पत्रकारिता का अर्थ स्पष्ट विचारों की अभिव्यक्ति

सकारात्मक व्यवस्था लाने की दिशा में प्रयास करना होगा स्वामी निरंजनानंद सरस्वती दो-ढाई घंटे कैसे बीत गये, पता ही नहीं चला. यहां जो चर्चा हो रही थी, वह सबका ध्यान आकृष्ट कर रही है. जब कुमार कृष्णन जी आये थे, यह कहने के लिए कि हमलोग आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र की याद में संगोष्ठी करने जा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 27, 2015 8:24 AM
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सकारात्मक व्यवस्था लाने की दिशा में प्रयास करना होगा
स्वामी निरंजनानंद सरस्वती
दो-ढाई घंटे कैसे बीत गये, पता ही नहीं चला. यहां जो चर्चा हो रही थी, वह सबका ध्यान आकृष्ट कर रही है. जब कुमार कृष्णन जी आये थे, यह कहने के लिए कि हमलोग आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र की याद में संगोष्ठी करने जा रहे हैं, क्या आप उसमें आ पायेंगे या नही? हमने कहा, हम निश्चित रूप से आयेंगे, चाहे विषय जो भी हो. आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र से हमारा सबंध आज का नहीं है, बल्कि 1965 से है.
जब मैं पांच साल का था, तब से उनके साथ हमारा संबंध रहा है और यह भी बतलाना आनंदवर्द्धक होगा, वे हमारे हिंदी के शिक्षक थे.
जब यहां चर्चा हो रही थी पत्रकारिता की, आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र के बारे में हमारे आचार्य सत्यानंद जी के बारे में और महात्मा गांधी के बारे में, तब मेरे मन में यह विचार आ रहा था. हमारे समाज में दो शब्दों का प्रयोग करते हैं. एक शब्द है ‘समाज का विकास’ और दूसरा शब्द है ‘समाज का निर्माण’. दोनों का अर्थ अलग होता है.
हम देखें तो समाज विकास का जो क्षेत्र है, उसको हम सरकारी तंत्र से जोड़कर देख सकते हैं, क्योंकि सरकारी तंत्र का जो कार्य होता है, जनता के लिए सुविधा तथा कौशल उपलब्ध कराने का, ताकि जनता अपने सुख, समृद्धि तथा शांति के मार्ग पर चल सके. परिवार और समाज का उत्थान एवं कल्याण दोनों कर सकें. समाज विकास का जो संबध मेरे मन में है, हो सकता है, गलत भी हो सकता है, ले​किन हमारे मन में उसका संबध है परिवर्तन और व्यवस्था के साथ.
लेकिन दूसरे शब्द ‘समाज निर्माण’ का अर्थ होता है विश्व के जनमत के साथ. और देखिए चिंतन के दो रूप होते हैं. एक सकारात्मक चिंतन, जो जीवन परिवार और समाज कल्याण के लिए होता है. एक नकारात्मक चिंतन,जो जीवन में चिंता और परेशानी का कारण बनता है.
दोनों की उत्पत्ति एक ही है. चिंतन और चिंता दोने के आकार का और नकार का. जब हम अपने प्रयासों से दूसरे का उत्थान और कल्याण करते हैं तो, वह चिंता का रूप नहीं, चिंतन का रूप होता है और हमारे देश के जो मनीषी रहे हैं, हमारे देश के जो अच्छे लोग हैं, वे चिंतक हैं. हम आपको एक और तरीके से समझाने का प्रयास करते हैं. चिंता और चिंतन में अंतर या भेद. एक मनुष्य यात्रा करता है, लेकिन उसके पास नक्शा नहीं है, मैप नहीं है, उसको हर पल की चिंता होती है कि मैं किस दिशा में जाऊं. जिस दिशा में जा रहा हूं, क्या वह सही दिशा है या मेरा रास्ता भटक रहा है.
तो जिस व्यक्ति के पास नक्शा नहीं होता है, उसके जीवन में चिंता है. लेकिन जो व्यक्ति समाज के नक्शे को देखता है और समझता है, वह चिंतन है. यही अंतर है सकारात्मक और नकारात्मक सोच में. हमारे भारत में चिंता करनेवाले और चिंतन करनेवाले भी लोग हैं. हम चिंतन करते हैं, तो वह समाज के लिए प्रेरणा कार्य होता है. समाज को प्रेरित करते हैं एक आइडिया देकर, एक विचार देकर, एक लक्ष्य देकर, एक उद्देश्य प्रदान करके.
आचार्य लक्ष्मीकांत जी सामाजिक चिंतक रहे हैं, गांधी जी भी सामाजिक चिंतक रहे हैं. स्वामी सत्यानंदजी भी सामाजिक चिंतक रहे हैं. यदि वाह्य आवरण को देखेंं, तो गांधी जी त्याग और महात्मा के रूप थे. स्वामी सत्यानंद सन्यासी के रूप में थे और हमारे आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र सहज और सरल रूप थे.
उन्हें कोई अहंकार और अभिमान नहीं था. अब रही समाज निर्माण की बात, जब एक मनुष्य अपने चिंतन द्वारा अपना पथ तय करता है और वर्तमान की आवश्यकताओं के अनुसार समाज को आगे बढ़ाने का निर्माण करने का संकल्प लेता है त​ब उस चिंतन को समाज में प्रसारित करने के लिए जरूरत होती है प​त्रकारिता की. और पत्रकारिता का अर्थ होता है स्पष्ट विचारों को व्यक्त करना, भ्रांतिपूर्ण विचारों को नहीं. भ्रांतिपूर्ण विचारों से बचते हुए आप जो कहना चाहते हैं, उसे कम शब्दों, वाक्यों में कहने की जरूरत है, क्योंकि स्थान उतना ही मिलता है. इसलिए आपको अपना स्पष्ट विचार रखना होता है.
इसलिए अपनी ही लेखनी पर आपको स्वयं विचार करना होता है, आप जो लिख रहे हैं, वह सही है या नहीं, पर ध्यान देना होता है. हम जो सोच रहे हैं या व्यक्त कर रहे हैं, सही है या नहीं. पत्रकारिता चिंतन की अभिव्यक्ति है और जब उस चिंतन का एक लक्ष्य रहता है.
गांधी जी ने एक आंदोलन किया, तब उस समय लोगों में स्वराज के चिंतन में, उसमें गांधी जी ने एक उत्साह लाया और वह पूरे समाज का एक लक्ष्य बन गया. इसलिए पत्रकारिता में भी स्पष्ट झलक दिखायी पड़ती है कि मनुष्य संकल्प को लेकर, विचार को लेकर आगे बढ़ रहा है. जब लक्ष्य सामने नहीं हो तो वहां विच्छेद आरंभ होता है. मनुष्य के मन का भटकाव आरंभ होता है और फिर पत्रकारिता में, संदेश के प्रसारण में उद्देश्य नहीं दिखायी देते.गांधी जी ने अपने चिंतन में भारत के बारे में एक कल्पना की. भारतीय समाज की कल्पना की.
जिस प्रकार समाज के भेदों, विचारों को उन्होंने प्रस्तुत किया, उनके विचारों के संप्रेषण का माध्यम बना पत्रकारिता. उसी प्रकार आधुनिक परिवेश में स्वामी सत्यानंद ने चिंतन किया और चिंतन का रूप केवल आध्यात्मिक नहीं था, जब वे बार-बार कहते रहे, उदाहरण देकर गये कि अगर एक परिवार में चार बच्चे हैं, एक सक्षम है, स्फूर्त है, एक कमजोर और अपंग है, तो एक अभिभावक के नाते आप किसका ध्यान रखोगे जो सक्षम है, मजबूत है उनका ख्याल करोगे या एक अपंग का, जो कमजोर है उसका ख्याल करोगे.
हमारे भारतीय समाज में भी यही परिस्थिति रही है और हमने गलती की. हमने मजबूत, शिक्षित संतानों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया, जो अपंग था, कमजोर था, उसे नहीं .
आज समाज में जो अराजकता है, वह इसी कारण है, क्योंकि हमने पूर्व में गलती की है, क्योंकि हमने अपनी कमजोर संतानों का ख्याल नहीं किया. यही मानवता है और स्वामी सत्यानंद सरस्वती का चिंतन है. और यही तो है जो आज हम सबको चाहिए, समाज को चाहिए. हम सब​ एक-दूसरे का सहयोग कर सकते हैं, एक -दूसरे के उत्थान के लिए कार्य कर सकते हैं. समाज निर्माण के लिए एकत्र हो सकते हैं. पहले नीति स्पष्ट करना होगा.
आधुनिक परिप्रेक्ष्य ओर संदर्भ को मनुष्य के उत्थान के लिए क्या परिपाटी होनी है, क्या मार्ग होना है, क्या तरीका होना है, इसको तो स्पष्ट किया जाये. देखो भाई, हम तो ऐसी परंपरा से जुड़े हैं, जो शांति को प्राप्त करने का प्रयास नहीं करता है. इसलिए इस ​विचारधारा से प्रभावित होकर यह जानने के प्रयास करते हैं कि अशांति के क्या-क्या कारण हैं और इन कारणों का निवारण किस प्रकार सकारात्मक रूप में हो सकती है. इस चिंतन का प्रसारण यदि पत्रकारिता के माध्यम से हो तो हम एक अच्छे समाज की कल्पना कर सकते हैं.
जैसा कि कहा गया सोशल मीडिया में पत्रकारिता प्रवेश कर रहा है. ठीक है सोशल मीडिया अपना काम करे. सोशल मीडिया में छोटी-सी बात को अंतरराष्ट्रीय स्वरूप मिल सकता है. ऐसे में पत्रकारों की क्या भूमिका होनी चाहिए? चूंकि आप एक आंदोलन का निर्माण करते हैं, इसलिए मनुष्य को भटकने से रोकें. यह शक्ति आप पत्रकारों के पास है.
हमलोग सही विचार व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन उस विचार को प्रसारित करना, जन-जन तक पहुंचाना और मानने के लिए लोगों को प्रेरित करना आदि काम आप पत्रकार करते हैं और कर सकते हैं. आपको, समाज को, हमसे अपेक्षा है, सांस्कृतिक-नैतिक समाज के निर्माण का मार्ग पकड़ा सके. जो अकेले साधु में नहीं है. संगठन के रूप में आप कर सकते हैं. सकारात्मक व्यवस्था लाने की दिशा में प्रयास निंरतर जारी रहना चाहिए.
आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र बिहार की हिंदी पत्रकारिता के हस्ताक्षर थे. गत 16 अक्तूबर को उनकी पुण्यतिथि पर ‘महात्मा गांधी और स्वामी सत्यानंद के विचारों के परिप्रेक्ष्य में पत्रकारिता के सरोकार’ पर संगोष्ठी का आयोजन मुंगेर के सूचना भवन में किया गया था. इस संगोष्ठी में बिहार योग विद्यालय, मुंगेर के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती मुख्य वक्ता थे. प्रस्तुत है इस अवसर पर दिया गया उनका व्याख्यान.
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