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65 हजार करोड़ के निवेश से हो गये वंचित

झारखंड में जब तक जमीन की समस्या का कोई रास्ता नहीं निकलता, इस राज्य को विकसित राज्य बनाना मुश्किल होगा. राज्य बनने के बाद अनेक कंपनियों ने झारखंड आना चाहा, लेकिन अधिकांश को जमीन नहीं मिल पायी. एमओयू होते गये लेकिन ये जमीन पर नहीं उतारे गये. 37 स्टील कंपनियों ने तो एमओयू वापस ले […]

झारखंड में जब तक जमीन की समस्या का कोई रास्ता नहीं निकलता, इस राज्य को विकसित राज्य बनाना मुश्किल होगा. राज्य बनने के बाद अनेक कंपनियों ने झारखंड आना चाहा, लेकिन अधिकांश को जमीन नहीं मिल पायी. एमओयू होते गये लेकिन ये जमीन पर नहीं उतारे गये. 37 स्टील कंपनियों ने तो एमओयू वापस ले लिया या रद्द कर दिया.
अगर ये कंपनियां यहां लग गयी होती तो न सिर्फ 65 हजार करोड़ का निवेश होता बल्कि बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर भी बनते. यह कोई एक सरकार की बात नहीं है. 14 साल में इस दिशा में कुछ खास प्रगति नहीं हुई है. कभी सरकार ने रूचि नहीं दिखायी तो कभी जमीन नहीं देने के लिए आंदोलन होते रहे. यहां डीवीसी, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया समेत अनेक प्रतिष्ठान अपने दफ्तर/शाखा खोलना चाहता है लेकिन जमीन नहीं मिलती. कई बेहतरीन शैक्षणिक संस्थाओं को जमीन नहीं मिली. विवाद के कारण विधानसभा का अपना भवन नहीं बन पा रहा है.
जमीन नहीं मिलने की बात कह कर रिलायंस ने तिलैया प्रोजेक्ट बंद करने का निर्णय लिया है. झारखंड सरकार भी विकास चाहती है. उद्योगों को आमंत्रित भी कर रही है लेकिन वही जमीन की समस्या आड़े आ रही है. यह सही मौका है जब सरकार, जनता और राजनीतिक दल इस पर मंथन करे. कहीं ऐसा न हो कि एक-एक कर सभी प्रोजेक्ट वापस होते रहे और झारखंड पिछड़ा का पिछड़ा रह जाये.
राज्य में प्रस्तावित उद्योग के लिए 66861 एकड़ जमीन की है जरूरत
सुनील चौधरी
रांची. झारखंड में स्टील व पावर सेक्टर को प्लांट लगाने के लिए लगभग 66861 एकड़ भूमि की जरूरत है. भूमि न मिलने की वजह से ही टाटा स्टील, आर्सेलर मित्तल, हिंडाल्को, जेएसडब्ल्यू, जेएसपीएल, एस्सार पावर, टाटा पावर जैसी बड़ी कंपनियों की परियोजनाएं लंबित हैं. ये परियोजनाएं लगभग आठ से दस साल से लंबित हैं.
इनकी भूमि के लिए संचिका कभी संबंधित जिलों के उपायुक्त, राजस्व विभाग या वन विभाग के पास झूलती रहती है, पर होता कुछ नहीं है. स्थिति यह है कि भूमि की समस्या को देखते हुए कई कंपनियों ने झारखंड से अपना मुख मोड़ लिया या प्रगति न होने की वजह से उद्योग अथवा ऊर्जा विभाग ने एमओयू रद्द कर दिया.
चार लाख करोड़ तक के मिले थे प्रस्ताव
झारखंड में उद्योग लगे, यह मंशा लगभग सारी सरकारों की रही है. निवेशकों को लाने के लिए देश-विदेश में कई औद्योगिक मेले में झारखंड के बाबत जानकारी दी गयी. मुंबई से लेकर रांची तक में निवेशक सम्मेलन तक किये गये.
परिणामस्वरूप झारखंड में स्टील, ऊर्जा व अन्य औद्योगिक क्षेत्र में लगभग चार लाख करोड़ के प्रस्ताव मिले, पर झारखंड में एमओयू करते ही कंपनियों को जमीन के लिए सबसे अधिक परेशानी उठानी पड़ी. दूसरी समस्या खनन पट्टों को लेकर हुई. नतीजा हुआ कि धीरे-धीरे कंपनियां झारखंड से विमुख होने लगी.
स्टील सेक्टर की 37 कंपनियां हो गयीं बैक
स्टील क्षेत्र में 37 कंपनियों ने अपना प्रस्ताव वापस ले लिया है या उद्योग विभाग ने एमओयू रद्द कर दिया है. इनसे करीब 65 हजार करोड़ का निवेश होता. जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड ने झारखंड से अपने एल्युमिनियम प्लांट का प्रस्ताव वापस ले लिया.
छत्तीसगढ़ इलेक्ट्रिसिटी कंपनी, कोर स्टील, भूषण स्टील जैसी कंपनियों ने अपना प्रस्ताव वापस ले लिया है. बताया गया कि ये 37 कंपनियां भी अगर झारखंड में प्लांट लगातीं, तो न केवल निवेश होता, बल्कि लगभग 10 लाख लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार भी मिलता.
ऊर्जा क्षेत्र की 22 कंपनियां वापस हुईं
ऊर्जा के क्षेत्र में 22 कंपनियों ने अपना प्रस्ताव वापस ले लिया या ऊर्जा विभाग ने उनका एमओयू रद्द कर दिया. इस समय 12 एमओयू हैं. इसमें दो कंपनियों ने अपना उत्पादन आरंभ किया है. आधुनिक पावर व इनलैंड पावर का उत्पादन आरंभ हो चुका है. अन्य कंपनियां अभी भी जमीन को लेकर इंतजार में हैं. शेष बचे 10 में केवल छह कंपनियां ही गंभीर हैं. यहां 51 हजार मेगावाट क्षमता के पावर प्लांट लगाने का प्रस्ताव था. यदि ये कंपनियां यहां लग जातीं, तो झारखंड पूर्वी भारत का पावर हब बन सकता था. यह 10 से अधिक राज्यों में बिजली आपूर्ति करने में सक्षम होता.
विपरीत परिस्थितियों में भी उत्पादन आरंभ किया
झारखंड में जमीन, खनिज की समस्या होने के बावजूद एमओयू करने वाली 17 कंपनियों ने पहले चरण का उत्पादन आरंभ कर दिया है. जरूरत से भी कम जमीन लेकर इन कंपनियों ने उत्पादन आरंभ किया. वहीं, बिना एमओयू किये 16 कंपनियों ने अपना उत्पादन आरंभ किया है. इन कंपनियों द्वारा अब तक 30389 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है.
राज्य में किसी भी कंपनी को समय पर नहीं मिलती है जमीन
दीपक
रांची : अलग झारखंड राज्य बने 14.6 वर्ष हो गये हैं. अब तक किसी भी महत्वपूर्ण परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण की समस्या जस की तस है. पहले सरकार ने यह फैसला लिया था कि उद्योग की स्थापना अथवा किसी अन्य परियोजना के लिए 180 दिनों में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया तय हो जायेगी, पर दो-दो, तीन-तीन वर्षो तक भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पायी. राज्य सरकार ने केंद्र सरकार के भूमि अजर्न, पुनर्वास और पुनव्र्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार नियमावली अंगीकृत कर लिया है.
नयी नियमावली के तहत 23.6 महीने में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी की जायेगी. निजी भूमि को लेने के लिए पांच हजार हेक्टेयर तक संबंधित जिलों के उपायुक्त को अधिकार दिया गया है, जबकि पांच हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि के अजर्न के प्रस्ताव का निबटारा प्रमंडलीय आयुक्त करेंगे. भूमि अजर्न के लिए स्थापना प्रभार के रूप में कुल मुआवजा पांच प्रतिशत लिया जायेगा. पुनर्वास तथा पुनव्र्यवस्थापन के लिए भी पांच प्रतिशत मुआवजा देना जरूरी तय किया गया है.
इसके अलावा सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन का अध्ययन कराने के लिए भी संबंधित कंपनियों को पांच प्रतिशत देना होगा. सामाजिक प्रभाव अंकेक्षण की रिपोर्ट शुल्क जमा करने के 30 दिनों के अंदर शुरू करना जरूरी किया गया है. इसकी रिपोर्ट सरकार को छह माह के अंदर दी जायेगी.
पूर्व में क्या थी व्यवस्था
2014 दिसंबर के पूर्व यह व्यवस्था थी कि भूमि अजर्न के लिए कंपनियों को उपायुक्त कार्यालय में आवेदन देना पड़ता था. अजिर्त की जानेवाली भूमि का सर्किल रेट से चार गुना दर चालान के रूप में सरकारी खजाने में जमा कराना जरूरी था. इसके बाद एक वर्ष में विभिन्न औपचारिकताएं पूरी कर प्रमंडलीय आयुक्त की रिपोर्ट राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग को भेजे जाने का प्रावधान था. इसके लिए अजिर्त की जानेवाली भूमि के लिए भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा चार के तहत अधिसूचना जारी करनी पड़ती थी, फिर अजिर्त की जानेवाली भूमि की अधिसूचना के आधार पर लोगों से आपत्तियां मंगायी जाती थी.
इसके अलावा निजी उपयोग के लिए गलत तरीके से भूमि अजिर्त किये जाने पर 30 प्रतिशत सोलाशियम की दर पर भुगतान करना पड़ता था. इसमें पुनर्वास और पुनव्र्यवस्थापन नीति के अनुरूप मुआवजे का भुगतान करना जरूरी था. ग्राम सभा द्वारा अजिर्त की जानेवाली भूमि के लिए सुनवाई की औपचारिकताएं भी पूरी की जानी थी.
नयी व्यवस्था में भूमि अजर्न प्रक्रिया में किया गया है बदलाव नयी भू-अजर्न नियमावली में अब सामाजिक प्रभाव का मूल्यांकन जरूरी कर दिया गया है. ग्रामीण इलाके में ली जानेवाली भूमि की दर बाजार दर से दोगुना तय किया जायेगा. नियम विरुद्ध निजी उपयोग के लिए ली जानेवाली भूमि का सोलाशियम दर शत प्रतिशत कर दिया गया है.
अब धारा 14 के तहत अजिर्त की जानेवाली भूमि की अधिसूचना जारी की जायेगी. अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा की सहमति जरूरी कर दी गयी है. पुनर्वास और पुनव्र्यवस्थापन योजना के लिए लोक सुनवाई भी जरूरी किया गया है. मुआवजे की राशि की प्रशासनिक स्वीकृति राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग की ओर से वित्त विभाग की सहमति के बाद दे दी जायेगी.
राज्य सरकार की ओर से राज्य अनुश्रवण समिति का गठन किया गया है. इतना ही नहीं, भूमि अजर्न, पुनर्वास और पुनव्र्यवस्थापन प्राधिकार की स्थापना भी गजट प्रकाशन के माध्यम से की जायेगी. नयी नियमावली में भूमि की वापसी का भी प्रावधान किया गया है.
तय समय-समा के अंतर्गत भूमि का अधिग्रहण नहीं करने पर इसकी वापसी का भी प्रावधान है. यह जमीन भूमि बैंक को वापस की जायेगी. निजी वार्ता के माध्यम से दो हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि की खरीदने का अधिकार भी कंपनियों को दिया गया है. कंपनी के प्रमोटर इस सिलसिले में सीधे जमीन मालिकों से बातचीत कर सकते हैं.
आइआइएम को भी समय पर जमीन नहीं दे पायी सरकार
राजेश तिवारी
रांची : इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आइआइएम) रांची के लिए राज्य सरकार समय पर जमीन नहीं दे पायी. संस्थान के लिए सबसे पहले रांची के नगड़ी में लॉ यूनिवर्सिटी के साथ जमीन दी गयी थी, पर विस्थापितों के विरोध को देखते हुए आइआइएम के लिए जमीन कांके प्रखंड के चेरी में देने का निर्णय लिया गया.
अब सरकार एचइसी परिसर में आइआइएम के लिए जमीन उपलब्ध करायेगी. सरकार आइआइएम रांची को 50 एकड़ जमीन देगी. इसके लिए जिला प्रशासन की ओर से आवश्यक कार्रवाई शुरू कर दी गयी है.
चेरी में दी गयी है 90
एकड़ जमीन
आइआइएम को कैंपस बनाने के लिए रांची जिला प्रशासन के द्वारा कांके प्रखंड के चेरी में 90 एकड़ जमीन पहले ही हस्तांतरित की जा चुकी है. 29 अप्रैल 2013 को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री एम पल्लम राजू के द्वारा कैंपस बनाने के लिए इस जमीन पर शिलान्यास किया था. शिलान्यास के समय तत्कालीन केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश, सीएम हेमंत सोरेन, सुबोधकांत सहाय समेत कई दिग्गज भी उपस्थित थे.
शिलापट्ट 15 दिनों में ही उखाड़ा
आइआइएम को जमीन मिलने के बाद शिलान्यास के तुरंत बाद ग्रामीणों ने विरोध शुरू कर दिया था.शिलान्यास स्थल के शिलापट्ट को ग्रामीणों ने 15 दिनों में ही उखाड़ दिया. ग्रामीण अपनी जमीन आइआइएम को देना नहीं चाह रहे थे. शुरुआत में सरकार ने चेरी में 90 एकड़ जमीन आइआइएम को दिया था और बाद में उसी जगह पर 11 एकड़ जमीन देने का वादा किया था. ग्रामीणों के विरोध के कारण शिलान्यास के दो साल के बाद तक वहां निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है. जिसके बाद सरकार ने उसे एचइसी एरिया में जमीन देने का निर्णय लिया है.
जमीन के चलते लटक गये दर्जनों संस्थान
राज्य सरकार कई महत्वपूर्ण शिक्षण संस्थानों के लिए भी जमीन नहीं खोज सकी है. जमीन नहीं मिलने से निर्माण लंबित है. विभिन्न विभागों के तहत प्रशिक्षण व कौशल विकास के लिए कई संस्थान बनने हैं. इनमें से कई जमीन नहीं मिलने के कारण नहीं बन रहे या फिर इसका प्रस्ताव ही रद्द कर दिया गया है.
अब जाकर भूमि बैंक बनाने की दिशा में सरकार ने की है पहल
मुख्य सचिव ने राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग को दिया था निर्देश
रांची : झारखंड के किसी भी जिले में अब तक भूमि बैंक नहीं बनाया गया है. राज्य के मुख्य सचिव राजीव गौवा ने भूमि बैंक बनाने के लिए राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग को निर्देश दिया था. जिलों से रैयती, गैर मजरुआ खास, गैर मजरुआ आम भूमि के बाबत जानकारी विभाग को उपलब्ध करा दी गयी है.
विभागीय अधिकारी अब एक एकड़, एक से पांच एकड़, पांच से दस एकड़ और दस एकड़ से अधिक की भूमि का वर्गीकरण कर रहे हैं. तत्कालीन उद्योग मंत्री रवींद्र राय ने 50 हजार एकड़ का लैंड बैंक (भूमि बैंक) बनाने की घोषणा की थी. अब इस दिशा में प्रारंभिक कार्रवाई शुरू कर दी गयी है. सभी जिलों के अपर समाहर्ता स्तर के अधिकारियों को भूमि बैंक के गठन के सिलसिले में कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है.
सिमडेगा, रामगढ़, खूंटी, गुमला, गोड्डा, देवघर, पाकुड़, गढ़वा, धनबाद और जामताड़ा जिले से ही जमीन की उपलब्धता संबंधी जानकारी दी गयी है. सरकारी रिकार्ड में कहा गया है कि जामताड़ा के नारायणपुर में उद्योगों के लिए 163.80 एकड़ जमीन दी गयी है. धनबाद में मैथन पावर लिमिटेड को 1114.55 एकड़, गोड्डा में 11.18 एकड़ और खूंटी में इंडियन ऑयल को 27.99 एकड़ जमीन दी गयी है. पाकुड़ में पैनेम कोल माइंस को 1271.87 हेक्टेयर जमीन दी गयी है.
किन्हें-किन्हें मिली है जमीन
नॉलेज सिटी 300 एकड़
झारखंड हाइकोर्ट 50 एकड़ से अधिक
मैथन पावर लिमिटेड धनबाद 1114.55 एकड़
इंडियन ऑयल खूंटी 27.99 एकड़
पैनेम कोल माइंस, पाकुड़ 1271.87 एकड़
मेगा फूड पार्क, गेतलसूद, रांची 75 एकड़
आधुनिक नैचुरल पावर लिमिटेड –
एस्सार लिमिटेड –
जिन्हें जमीन नहीं मिली
आइआइएम रांची 100 एकड़
डीवीसी मुख्यालय रांची 20 एकड़
रिजर्व बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय रांची 4 एकड़
ट्रिपल आइटी, रांची 45 एकड़
न्यू कैपिटल, रांची 3000 एकड़
ट्रांसपोर्ट नगर, रांची –
आइएसबीटी, रांची –
एनटीपीसी केरेडारी 700 एकड़
टाटा पावर 70 एकड़

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