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समझा दर्द, मर्ज के उपचार को पहुंचे घर

नैनोहेल्थ की ‘डॉक-इन-ए-बैग’ तकनीक वैसे तो रिवाज है कि मरीज उपचार के लिए डॉक्टर के पास या अस्पताल पहुंचे, लेकिन हैदराबाद स्थित इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के कुछ छात्रों ने ‘नैनोहेल्थ’ के नाम से एक ऐसे सोशल एंटरप्राइज की स्थापना की है, जिसके तहत ‘डॉक-इन-ए-बैग’ किट के साथ स्वास्थ्य कार्यकर्ता डॉक्टरी परामर्श व दवाइयों के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 28, 2015 8:15 AM
नैनोहेल्थ की ‘डॉक-इन-ए-बैग’ तकनीक
वैसे तो रिवाज है कि मरीज उपचार के लिए डॉक्टर के पास या अस्पताल पहुंचे, लेकिन हैदराबाद स्थित इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के कुछ छात्रों ने ‘नैनोहेल्थ’ के नाम से एक ऐसे सोशल एंटरप्राइज की स्थापना की है, जिसके तहत ‘डॉक-इन-ए-बैग’ किट के साथ स्वास्थ्य कार्यकर्ता डॉक्टरी परामर्श व दवाइयों के साथ घर-घर इलाज मुहैया करा रहे हैं. तो आइए जानें, यह सब कैसे हुआ संभव.
हैदराबाद स्थित इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के पांच छात्रों, डॉ आशीष बोंडिया, मनीष रंजन, रामनाथन लक्ष्मणन, अदिति वैश और प्रणव कुमार मारंगती ने 2014 में नैनोहेल्थ की नींव रखी. गांव और शहरों के गरीब परिवारों के सदस्यों की समुचित स्वास्थ्य सेवा को समर्पित यह सोशल एंटरप्राइज, स्थानीयस्तर पर कार्यरत स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की मदद से घर-घर तक बीमारियों का इलाज मुहैया कराता है़ इसके लिए नैनोहेल्थ ने ‘डॉक-इन-ए-बैग’ के नाम से एक तकनीक विकसित की है़
दरअसल यह मधुमेह, दमा, उच्च रक्तचाप जैसी पुरानी बीमारियों की पहचान करने और उनका समाधान सुझानेवाला एक किफायती उपकरण है, जिसे स्वास्थ्य कार्यकर्ता अपने साथ लेकर गांव, शहर और कस्बे के हर दरवाजे पर दस्तक देते हैं और यह सुनिश्चत करते हैं कि कहीं किसी घर में कोई बीमार तो नहीं. है, तो इस उपकरण के जरिये बीमार की जांच कर उसका पता लगाया जाता है. फिर मरीज को डॉक्टर से संपर्क करवाया जाता है़
प्राय: देखा जाता है कि गांव-कस्बे या शहरों में भी रहनेवाले कम आयवर्ग के लोग छोटी-मोटी स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति लापरवाह होते हैं. इसकी वजह भी होती है़ डॉक्टर की महंगी फीस, महंगी दवा के अलावा वहां लगने वाले समय की भी चिंता होती है. परिणाम यह होता है कि दर्द के साथ मर्ज बढ़ता चला जाता है़ एेसे में नैनोहेल्थ का कंसेप्ट बड़ा असरदार साबित हो रहा है.

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