकि पर्याप्त आराम मिल सके.
नींद से संबंधित परेशानियां होने पर इन्हें नजरअंदाज करने की जगह चिकित्सकों से जरूर संपर्क करें. डॉ. मनचंदा बताते हैं कि शरीर को शिफ्ट ड्यूटी के अनुरूप ढालने के लिए अलग-अलग शिफ्टों के बीच कम से कम 72 घंटे का वक्त चाहिए होता है और ऐसा नहीं होने पर शरीर की जैविक घड़ी असंतुलित हो जाती है. इसे नियमति करने के लिए आहार, व्यायाम और अन्य कई बातों पर विशेष ध्यान देना होता है. इन बातों को चिकित्सकों से मिलकर जाना जा सकता है.
क्यों होती है ओएसए की बीमारी
तेज खर्राटे के कारण होनेवाली बीमारी ऑब्स्ट्रेक्टिव स्लीप एप्निया (ओएसए) के कई कारण हैं. चिकित्सा विज्ञान की माने, तो मोटापे से ग्रस्त लोगों को तेज खर्राटे आने से ओएसए होनी की आशंकाएं ज्यादा होती है. मोटापे के कारण गर्दन मोटी होने से सांस मार्ग छोटा हो जाता है. पुरु षों के लिए गर्दन की माप 17 इंच और महिलाओं के लिए 16 इंच से अधिक नहीं होनी चाहिए. इससे अधिक होने पर ओएसए का खतरा बढ़ जाता है. ओएसए होने की संभावना उन लोगों में दोगुनी हो जाती है, जिन्हें रात में अक्सर नाक बंद होने की समस्या रहती है.
यह भी माना जाता है कि उम्र बढ़ने के साथ ओएसए खतरा बढ़ जाता है. पुरु षों में ओएसए का खतरा महिलाओं की अपेक्षा तीन गुना ज्यादा होता है. जो लोग शराब पीते हैं, धूम्रपान करते हैं या नींद की दवा खाते हैं, उनको भी ओएसए होने का खतरा होता है. नयी दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल के सीनियर कंसलटेंट (स्लीप मेडिसन) डॉक्टर संजय मनचंदा कहते हैं-‘‘ओएसए की बीमारी का संबंध बहुत हद तक मोटापे से नहीं है. उन्होंने ओएसए के कई ऐसे मरीजों का इलाज किया है, जो दुबले-पतले रहे हैं.
भारतीय लोगों में ओएसए की संभावना अधिक होती है. कारण शारीरिक बनावट है. भारतीयों का चेहरा गोरे लोगों की तुलना में समतल होता है और जबड़े का हिस्सा भी बाहर उभरकर नहीं आता है. इसके परिणामस्वरूप, हमारी जुबान से गले के पीछे की तरफ अधिक दबाव पड़ता है. निचले जबड़े का छोटा होना या ऊपर के जबड़े की तुलना में निचले जबड़े का पीछे की तरफ होना, जीभ का बड़ा होना, तालू के मुलायम हिस्से का बड़ा होना, टोंसिल का बड़ा होना आदि ओएसए के कारण हैं. इससे सोते वक्त जीभ व उसकी नर्म कोशिकाएं आराम की मुद्रा में कंठ से सट जाती हैं और श्वास नली तक जानेवाली हवा का रास्ता पूरी तरह अवरुद्ध हो जाता है.’’
स्लीप स्टडी/ पौलिसोम्नोग्राफी जांच
ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया (ओएसए) की जांच स्लीप स्टडी या पॉलीसोम्नोग्राफी द्वारा की जाती है. इस जांच का होना आवश्यक है. यह जांच स्लीप लैब में होती है. इसमें सोते समय रोगी के सर, छाती, दोनों हाथ व पैर समेत शरीर के विभिन्न हिस्सों में सेंसर लगा दिये जाते हैं, जो नींद की स्थिति में रोगी की सांस, पल्स ऑक्सीमेट्री (ऑक्सीजन), खर्राटों की आवाज व उसकी तीव्रता, हृदय की धड़कन (ईकेजी), मस्तिष्क की तरंगों (ईईजी), शरीर की करवट की स्थिति, सीने और आंखों की स्थिति से जुड़ी गतिविधियों का पता लगाते हैं. इन सेंसरों को एक कंप्यूटर से जोड़ दिया जाता है. कंप्यूटर में शरीर की सारी गतिविधियां रिकार्ड हो जाती हैं. इन गतिविधियों के व्यापक अध्ययन से चिकित्सक ओएसए की सही स्थिति का पता लगाते हैं.
33 फीसदी सड़क हादसे नींद की कमी और स्लीप एप्निया के कारण
डॉक्टर संजय मनचंदा कहते हैं-‘‘देश में होने वाली कुल सड़क दुर्घटनाओं में से 33 फीसदी केवल नींद की कमी और स्लीप एप्निया के कारण होती हैं. इस बीमारी में व्यक्ति को गाड़ी चलाते वक्त नींद आती है और दुर्घटना हो जाती है. खास तौर से देश के हाइवे पर होनेवाली बड़ी दुर्घटनाओं का कारण है ट्रक ड्राइवरों की नींद पूरी नहीं होना और स्लीप एप्निया से पीड़ित होना.’’
सोये और सोये रह गये
ओएसए पीड़ित व्यक्ति की युवा अवस्था में तोरुकी सांस वापस आ जाती है, मगर बढ़ती उम्र के साथ यह कठिन हो जाता है. आपने सुना होगा कि कई बार 55-60 साल के लोग रात में सोये और फिर सोये रह गये. इसे हम सामान्य बोलचाल की भाषा में सुखद मौत कह देते हैं. असल में यह ओएसए बीमारी का खतरनाक रूप है. शरीर में ऑक्सीजन कम होते ही दिल को ऑक्सीजन के लिए ज्यादा प्रेशर लगाना पड़ता है. रात में सोते वक्त जब समस्या बढ़ जाती है, तो हार्ट अटैक हो जाता है.
बेहतर उपचार है सीपीएपी
ओएसए का सबसे बेहतर उपचार है-कंटिन्यूअस पॉजिटिव एयरवे प्रेशर (सीपीएपी) यानी सतत एयर प्रेशर थेरैपी. यह एक छोटा पोर्टेबल मैकेनिकल डिवाइस है. इस डिवाइस में एक पंखा लगा होता है, जो नींद के दौरान लगातार तेज हवा देकर आपके सांस मार्ग को खुला रखता है और शरीर में पर्याप्त मात्र में ऑक्सिजन की आपूर्ति हो पाती है. मरीज को चेहरे पर नाक को पूरी तरह से कवर करते हुए एक मास्क लगाना होता है, जो एक हल्की पाइप से पोर्टेबल मैकेनिकल डिवाइस से जुड़ा होता है. इससे लगाने के बाद किसी करवट सोने में परेशानी नहीं होती है.