Loading election data...

हम जो जिंदा हैं, तो जीने का हुनर रखते हैं!

महाराष्ट्र के किसान ने बनाया बाइसाइकिल वीडर ‘आवश्यकता आविष्कार की जननी है.’ यह कहावत आज भी मायने रखता है. ऐसी चीजें जब सामने आती हैं तो स्वत: यह बात जेहन में आ जाती है कि हम किसी से कम नहीं. यही कमाल कर दिखाया है महाराष्ट्र के एक किसान ने. उन्होंने साइिकल के अगले भाग […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 2, 2015 8:18 AM
महाराष्ट्र के किसान ने बनाया बाइसाइकिल वीडर
‘आवश्यकता आविष्कार की जननी है.’ यह कहावत आज भी मायने रखता है. ऐसी चीजें जब सामने आती हैं तो स्वत: यह बात जेहन में आ जाती है कि हम किसी से कम नहीं. यही कमाल कर दिखाया है महाराष्ट्र के एक किसान ने. उन्होंने साइिकल के अगले भाग से वीडर तैयार कर बैल के अभाव में खेती करने से वंचित रहनेवाले महाराष्ट्र के किसानों में एक नयी उम्मीद जगाने का काम किया है. आज उनकी इसी खोज का नतीजा है कि जलगांव जिले के दो सौ से अधिक किसान इसका इस्तेमाल कर खेती कर रहे हैं.
गोपाल मल्हारी भिसे, उम्र 64 साल, पेशा किसानी, मगर खोज अद्भुत. महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में पैदा हुए गोपाल मल्हारी भिसे को बचपन से ही कुछ अलग करने का शौक था.
जब वे छोटे थे, तब कागज, पेड़ के पत्तों और पुराने कपड़ों से हवाई जहाज बनाते थे. अक्सर वह तितलियों की तरह आसमान में उड़ने का सपना देखा करते. मैट्रिक तक की पढ़ाई के बाद एक क्लर्क के रूप में काम शुरू किया, पर मन नहीं रमा अौर उन्होंने उसे छोड़ दिया. इस बीच महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में अपनी जमीन पर खेती का प्रयास किया. जमीन उपजाऊ नहीं होने के कारण वहां खेती की ही नहीं जाती थी.
पर एक मजदूर की तरह उन्होंने कठिन परिश्रम किया, मगर उत्पादन कुछ खास नहीं हुआ, पर वह मायूस नहीं हुए. दूसरे रास्ते की तलाश की.
अहमदनगर से जलगांव किया पलायन: अहमदनगर की जमीन से गुजारे लायक अनाज नहीं उपजने के कारण गोपाल मल्हारी भिसे ने उसे बेच दिया. वे जलगांव जिले के शेनसुंदरी गांव आकर बस गये.
वहां पर उन्होंने 0.8 हेक्टेयर जमीन खरीदी और उस पर पत्नी के साथ मिल कर खेती शुरू कर दिया. यह उनके लिए बेहद कठिन काम था, क्योंकि उनके पास खेत जोतने के लिए न तो हल-बैल थे और न सिंचाई के कोई साधन, मगर जमीन उपजाऊ थी. पहले पति-पत्नी ने मिल कर जमीन पर सिंचाई के लिए एक कुएं की खुदाई की. दिक्कतें वहां भी थीं. जरूरत पड़ने पर खेत जोतने के लिए बैल नहीं मिलते थे. इस पर उन्होंने बैल खरीद लिया, क्योंकि वहां के अन्य किसानों के पास अपनी ही खेती के लिए बैल की दिक्कत थी. बैल नहीं मिलने के कारण खेती में उन्हें नुकसान भी उठाना पड़ता था.
ऐसी स्थिति में, उन्होंने अनुभव किया कि दूसरी जगह के प्रवासी किसानों को भी इसी तरह की कुंठा का सामना करना पड़ता होगा. यह विचार आते ही उन्होंने एक ऐसा यंत्र बनाने की सोची, जो इस काम में मदद कर सके.
ऐसे आयी तरकीब : एक दिन उन्होंने एक साइकिल पर किसी को आटे के चार बोरे लाते हुए देखे. हालांकि, यह काम कठिन था, फिर भी वह काम कर रहा था. उस आदमी को देख कर भिसे के मन में एक तरकीब आया कि क्यों न खेती के काम के लिए साइकिल का उपयोग किया जाये. कई बार के प्रयास के बाद आखिरकार वह अपने मकसद में सफल हो गये. उन्होंने साइकिल के अगले भाग एक्सल, चक्के और हैंडल से एक ऐसे यंत्र का निर्माण किया, जिससे बिना ट्रैक्टर और बैल के ही खेती का काम किया जा सकता था. दूसरी अोर उनके इस काम को देख कर लोग उनकी हंसी उड़ाते थे, पर वो निराश नहीं हुए.
इसी दौरान उनकी पहली पत्नी मैना बाई (36 वर्ष) का निधन हो गया. इसके बाद उन्होंने दूसरी शादी की. इसके साथ ही उनकी जिम्मेदारी भी बढ़ गयी. उनकी पहली पत्नी से चार संतानें और दूसरी पत्नी रंजना उर्फ मैना बाई से एक बेटी थी. दूसरी पत्नी ने पूरा सहयोग किया. मेहतन रंग लायी अौर उनके इस प्रयास में सचिन वेल्डिंग वर्क्स के मालिक अपनी टीम के साथ शामिल हो गये अौर तैयार हो गया भिसे के सपनों का यंत्र.
बाजार में हाथोंहाथ बिका कृषिराजा : जलगांव के उत्तरी महाराष्ट्र विश्वविद्यालय के रमेश महाजन का कहना है कि करीब 213 अन्य उपकरणों के सहयोग से बनाये गये इस नये छोटे से कृषि यंत्र को बनाने कुछ परेशानी आयी, लेकिन अंतत: इसे कृषिराजा के नाम से स्थानीय बाजार में उतारा गया.
उस समय इसकी कीमत मात्र 1200 रुपये रखी गयी. कम कीमत पर मिलनेवाले इस यंत्र से उन गरीब किसानों को खेती करने में आसानी होने लगी, जिनके पास बैल रखने के पैसे नहीं थे. आज उनकी उसी किसानी और शारीरिक परिश्रम का नतीजा है कि महाराष्ट्र के 200 से अधिक किसान उनके द्वारा ईजाद किये गये बाइसाइकिल वीडर का इस्तेमाल करते हैं.

Next Article

Exit mobile version