पांच हजार से पांच करोड़ रुपये का तक का सफर
शशांक के इस सफर की शुरुआत हुई 13 वर्ष की उम्र में, जब उन्हें पहली बार कंप्यूटर से रू-ब-रू होने का मौका मिला़ तब से शशांक की कंप्यूटर में दिलचस्पी दिन-ब-दिन बढ़ती गयी़ उनकी सुबह और शाम कंप्यूटर के साथ ही बीतने लगी. कंप्यूटर में शशांक की दिलचस्पी देख कर उनके माता-पिता भी हैरान थे़ बहरहाल, कंप्यूटर पर काम करते-करते शशांक बहुत कुछ सीखने लगे. उन्होंने धीरे-धीरे उसकी बारीकियां भी जानीं.
इसी क्रम में शशांक ने कोडिंग के बारे में जाना. इसके बाद उन्होंने हैकिंग के बारे में सीखना-समझना शुरू किया. धीरे-धीरे उनके लिए हैकिंग नया शौक बन गया़ अपने इसी नये शौक की वजह से शशांक ने ‘क्रैकपाल डॉट कॉम’ नाम की एक वेबसाइट के लिए काम करना शुरू किया. यहां से उन्हें एक ई-मेल अकाउंट हैक करने के लिए 50 डॉलर मिलते थे.
अपने काम के दौरान शशांक ने कंप्यूटरों के वायरस के बारे में जानना-समझना शुरू किया. दिन-रात की मेहनत से शशांक ने वायरस को ढूंढ़ने, पहचानने और उसे दूर करने में दक्षता हासिल कर ली.
शशांक ने एल्गोरिदम बनाने भी शुरू किये. उन्होंने एक के बाद एक एल्गोरिदम तैयार किये. इसी दौरान उन्होंने लगभग दो साल इंदौर पुलिस के लिए बतौर साइबर सिक्योरिटी कंसल्टेंट काम किया.
इन सबके बीच शशांक की पढ़ाई भी जारी रही, पर इंजीनियरिंग काॅलेज में एडमिशन लेने के बाद भी उन्होंने एथिकल हैकिंग का काम जारी रखा. वैसे काॅलेज की पढ़ाई में उनका मन नहीं लग रहा था़ धीरे-धीरे पढ़ाई-लिखाई से उनकी दिलचस्पी खत्म होने लगी और सेकंड इयर में उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई से खुद को अलग कर लिया. इसके बाद शशांक ने पूरा तन-मन कंप्यूटर्स के क्षेत्र में लगा दिया और इसी क्षेत्र में अपना भविष्य संवारने का फैसला किया़
इस कोशिश में उन्होंने मौकों की तलाश शुरू की. उन्होंने उस समय इंदौर की सबसे प्रतिष्ठित टेक-कंपनी के एग्जिक्यूटिव्स को प्रभावित करने की सोची.शशांक ने इंदौर की सबसे नामचीन सॉफ्टवेयर कंपनी में बतौर वेब सिक्योरिटी कंसल्टेंट, जगह पाने में कामयाबी हासिल की़ यहां शशांक ने कंपनी के क्लाइंट्स की वेबसाइट को हैक किया़
इन वेबसाइट्स की सुरक्षा संबंधी खामियों के बारे में अपनी कंपनी को बताया और बिजनेस को बढ़ाने के लिए नये-नये सुझाव दिये़ इस दौरान प्रतिभा और सफलता की वजह से उन्हें नौकरी में तीन बार तरक्की भी मिली.
लेकिन, एक दिन शशांक ने फैसला किया कि वह अपनी खुद की कंपनी शुरू करेंगे. यह बात फरवरी 2009 की है़ जब शशांक इस्तीफा देकर अपने आॅफिस से बाहर निकले, तो उनके पास कोई डिग्री नहीं थी और जेब में थे सिर्फ पांच हजार रुपये. बहरहाल, शशांक ने घर लौट कर इंटरनेट का सहारा लिया. ऑनलाइन काम ढूंढ़ा. काम भी मिला और कमाई भी शुरू हुई. कमाई बढ़ती गयी और कुछ ही महीने में खुद की कंपनी शुरू करने लायक रुपये शशांक ने जमा कर लिये.
तब फिर क्या था! अक्तूबर, 2009 में शशांक ने कुछ लोगों की एक टीम के साथ ‘इंडिया इंफोटेक’ नाम से एक कंपनी बनायी और काम शुरू किया. जैसे-जैसे काम आगे बढ़ता गया, शशांक को एहसास हुआ कि कंपनी को बड़े पैमाने पर विस्तार करने के लिए उत्पादन के क्षेत्र में उतरना जरूरी है़ कम पूंजी के साथ उत्पादन के क्षेत्र में उतरना मुश्किल था, लेकिन शशांक ने सेवा को ही उत्पाद की तरह बेचने की तरकीब अपनायी. शशांक की कंपनी जल्द ही एक स्पेशलाइज्ड ई-कॉमर्स वेबसाइट डेवलपमेंट कंपनी में तब्दील हो गयी.
उन्होंने अपनी कंपनी के जरिये सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन सर्विस यानी एसइओ सेवाएं उपलब्ध करानी शुरू कर दी. इस सर्विस की वजह से शशांक को दुनिया भर से क्लाइंट मिलने लगे. शशांक और उनकी कंपनी की सेवाओं से कई लोग प्रभावित हुए.
अक्तूबर, 2009 में शुरू हुई कंपनी के लिए फरवरी, 2014 में 10 हजार प्रोजेक्ट्स हाथ में थे, जिनकी बदौलत इस कंपनी की वार्षिक आय पांच करोड़ रुपये तक पहुंच गयी़ इस तरह ‘कॉलेज ड्रॉपआउट’ होने के बावजूद शशांक ने अपनी मेहनत और लगन की बदौलत में पांच हजार से पांच करोड़ रुपये का सफर तय किया़ फिलहाल, शशांक की कंपनी अच्छा बिजनेस कर रही है और उसे दुनिया भर से काम मिल रहा है. बहरहाल, अपनी कंपनी का कामकाज देखने के साथ-साथ वह मौका निकाल कर हैकिंग और कंप्यूटर सिक्योरिटी के अपने शौक पर काम भी कर लेते हैं.
बिल गेट्स, स्टीव जॉब्स और मार्क जुकरबर्ग को हम ऐसी हस्तियों के रूप में जानते हैं, जिन्होंने अपने नाम के साथ ‘कॉलेज ड्रॉपआउट’ का धब्बा लगा होने के बावजूद जिंदगी में ऐसा मुकाम पाया, जो कई पढ़े-लिखे लोगों के लिए भी सपना है.
हमारे देश में भी ‘कॉलेज ड्रॉपआउट’ का मतलब तरक्की की राह से हट जाना होता है, लेकिन इस धारणा को बदलने की कोशिश की है इंदौर निवासी शशांक चौरे ने. एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे शशांक ने अपनी पहचान ‘करोड़पति हैकर’ के रूप में बनायी है. आइए जानें यह सब कैसे हुआ संभव.