आपके इलाके के वायु प्रदूषण का स्तर बतायेगा नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स
यह बात बहुतों के मन में आयी होगी कि जिस तरह मौसम विभाग से हमें तापमान और मौसम की नियमित जानकारी मिलती है, वैसे ही शहर की वायु की गुणवत्ता के बारे में भी जानकारी मिलती तो अच्छा होता. तो अब आपकी यह इच्छा भी पूरी करेगा नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स. क्या है यह, क्या […]
यह बात बहुतों के मन में आयी होगी कि जिस तरह मौसम विभाग से हमें तापमान और मौसम की नियमित जानकारी मिलती है, वैसे ही शहर की वायु की गुणवत्ता के बारे में भी जानकारी मिलती तो अच्छा होता. तो अब आपकी यह इच्छा भी पूरी करेगा नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स.
क्या है यह, क्या बतायेगा आपको, कैसे ले सकते हैं जानकारी, कैसी है देश में वायु गुणवत्ता और प्रदूषण की स्थिति समेत इससे जुड़े जरूरी पहलुओं के बारे में बता रहा है आज का नॉलेज..
कन्हैया झा
दिल्ली : पिछले वर्ष आपने खबरों में यह पढ़ा या सुना होगा कि विभिन्न देशों की वायु गुणवत्ता को दर्शानेवाली ‘एनवायर्नमेंटल प्रेफरेंस इंडेक्स’ यानी पर्यावरण की प्राथमिकता के लिहाज से बनायी गयी सूची में 178 देशों में से भारत का स्थान 174वां था. इसके अलावा, यह खबर भी पढ़ी होगी कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक सर्वे में पिछले साल यह दर्शाया गया था कि दुनिया के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से 13 शहर भारत के हैं.
इस रिपोर्ट में राजधानी दिल्ली को दुनिया का सर्वाधिक प्रदूषित शहर बताया गया था. दरअसल, हमारे देश में सड़कों पर चलनेवाले वाहनों, खासकर डीजल और पेट्रोल से चलनेवाली गाड़ियों समेत अन्य तमाम कारणों से स्वास्थ्य के लिए घातक प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है. उद्योग-धंधों से पैदा होनेवाला प्रदूषण, खेतों में पैदा होनेवाले खेती से संबंधित कचरों को जलाने और विनिर्माण कार्यो से पैदा धूलकणों और कचरों समेत शहरी इलाकों में हरित क्षेत्र में कमी आने के कारण शहरों में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह भी कहना है कि भारत में प्रत्येक वर्ष प्रदूषण जनित कारणों से करीब 6,20,000 लोग असमय काल के गाल समा जाते हैं. हालांकि, भारत में बहुत कम ही लोग इसकी भयावहता से परिचित हैं. इसलिए लोगों को जागरूक करने के मकसद से केंद्र सरकार ने हाल ही में इसे प्राथमिकता दी है और उन्हें यह बताना शुरू किया है कि वे जिस इलाके में निवास करते हैं, वहां की वायु गुणवत्ता कैसी है. इससे लोग खुद इस बारे में सजग हो सकते हैं और प्रदूषण को फैलने से रोकने में अपनी भूमिका निभा सकते हैं.
इंडेक्स से जानिए वायु गुणवत्ता
इसी संदर्भ में केंद्र सरकार ने हाल ही में देश का पहला ‘नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स’ लॉन्च किया है. इससे फिलहाल दस लाख से ज्यादा आबादी वाले 10 शहरों (दिल्ली, आगरा, कानपुर, लखनऊ, वाराणसी, फरीदाबाद, अहमदाबाद, चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद) में हवा की गुणवत्ता को मापा जा रहा है.
सितंबर तक इसमें 60 और शहर जुड़ जायेंगे. यह इंडेक्स लोगों को रोजाना तौर पर हवा में प्रदूषण के स्तर के बारे में बता रहा है. इसे मॉनीटर करने वाले संबंधित अधिकारियों का कहना है कि वायु गुणवत्ता के आंकड़ों को इंटरनेट पर अपलोड कि ये जाने के अलावा इसे सार्वजनिक रूप से भी दर्शाया जायेगा. इससे लोग यह जान पायेंगे कि वे जिस इलाके में निवास करते हैं, वहां का वायु गुणवत्ता का स्तर क्या है.
दिल्ली की एक संस्था ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट’ की अनुमिता रॉयचौधरी के हवाले से मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि फिलहाल देश के करीब 247 शहरों में कुछ हद तक एयर क्वालिटी मॉनीटरिंग मेकेनिजम है, जिनमें से कम से कम 16 के पास ऑनलाइन रीयल-टाइम मॉनीटरिंग की क्षमता मौजूद है. लेकिन इस लिहाज से इसे एक बेहतर कदम बताया जा रहा है, क्योंकि लोग इसकी गंभीरता को समङोंगे और अपने आसपास की रोजाना की वायु गुणवत्ता को आसानी से जान पायेंगे.
बतायेगा प्रदूषकों के बारे में
नया नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स यह बताने में कारगर है कि हवा में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) का औसत पिछले 24 घंटे के दौरान कितना रहा है. मालूम हो कि हवा में मौजूद पीएम 2.5 व्यास वाले कणों को बेहतर समझा जाता है और इससे छोटे आकार वाले कण स्वास्थ्य के लिए घातक होते हैं. इसके अलावा वायु गुणवत्ता की माप अन्य खतरनाक प्रदूषकों- सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, ओजोन, शीशा, आर्सेनिक, निकेल, बेंजीन, अमोनिया, बेंजोपाइरिन, डीजल पार्टिकुलेट मैटर (डीपीएम) के आधार पर की जाती है.
क्या है पार्टिकुलेट मैटर
दरअसल, सूक्ष्म कण या पार्टिकुलेट मैटर वे जहरीले कण होते हैं, जिनका आकार इतना छोटा होता है कि वे सांस के जरिये हमारे शरीर में प्रवेश कर सकते हैं और खास तौर से फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
मालूम हो कि भारत और चीन समेत दुनिया के अनेक विकासशील देशों में प्लास्टिक की बोतलों, इलेक्ट्रॉनिक सामान समेत अनेक प्रकार के कचरों को जला दिया जाता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह वायु प्रदूषण का मुख्य कारण है.
77 फीसदी पर इसका असर
भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति बेहर गंभीर है. देश में पर्यावरण संबंधी गतिविधियों पर नजर रखने वाली शीर्ष संस्था ‘सेंट्रल पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, शहरी इलाकों में 77 फीसदी से ज्यादा लोग वायु प्रदूषण के किसी न किसी प्रकार से प्रभावित हैं.
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि करीब 66 करोड़ लोग स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से सांस के जरिये शरीर के भीतर मानक वायु नहीं ले पाते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानकों के मुताबिक, भारत में करीब 99.5 फीसदी लोग वायु प्रदूषण के लिहाज से बेहद खराब दशा में हैं.
लाल मतलब खतरा
गांवों में लोगों को स्वच्छ पेयजल हासिल होने वाले और खराब पानी देनेवाले हैंडपंपों से बचानेवाला टेलीविजन पर आनेवाला एक विज्ञापन आपने शायद देखा होगा. इसमें दिखाया जाता है कि किस तरह से गांव के मुखिया उन हैंडपंपों को लाल रंग से पुतवाते हैं, जिनका पानी सेहत के लिए ठीक नहीं है. लाल रंग से पुते हैंडपंपों को देखते ही पानी भरनेवाली महिलाएं समझ जाती हैं कि लाल मतबल खतरा यानी इन हैंडपंपों से पीने का पानी नहीं भरना है. इसी तरह से वायु प्रदूषण के मानक के साथ भी चेतावनी जारी की जा रही है. रंगों के माध्यम से यह बताया गया है कि वायु प्रदूषण खतरनाक स्थिति पर पहुंच गया है.
कैसे मापी जाती है वायु की गुणवत्ता
वायु प्रदूषण को उत्सजिर्त होने वाले पदार्थो के ‘मास पर वॉल्युम’ द्वारा सीधे मापा जा सकता है. इसमें ईंधन का उपयोग भी शामिल है. वायु प्रदूषण को वातावरण में उसकी एकाग्रता (कॉन्सेंट्रेशन) के माध्यम से भी मापा जा सकता है. ‘क्लीन एयर वर्ल्ड डॉट ओआरजी’ की रिपोर्ट के मुताबिक, एंबिएंट एयर मॉनीटरिंग डाटा (परिवेशी वायु निगरानी आंकड़ों) का इस्तेमाल वायु गुणवत्ता निर्धारण के लिए किया जाता है.
रंगों से जानिए वायु की गुणवत्ता और उसका असर
एक्यूआइ* नतीजा कलर कोड स्वास्थ्य पर संभावित असर
0- 50 अच्छा न्यूनतम असर.
51-100 संतोषजनक संवेदी व्यक्तियों को सांस लेने में थोड़ी दिक्कत.
101- 200 नियंत्रण में फेफड़ा, अस्थ्मा और हार्ट डिजिज से पीड़ितों को सांस लेने में दिक्कत महसूस होना.
201- 300 खराब ज्यादातर लोगों में सांस संबंधी दीर्घकालीन असर.
301- 400 बहुत खराब दीर्घकाल तक इसके असर में होने की दशा में
सांस की बीमारी का खतरा.
401- 500 घातक स्वस्थ लोगों को प्रभावित करने के साथ मौजूदा संबंधित बीमारी वालों पर गंभीर असर.
* एयर क्वालिटी इंडेक्स.
भारत में वायु प्रदूषण का भयावह स्तर
अमेरिका के येल विश्वविद्यालय के एक अध्ययन की रिपोर्ट में हाल ही में बताया गया है कि दिल्ली ने वायु प्रदूषण के मामले में चीन की राजधानी बीजिंग को मात दे दी है. रिपोर्ट के मुताबिक, हालिया एनवायरमेंट परफार्मेस इंडेक्स- 2014 (इपीआइ) में 178 देशों की सूची में भारत का स्थान 155वां है.
‘इंडिया एनवायरमेंट पोर्टल’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वायु प्रदूषण के मामले में भारत की स्थिति ब्रिक्स देशों (चीन का 118वां, ब्राजील का 77वां, रूस का 73वां और दक्षिण अफ्रीका का 72वां स्थान) में सबसे खस्ताहाल है. प्रदूषण के मामले में भारत के मुकाबले पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और चीन की स्थिति बेहतर है, जिनका इस इंडेक्स में स्थान क्रमश: 148वां, 139वां, 69वां और 118वां है.
इस इंडेक्स को नौ कारकों- स्वास्थ्य पर प्रभाव, वायु प्रदूषण, पेयजल एवं स्वच्छता, जल संसाधन, कृषि, मछली पालन, जंगल, जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा के आधार पर तैयार किया गया है. इंडेक्स के अनुसार, दुनिया में पांच सबसे स्वच्छ देश हैं- स्विट्जरलैंड, लक्जमबर्ग, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और चेक गणराज्य. इस अध्ययन में बताया गया है कि भारत में वायु प्रदूषण की हालत सबसे बुरी है.
दरअसल, नासा के सैटेलाइट द्वारा एकत्र किये गये आंकड़ों से पता चलता है कि दिल्ली में पीएम-25 (पार्टीकुलेट मैटर-2.5 माइक्रोन से छोटे कण) की मात्र सबसे ज्यादा थी. लैंसेट ग्लोबल हेल्थ बर्डेन 2013 के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए छठा सबसे घातक कारण बन चुका है. साथ ही भारत में सांस संबंधी बीमारियों के कारण होनेवाली मौतों की दर दुनिया में सबसे ज्यादा है.