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छह दशकों में बदल डाली तसवीर

गांव छोड़ने के बजाय उसे संवारने का लिया फैसला गांव में रहनेवाले बच्चे आमतौर पर प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उच्च शिक्षा या नौकरी के इरादे से बड़े शहरों का रुख कर लेते हैं. लेकिन 84 साल के हो चले भीखूभाई व्यास ने ऐसा नहीं किया़ युवावस्था में अपने गांव को छोड़ जाने से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 24, 2015 9:29 AM

गांव छोड़ने के बजाय उसे संवारने का लिया फैसला

गांव में रहनेवाले बच्चे आमतौर पर प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उच्च शिक्षा या नौकरी के इरादे से बड़े शहरों का रुख कर लेते हैं. लेकिन 84 साल के हो चले भीखूभाई व्यास ने ऐसा नहीं किया़ युवावस्था में अपने गांव को छोड़ जाने से बेहतर उन्होंने अपनी मिट्टी से जुड़े रह कर उसे संवारने का बीड़ा उठाया़ आइए जानें कैसे़

गुजरात के सूरत जिले में वलोड नाम का एक छोटा सा कस्बा है़ यहीं जन्म हुआ था भीखूभाई व्यास का़ मिट्टी के सच्चे सपूत भीखू का बचपन भी वलोड की गलियों में आम बच्चों जैसा ही बीता़ युवावस्था में पहुंचने तक भीखू के सारे साथी जब पढ़ने-कमाने के इरादे से सूरत, गांधीनगर और बंबई का रुख करने लगे,

तब भीखू ने गांव पर ही रह कर उसे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी मूलभूत आवश्यकताओं से जोड़ने का फैसला किया़ अपनी इस कोशिश में वह बीते छह दशकों से लगातार लगे हुए हैं और इसमें उन्हें काफी हद तक सफलता भी हासिल हुई़ आज गुजरात भर में शिक्षा, सामुदायिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अपनी अनूठी पहचान बना चुके भीखूभाई अब अपने गांव को मॉडल विलेज बनाने में लगे हैं.

बस यही नहीं, ग्रामीण आबादी की मूलभूत आवश्यकताओं को उन तक पहुंचाने की कोशिश को उन्होंने आस-पास के कई गांवों तक प्रसारित किया है़

इन सब की शुरुआत के बारे में भीखूभाई बताते हैं कि स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद अपने कुछ साथियों के संग मैंने गांव की तसवीर बदलने के मकसद से प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के जरिये शिक्षा के प्रसार का फैसला किया़ हमने गांव की जनजातीय आबादी और अन्य लोगों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया़ लेकिन हमारा यह काम स्थानीय और पारंपरिक नेताओं को पसंद नहीं आया़ उनकी लगायी अड़चनों को देखते हुए भीखूभाई और उनके साथी पास ही के वेडछी स्थित गांधी आश्रम से जुड़ गये़

यहां उन्हें जनजातीय समुदाय के बीच शिक्षा और विविध विषयों पर जागरूकता फैलाने के लिए का पूरा मौका मिला़ भीखूभाई बताते हैं, गांधी आश्रम के साथ मैंने आठ साल तक काम किया़ वह मेरे जीवन का अहम पड़ाव था, जिससे मेरी जिंदगी को नयी दिशा मिली़

वह आगे बताते हैं, अब हमें जीने का मकसद मिल चुका था और वह था ग्रामीण और कमजोर आबादी के हक, हित और हिफाजत के लिए काम करना़ एक तरह से गांधी आश्रम ने हमें गांधीजी के उसूलों पर चलते हुए ग्राम पुनर्निर्माण के लिए जरूरी प्रशिक्षण दे दिया था़

बहरहाल, वेडछी गांधी आश्रम में अपना कार्यकाल पूरा कर भीखूभाई ने वलोड तालुका के एक सुदूर क्षेत्र में हाइस्कूल शुरू किया़ इस काम में भीखूभाई को पत्नी कोकिला का पूरा सहयोग मिला़ कुछ अरसे बाद यह दंपती एक स्टडी टूर पर पास के धरमपुर तालुका पहुंचा़

वलसाड जिले का पहाड़ों और जंगलों से भरा यह इलाका, गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्रों में आता है, जहां से अरब सागर 50 किमी की दूरी पर स्थित है़ भीखूभाई बताते हैं, जनजातीय बहुल यह क्षेत्र गुजरात ही नहीं, देश के सबसे पिछड़े इलाकों में शामिल है़ यहां की आबादी शैक्षणिक और आर्थिक लिहाज से पिछड़ी है़ कुछ ऐसी ही स्थिति पास के कपराडा तालुका की भी थी़

इन दो तालुकाओं में 231 गांव पड़ते थे, जो शिक्षा और विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर खड़े थे़ लगभग 50 सदस्यों वाले वेडछी प्रदेश सेवा समिति के जरिये इन क्षेत्रों में शिक्षा और रोजगार की छटा बिखेरनेवाले भीखूभाई आगे बताते हैं, 28 साल पहले जब हम यहां आये थे, तो यहां के गांवों में 15 प्रतिशत पुरुष और 8 प्रतिशत महिला आबादी ही पढ़ने-लिखने में सक्षम थी और यही इनकी गरीबी की मुख्य वजह थी़ भीखूभाई कहते हैं, तब हमने स्वीडेन की संस्था ‘टफ’ की मदद से इन गांवों में 50 रात्रि पाठशालाएं, 50 बालवाड़ियां और 20 अनौपचारिक शिक्षण केंद्रों की शुरुआत की़

इसके अलावा, भीखूभाई की संस्था ने ग्रामीणों के आय सृजन और संवर्धन के उद्देश्य से कई कार्यक्रम चलाये़ इनमें गाय, भैंस, बकरी पालन के अलावा बागवानी और कुटीर उद्योग को बढ़ावा देना, खेती-किसानी के लिए रियायती दरों पर खाद-बीज मुहैया कराना आदि शामिल है़ यही नहीं, यह संस्था 350 से अधिक सामूहिक विवाह कार्यक्रम आयोजित कर चुकी है़ भीखूभाई बताते हैं, इन सारे कार्यक्रमों का खर्च सामुदायिक सहभागिता के जरिये उठाया जाता है़

इसके अलावा कुछ गैर-सरकारी संगठन और लोग ऐसे भी हैं जो सामूहिक और निजी तौर पर इस नेक काम में अपना योगदान देते हैं. वेडछी प्रदेश सेवा समिति ने वर्षा जल संग्रहण और सिंचाई के लिए इन क्षेत्रों में जनभागीदारी से सैकड़ों कुओं, चेक डैमों का निर्माण कराया है, जिससे यहां के लोगों के लिए न केवल अनाज उपजाने में सहूलियत होने लगी है, बल्कि फल और सब्जी की पैदावार भी बढ़ गयी है़

आज की तारीख में वेडछी प्रदेश सेवा समिति वलोड, धरमपुर, कपराडा तालुकाओं में छह प्राथमिक विद्यालय, दो उच्च विद्यालय, उच्च माध्यमिक कक्षाओं में पढ़नेवाली बालिकाओं के लिए एक हॉस्टल और विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा के लिए एक छात्रवृत्ति योजना संचालित करती है़

इन सबसे एक हजार छात्र-छात्राओं को फायदा हो रहा है़ भीखूभाई और उनकी पत्नी कोकिला की देखरेख में चलाई जा रही वेडछी प्रदेश सेवा समिति के प्रयासों का ही नतीजा है कि इन क्षेत्रों के सौ से अधिक बच्चे अब कॉलेज स्तर पर इंजीनियरिंग, नर्सिंग, फार्मेसी, कंप्यूटर, टीचर्स ट्रेनिंग, सहित विज्ञान, कला और वाणिज्य के अन्य संकायों में पढ़ाई कर रहे हैं.

इसके अलावा, 500 से अधिक छात्र-छात्राओं ने व्यावसायिक प्रशिक्षण पूरा कर अपने जीवन को एक नयी दिशा दी है़ यह भीखूभाई की लगन का ही प्रतिफल है कि गुजरात के सबसे पिछड़े इलाके की तसवीर बदली है और यह विकास की मुख्यधारा में शामिल हो चुका है़ यहां के लोगों में जीवन के प्रति एक नयी उम्मीद जगी है और उन्हें अपने भविष्य की तलाश में अपना गांव छोड़ने की जरूरत नहीं पड़ती़

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