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दिल्ली में टूट रहा ‘आप’ का तिलिस्म

सरकार बनने के कुछ माह बाद ही जनता का होने लगा मोहभंग पटना : आम आदमी की उम्मीदें जब परवान चढ़ीं थी, तब दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी (आप) को 70 में से 67 सीटों पर विजय मिली. इतनी बड़ी जीत की उम्मीद न ‘आप’ के कार्यकर्ताओं और नेताओं को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 1, 2015 6:50 AM
सरकार बनने के कुछ माह बाद ही जनता का होने लगा मोहभंग
पटना : आम आदमी की उम्मीदें जब परवान चढ़ीं थी, तब दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी (आप) को 70 में से 67 सीटों पर विजय मिली. इतनी बड़ी जीत की उम्मीद न ‘आप’ के कार्यकर्ताओं और नेताओं को थी और न खुद अरविंद केजरीवाल को.
‘आप’ को मिली यह जीत आम आदमी की उन छोटी-छोटी आकांक्षाओं के पूरा होने की उम्मीद का परिणाम थी, जिसके लिए उसे दर-दर भटकना पड़ता है. लेकिन, जिस आम आदमी ने ‘आप’ को फरवरी में इतनी बड़ी जीत दिलाई थी, उसकी आकांक्षा धरी की धरी रह गयी. बिजली, पानी, साफ-सफाई, भ्रष्टाचार पर रोक जैसे ‘आप’ के वादे खोखले साबित हुए. फरवरी में सरकार बनने के कुछ माह बाद ही दिल्ली की जनता का आप सरकार से मोहभंग होने लगा है. इसे समझने के लिए कुछेक उदाहरणों पर गौर करना होगा.
केस एक : एसएस बोहरा नागरिकों के एक समूह के प्रतिनिधि हैं.
जब दिल्ली में ‘आप’ की सरकार बनी थी तब उन्हें उससे बहुत आशा थी. बोहरा ने सोचा था सरकार बनने के बाद पानी की सप्लाई को सुधारने, दिल्ली को स्वच्छ बनाने, सड़कों को ठीक करने जैसे काम जल्द शुरू होंगे. इससे पहले वह दूसरे संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ मिल कर जिले के पार्षदों से नागरिक सुविधाओं पर बात करते थे और सलाह भी देते थे. इसलिए उन्हें उम्मीद थी कि नागरिक सुविधाओं की समझ होने के कारण दिल्ली सरकार भी उनकी सेवा लेगी. लेकिन, हुआ उसका उल्टा. पिछले कुछ माह में करीब आठ हजार पंजीकृत नागरिक संगठनों का स्थान ‘आप’ की मोहल्ला सभा ने ले लिया है. पानी की सप्लाई, स्वच्छता और सड़क के मसले जहां थे, अब भी वही हैं. बोहरा कहते हैं- जिस उम्मीद से यह सरकार बनी थी, उस पर नकारात्मकता का ग्रहण लग गया है.
केस दो : निधि सेठ दक्षिणी दिल्ली में रहती हैं. पिछले कुछ माह में उनके घर में दो बार चोरी हुई.पहली बार चोरी होने पर वह थाने में रिपोर्ट लिखवाने गयीं, तब पुलिस ने कोर्ट का चक्कर लगाने का भय दिखाकर ऐसा करने से रोका पुलिस ने उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिया और यह कंप्लेन लिखवाया कि किसी कीमती सामान की चोरी नहीं हुई. दूसरी बार चोरी होने पर पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की और कहा कि उन्हें दिल्ली नगर निगम और नागरिक कल्याण संगठन, जिसकी वह सदस्य भी हैं, के पास जाना चाहिए. निधी सभी जगह गयीं. वह अपने क्षेत्र के एमएलए के पास भी गयीं, जहां उन्हें पुलिस के पास जाने को कहा गया. अब उन्हें अपने ही घर में डर लग रहा है.
केस तीन : ‘आप’ के सबसे बड़े मतदाताओं में से एक ऑटो रिक्शा चालक भी सरकार से नाराज हैं. वह यह जानना चाहते हैं कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने वादों को पूरा करने के लिए क्या कर रहे हैं. ऑटो रिक्शा यूनियन के प्रतिनिधि संजय झा कहते हैं कि ‘आप’ ने 200 से अधिक पार्किंग स्टैंड का वादा किया था, जो अभी तक पूरा नहीं हुआ है. ऑटो चालक विजय प्रकाश पांडेय कहते हैं कि केंद्र और राज्य सरकार द्वारा टैक्स बढ़ाने से ऑटो की कीमत 20 हजार रुपये तक बढ़ गयी है. रोज 200-300 रुपये कमाने वालों के लिए यह बहुत ज्यादा है.
संकेत यह भी है कि ऑटो वालों की यूनियन योगेंद्र यादव के साथ आ सकता है, जिन्हें अप्रैल में आम आदमी पार्टी से निकाल दिया गया था.
केस चार : फरवरी में आप ने सत्ता संभाली थी. उसी दौरान सरकारी अस्पतालों की स्थिति में सुधार के लिए रेजिडेंट डॉक्टरों ने सांकेतिक हड़ताल किया. सरकारी अस्पतालों में स्टाफ की कमी, पीने का पानी और गुस्साए मरीजों और उनकी देखभाल करने वालों से डॉक्टरों की सुरक्षा उनकी प्रमुख मांगें थीं. केंद्र और राज्य सरकार ने मांगों को पूरा करने का भरोसा दिया था, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ.
जब से ‘आप’ सत्ता मेंआयी है, दिल्ली के हर वर्ग को उसके कड़वे अनुभव ही रहे हैं. आम आदमी पार्टी की बदलाव के अग्रदूत की छवि अब बदल रही है. ‘आप’ सरकार का ज्यादातर समय दिल्ली पुलिस को अपने नियंत्रण में लेने के लिए केंद्र के साथ रस्साकशी करने और नियुक्तियों पर लेफ्टिनेंट गवर्नर के साथ विवाद में बीता. इस संबंध में जब पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से पूछा गया कि क्या मुख्यमंत्री और लेफ्टिनेंट गवर्नर की शक्ति की सीमा निर्धारित नहीं है, तो उन्होंने कहा-बिलकुल है. एलजी सभी फाइलों पर दस्तखत करते हैं.
तबादले उन्हीं के अधीन आते हैं. अधिकारियों का कॉडर गृह मंत्रालय के अधीन है. चलन यही रहा है कि सभी काम आपसी सहमति से हो. पुलिस कमिश्नर की नियुक्ति होती है, तब दिल्ली सरकार को भी इसकी जानकारी होती है. अगर वे संविधान को नहीं समझेंगे, तो अव्यवस्था होगी ही.
भ्रष्टाचार भी नहीं रुका
आम आदमी पार्टी के घोषणापत्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाने का वायदा किया गया था. सरकार बनने के बाद घूस देने की घटनाएं कम हुई हैं, लेकिन घूस का रेट बढ़ गया है.
मनीष वालिया नॉर्थ दिल्ली में बिजनेस करते हैं. उनका मासिक टर्नओवर 1.5 करोड़ का है. करीब एक करोड़ के वैट रिफंड के लिए वह हर दरवाजा खटखटा रहे हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है. वह बताते हैं, पहले थोड़े पैसे में भी इस तरह के काम हो जाते थे. अब घूस लेने में रिस्क बढ़ गया है. इसलिए अधिकारी देख-समझ कर ही फाइल चुनते हैं और मोटा पैसा मांगते हैं.
महिला अधिकार बिल से बढ़ेगा विवाद
अरविंद केजरीवाल दिल्ली महिला आयोग को शक्तिशाली बनाने के लिए एक विधेयक लाना चाहते हैं. इसके तहत आयोग को नीति बनाने और शिकायतों को दूर करने का अधिकार मिल जायेगा.
लेकिन, राज्य के कानून मंत्रालय ने ही अपनी राय में कहा है कि इस तरह के बिल के लिए संसद की मंजूरी जरूरी है. इस बाबत भाजपा की नुपूर शर्मा कहती हैं कि संविधान संशोधन का अधिकार संसद के पास है. केजरीवाल हमेशा कानून को अपने हाथ में लेते हैं और केंद्र से विवाद बढ़ाने वाले मुद्दे ही उठाते हैं. आम जनता को इस संबंध में जानकारी कम है, इसलिए वह आराम से अव्यवस्था फैला देते हैं.
विपक्ष का आरोप
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन कहते हैं- केजरीवाल ने चुनाव में बड़े-बड़े वादे कर दिये हैं जिसे वह पूरा नहीं कर सकते हैं. इसलिए लोगों का ध्यान बंटाने के लिए वह रोज नये-नये विवाद खड़ा कर रहे हैं.
अधिकारी भी काम नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें पता ही नहीं चल रहा है कि किसका हुक्म मानना है. केजरीवाल ने शिक्षा का बजट तो बढ़ा दिया है, लेकिन खर्च कितना किया है, यह भी देखना जरूरी है. माकन आरोप लगाते हैं कि सरकार एकदम स्थिर हो गयी है. कोई काम नहीं हो रहा है. पहले वैट से होनेवाली आय में 10.05% की बढ़ोतरी होती थी. इस समय यह बढ़ोतरी मात्र 1.75% की रह गयी है.
पूर्ण राज्य नहीं होने से दिल्ली को फायदा
आम लोगों के बीच एक धारणा बन रही है कि पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद दिल्ली सरकार को कितना नुकसान होगा, इसका अंदाज केजरीवाल नहीं लगा पा रहे हैं. दिल्ली पुलिस का बजट 5200 करोड़ का है.
यह भार केंद्र सरकार उठाती है. पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने पर दिल्ली सरकार को सारा खर्च उठाना पड़ेगा. एम्स के अलावा दिल्ली में पांच सुपर स्पेशियालिटी अस्पताल हैं. देश के किसी राज्य में केंद्र सरकार जन स्वास्थ्य पर इतना खर्च नहीं करती है, जितना दिल्ली में करती है.
आप की सफाई
आप के नेता दिगंत आर कपूर केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हैं कि वह राज्य में काम में जबरन हस्तक्षेप कर रही है. लेफ्टिनेंट गवर्नर कहते हैं कि सभी फैसले मेरे ही माध्यम से लिये जायेंगे. तब दिल्ली में एक चुनी हुई सरकार का क्या मतलब है, जब सारी शक्तियां उनके पास हैं.
(समाचार पत्रिका द वीक से साभार)

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