शर्मसार होने के लिए काफी नहीं हैं 10 लाशें
सुशील भारती देवघर हादसा में कुचल कर मारे गये 10 कांवरियों के मामले में सूबे के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने जिस प्रकार त्वरित कार्रवाई करते हुए स्थिति को नियंत्रित किया उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाये कम है. लेकिन, व्यवस्था में चूक व किसी तरह मेला निबटाने की पुरानी परिपाटी 10 निरपराध परिवारों को चुकाना […]
सुशील भारती
देवघर हादसा में कुचल कर मारे गये 10 कांवरियों के मामले में सूबे के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने जिस प्रकार त्वरित कार्रवाई करते हुए स्थिति को नियंत्रित किया उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाये कम है. लेकिन, व्यवस्था में चूक व किसी तरह मेला निबटाने की पुरानी परिपाटी 10 निरपराध परिवारों को चुकाना पड़ा. सरकारी सेवा में स्थानांतरण व निलंबन एक प्रक्रिया है, जो चलती रहती है.
कुछ असहजता…सीआर की चिंता व व्यक्तिगत कड़वे अहसास एक- दो माह में धुल ही जायेंगे. परंतु जिन घरों में देवघर से मौत का ताबूत गया. उन घरों का क्या! क्या घर का वह बेटा कभी वापस आ पायेगा? घर में अशक्त बुढ़े बाप, झुर्रियों के बीच धीमी रोशनी वाली आंखों में आंसुओं का सैलाब, भविष्य की चिंता से जड़वत पत्नी, बाप के लौट आने की बाट जोहता बच्चा, अपनी तोतली जुबान से हालात नहीं समझ पाने पर जब मां या दादी से पूछ रहा होगा कि- मां बताओ न बापू को क्या हुआ? तब उसे कैसे समझाया जा रहा होगा, क्या किसी ने इस बारे में सोचा है? आगे फिर ऐसे जालिम मंजर आस्था की छांव में हृदय को चाक करने वाला साबित न हो इस ओर सोचने, शर्मसार होने की बजाय अभी भी हम तत्संबंधी छिटपुट कार्रवाइयों पर रोष प्रकट करने लगे हैं.
यह तो हद है. क्या घटना स्थल से अनुपस्थित रहने वाले सरकारी कर्मी चाहे वे किसी भी रैंक-स्तर के हों उनकी नैतिक भर्त्सना करने की ताकत किसी ने दिखायी… क्या अपने कर्तव्यहीनता के लिए हम शर्मसार नहीं हुए ? एक दिन महज दो मिनट का मौन रख कर हम अपनी जवाबदेही, नैतिकता, संवेदनशीलता का परिचय भी नहीं दे सके. उलटे, कई संगठनों ने बयान देकर रघुवर दास के फैसले पर एतराज अवश्य जता दिया. रोष जताते हुए यहां तक कहा कि कार्रवाई से उनका हौसला टूटा है.
कोई यह नहीं पूछ रहा कि चूक से हुई 10 मौत आपके लिए कोई मायने रखते हैं या नहीं. आखिर कब सबक लिया जायेगा? क्या इसी तरह अपनी सेवा का अंतराल व मेला निबटाने(पार लगाने)की प्रैक्टिश में अपने जमीर को बोर (डूबा) लेंगे? सच है कि फौरी कार्रवाई में कभी-कभी कुछ छूट जाने की गुंजाइश बनी रहती है… असली गरदन तक हाथ नहीं पहुंच पाते पर जब मामले की जांच चल रही हो, निष्कर्ष आना शेष हो, तो पहले ही बचाव के लिए शर्मसार संदर्भ में शर्मसार प्रयास चिंतनीय है! इसलिए बेहतर यह है कि सत्यम-शिवम-सुंदरम के उद्घोष का अनुशरण करते हुए अपने-अपने कर्तव्य के लिए सब तत्पर हो जायें, यही समय की मांग है.