शक्ति की आराधना : सामूहिक शक्ति का प्रतीक हैं दुर्गा

घर की देवी हमारी रक्षा के लिए दुर्ग की रचना करती हैं दुर्गा इस विशाल सृष्टि की जननी हैं और सभी जीवों का पालन-पोषण करती हैं. घर की देवी यही भूमिका अपने परिवार के लिए निभाती है. आज भी दुर्गा उतनी ही प्रासंगिक हैं. आज की नारी को भी निरंतर आसुरिक शक्तियों से जूझना पड़ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 20, 2015 6:03 AM
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घर की देवी हमारी रक्षा के लिए दुर्ग की रचना करती हैं
दुर्गा इस विशाल सृष्टि की जननी हैं और सभी जीवों का पालन-पोषण करती हैं. घर की देवी यही भूमिका अपने परिवार के लिए निभाती है. आज भी दुर्गा उतनी ही प्रासंगिक हैं. आज की नारी को भी निरंतर आसुरिक शक्तियों से जूझना पड़ रहा है. अपनी अदृश्य दस भुजाओं के साथ वह निरंतर उन राक्षसी प्रवृत्तिवालों से जूझ रही हैं.
अनुराधा मजूमदार
शिव के अलावा केवल दुर्गा ही एक ऐसी देवी हैं, जो त्रिनेत्र धारिणी हैं. उनका बायां नेत्र चंद्रमा का प्रतीक है, जो हमारे भीतर स्थित लालसा, मोह और कामना को व्यक्त करता है. उनका दायां नेत्र सूर्य का प्रतीक है, जो हमारे भीतर स्थित तेज, कर्म क्षमता और शक्ति का सूचक है. और इनके मध्य भाग में स्थित उनका तीसरा नेत्र अग्नि का प्रतीक है, जो ज्ञान, विवेक और बुद्धि का सूचक है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, असुरों के राजा महिषासुर को यहवरदान प्राप्त था कि कोई भी मानव, देव या असुर उसको पराजित नहीं कर सकता. यह वरदान देते समय सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने उससे पूछा कि क्या मानव, देव या असुर की इस सूची में स्त्री को भी शामिल कर लिया जाए, ताकि कोई स्त्री भी उसे पराजित नहीं कर पाए? यह सुन कर उसका अहंकार जाग उठा. उसे लगा कि किसी स्त्री को पराजित करना भला कौन-सा कठिन काम होगा. इसलिए उसने इस वर को ठुकरा दिया.
कथा के अनुसार, ब्रह्मा से अपने मनोनुकूल वरदान पाने के बाद महिषासुर के अत्याचार बढ़ने लगे. वह निरंकुश हो गया. और उसे किसी भी तरह से पराजित करना असंभव हो गया. तब सब देवों ने सम्मिलित रूप से शक्ति की आराधना की और उनका देवी रूप में आवाहन किया, क्योंकि महिषासुर ने स्त्री से भी नहीं पराजित होनेवाला वर ठुकरा दिया था. जब महिषासुर को मालूम हुआ कि एक सुंदर स्त्री उसको युद्ध के लिए निमंत्रण दे रही है, तो पहले उसने अपने दो असुर सेनापतियों को उसे बंदी बना कर लाने के लिए भेजा, ताकि उससे विवाह कर सके. परंतु देवी की शक्ति के आगे वह दोनों टिक नहीं पाये. भोग की अपनी इच्छा के कारण महिषासुर को युद्ध के पहले ही चरण में पराजय मिली. इसके बाद महिषासुर का क्रोध बढ़ता गया और वह तरह-तरह के रूप बदल कर युद्ध के लिए आने लगा. वह मायावी था.
कभी मनुष्य के रूप में, कभी भैंसे पर सवार राक्षस के रूप में. जैसे आज कोई अपराधी कभी परिवार का सदस्य बन कर आता है, कभी दोस्त बन कर और कभी लुटेरा बन कर. अपराध बाहर होते हैं, पर शोषण घर और परिवार के भीतर भी होता है. पर, यह समझना महत्वपूर्ण है कि कथा में अंतत: देवी ही महिषासुर के विनाश का कारण बनती हैं.
इस कहानी में हम दुर्गा को ज्ञान, बुद्धि और विवेक के रूप में देखते हैं, जो सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक बंधनों से परे हैं. वे सामूहिक शक्ति का प्रतीक हैं. महिषासुर अज्ञान, अहंकार और हमारी लालसाओं का प्रतिनिधित्व करता है. उसके मायावी होने और निरंतर रूप बदलने का आशय है हमारा अनियमित व्यवहार और हमारी विनाशकारी भावनाएं. महिषासुर उसी तरह से बार- बार आकार बदल कर प्रकट होता है, जैसे हमारी बुद्धि लगातार भोग की एक लालसा से दूसरी लालसा की ओर आकर्षित होती है और उनके पीछे भागती है. असुर का अत्यधिक क्रोध हमारी वही वृत्ति है, जो बिना कुछ सोचे-समझे अपनी लालसाओं की राह में आनेवाली हर चीज को ध्वस्त करना चाहती है. यह आज के समाज में व्याप्त कलुष को भी प्रदर्शित करता है.
दुर्गा का शाब्दिक अर्थ है दुर्ग या किला. एक ऐसी सुरक्षित जगह, जिसे जीतना या काबू में करना बेहद मुश्किल हो. इसे हमारी रक्षा के लिए घर की स्त्री निर्मित करती है. वह उस गृह दुर्ग की देवी है. दुर्गा इस विशाल सृष्टि की जननी हैं और सभी जीवों का पालन-पोषण करती हैं. घर की देवी यही भूमिका अपने परिवार के लिए निभाती है. आज भी दुर्गा उतनी ही प्रासंगिक हैं. आज की नारी को भी निरंतर आसुरिक शक्तियों से जूझना पड़ रहा है. अपनी अदृश्य दस भुजाओं के साथ वह निरंतर उन राक्षसी प्रवृत्तिवालों से जूझ रही है.
(हिंदी डॉट स्पीकिंगट्री डॉट इन से साभार)
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