यूरोप में शरणार्थी संकट की भयावहता
नयी दिल्ली : युद्धग्रस्त सीरिया से भाग रहे लोगों के यूरोप में शरण लेने की कोशिशों की तसवीरें बहुत कुछ कहती हैं, चर्चा करती हैं.चार साल से चल रहे गृहयुद्ध ने एक करोड़ बीस लाख से अधिक नागरिकों को अपने घर-बार छोड़ कर भागने पर मजबूर कर दिया. करीब 40 लाख लोग अन्य देशों में शरण लिए हुए हैं. ये सभी लोग सत्ताधारी बशर अल-असद की सेना व उनके विरुद्ध खड़ी फ्री सीरियन आर्मी और इसलामिक स्टेट व अतिवादी जबात-अल नुसरा के हमलों से जान बचा कर भागे हैं.
पड़ोसी देशों में अस्थायी शरणार्थी शिविरों की बुरी दशा और सीरिया के हालात में सुधार की कोई संभावना नहीं देखते हुए अब बड़ी संख्या में लोग यूरोप की ओर भाग रहे हैं. इनमें डर इस कदर समाया है कि ये असुरक्षित नावों में अवैध समुद्री मार्गों से यूरोप पहुंच रहे हैं. इस बदहवासी का लाभ मानव-तस्कर उठा रहे हैं.
ऐसे में पश्चिमी देशों की शरणार्थी नीतियों पर सवाल उठने के साथ, पास के धनी अरब देशों की लापरवाही भी घेरे में है. ये देश शरणार्थियों को मदद देने की संयुक्त राष्ट्र की कोशिशों में न तो पर्याप्त सहायता कर रहे हैं, न ही अपनी सीमाओं पर बेबस लोगों की मौत रोक पा रहे हैं.
आखिर क्या वजह है कि अरब में हिंसा के वातावरण, इसलामिक स्टेट की बर्बरता व सीरिया समेत अनेक देशों की तानाशाही पर दुनिया के बड़े देश चुप हैं. क्या वे अपने राजनीतिक व आर्थिक हितों को साधने में लगे हैं. क्या यह मानवता के िलए ठीक है. उम्मीद है सरकारें ठोस पहल करेंगी.
आधुनिक इतिहास का सबसे बड़ा मानवीय संकट : अरब और यूरोप में शरणार्थी संकट के दो कारण हैं . पहला युद्धों और हिंसक टकरावों ने लोगों को मध्य-पूर्व, सब-सहारा अफ्रीका और अन्य जगहों से अपने घरों को छोड़ कर यूरोप और अन्य देशों का रुख करने को मजबूर किया है. दूसरा, पश्चिमी देशों और अन्य धनी देशों का शरणार्थी-विरोधी रवैया. मौजूदा संकट का सबसे बड़ा केंद्र सीरिया है.
संयुक्त राष्ट्र को अपर्याप्त मदद : इस वर्ष यूरोपीय संघ, अमेरिका और कुवैत ने क्रमश: 1.2 बिलियन, 507 मिलियन और 500 मिलियन डॉलर शरणार्थियों की मदद के लिए मुहैया कराने की घोषणा की थी. पर शरणार्थी शिविरों के लिए संयुक्त राष्ट्र को 5.5 बिलियन डॉलर की आवश्यकता है. इसके अलावा सीरिया के अंदर विस्थापित लोगों की सहायता के लिए 2.9 बिलियन डॉलर की जरूरत है. सऊदी अरब ने 18.4 मिलियन डॉलर का योगदान दिया है.
समुद्र में डूबे सीरियाई कुर्दिश बच्चे अयलान की तसवीर सामने आने के बाद दुिनया भर में खासकर यूरोप में शरणार्थी मुद्दे को लेकर इन दिनों बहस छिड़ी हुई है. ऐसे में पास के अरब देशों में इसे लेकर आधिकारिक चुप्पी मानवता के लिए असहज स्थिित पैदा करती है.
सवाल यह है कि क्या दो देशों के रिश्ते केवल आर्थिक या राजनीतिक हित से ही तय होंगे. क्या इन शरणार्थियों के लिए कुछ नहीं करना चाहिए. शरणार्थियों की इन्हीं समस्याओं को लेकर आज से प्रस्तुत है यह सीरिज. पेश है पहली कड़ी.
यूरोप का अर्थ क्या है
केनेथ रॉथ एक्जेक्यूटिव डायरेक्टर, ह्यूमन राइट्स वाच
मौजूदा शरणार्थी संकट के सामाधान की कोशिश में इसकी जड़ में ही बहुत कुछ करने की जरूरत है. यूरोप व अन्य देशों के नेताओं को सीरियाई सेना द्वारा अपने नागरिकों पर हमले बंद करने के लिए दबाव बनाने की आवश्यकता है.
यह सही है जो लोग यूरोप आ रहे हैं, उनकी संख्या बड़ी है, पर उनका ध्यान रखा जा सकता है. यूरोप के नेताओं के सामने आज जो बड़ा सवाल है, वह है : यूरोप का अर्थ क्या है? यूरोपीय मूल्यों में शरणार्थियों की रक्षा निहित है. कई समझौतों पर इन देशों ने हस्ताक्षर किया हुआ है. अगर नेतागण उन मूल्यों का ध्यान रखेंगे, तो इस संकट में भी यूरोपीय संस्कृति सुरक्षित बनी रहेगी.
(ह्यूमन राइट्स वाच की वेबसाइट से)
आंकड़ों के आईने में
– 3.66 लाख शरणार्थी इस वर्ष अरब व अफ्रीका से यूरोप में समुद्र मार्ग से गये.
– 2,800 शरणार्थियों की मौत इस साल समुद्र में डूबने से हो चुकी है.
– 80 फीसदी शरणार्थी यूरोप में 10 सर्वाधिक शरणार्थी पैदा करनेवाले देशों से होते हैं. [ये 10 देश हैं : सीरिया (51%), अफगानिस्तान (14%), इरीट्रिया (8%), नाइजीरिया (4%), इराक (3%), सोमालिया (2%), सूडान (2%), गांंबिया (1%), बांग्लादेश (1%) और सेनेगल (1%).