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सॉफ्टवेयर इंजीनियर बना मधुमक्खी पालक

अमेरिका में नौकरी का ऑफर छोड़ कृष्णकांत ने चुना मिट्टी से जुड़ना किसी सॉफ्टवेयर इंजीनियर का मधुमक्खीपालक बनना, सुनने में कुछ अजीब लगता है़ लेकिन यह सच कर दिखाया है तमिलनाडु के कृष्ष्णकांत ने़ इन्होंने विप्रो की नौकरी छोड़ कर अपने गांव में मधुमक्खीपालन का व्यवसाय शुरू किया़ आज वे इस क्षेत्र में नवोन्मेष कर, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 17, 2015 9:13 AM
अमेरिका में नौकरी का ऑफर छोड़ कृष्णकांत ने चुना मिट्टी से जुड़ना
किसी सॉफ्टवेयर इंजीनियर का मधुमक्खीपालक बनना, सुनने में कुछ अजीब लगता है़ लेकिन यह सच कर दिखाया है तमिलनाडु के कृष्ष्णकांत ने़ इन्होंने विप्रो की नौकरी छोड़ कर अपने गांव में मधुमक्खीपालन का व्यवसाय शुरू किया़ आज वे इस क्षेत्र में नवोन्मेष कर, शहद की यूनिफ्लोरल किस्में विकसित कर रहे हैं. आखिर यह सब कैसे हुआ संभव, आइए जानें-
तमिलनाडु स्थित करुर जिले के एक छोटे से गांव में जन्मे कृष्ष्णमूर्ति सनापरात्ती पालनीसामी ने अपने करियर की शुरुआत विप्रो टेक्नोलॉजीज, बेंगलुरु में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर की़
लगभग दो साल तक इस पद पर काम करने के बाद एक दिन कंपनी ने उन्हें एक ऑनसाइट प्रोजेक्ट के लिए प्रोमोशन के साथ अमेरिका जाने का ऑफर दिया़ यह कृष्णमूर्ति के जीवन का अहम पड़ाव था़ अपना देश छोड़ कर दूसरे देश में काम करना उन्हें गवारा नहीं था़ उस दिन कृष्णमूर्ति ने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा फैसला लिया. मन में खुद का कोई कारोबार शुरू करने इरादा लिये उन्होंने विप्रो की नौकरी छोड़ दी.
कृष्णमूर्ति बताते हैं कि शहर की चमक-दमक और नौ से छह बजे तक की नौकरी ने मुझे अपनी जड़ों से अलग कर दिया था. करुर के एक खेतिहर परिवार से ताल्लुक रखनेवाले कृष्णमूर्ति ने नौकरी छोड़ने के बाद गांव जाकर वहीं पर कुछ करने का फैसला किया़ लेकिन असल में करना क्या था, यह अब तक तय नहीं था़
गांव और खेतीबारी से संबंधित अलग-अलग कार्यक्षेत्रों के बारे में जानकारियां जुटाने के बाद कृष्णमूर्ति ने मधुमक्खी पालन करने का फैसला किया़ अपने फार्म में मधु तैयार करना और अपने ब्रांड के साथ बाजार में उसे बेचना, मन में यह इरादा लिये उन्होंने अपने कुछ दोस्तों से कर्ज लेकर तीन लाख रुपये की पूंजी के साथ अपने गांव अरावाकुरुचि तालुका, जिला करुर में हनीकार्ट की शुरुआत की. लेकिन कृष्णमूर्ति ने इस काम को जितना आसान समझा था, उतना यह था नही़
कृष्ष्णमूर्ति कहते हैं कि शुरुआती साल में तो एक रुपये की भी आमदनी नहीं हुई. काम चूंकि नया था और उसमें कई सारी ऐसी तकनीकी अड़चनें सामने आ रहीं थीं, जिनसे पार पाना उन्हें सीखना अभी बाकी था, लेकिन परिवार और दोस्तों की मदद से वह इन तमाम मुश्किलों को वह पार करते गये. कृष्णमूर्ति आगे बताते हैं कि इस काम में सबसे बड़ी चुनौती होती है शहद बनानेवाली मधुमक्खियों को निरोग रखना. अगर एक भी मधुमक्खी रोग की चपेट में आयी, तो उसका असर पूरे समूह पर पड़ेगा.
नतीजतन शहद का उत्पादन तो कम होगा ही, उसकी गुणवत्ता भी खराब होगी. सारे नुकसान झेलते हुए इस काम में लगे रहने के निश्चय के साथ कृष्णमूर्ति ने इस स्थिति से उबरने के लिए इंटरनेट की खाक छान मारी़
मधुमक्खियों को बीमारियों से कैसे बचाएं, आसपास का वातावरण कैसा रखें, अच्छी गुणवत्ता का शहद कैसे प्राप्त करें और उसकी मार्केटिंग किस तरह की जाये, यह सब कुछ उन्होंने इंटरनेट पर ही जाना़ यही नहीं, देश के कोने-कोने में स्थित मधुमक्खीपालकों के साथ उन्होंने इस काम से संबंधित हर छोटी से बड़ी जानकारी जुटायी और उसे अपने काम में लगाया़ धीरे-धीरे हर बदलते मौसम के साथ कृष्ष्णमूर्ति का हनी कार्ट सफलता की ऊंचाइयां छूता गया़ इंटरनेट पर सहेजी गयी जानकारियों पर काम करते हुए उन्होंने मधुमक्खीपालन के क्षेत्र में कुछ नये तरीकाें की भी शुरुआत की.
खुद को वैज्ञानिक मधुमक्खीपालक माननेवाले कृष्णकांत मधुमक्खीपालन में नये कौशल और नवीनतम तकनीकों को इस्तेमाल करते हैं. इस क्रम में यूनिफ्लोरल, यानी एक ही प्रजाति के फूलों के रस से बने शहद की किस्में विकसित करने की तकनीक, भारत में लाने का श्रेय कृष्णमूर्ति को ही जाता है. उन्होंने ड्रमस्टिक, कोरिएंडर, ग्लोरी लिली, मैंगो, सेसेम, जामुन, सनफ्लावर, बनाना और नीम की यूनिफ्लोरल हनी की किस्में विकसित करने में सफलता पायी है. कृष्णकांत बताते हैं कि चूंकि एक समूह की मधुमक्खियों को एक प्रजाति के फूलों का रस लाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, ऐसे में यूनिफ्लोरल शहद की हर किस्म स्वाद, सुगंध और रंग के मामले में एक दूसरे से काफी अलग होती है.
बहरहाल, हर महीने 500 किलो से ज्यादा शहद तैयार कर ऑनलाइन और ऑफलाइन तरीके से 716 रुपये प्रति किलो की दर से बेचनेवाले 30 वर्षीय युवा उद्यमी कृष्णकांत ने अपनी लगन और दृढ़ निश्चय के बलबूते एक उद्यमी के रूप में उस क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़े, जिसके बारे में उन्हें तो क्या, उनके घर-परिवारवालों को भी कोई जानकारी नहीं थी.
इस बारे में कृष्णकांत कहते हैं कि मैंने अपने किसी फैसले पर कभी पछतावा नहीं किया. बस जो किया, उसमें पूरा तन, मन और धन झोंक दिया.

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