गांधी जयंती : इस अंधेरी रात में दीपक जलाये कौन बैठा है?
बापू निडरता के साथ-साथ सत्य के भी पक्षधर थे अनुराग चतुर्वेदी कई बार लगता है महात्मा गांधी अब अप्रासंगिक हो गये हैं, अब सत्ता उन्हें नहीं मानेगी या जो मान रहे हैं, वे भी नाटक कर रहे हैं, लेकिन अलग-अलग संदर्भों में गांधी फिर प्रासंगिक हो जाते हैं. गांधीजी देश को अंधेरे के खिलाफ लड़नेवाले, […]
बापू निडरता के साथ-साथ सत्य के भी पक्षधर थे
अनुराग चतुर्वेदी
कई बार लगता है महात्मा गांधी अब अप्रासंगिक हो गये हैं, अब सत्ता उन्हें नहीं मानेगी या जो मान रहे हैं, वे भी नाटक कर रहे हैं, लेकिन अलग-अलग संदर्भों में गांधी फिर प्रासंगिक हो जाते हैं. गांधीजी देश को अंधेरे के खिलाफ लड़नेवाले, प्रेरणा देनेवाले थे और रहेंगे. गांधी जयंती पर पढ़िए यह आलेख.
हरिवंश राय बच्चन ने गांधीजी के लिए एक अविस्मरणीय पंक्ति लिखी है, ‘इस अंधेरी रात में दीपक जलाये कौन बैठा है?‘ आज भी सामाजिक-आर्थिक रूप से रात अंधेरी है. गरीबों, पिछड़ों और ग्रामीण भारत की रात अंधेरी है, वे गांधी के बनाये रास्ते पर चल इसी सदी की चुनौतियों को समझ सकते हैं. गांधीजी के दीपक की रोशनी कहां से आ रही है. जीवन के, सभ्यता के, मनुष्यता के कई सवालों के जवाब महात्मा गांधी जी ढूंढ़ते हैं, और एक साधक की तरह वहां जम कर अपने समय के सवालों से रू-ब-रू होते हैं. स्वतंत्रता और बराबरी के लिए लड़नेवाले गांधी कुरीतियों से लेकर स्वच्छता के विषय पर बोलते हैं. साफ-सफाई के मुद्दे पर वे कस्तूरबा तक से झगड़ पड़ते हैं. भारत के ‘लोक मन’ को वे न केवल पहचानते थे, बल्कि उसके बताये रास्ते पर चलने का आग्रह भी करते थे.
गांधीजी ने देश के सबसे बड़े जन आंदोलन का नेतृत्व किया. गांधी में वह कौन-सी कूवत थी, कौन-सी ताकत थी, कौन-सा जादू था जो सैकड़ों भारतवासी उनके साथ हो गये. वे कांग्रेस तक के पर्याय हो गये, कवि ज्ञानेंद्रपति ने अपनी कविता ‘यह वह कांग्रेस नहीं है’ में लिखा है ‘गांधीजी की भक्तिन थी, वह मरते दम तक यही सोचती रही कि कांग्रेस गांधी बाबा का घरउवा नाम है.’
गांधीजी एक अपराजित योद्धा थे. उनमें आत्मबल और पुरुषार्थ थी. गांधीजी को अहिंसा से प्यार था और वे निहत्थे थे. उनके पास न तो राज्यसत्ता थी और न समानांतर शक्ति लेकिन खुद निडर रह कर गांधीजी दूसरों को डराते थे. बड़ी राज्यशक्तियां, सांप्रदायिक नजरिया रखनेवाले समूह गांधी के इसी निडरपन से डरते थे. गांधीजी निडरता के साथ-साथ सत्य के भी पक्षधर थे. सत्य और अहिंसा को वे साथ लेकर चलते थे. सार्वकालिक मूल्यों को मानने के कारण गांधीजी कालजयी बने.
महात्मा गांधी वर्तमान भारत के लिए सबसे ज्यादा आज प्रासंगिक हैं, दिल्ली से चालीस किलोमीटर दूर बिसारहड़ा गांव, जहां एक लोहार की हत्या इसलिए कर दी गयी, क्योंकि एक उन्मादी भीड़ को अफवाह फैला कर लाउडस्पीकर से सूचना दी गयी कि उसके पास गो-मांस है.
हिंसा का लावा उस गांव में फूट गया, पिता को मार डाला भीड़ ने, और पुत्र को गंभीर रूप से घायल कर दिया. गांधी जयंती से एक सप्ताह पूर्व देश की राजधानी से एक घंटे की दूरी पर घटी यह घटना. गांधी जी होते तो क्या करते? हिंसा के पक्ष में यह तर्क दिया जाता है कि वह पाशविक वृत्ति है. गांधी जी इस पाशविक प्रवृत्ति की निंदा करते थे क्योंकि अंदर से, अचेतन की अंधेरी गुफा से अपने शिकार को ढूंढ़ता क्रुद्ध पशु, जब बाहर निकलता है तो वह न केवल हिंसक हो जाता है बल्कि अविवेकी भी हो जाता है. गांधी जी हिंसा के कारणों को जानते थे, पर वे अहिंसा के दर्शन के पक्षधर थे. अत्याचार और हिंसा के विवेक को वे जानते थे, वे लिखते हैं, ‘अहिंसा तो निर्विकार होने में और कर्तव्य के संकल्पपूर्वक पालन में है जिसके लिए मरना आना चाहिए और कोई व्यक्ति अहिंसा पालन करना न सीख सके तो कायरतापूर्वक पीठ दिखा कर भागने की अपेक्षा उसे आततायी को मारने में संकोच नहीं करना चाहिए. भारत विभाजन के बाद जब कलकत्ता (अब कोलकात) सांप्रदायिक हिंसा में जल उठा तो कई कांग्रेसी उनसे मिलने आये. गांधीजी ने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से पूछा, ‘तुमने कितने मुसलिमों को बचाया?
क्या बचाते हुए किसी की जान गयी? गांधीजी अहिंसा का पालन करते हुए जान की बाजी लगाने के पक्षधर थे इसलिए अंगरेजों के खिलाफ अहिंसा की अदभुत शक्ति के प्रयोग को रेखांकित किया जाना चाहिए.
गांधीजी छुआछूत और सिर पर मैला उठाने के सख्त खिलाफ थे. गांधी के आश्रम स्वच्छता की मिसाल है. सब जगहें साफ-सुथरी, शौचालय प्रकृति से जुड़े, और सभी आश्रमों की सफाई आश्रमवासी ही करते थे. सब ‘ड्यूटी’ अलग-अलग दिन, अलग-अलग काम करने की होती थी. शौचालय सभी को साफ करना होता था. गांधी के आश्रम और सेना की छावनियों की रिहाइश भारत में सबसे ज्यादा स्वच्छ होते हैं. क्या हमारा पूरा देश इस तरह से साफ नहीं हो सकता?
पिछले वर्ष गांधी जयंती के मौके पर भारत में स्वच्छता अभियान शुरू किया गया. स्कूलों में शौचालयों का निर्माण बड़े पैमाने पर शुरू हुआ और गांधी के चश्मे की फ्रेम से स्वच्छता आंदोलन एक-सी दिशा में चल पड़ा, जहां अस्वच्छता, भ्रष्टाचार, हिंसा, का नाश जरूरी हो गया.
भारत में जब तक अछूत रहेंगे तब तक स्वराज नहीं मिलेगा. 1916 में आयोजित हुए सर्वजातीय सम्मेलन में छुआछूत निवारण के लिए मुकम्मल जंग का एलान करते हुए गांधीजी ने अपने सिर की तरफ इशारा किया था और कहा था, ‘यह सिर अस्पृश्यता निवारण के लिए समर्पित है.’ गांधी भले ही दलित के घर न जन्मे हों, लेकिन दलितों के काम को गरिमा, सामाजिक वैधता दिलानेवाली हर संभव कोशिश में वे शामिल ही नहीं हुए, उसका अभिन्न हिस्सा भी हो गये.
गांधी संपूर्ण मानव विकास की बात करते थे वे पुरातन और आधुनिकता को जानते थे. भारत के गरीब गरीबी उनके सोच के केंद्र में थी. वे जीवनशैली के कुछ कठोर नियमों का पालन करते थे और दूसरों से भी उसका पालन करने का आग्रह करते थे. इच्छाओं का दमन, प्रकृति की तरफ लौट जाना जरूरतों को कम करना और ब्रह्मचर्य का पालन करना उनके सोच का हिस्सा थे. गांधी ने जिन बातों की ओर समाज का ध्यान सौ-डेढ़ सौ वर्ष पूर्व दिलाया था और साधनों और सुविधाओं से भरपूर उपभोक्ता समाज फिर से गांधी के मार्ग पर लौट जाना चाहता है. रासायनिक खाद की जगह गोबर का खाद फिर से चर्चा में है. गांधीजी ने खेती से लेकर शिक्षा के बारे में जिन मुद्दों को उठाया, वे आज प्रासंगिक हो गये हैं. गांधी के विचारों में पक्षधरता स्पष्ट दिखायी देती है, वे वर्ण वर्चस्व के विरोध में थे, वे उदारमतवाद बनाम कट्टरतावाद में उदारवाद के साथ जुड़ते हैं. गांधी स्त्रियों के पक्ष में थे. उनके आश्रमों में स्त्रियों की भागीदारी बराबरी की थी. गांधी भारतीय भाषाओं और मातृभाषा के साथ-साथ हिंदी के भी प्रबल समर्थक थे. गांधी धन-संपत्ति के संग्रहण के विरोध में थे. उदारतावादी एवं सहिष्णुता गांधी के लिए मूल्य थे, जीवन मूल्य जिन्हें उन्होंने आजीवन निभाया.
गांधी काम के जरिये ‘लोक’ से जुड़े और भारत विभाजन के बाद वे एक पंख कटी चिड़िया के समान हो गये थे. इस निराशा के दौरान उन्होंने कहा था कि वे ‘खोटे सिक्के हो गये हैं.’ कांग्रेस को भंग करने की सलाह भी गांधी जी ने तब दी थी.
पोरबंदर, जोहांसबर्ग और दांडी की यात्राओं ने मुझे गांधी की पवित्रता, साहस और संघर्ष का अहसास कराया. गांधी के अनुयायियों में सत्य का अन्वेषण एक जरूरी गुण माना गया है. गांधी के ‘सत्य के साथ प्रयोग’ दुनिया के लिए एक नजीर है. कई बार लगता है गांधी अब अप्रासंगिक हुए, अब सत्ता उन्हें नहीं मानेगी या जो मान रहे हैं, वे भी नाटक कर रहे हैं, लेकिन अलग-अलग संदर्भों में गांधी फिर प्रासंगिक हो जाते हैं. भारत सरकार के स्वच्छता अभियान के यूं तो सरकार ने कई ब्रांड एंबेसेडर बनाये हैं, पर इस अभियान के सबसे बड़े ब्रांड एंबेसेडर तो गांधी ही है जो जीवन को अहिंसा, उदारमना, सर्वधर्म समभाव के जरिये स्वच्छ बनाना चाहते थे.
समाज के मैले और गंदगी धोनेवाले को गांधी गरिमापूर्ण स्थान देते थे और व्यक्ति और समाज की सफाई को बराबरी का दर्जा देते थे. गांधीजी देश को अंधेरे के खिलाफ लड़नेवाले, प्रेरणा देनेवाले थे और रहेंगे.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)