पढ़ें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बांग्लादेश यात्रा पर ब्रजेश कुमार सिंह का लेख
ब्रजेश कुमार सिंह एडिटर-नेशनल अफेयर्स, एबीपी न्यूज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन तक बांग्लादेश की राजधानी ढाका में रहने वाले हैं. दो दिन के प्रवास के दौरान मोदी एक तरफ जहां मेजबान प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ द्विपक्षीय बातचीत करेंगे, वहीं सांस्कृतिक कूटनीति के कुछ कदम भी उठायेंगे. मसलन ढाका के बाहरी हिस्से साबर में […]
ब्रजेश कुमार सिंह
एडिटर-नेशनल अफेयर्स, एबीपी न्यूज
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन तक बांग्लादेश की राजधानी ढाका में रहने वाले हैं. दो दिन के प्रवास के दौरान मोदी एक तरफ जहां मेजबान प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ द्विपक्षीय बातचीत करेंगे, वहीं सांस्कृतिक कूटनीति के कुछ कदम भी उठायेंगे. मसलन ढाका के बाहरी हिस्से साबर में मौजूद राष्ट्रीय शहीद स्मारक पर जाना या फिर बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीब के घर जाना, जो अब स्मारक बन चुका है. मोदी रामकृष्ण मिशन आश्रम और ढाकेश्वरी मंदिर भी दर्शन के लिए जायेंगे.
बीस से अधिक समझौतों पर हस्ताक्षर होना पहले से ही तय है. मसलन लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट को लागू करने संबंधी समझौता.
यही नहीं, कोलकाता से अगरतल्ला वाया ढाका बस सेवा की शुरु आत भी. मोदी के साथ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी रहने वाली हैं, जो तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह के साथ सितंबर 2011 में ढाका जाने को तैयार नहीं हुई थीं. ममता बनर्जी का साथ होना मोदी के लिए बोनस जैसा है, क्योंकि भारत-बांग्लादेश संबंध कितने मजबूत होंगे, ये इस बात पर भी निर्भर करता है कि पश्चिम बंगाल का सियासी नेतृत्व कितना सहयोग करता है. आखिर आज का बांग्लादेश एक समय का पूर्वी बंगाल जो रहा है, आजादी से ठीक पहले.
हालांकि मोदी का बांग्लादेश दौरा शुरू होने से पहले एक बड़ा सकारात्मक बदलाव मेजबान देश से भी आया है. बांग्लादेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी, बीएनपी, जिसकी सुप्रीमो खालिदा जिया हैं, उन्होंने भी भारत के साथ रिश्ते बेहतर होने की उम्मीद जतायी है.
बीएनपी का नया स्टैंड तो सियासी और कूटनीतिक, दोनों मोरचे पर जानकारों को चौंका गया है. बीएनपी की तरफ से ये कहा गया है कि भारत के प्रति बीएनपी का रु ख सकारात्मक है और पार्टी मोदी की ढाका यात्राा के दौरान होने वाले समझौतों का स्वागत करेगी. ध्यान रहे कि मार्च 2013 में जब राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ढाका के दौरे पर गये थे, तो खालिदा जिया ने उनसे अपनी मुलाकात रद्द कर दी थी. इस बार खालिदा जिया मोदी से मुलाकात करेंगी, इसके तगड़े संकेत हैं.
दरअसल बीएनपी वो पार्टी है, जिसका स्टैंड अमूमन भारत विरोधी रहा है. खालिदा जिया, जिनके पति जनरल जिया उर रहमान बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी यानी बीएनपी के संस्थापक थे, सत्ता में रहते हुए लगातार बांग्लादेश को भारत से दूर ले गये और पाकिस्तान से संबंध बेहतर करने में लगे रहे, वो पाकिस्तान जिसके सैनिक तानाशाहों के अत्याचार के कारण बांग्लादेश अलग देश के तौर पर अस्तित्व में आया. जिया दरअसल उस सैनिक तख्तापलट के बाद बांग्लादेश की सत्ता पर काबिज हुए थे, जिसके तहत बांग्लादेश की सेना के युवा अधिकारियों के समूह ने 15 अगस्त 1975 को बंगबंधु शेख मुजीब उर रहमान को परिवार के ज्यादातर सदस्यों के साथ मौत के घाट उतार दिया था.
इस हत्याकांड में बांग्लादेश के संस्थापक और तत्कालीन राष्ट्रपति शेख मुजीब के परिवार के सिर्फ दो सदस्य, यानी उनकी दो बेटियां शेख हसीना और शेख रेहाना बच गयीं, जो उस समय बांग्लादेश से दूर पश्चिम जर्मनी के दौरे पर थीं. इस हत्याकांड को लेकर जिया पर भी संदेह की सुई घूमती रही, ये बात उठती रही कि जिया को सैनिक तख्तापलट की जानकारी थी. जिया उर रहमान उस समय बांग्लादेश की सेना में नंबर दो के अधिकारी थे.
अजीब इत्तफाक रहा कि जो जनरल जिया सैन्य तख्तापलट के बाद बांग्लादेश की सत्ता के सिंहासन पर बैठे, उनका अंत भी सैन्य तख्तापलट के तहत ही हुआ.
तीस मई 1981 को जब वो चट्टगांव के सर्किट हाउस में सो रहे थे, कुछ युवा सैन्य अधिकारियों ने गोलियों से जिया को भून डाला. विडंबना तो ये रही कि राष्ट्रपति के तौर पर जनरल जिया अपने सियासी सहयोगियों और मंत्रियों की जगह सैन्य अधिकारियों को ही तरजीह देते रहे, लेकिन उसी सेना के अधिकारी उनकी नीतियों से दुखी होकर उनको मार बैठे.
जनरल जिया की मौत के बाद साल भर के अंदर जनरल इरशाद ने बांग्लादेश की सत्ता सैन्य प्रमुख के तौर पर संभाली. इरशाद के दौर में बांग्लादेश में इसलामीकरण की प्रक्रि या तेज हुई और बांग्लादेश में आधिकारिक धर्म इसलाम बना दिया गया, जिस बांग्लादेश को उसके संस्थापक शेख मुजीब ने सेक्यूलर संविधान दिया था. खास बात ये भी रही कि जमात-ए-इसलामी, जैसी पार्टी जिसने बांग्लादेश की स्वतंत्रता का विरोध किया था, उसी पार्टी को जनरल जिया ने अपने जीवनकाल में अपना जाल फैलाने की आजादी दी और कट्टरवाद को फैलने दिया. उनके बाद इरशाद ने भी यही किया.
इरशाद को जब खालिदा जिया और शेख हसीना के नेतृत्व में हुए दो ध्रुवीय लोकतांत्रिक संघर्ष के बाद बांग्लादेश की सत्ता छोड़नी पड़ी, तो 1991 में हुए लोकसभा चुनावों में बीएनपी की जीत के बाद खालिदा जिया को सत्ता हाथ लगी. 1996 तक खालिदा जिया प्रधानमंत्री रहीं, लेकिन उन्होंने भारत के साथ संबंधों को सुधारने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की. ध्यान रहे कि खालिदा जिया बांग्लादेश के इतिहास में पहली महिला प्रधानमंत्री थीं. वैसे भी इसलामी देशों में बेनजीर भुट्टो के बाद भी उनका नंबर दूसरा ही था.
हालांकि 1996 में हुए चुनावों में उनकी पार्टी को हार मिली और शेख मुजीब की बेटी शेख हसीना ने सत्ता संभाली. तब से अब तक बांग्लादेश की सत्ता पर इन दो महिलाओं का ही कब्जा रहा है. 1996 से 2001 तक शेख हसीना पीएम रहीं, तो 2001 से 2007 तक खालिदा जिया. हालांकि उसके बाद हुए लगातार दो चुनावों में सत्ता शेख हसीना के पास ही रही है यानी वो 2008 से देश की पीएम बनी हुई हैं.
इस दौरान बतौर विपक्ष की नेता खालिदा जिया का रु ख असहयोग भरा रहा है. पीएम के तौर पर अपने दूसरे कार्यकाल में भी खालिदा जिया ने भारत के साथ संबंधों को सुधारने की कोई कारगर पहल नहीं की थी. इसके उलट शेख हसीना का रुख भारत के प्रति सकारात्मक बना रहा.
यही कारण है कि भारत शेख हसीना के पीएम रहते भारत-बांग्लादेश संबंधों को लगातार मजबूत करने की जुगत में रहा है. वर्ष 2011 में बतौर पीएम मनमोहन सिंह ने कोशिश की थी कि ममता बनर्जी को साथ लेकर तीस्ता जल समझौते पर दोनों देशों के बीच समझौता हो जाये, लेकिन ममता ऐन मौके पर पीछे हट गयीं और दोनों ही देशों के नेतृत्व को धक्का लगा.
ऐसे में इस बार मोदी के दौरे के पहले जिस तरह से भारतीय संसद में बिना किसी विरोध के, सर्व सम्मति से लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट संबंधी विधेयक को पारित कराया गया, उससे भारत और बांग्लादेश दोनों ही जगह खुशी की लहर दौड़ी. शेख हसीना को भी अपने देश में लोगों को ये समझाने का मौका मिल गया कि भारत उनकी सरकार की तरफ से किये जा रहे सहयोग की नोटिस लेकर बदले में कुछ करने को तैयार है.
दरअसल शेख हसीना की सरकार भारत विरोधी गतिविधियों में लगे रहने वाले उत्तर-पूर्व के आतंकी संगठनों को अपने यहां पनाह नहीं दे रही, बल्कि उन्हें पकड़कर भारत को सुपुर्द भी कर रही है. खालिदा जिया के समय में बांग्लादेश में ऐसे तत्वों को शह मिला करती थी.
इस सियासी पृष्ठभूमि के बीच अगर खालिदा जिया और उनकी पार्टी का रु ख पीएम मोदी के दौरे के पहले सकारात्मक हुआ है, तो ये भारत के हक में है.
अन्यथा बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के साथ ही दोनों देशों के संबंधों पर सीधा असर पड़ता था. अतीत को पीछे छोड़ बीएनपी और उसका नेतृत्व अगर नयी पहल करने को तैयार है, तो ये भारत के हक में है और बीएनपी के हक में भी. इसका अहसास अब खुद खालिदा जिया को है और इसलिए रु ख में है ये बदलाव. बेगम साहिबा को पता है कि बांग्लादेश के लोग भारत के साथ बेहतर संबंधों में अपने लिए भी बेहतर अवसर देख रहे हैं, इसलिए पुराना राग बेमानी है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)