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सीरिया संकट-3 : अरब देशों का रवैया हिकारत भरा
रवि दत्त बाजपेयी क्या इन देशों के लिए मानवीय आधार के मानक अलग हैं? सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन, कतर और संयुक्त अरब अमीरात ने सीरिया के एक भी नागरिक को आश्रय नहीं दिया है. वैश्विक आलोचना के बाद जब अरब देश सीरियाई शरणार्थियों की मेजबानी के दावे करते हैं, तो उन्हें यह भी बताना चाहिए […]
रवि दत्त बाजपेयी क्या इन देशों के लिए मानवीय आधार के मानक अलग हैं?
सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन, कतर और संयुक्त अरब अमीरात ने सीरिया के एक भी नागरिक को आश्रय नहीं दिया है. वैश्विक आलोचना के बाद जब अरब देश सीरियाई शरणार्थियों की मेजबानी के दावे करते हैं, तो उन्हें यह भी बताना चाहिए कि इन अरब देशों में सीरियाई लोग कितनी संख्या में हैं और किस तरह से रह रहे हैं. पढ़िए अंतिम कड़ी.
सीरिया के इस गृह युद्ध में देश की आधी आबादी,1.2 करोड़ लोग अपने घरों से बेदखल हो गये हैं, सीरिया के पड़ोसी देशों जैसे इराक, लेबनान, जॉर्डन, तुर्की और मिस्र में लगभग 40 लाख सीरियाई शरणार्थी बने हुए हैं.
सीरिया के पड़ोसी संपन्न देश नहीं हैं, फिर भी तुर्की 20 लाख, लेबनान 11 लाख, जॉर्डन सात लाख जबकि युद्धग्रस्त इराक में ढाई लाख सीरियाई निर्वासित जीवन जीने को मजबूर हैं. सीरिया से पलायन कर रहे लोग अमेरिका-यूरोप में संपन्न जिंदगी जीने के लिए नहीं, सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए भागे हैं. आबादी के अनुपात से लेबनान और जॉर्डन में शरणार्थियों की संख्या सारी दुनिया में सबसे ज्यादा है.
इन देशों में और और शरणार्थियों के लिए न स्थान है और न ही संसाधन है. जाहिर है कि जब युद्ध से भागते लोगों को अपने पड़ोस में भी स्थान नहीं रहेगा, तो वे इस आगे बढ़ने का प्रयास करेंगे, जिसके कारण ये शरणार्थी अब यूरोप की ओर बढ़ रहे हैं.
यूरोपीयन संघ में जर्मनी और स्वीडन के अलावा अन्य कोई देश शरणार्थियों को आश्रय देने के लिए कतई तैयार नहीं है, अनेक यूरोपीय नेता अपने देश के भीतर धर्मांधता, नस्ली भेदभाव और आतंकवाद जैसे मसले उठा रहे हैं.
जर्मनी भले ही इस साल लगभग आठ लाख सीरियाई शरणाथियों को आश्रय देने की सदाशयता रखता हो, लेकिन अन्य यूरोपीय देश अपनी चालबाजियों से ऐसा नहीं होने देंगे. जब कोई यूरोपीय देश शरणार्थियों को अपने यहां नहीं रखेगा और एक साथ इतने सारे शरणार्थी जर्मनी आयेंगे तो यहां के अतिवादी संगठन ‘सांस्कृतिक अपमिश्रण’ की दुहाई देकर एंजेला मर्केल को मुश्किलों में डाल देंगे. शरणार्थियों के जत्थे पहुंचने के केवल दो सप्ताह के भीतर ही यूरोपीयन संघ के सदस्य देशों ने वीसा मुक्त आवागमन की नीति स्थगित कर दी है और जर्मनी ने भी अपनी सीमाओं पर सुरक्षा बढ़ा दी है अर्थात् अब शरणार्थियों के लिए जर्मनी पहुंचना आसान नहीं है.
द्वितीय विश्व युद्ध के पहले वर्ष 1930 में नाजी अत्याचार से भाग रहे यहूदी लोगों को कम्युनिस्ट समर्थक होने के संदेह में अमेरिका और यूरोप में आश्रय नहीं दिया गया था, आज सीरियाई शरणार्थियों को संभावित मुसलिम आतंकवादी बता कर रोकने का अभियान जारी है.
अमेरिका ने पिछले चार सालों में सीरिया से सिर्फ 1500 लोगों को शरण दी है, जबकि इस साल 10,000 सीरियाई लोगों को आश्रय देने की घोषणा की है. सीरिया युद्ध के दूसरे प्रायोजक ब्रिटेन ने इस साल 216 सीरियाई लोगों को शरण दी है, वर्ष 2011 से आरंभ हुए इस युद्ध में 5,000 के भी कम सीरियाई ब्रिटेन पहुंचे हैं. ब्रिटेन अगले पांच सालों में सिर्फ 20,000 सीरियाई लोगों को आश्रय देने को राजी हुआ है, वह भी ऐसे शरणार्थी जो यूरोप न जाकर अपने पड़ोसी देशों के शिविरों में रुके रहने को तैयार हैं.
सीरिया में हमलों का पैरोकार फ्रांस अगले दो वर्षों में 24,000 सीरियाई लोगों को आश्रय दे सकता है, बशर्ते अन्य यूरोपीय देश भी शरणार्थियों को अपने यहां रखने को राजी होंगे. सीरिया युद्ध के एक और भागीदार रूस ने वर्ष 2015 के आरंभ में कुछ 1,000 सीरियाई लोगों अस्थायी आश्रय दिया है, रूसी अधिकारियों के अनुसार सीरियाई लोगों के लिए यूरोप की ओर जाना अधिक अनुकूल है.
सीरिया युद्ध के अरब प्रायोजकों का इस त्रासदी के प्रति हिकारत का भाव अकल्पनीय है. तीन साल के शरणार्थी बच्चे अयलन कुर्दी के मृत शरीर का चित्र जब सारी दुनिया का ध्यान सीरिया युद्ध के अमानवीय पक्ष की ओर खींच रहा था, तब सऊदी अरब के शासक अपने अमेरिकी प्रवास के लिए वाशिंगटन की एक अत्यंत महंगी समूची होटल किराये पर लिए हुए थे.
सऊदी अरब के सुल्तान, सीरिया के पीड़ितों के लिए नहीं, बल्कि ईरान-अमेरिका परमाणु समझौते के बाद अपने लिए सुरक्षा की गारंटी मांगने अमेरिका गये थे. अभी भी सऊदी अरब यमन के गृह युद्ध में खुलकर हिस्सा ले रहा है. पश्चिमी एशिया के अन्य संपन्न देशों ने शरणार्थियों के प्रति जवाबदेही के किसी अंतरराष्ट्रीय समझौते को मंजूर नहीं किया है.
सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन, कतर और संयुक्त अरब अमीरात ने सीरिया से भाग रहे किसी एक शरणार्थी को आश्रय नहीं दिया है. वैश्विक आलोचना के बाद जब अरब देश सीरियाई शरणार्थियों की मेजबानी के दावे करते हैं, तो उन्हें यह भी बताना चाहिए कि इन अरब देशों में सीरियाई लोग कितनी संख्या में हैं और किस तरह से रह रहे हैं. इन शरणार्थियों के लिए यूरोप से मानवीय आधार पर सहायता मांगना सही है लेकिन क्या अरब देशों के लिए मानवीय आधार के मानक अलग हैं? (समाप्त)
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